ईसाईयत के प्रचार में नियुक्त षड्यन्त्रकारी एवं पूर्वाग्रह मंे आकण्ठ डूबे पाश्चात्य
लेखकों ने पूरजोर कोशिशें की यह सिद्ध करने की कि आर्य भारत के मूल निवासी नहीं हैं
तथा न ही भारत भूमि आर्यों की मूल जन्मभूमि है। इसको सिद्ध करने हेतु सैकड़ों विद्वानों
एवं लाखों मिशनरियों को लगाया गया था। इन्होंने अपने जीवनभर स्मृतितोड़, जोड़तोड़ एवं
सत्यतोड़ मेहनत की है इस हेतु। इनकी योजना को कार्यरूप देने हेतु अमेरिका, इंग्लैंड,
आस्टेªलिया तथा युरोप के अन्य ईसाई देशों ने खरबों डालर अपनी इस दुष्ट योजना पर खर्च
किए हैं। यह दो-तीन सदी पूर्व शुरू हुआ षड्यन्त्र कोई अब रूक नहीं गया है अपितु अब
भी अबाध गति से चल रहा है। अब भी ईसाई देशों से तथा वेटिकन से अरबों डालर प्रतिवर्ष
हिन्दुओं के मतान्तरण, हिन्दू सभ्यता व संस्कृति पर विकृत लेखन, हिन्दू मान्यताओं को
अवैज्ञानिक सिद्ध करने हेतु उल्टे-पुल्टे कुतर्क प्रस्तुत करने, हिन्दू दर्शनशास्त्र
को युनानी दर्शनशास्त्र से नवीन व उसका नकलची सिद्ध करने, वेद-उपनिषद्-पुराण-स्मृति-महाकाव्यों
की भौंड़ी व्याख्या करने, भारतीय कला की महत्ता पर मिट्टी डालने, भारतीय भवन निर्माण
कला-उद्यान निर्माण कला-सड़क निर्माण कला - चिकित्सा-शिक्षा आदि को पुराणपंथी व समयबाह्य
सिद्ध करने हेतु भारत में वैध या अवैध ढंग से भेजे जा रहे हैं। इसी धन व कुचक्र के
बल पर ही केरल, मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा आदि को इसाईबहुल बना दिया गया है। यदि
कोई व्यवस्था इसको रोकने हेतु लागू की जाती है तो सारा मीडिया शोर मचाने लगता है कि
भारतीयों की धार्मिक आजादी का गला घोंटा जा रहा है। मीडिया भी तो ईसाईयत व इस्लाम के
प्रभाव में ही है। अनेक गैर सरकारी संगठन सड़कों पर धरने-प्रदर्शन करने लगते हैं। ये
इस तरह के संगठन ईसाईयत व इस्लामी देशों द्वारा भेजे रूपयों से ही पलते-बढ़ते आए हैं।
भाजपा की मोदी सरकार ने ऐसे सैंकड़ों संगठनों पर अभी-अभी प्रतिबन्ध लगाकर एक सराहनीय
कार्य किया है। कल ही नागालैंड के एक उग्रवादी संगठन से समझौता करके भी श्री मोदी जी
ने सूझबूझ का परिचय दिया है। अलगाव एवं फूट चाहे कोई भी इस देश में फैलाने का कुचक्र
रचता हो, उसे सख्ती से कुचलन की जरूरत है। चाहे कोई गैर-सरकारी संगठन हो, चाहे नक्सलवादी
हो, चाहे साम्यवादी हो, चाहे इस्लामी या ईसाई हो या कोई मूलनिवासी के नाम पर इस देश
का नुकसान पहुंचाने का कोई विदेशी षड्यन्त्र हो - इन सबको सख्ती से कुचलने की जरूरत
है।
आर्य यानि कि विवेकपूर्ण, सज्जन, अच्छा, भला, सृजनात्मक, रचनात्मक, सुन्दर, प्रतिभाशाली,
तरक्की पसन्द एवं गुणसम्पन्न। आर्य यानि कि सबका विकास व साथ में अपना विकास चाहने
वाला। आर्य यानि कि अपने साथ सबका हित चिन्तक व आर्य यानि कि शस्त्र व शास्त्र में
एक साथ पारंगत। आर्य यानि कि अहिंसा व हिंसा को समयानुसार प्रयोग करने में प्रवीण।
आर्य यानि कि धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष में सन्तुलन साधकर जीने जीवने वाला, आर्य यानि कि
आर्य वैदिक सनातन हिन्दू संस्कृति द्वारा स्थापित मानकों पर जीवन जीने वाला व्यक्ति।
इस आर्य व हिन्दू शब्द में भी हमारे कुछ उत्साही साथियों ने विवाद पैदा कर दिया है।
वे कह रहे हैं कि हिन्दू, हिन्दी व हिन्दुस्तान शब्द भारतीयों को विदेशियों द्वारा
दिए गए हैं। इन शब्दों का अर्थ अपमानजनक, त्रुटिकारक एवं हीनभावना से ग्रस्त है। कुछ
नवीन ग्रन्थों (मुसलमान, पारसी व ईसाई) के अध्ययन से इनकी यह मान्यता बन गई है। यदि
निष्पक्ष रूप से नए के साथ प्राचीन अरबी भाषा के ग्रन्थों का अध्ययन किया जाए, वेदों
के शब्दों का लौकिक भाषाओं में बदलता रूप देखा जाए तथा संस्कृत भाषा से अन्य भाषाओं
के शब्दों में उच्चारण भेद का अवलोकन किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाऐगा कि यह ‘हिन्दू’
शब्द न तो विदेशियों द्वारा हमें दिया गया है तथा न ही यह कोई काफिर व बुरे व्यक्ति
का प्रतीक है। वेद के ‘सिन्धू’ शब्द का ‘हिन्दू’ में परिवर्तन कोई अमान्य घटना नहीं
है। ‘स’ का ‘ह’ हो जाना हरियाणवी में भी साधारण सी बात है। संस्कृत के ‘सः’ का हरियाणवी
में ‘ह’ हो जाना कोई भी हरियाणवी जानने वाला व्यक्ति देख व जान सकता है। ‘हिन्दू’ शब्द
किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में नहीं मिलता, यह सच है। लेकिन इसी से तो यह सिद्ध नहीं हो
जाता कि यह शब्द हमें विदेशियों द्वारा दिया गया था। इस तरह के भारतीय जनजीवन में प्रचलित
अनेक शब्द मिल जाएंगे कि जो हमारे प्राचीन साहित्य में नहीं मिलते। लेकिन इसी से क्या
हम यही अर्थ निकाल लें कि वे सारे के सारे शब्द हमें विदेशियों ने प्रदान किए हैं?
इस युग के महान राष्ट्रवादी, स्वदेशी के पोषक, महातार्किक एवं दार्शनिक स्वामी दयानन्द
ने ‘आर्य’ शब्द को धारण करने हेतु जोर दिया है तथा अपने नाम के साथ ‘आर्य’ शब्द लगाने
को कहा है। ‘हिन्दू’ से ‘आर्य’ शब्द को आपने सर्वश्रेष्ठ कहा है। स्वामी दयानन्द के
भाषा ज्ञान, भारतीय सभ्यता व संस्कृति ज्ञान, प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के ज्ञान पर
किसी प्रकार का सन्देह करने का न तो हमारा कोई प्रयास है तथा न ही ऐसा करने की हमारी
कोई योग्यता है। लेकिन फिर भी स्वामी जी यदि कुछ वर्ष और शरीर में रहते तो वे भी ‘हिन्दू’
शब्द के सम्बन्ध में विविध जानकारी प्राप्त करके शायद इसको स्वीकार करने में हिचक नहीं
करते।
हम सबको आर्य हिन्दू बनना है। जन्मना तो सभी लोग अज्ञानी, अबोध एवं मूढ़ ही होते
हैं। लेकिन सब का यह कत्र्तव्य बनता है कि पुरुषार्थ के बल पर अपनी अज्ञानता, अपनी
अबोधता एवं अपनी मूढ़ता को छोड़कर सभी व्यक्ति आर्य हिन्दू बनें। सभी व्यक्ति आर्य
हिन्दू बनें तथा अन्यों को भी बनाएं। विदेशी ईसाईयत के छल-कपट, इनकी लूटनीति, इनकी
भेदनीति तथा इस्लाम के नरसंहारों, इनकी अज्ञानता, इनकी अवैज्ञानिक सोच को हमने अतीत
में खूब देखा है तथा अब भी देख रहे हैं। धोखे या प्रलोभन या षड्यन्त्र का शिकार होकर
ईसाई या मुसलमान न बनें अपितु आर्य हिन्दू ही बनें। केवल और केवल इसी से ही भारत व
भारतीयता का कल्याण सम्भव हो सकता है। आप कुपथ पर न चलें अपितु सत्यथ पर चलें और यह
सत्यथ आर्य वैदिक सनातन हिन्दू होना ही है।
-आचार्य शीलक राम
No comments:
Post a Comment