हमारे देश के समाचार-पत्र प्रतिदिन यौनापराध, बलात्कार, बालिका यौन-शोषण, नारी-शोषण, नारी को सताने, भ्रूण हत्या, लड़के-लड़की में भेद, लड़कियों पर तेजाब फैंकने, उन पर भद्दी टिप्पणियां करने आदि तथा भ्रष्टाचार देशद्रोह, घूसखोरी, बेईमानी, लूट देश का धन विदेशी बैंकों में जमा करवाने, कामचोरी आदि के के समाचारों से भरे रहते हैं । हालांकि देश में बहुत कुछ सृजनात्मक भी होता रहता है लेकिन हमारे समाचार-पत्रों के संपादकों व स्वामियों को शायद प्रचार व धन कमाने के लिए यही ढंग उचित जानू पड़ता है कि वे इस तरह के उत्तेजक, अश्लील एवं घोटालों से परिपूर्ण समाचार ही छापें । नकारात्मकता का सर्वत्र बोलबाला तथा सकारात्मकता एक कमजोरी समझी जाती है । हमारे देश का यह हाल हुआ क्यों? जिस देश में नैतिक-मूल्यों की लाखों वर्ष पुरानी परंपरा हो वहां पर नैतिक मूल्यों का इस तरह पतन होना बहुत बड़ी चिंता का विषय है । हमारी सनातन आर्य वैदिक हिंदू संस्कृति में नैतिकता, सदाचार, चरित्र एवं जीवन-मूल्यों का सर्वोपरि महत्त्व है । इसके बिना एक स्थिर एवं प्रगतिशील समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती । महर्षि मनु का यह उद्घोष कि ‘स्व स्व चरित्र...’ यानि कि अपने-अपने चरित्र, आचरण, जीवन-शैली एवं आहार-विहार को शुद्ध व सृजनात्मक बनाने हेतु लोग हमारे भारतवर्ष में सदैव से आते रहे हैं । इस संदर्भ में यह सोचनीय हो जाता है कि हमारे जीवन का प्रत्येक पक्ष भ्रष्ट, दुषित एवं पतनशील हो गया है । कहां हम अन्य राष्ट्रों को चरित एवं आचार-विचार की शिक्षा दिया करते थे और कहां हम आज सर्वाधिक भ्रष्ट, अनैतिक, चरित्रहीन एवं असहाय हो गए हैं। क्यों हो गए हैं हम ऐसे? नेता लोगों ने तो इस पर विचार करना ही छोड़ दिया है । वे तो हमारी इस धरा पर एक तरह से असत्य, बुराई, पतन, चरित्रहीनता एवं अनैतिकता का पर्याय सा बन चुके हैं । लगभग सब ही एक ही थैली के चट्टे-बट्टे सिद्ध हो रहे हैं । 1947 ई॰ के पश्चात् जो दल सत्ता में रहा है उसने भारत को बर्बाद करने एवं अनैतिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जब से क्षेत्रीय दल सत्ता में आने शुरू हुए हैं भारत में इन उपर्युक्त बुराईयों ने विकृत रूप धारण कर लिया है । सत्ता में बने रहने के लिए सत्तासीन दल इन क्षेत्रीय दलों की राष्ट्रविरोध, अनैतिक, चरित्रहीन एवं भ्रष्टाचारी को बढ़ावा देने वाली मांगों को स्वीकार करने में कभी भी पीछे नहीं रहता ।
देश में हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है । सफेद-चादर पर दाग लगने वाले बात तो कब की पुरानी हो चुकी है। हमारे भारत में अब तो देखना यह है कि इस चादर में कोई सफेदी कहीं पर बची है कि नहीं । सभी लूट रहे हैं देश को । देश से संबंधित कोई भी पक्ष तो ऐसा नहीं है कि जिस पर हम गर्व कर सकें। कुछ लोगों ने 1947 ई॰ से पूर्व एक ऐसे भारत की कल्पना की थी जिसमें हमारे सनातन एवं शाश्वत मूल्य सुरक्षित रहेंगे, हमारे नागरिकों ाक शोषण नहीं होगा, हमारा राष्ट्र लूट व भ्रष्टाचार से मुक्त होगा, हम समृद्ध एवं विकसित होंगे तथा हम फिर से विश्वगुरू की पदवी पर आसीन होंगे । लेकिन आजादी भी आई तो वह अंग्रेजी शर्तों पर दी हुई थी । जो भी देश आजाद हुए है वे अपनी शर्तों पर आजाद हुए हैं लेकिन भारत के उस समय के कुछ नेता प्रधानमंत्री व अन्य पदों की मुख से इतने पागल एवं उतावले थे कि उन्हें नैतिक-अनैतिक, दृढ़-असहाय, गरीब-संपन्न, राष्ट्रवाद-राष्ट्रदोही आदि धारणाओं से कुछ भी लेना-देना न रहा तथा अंग्रेजों की थोपी गई शर्तों पर आजादी स्वीकार कर ली। अनैतिकता, भ्रष्टाचार, देशद्रोह, लूट, पक्षपात एवं भेदभाव के बीज हमारी आजादी के मूल में ही छिपे हुए हैं । जब तक मूल में भी सब कुछ ठीक न होगा तक तक सुधार या समृद्धि की आशा व्यर्थ ही जाएगी । क्या सत्ता-पक्ष तथा क्या विपक्ष सब के सब उसी ढर्रे पर चल रहे हैं जिस पर हमें अंग्रेजों ने चलाया था । अपनी स्वयं की जमीन से जुड़ाव रखने में आज भी सभी राजनीतिक दल अपना अपभाव समझते हैं । अपनी जमीन, अपनी सोच, अपनी जीवनशैली, अपने आचार-विचार, अपना चरित्र, अपनी संस्कृति, अपना दर्शन, अपनी व्यवस्था, अपनी भाषा आदि सभी इस हेतु अति आवश्यक हैं कि हमारा राष्ट्र चरित्रहीन हो या चरित्रवान, हमारा राष्ट्र अनैतिक हो या नैतिक, हमारा राष्ट्र गरीब हो या संपन्न, हमारा राष्ट्र विश्वगुरू हो या पददलित ।
इसके साथ-साथ एक दूसरा पहलू भी अति आवश्यक है जिसकी आज तक हम उपेक्षा करते आए हैं । हमारे यहां राजनीतिक व्यवस्था तो उधारी एवं पंगू है ही, इसके साथ-साथ हमने ‘विज्ञान’ पर बहुत अधिक भरोसा कर लिया है, तथा ‘नीति-शास्त्र’ की हमने कतई उपेक्षा कर दी है। हमारे नेताओं में संकल्पशक्ति व इच्छाशक्ति तो है ही नहीं, इसके साथ-साथ हमारी राजनीतिक प्रणाली उधार ली गई तथा विज्ञान पर हमारा अति-विश्वास ये सब हमें लेकर डूब गए है । हम कहीं के भी नहीं रहे हैं । नेता, उद्योगपति, विदेशी कंपनियां आदि सभी देश को लूट रहे हैं । कानून-व्यवस्था में आपाधापी, भेदभाव, जातिवाद, धन, रिश्वत, पहुंच एव पद का सीधा हस्तक्षेप है। लोगों को कानून का डर तो है ही नहीं क्योंकि रूपयों के बल पर, पहुंच के बल पर, रिश्वत व सिफारिस के बल पर कानून की गिरफ्त को ढेंगा दिखाना या उससे छूटकारा पाना कोई मुश्किल काम नहीं है । देश के धन को लूटो, भ्रष्ट तरीकों से धन अर्जित करो, चुनाव को गुंडागर्दी के बल पर जीतो, न्याय-व्यवस्था को रूपयों में खरीद लो, पुलिस अधिकारियों से कुछ भी करवाओ, भ्रष्ट तरीके अपनाकर पदों को हथिया लो, किसी मासूम से बलात्कार करो तथा न्याय-व्यवस्था की खिल्ली उड़ाते हुए छूट जाओ । गरीब व असहाय व्यक्ति की लड़की से यदि को छेड़खानी करे या बलात्कार करे तो भारीय न्याय-व्यवस्था में तो उसे न्याय मिलेगा नहीं । वह स्वयं खत्म हो सकता है लेकिन उसे न्याय नहीं मिलेगा । यह न्याय-व्यवस्था इतनी लंबी, महंगी एवं भेदभावपूर्ण है कि कोई गरीब व्यक्ति इसकी शरण में जाने से हिचकेगा । यह न्याय-व्यवस्था उस गरीब लड़की की ईज्जत की सुरक्षा करने में असमर्थ सिद्ध हुआ है । यह कोई बड़प्पन या बड़ाई की बात नहीं है कि दो-चार लड़कियों के बलात्कार के मुद्दे पर पूरा देश आक्रोश से भर गया तथा दिल्ली आदि बड़े शहरों की सड़कों पर खूब प्रदर्शन हुए । देखना यह है कि इसका परिणाम क्या हुआ? समस्या ज्यों की त्यों है । कानून व्यवस्था, हमारे नेताओं की गंदी सोच, लड़कियों के प्रति मर्दों की सोच, लड़कियों के साथ दुव्र्यवहार, लड़कियों का यौन शोषण, लड़के-लड़की में भेदभाव, भ्रूणहत्या, बलात्कार तथा पुलिस का अंग्रेजराज बर्ताव आदि आदि सभी के सभी पूर्ववत् हैं । कहीं कुछ बदलाव नहीं आया है । नेता बयान देकर चुप बैठ जाते है नपुंसकों की तरह । उनके किए कुछ हो भी नहीं रहा तथा वे कुर्सी को भी नहीं छोड़ते हैं । शायद नेता व पुलिस यह मानकर बैठे हुए हैं कि जनता हाय-हाय करके या मुर्दाबाद करके या अनशन आदि करके कुछ दिन बाद खुद ही चुप बैठ जाएगी । कुछ करने-वरने की जरूरत नहीं है । इन नेताओं का पालन-पोषण ऐसे परिवेश में हुआ है कि इन्हे कुछ सूझता भी नहीं है । क्यों नहीं इन राजनीतिक दलों व इनके नेताओं को सनातन भारतीय आर्य वैदिक हिंदू संस्कृति के नैतिक-मूल्य दिखलाई देते? इन उपर्युक्त सारी समस्याओं, विषमताओं, पिछड़ेपन, भेदभाव एवं जड़ता का समाधान नैतिक-मूल्यों की शिक्षा में निहित है। जिन व्यक्तियों में योग-साधना के माध्यम से विवेक की जागृति नहीं हुई है उन हेतु नैतिक-मूल्यों का पालन ही उपर्युक्त सारी समस्याओं का एकमात्र समाधान है । केवल कानून के भय, पुलिस के डंडे या अन्य किसी प्रलोभन से ये बुराईयां समाप्त नहीं की जा सकती । लेकिन सोचनीय बात यह भी है कि यदि सब इसी तरह चलता रहा तो भारत की हालत इतनी बुरी एवं दयनीय हो जाएगी कि हर तरफ अराजकता छा जाएगी तथा लोग सोचने लगेंगे कि अंग्रेजी राज, मुसलमानराज तथा अब इनके राज में अंतर क्या है? अव्यवस्था, अराजकता, लूट एवं भ्रष्टाचार का विकृत से विकृत रूप यदि कहीं देखना हो तो भारत एक उपर्युक्त देश है।
‘नीति-शास्त्र’ के अंतर्गत दंड के तीन सिद्धांत प्रतिकारात्मक प्रतिरोधात्मक एवं सुधारात्मक होते हैं । ये तीनों सिद्धांत सरकार की गलत एवं ढुलमूल नीतियों के कारण व्यर्थ से सिद्ध हो चुके हैं । सरकार की इन्हीं गलत, भेदभावपूर्ण, भ्रष्ट एवं ढुलमूल नीतियों का भरपूर लाभ अपराधी लोग उठा रहे हैं । अपराध करने वाले सरेआम अपराध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें कानून का कोई भय ही नहीं है। जिस देश के नेता भ्रष्ट, कामचोर, लूटेरे एवं लपटी हो उस देश की जनता भी वैसी ही बन जाएंगी। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ की लोकोक्ति हमारे यहां प्रसिद्ध है । इस लोकोक्ति का प्रभाव भारत व इसकी जनता पर हर कहीं देखा जा सकता है। नेता यदि भ्रष्टाचार अनाचार दुराचार, लूटपाट एवं चरित्रहीनता करके भी कानून को ठेंगा दिखलाकर खुले घूम रहे हो तो जनता भी तो ऐसा ही करेगी । भारत में हर तरफ यही हो रहा है । सरकार दावे पर दावे कर रही है लेकिन सरकार के दावों को धता बतलाकर प्रतिदिन नए-नए कांड होते रहते हैं । राष्ट्र को भलि तरह से चलाओ और यदि यह नहीं हो रहा है तो गद्दी को छोड़ दो - सरकार से यह भी नहीं हो पा रहा है ।
भारत से इन सब समस्याओं को दूर करने हेतु एकमात्र रास्ता बचा है वह है नैतिक-मूल्यों की शिक्षा का । शिक्षा-संस्थानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों में नैतिक-मूल्यों की सीख अनिवार्य कर देनी चाहिए। टी॰वी॰, मोबाईल, रेडियो, समाचार-पत्र तथा ऐसे ही अन्य संचार के साधनों पर नैतिक मूल्यों की सीख देते हुए कार्यक्रम अधिक से अधिक प्रसारित किए जाने चाहिए। अश्लीलता, कामुकता, भडकाऊपन, अति खुलेपन आदि का प्रदर्शन दंडनीय अपराध एवं अनैतिक घोषित कर दिया जाना चाहिए । अनैतिक कृत्यों को करने वालों को ‘हीरो’ न बनाकर अपराधी समझा जाना चाहिए। फिल्म व टी॰वी॰ कार्यक्रमों में दिखाए जाने वाले नायक व नायिकाओं को आदर्श न मानकर राष्ट्रपुरुषों, आचार्यों योगियों एवं शिक्षाशास्त्रियों को ‘अनुकरणीय आदर्श माना जाना शुरू होना चाहिए । हमारे आदर्श ही यदि भ्रष्ट, अश्लील, लुटेरे एवं दुष्ट प्रवृत्ति के होंगे तो हम भी वैसे ही बन जाएंगें। हमारे देश में आज राम, कृष्ण, अरविंद, दयानंद, विवेकानंद, सावरकर, ओशो व कृष्णमूर्ति का अपमान हो रहा है तथा भ्रष्ट व दुराचारी नेताओं, टी॰वी॰ व फिल्मों में अश्लीलता फैलाने वाले नकली नायक-नायिकाओं, विदेशी अंतर्राष्ट्रीय लूटरी कंपनियों के उत्पादों के विज्ञापन करने वोल खिलाडि़यों एवं अंग्रेजी सोच के नौकरशाहों को महिमामंडित किया जा रहा है । इस सब के चलते सनातन भारतीय संस्कृति के नैतिक-मूल्यों, चरित्रवानता, आचरण एवं आहार-विहार के नियमों को अपमानित करके कूड़े दानों में फैंक दिया गया है । हमारी भारत की वास्तविक समस्याएं इसी से उपजी हैं । हमारे नेता, नौकरशाही एवं शिक्षा शास्त्री इस तथ्य को समझना ही नहीं चाहते। समस्याओं के समाधान का एकमात्र रास्ता इस समय ‘नैतिक-मूल्यों’ की शिक्षा-दीक्षा प्रदान करने का ही बचा है । धर्मगुरूओं, योगियों, गुरूओं, शिक्षकों तथा विशेष रूप से दर्शन-शास्त्र विषय के शिक्षकों का सहयोग भारत से इन बुराईयों के उन्मूलन हेतू लिया जा सकता है।
-आचार्य शीलक राम 9813013065, 8901013065
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