हिन्दुओं के विभिन्न मुद्दों पर हिंदू, ईसाई व मुसलमान खूब चर्चा करेंगे, मजाक उड़ाऐंगे तथा कटाक्ष भी करेंगे लेकिन इसी तरह की चर्चाएं ईसाईयत व इस्लाम पर करने की ईजाजत ये ईसाई व मुसलमान कभी नहीं देते । यह सब वे सेक्युलरवाद की ताकत के सहारे ही कर पाते हैं । कोई कश्मीर से भगाए गए पांच लाख हिन्दुओं की बात करे या बांग्लादेश में हिन्दुओं के नरसंहार की बात करेे तो वह साम्प्रदायिक लेकिन जो संसद पर हमले के दोषी अफजल को फांसी दिए जाने को इंसाफ के साथ नाईंसाफी कहे या कश्मीर में सफल चुनाव को पाकिस्तान व अग्रवादियों की करामात बतलाएं तो वे सेक्युलरवादी कहलाएं, यह है सेक्युलरवाद का राष्ट्रविरोधी चेहरा । सच को झूठ व झूठ को सच करने में ये किस तरह से हिटलर व गोयबल्स से भी आगे निकल जाते हैं - इसके भारत में 5-10 नहीं सैंकड़ों प्रमाण बिना मेहनत के मिल जाऐंगे । वास्तव में ही भारत पिछले कई दशक से इस सेक्युलवाद की महामारी से ग्रस्त है । इसका सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है भारत को व इसके सनातन निवासी हिन्दुओं को । अपने को सेक्युलर दिखलाने के ढोंग में हम अपने राष्ट्र, अपने जीवन मूल्यों, अपनी संस्कृति, अपनी शिक्षा, अपने किसानों एवं अपनी जमीन से गद्दारी कर रहे हैं । भारत में अपने ही देश में रहते हुए तथा अस्सी प्रतिशत होने के बावजूद भी हिन्दू प्रताड़ना, शोषण, अपमान एवं भेदभाव का शिकार है । इसकी हर आवाज को सांप्रदायिक कहकर दबा दिया जाता है जबकि मुसलमान व ईसाई अल्पसंख्यक होने के बावजूद राष्ट्रविरोधी बातें करके भी हमारे नेताओं के आंखों के तारे बने रहते हैं । अतिरिक्त सेवाएं सरकार से प्राप्त करके भी अल्पसंख्यक भारत राष्ट्र के प्रति घृणा के भाव रखते हैं । यह सब मूढ़ताएं केवल व केवल सेक्युलरवादी व्यवस्था के अंतर्गत ही चलती हैं ।
सेक्युलरवाद का सार कम से कम भारत में तो यह बन गया है कि मुसलमान व ईसाई कुछ भी राष्ट्र विरोधी, संस्कृति विरोधी, सभ्यता विरोधी या हिन्दू विरोधी कुछ भी करें - उन्हें कोई रोके व टोके नहीं। लेकिन उनके विरुद्ध हिन्दू कभी भी मुंह न खोलें । हिंदू बस देखता रहें-जवाब कुछ भी न दें । हिंदू सिर्फ सुनते रहें तथा क्षमा करते रहें । हिंदू अपने सार्वजनिक व व्यक्तिगत जीवन में ऐसा कुछ भी न करें कि जिससे अल्पसंख्यक ईसाई व मुसलमानों को बुरा लगे । आखिर अपमानित होना, प्रताडि़त होना, गालियां खाना, गुलामों की तरह जीवन जीना, शोषित होना तथा अपने ही देश में परायों की तरह रहना हिन्दुओं का भाग्य सा क्यों बन गया है?
एम॰ एफ॰ हुसैन जैसे चित्रकारों द्वारा हिंदू देवी-देवताओं के बारे में ऊटपटांग तस्वीरें बनाने पर हिन्दू एतराज करें तो यह अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है लेकिन जब तसलीमा नसरीन या शीरीन दलवी जैसी लेखिकाएं इस्लाम की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करने हेतु लेखनी चलाएं तो यह मुस्लिम अधिकारों का हनन है । यह इस्लाम की भावनाओं के विरुद्ध है, यह सांप्रदायिकता है । यह हिन्दुओं द्वारा की गई कारस्तानी है । अभिव्यक्ति की आजादी का यदि इतना ही सम्मान है तो वह तो सभी हेतु ही उपलब्ध होनी चाहिए । मोहन भागवत ने यदि कह दिया कि हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी हिन्दू हैं तो यह इस्लाम पर प्रहार है या घोर सांप्रदायिकता है लेकिन जब ओवैसी जैसे टुच्चे व्यक्ति यह कहते हैं कि संघ के लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने की सीख देने का अधिकार नहीं है, तो यह उनका अभिव्यक्ति का अधिकार है । बलबीर पुंज ने ऐसे लोगों पर सटीक टिप्पणी की है। वे कहते हैं कि सनातन संस्कृति में तो सनातन से सेक्युलरवाद मौजुद है। इसमें तो पदे-पदे सेक्युलरवाद का उपदेश दिया जाता है। लेकिन आधुनिक सेक्युलरवाद में यदि गाली देने वाला मुस्लिम है और जिसकी आस्था पर आघात होता हो, वह हिंदू हो तब तो यह अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन शक के दायरे में यदि गैर हिंदू (मदर टेरेसा) हों तब सेक्युलरवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मापदंड बदल क्यों जाते हैं? (दैनिक पंजाब केसरी, 27 मार्च 2015)। यह है सेक्युलरवाद की असलियता । विदेश से लिये संविधान में इस शब्द का कोई भी अर्थ रहा हो लेकिन भारत में तो सेक्युलरवाद का यही अर्थ लिया जाता रहा है । यह एक सच्चाई है भारत के वर्तमान की । मोदी जी भी इस संविधान को बदलने के हिमायलीन दावे कर रहे थे लेकिन सारे दावे सत्ता में आते ही हवा हो चुके हैं। अब तो भाजपा भी कांग्रेस बनने की दौड़ मंे है। अब तो मोदी जी भी गांधी नाम की माला रट रहे हैं। अब सावरकर, सुभाष व श्री अरविंद या भगत सिंह मोदी जी ने भुला दिए हैं। सच्चाई कड़वी होती है और भाजपा भी इस कड़वी सच्चाई को मानने हेतु कतई तैयार नहीं है क्योंकि सत्ता जो मिल गई है।
सेक्युलरवाद का सार कम से कम भारत में तो यह बन गया है कि मुसलमान व ईसाई कुछ भी राष्ट्र विरोधी, संस्कृति विरोधी, सभ्यता विरोधी या हिन्दू विरोधी कुछ भी करें - उन्हें कोई रोके व टोके नहीं। लेकिन उनके विरुद्ध हिन्दू कभी भी मुंह न खोलें । हिंदू बस देखता रहें-जवाब कुछ भी न दें । हिंदू सिर्फ सुनते रहें तथा क्षमा करते रहें । हिंदू अपने सार्वजनिक व व्यक्तिगत जीवन में ऐसा कुछ भी न करें कि जिससे अल्पसंख्यक ईसाई व मुसलमानों को बुरा लगे । आखिर अपमानित होना, प्रताडि़त होना, गालियां खाना, गुलामों की तरह जीवन जीना, शोषित होना तथा अपने ही देश में परायों की तरह रहना हिन्दुओं का भाग्य सा क्यों बन गया है?
एम॰ एफ॰ हुसैन जैसे चित्रकारों द्वारा हिंदू देवी-देवताओं के बारे में ऊटपटांग तस्वीरें बनाने पर हिन्दू एतराज करें तो यह अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है लेकिन जब तसलीमा नसरीन या शीरीन दलवी जैसी लेखिकाएं इस्लाम की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करने हेतु लेखनी चलाएं तो यह मुस्लिम अधिकारों का हनन है । यह इस्लाम की भावनाओं के विरुद्ध है, यह सांप्रदायिकता है । यह हिन्दुओं द्वारा की गई कारस्तानी है । अभिव्यक्ति की आजादी का यदि इतना ही सम्मान है तो वह तो सभी हेतु ही उपलब्ध होनी चाहिए । मोहन भागवत ने यदि कह दिया कि हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी हिन्दू हैं तो यह इस्लाम पर प्रहार है या घोर सांप्रदायिकता है लेकिन जब ओवैसी जैसे टुच्चे व्यक्ति यह कहते हैं कि संघ के लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने की सीख देने का अधिकार नहीं है, तो यह उनका अभिव्यक्ति का अधिकार है । बलबीर पुंज ने ऐसे लोगों पर सटीक टिप्पणी की है। वे कहते हैं कि सनातन संस्कृति में तो सनातन से सेक्युलरवाद मौजुद है। इसमें तो पदे-पदे सेक्युलरवाद का उपदेश दिया जाता है। लेकिन आधुनिक सेक्युलरवाद में यदि गाली देने वाला मुस्लिम है और जिसकी आस्था पर आघात होता हो, वह हिंदू हो तब तो यह अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन शक के दायरे में यदि गैर हिंदू (मदर टेरेसा) हों तब सेक्युलरवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मापदंड बदल क्यों जाते हैं? (दैनिक पंजाब केसरी, 27 मार्च 2015)। यह है सेक्युलरवाद की असलियता । विदेश से लिये संविधान में इस शब्द का कोई भी अर्थ रहा हो लेकिन भारत में तो सेक्युलरवाद का यही अर्थ लिया जाता रहा है । यह एक सच्चाई है भारत के वर्तमान की । मोदी जी भी इस संविधान को बदलने के हिमायलीन दावे कर रहे थे लेकिन सारे दावे सत्ता में आते ही हवा हो चुके हैं। अब तो भाजपा भी कांग्रेस बनने की दौड़ मंे है। अब तो मोदी जी भी गांधी नाम की माला रट रहे हैं। अब सावरकर, सुभाष व श्री अरविंद या भगत सिंह मोदी जी ने भुला दिए हैं। सच्चाई कड़वी होती है और भाजपा भी इस कड़वी सच्चाई को मानने हेतु कतई तैयार नहीं है क्योंकि सत्ता जो मिल गई है।
औछी मानसिकता वाले लोगो की सोच ऐसी ही होती है। अपने आप को हिन्दू भी कहते है और सनातन के पालक भी। आप जैसे लोगो की ही वजह से हिंदुत्व की उपेक्षा होती है। पहले तो अच्छी तरह से सनातन धर्म संस्कृति को समझ ले फिर कुछ लिखे।
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