Thursday, March 24, 2016

भारतीय इतिहास का इतिहास दर्शनशास्त्र


श्रीमद्भगवद्गीता का संबंध महाभारत के युद्ध से है जबकि बाईबिल कुरान का संबंध दया, सेवा, प्रेम भाई-चारे से जोड़ा जाता है लेकिन हकीकत यह है कि युद्ध, नरसंहार, आतंक, उग्रवाद, तनाव, हिंसा, अशांति, तनाव, चिंताव कुंठ से ग्रस्त विश्व श्रीमद्भगवद्गीता में शांति, सौहार्द, भ्रातृत्वभाव, करुणा प्रेम, सहयोग, संतुष्टि तृप्ति खोजता है, जबकि बाईबिल, कुरान को मानने वालों ने इस धरा को पिछली बीस सदियों से युद्धों, नरसंहारों, मारकाट, मतांतरण, बलात्कारों, उग्रवाद, आतंक, हिंसा, शोषण उपनिवेश स्थापित करके लूट मचाने के नरक में धकेले हुआ है है विचित्र तथ्य ऐसी ही अनेक विचित्रताओं से भरी है हमारी यह सनातन भारतभूमि
आप भारत के शिक्षा-संस्थानों में पढ़ाई जाने वाली इतिहास विषय की पुस्तकें पढि़ए आपको उनमें राष्ट्र हेतु अपना सब कुछ खपा देने वाले शिवाजी के बारे में एक पृष्ठ मुश्किल से मिलेगा जबकि विदेशी लूटेरे अकबर, शाहजहां, बाबर, हुमायूँ आदि के बारे में बीस-बीस पृष्ठ लिखे मिल जांएगे हालांकि शिवाजी की देशभक्ति, उनकी शासन-व्यवस्था न्याय-नीति किसी भी काल देश से कमतर नहीं थी लेकिन फिर भी उनकी उपेक्षा शिवाजी ने एक समय पर मुगल साम्राज्य को लगभग समाप्त करके अफगानिस्तान तक अपनी सत्ता कायम की थी लेकिन मुगल, मंगोल, अंग्रेज, पुर्तगाली आदि ही हमारी इतिहास दृष्टि हेतु प्रमुख हैं इन अंग्रेजी सोच से ग्रस्त कांग्रेसियों साम्यवादियों ने सब कुछ का कबाड़ा कर दिया है इस कबाड़े को ही हम अपने शिक्षा-संस्थानों में अपने विद्यार्थियों के चित्तों में भरकर उनको बौर कर रहे हैं ऐसे में कैसे विकसित होगी हमारे युवाओं में राष्ट्रभक्ति?
दक्षिण भारत दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थापित चोल साम्राज्य कुछ वर्षों तक नहीं अपितु कई शताब्दियों तक चले शासकों द्वारा स्थापित किया गया था यह साम्राज्य मुगल साम्राज्य से भी अधिक विशाल विस्तृत था लेकिन चोल राजाओं के संबंध में इतिहासकार इतना खुलकर निष्पक्ष नहीं बोलेंगे क्यों? क्योंकि वे सबके सब हिंदू थे इस देश के इतिहासकारों को भारत, भारतीयता, भारतवासियों, यहां के राजाओं, यहां के राजाओं की शासन-व्यवस्था, यहां के दार्शनिकों महापुरुषों, यहां हुई वैज्ञानिक खोजों, यहां की उन्नत आर्थिक व्यवस्था, यहां की शत-प्रतिशत साक्षरता, यहां के उच्च कोटि के साहित्य तथा यहां की चमत्कारिक सर्वाधिक प्राचीन चिकित्सा व्यवस्था से विरोध घृणा ही रही हैं निकृष्ट विदेशी की प्रशंसा के गीत तथा श्रेष्ठ भारतीय की निंदा उपेक्षा-यही नीति हैं हमारे इतिहासकारों की
भारतीय इतिहास को लिखने लिखवाने में जो भेदभाव, धांधली, नीचता, हीनता, निम्नता एवं मूढ़ता हुई है वह किसी भी तरह से वैज्ञानिक सही नहीं कही जा सकती लिखे गए इतिहास के हर वाक्य, अनुच्छेद पृष्ठ पर भेदभाव विदेशीपन की छाप देखे जा सकते हैं यहां के इतिहास लेखकों की इतिहास दृष्टि इतिहास कहलाने के योग्य भी नहीं है इतिहास को यदि पूर्व में घटी घटनाओं का निष्पक्ष भेदभावरहित विवरण कहा जाए तो हमारे भारतीय शिक्षा-संस्थानों में छात्रों को परोसा जाने वाला इतिहास किसी भी तरह से इतिहास है ही नहीं इतिहास के नाम पर भारतीय समृद्ध वैभवशाली अतीत के संबंध में घटिया, हीनता की ग्रंथि से ग्रसित, पूर्वाग्रहपूर्ण झूठों, मनघंडत विवरणों, थोपी गई मान्यताओं, कुचक्रों, विदेशीपन, गुलाम मानसिकता एवं भारतीय सभ्यता संस्कृति को विकृत करके दिखाने पढ़ाने का षड्यंत्रमात्र है इसे ही यदि इतिहास कहा जाता हो तो किसी देश को लूटना, बर्बाद करना, उसके अस्तित्व को मना कर देना, उसकी पहचान को मिटा देना तथा उसके संबंध में घटिया टिप्पणियां करना क्या कहा जाऐगा?
ऐसी ही मूढ़ पूर्वाग्रहपूर्ण दृष्टि के कारण हिंदूत्व पर अनाप-शनाप अपनामपूर्ण टिप्पणियां की जाती हैं सनातन आर्य वैदिक हिंदू राष्ट्र में 1500 के लगभग मूल ग्रंथों की 10000 व्याख्यांए तथा 100000 उप-व्याख्याएं मौजुद हैं अनेक वादों, मतों, सिद्धांतों विचारधाराओं को मानते हुए भी, इन सबके विभिन्न धर्मग्रंथ धर्मस्थल होने पर भी तथा इन सबकी वेशभूषा धार्मिक प्रतीक भिन्न होते हुए भी सभी हिंदू आर्य एक परमात्मा को मानते हैं सभी वेदों को महत्त्व देते हैं सभी उपनिषदों को महत्त्व देते हैं सभी श्रीमद्भगवद्गीता को मानते हैं सभी रामायण महाभारत को चाव से पढ़ते हैं। सभी परस्पर सबके धर्मस्थलों पर पूजापाठ हेतु जाते हैं सभी का लक्ष्य आर्य बनना बनाना है सभी योग के माध्यम से छोटे सुख से परमांनद की अनुभूति तक की यात्रा करना अपना परम कत्र्तव्य समझते हैं दूसरी तरफ ईसाई इस्लाम मत के अनुयायी एक बाईबिल एक कुरान को मानते हुए भी अनेक संप्रदायों में बंटे हुए हैं ये परस्पर संबंध रखना भी पाप समझते है। ये एक-दूसरे के रक्त के प्यास हैं ये करोड़ों लोगों के हत्यारे बने हुए हैं तथा अब वर्तमान में भी कर रहे हैं हिदंू ने तो धर्म हेतु इस तरह के नरसंहार कभी नहीं किए जिस तरह पिछली बीस सदियों से ईसाई मुसलमान करते रहे हैं इतिहासकार इसका कोई जिक्र नहीं करते हैं वे ऐसा करेंगे भी क्यों? क्योंकि हमारे इतिहास लेखक उसी उपनिवेशी जेहादी विचारधारा से तो समर्थन, दौलत वैभव पा रहे हैं जिन्होंने भारत को पिछली तेरह सदियों से गुलाम बनाकर रखा, लूटा, शोषण किया 35 करोड़, हिंदुओं को अब तक जिन्होंने कत्ल किया हिंदू संसार के सर्वाधिक प्रताडि़त लोग हैं। सर्वाधिक सताए गए लोग हैं हिंदू इतिहासकारों ने कहीं भी जिक्र नहीं किया है इस तथ्य का कब लिखा जाएगा सच्चा इतिहास? कब पढ़ाया जाएगा हमारे छात्रों को सच्चा इतिहास? हमारे देश के नेता कब इतनी हिम्मत कर पाएंगे?
हिंदुओं ने सदैव से ही शास्त्र शस्त्र को अपने साथ रखा है। लेकिन कुछ समय से हिंदुओं ने शास्त्र शस्त्र दोनों को ही छोड़ दिया है पूरी तरह शास्त्र को मानते जानते तथा ही शस्त्र धारण करते हैं अपनी रक्षा हेतु सिखों की उत्पत्ति हिंदुओं की रक्षा हेतु हुई थी लेकिन अब वही सिख अब यह कह रहे हैं कि हम हिंदू नहीं है तथा हमारा हिंदुओं से कोई लेना-देना नहीं है अब यह सच्चा इतिहास कौन लिखेगा पढ़ाऐगा कि सिख हिंदू, बौद्ध हिंदू या जैन हिंदू भिन्न-भिन्न नहीं अपितु एक ही हैं? हम अपनी इतिहास दृष्टि को भारतीय बनाएं, हम अपनी इतिहास दृष्टि को निष्पक्ष बनाएं, हम अपनी इतिहास दृष्टि को राष्ट्र की भूमि से जोड़कर सोचे 

No comments:

Post a Comment