दूर क्या हुए तुम जीवन से,
हो गया मैं सुनो बर्बाद।
गलत होगा करता हू याद॥
दूर गई क्या प्राण चले गए
शायद तुमको होगा मालूम।
मैं बस जग में हुआ अकेला
हर घर में मस्ती की धूम॥
दूरी तुम से कितनी घातक
कैसे मैं तुमको बतलाऊ।
पल-भर कहीं भी चैन मिले न
तुमही बताओ मैं कहां जाऊ॥
दूरी ने घायल कर डाला है
इतने गहरे घाव मिले हैं।
प्यार तुम्हारा मरहम है बस
बाधा केवल समाज-किले हैं॥
विरह-पीडा से घायल करना
कोई उपमा वर्णन नहीं कर सकती।
झूठे हुए प्रिये! सारे आश्रय
देह, आत्मा बस तुम्ही को तकती॥
दूर हुई हो तुम ही प्रिये
तुम्हारी याद ने साथ निभाया।
सिकुड चेतना लगी तुम्ही पर
मरणासन्न बस हुई है काया॥
रुपनगर की वासी प्रिये तुम
मुझे नरक में धकेल दिया है।
हलचल हो देह में बेशक
समझो मर गया तुम्हारा पिया है॥
जिन पलों को साअथ जीया था
जीवन-ऊर्जा को किया महसूस।
उनके संग बस जीवन च्लेगा
मेरी प्रार्थना रहो तुम खुश॥
देह पार कर तुमको जाना
न प्रथम, द्वितीय,
तृतीय शरीर।
अभागा तो मैं पहले भी बहुत था
रही-सही फूटी मेरी तकदीर॥
-आचार्य शीलक राम
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