‘राजनीति’ भी बड़ा विचित्र शब्द है । नाम है ‘राजनीति’ लेकिन ‘नीति’ कहीं भी नहीं है । कब, कैसे, कहां, क्यों,
किस से, किसको, किसके द्वारा क्या किया जाना है- यह राजनीति में किसी भी रूप में स्पष्ट
नहीं है । सुविधा, लाभ व अवसर के अनुसार जो भी अपने अनुकूल लगा वही कर दिया । वही केवल
कर ही नहीं दिया अपितु उस हेतु जोर-शोर से तर्क भी देने लगें-तभी बात बनती है । राजनीति
के क्षेत्र में हर नेता व कार्यकत्र्ता अवसरवादी है । छल, कपट, भेदभाव, पलटी मारना,
बेईमानी, झूठ, विश्वासघात, अवसरवाद, दौलत एवं पहुंच तथा भ्रष्टाचरण आदि राजनीति में
सहायक हैं जबकि प्रेम, करूणा, दया, विनम्रता, सत्याचरण, समानता, सत्कार, सेवाभाव, ईमानदारी,
सम्मान एवं गरीबी राजनीति में बाधक हैं। आप अन्यों की सोचोगे तो हो गई आपकी राजनीति
। अन्यों की सोचने से आपका राजनीतिक जीवन बर्बाद होना सुनिश्चित है । यदि आपने केवल
अपनी सोची तथा इसी के अनुसार अपना आचरण रखा तो कोई आपको रोक नहीं सकता । सर्वप्रथम
अपने हित की सोचो, इसके पश्चात् अन्य की सोचो । अन्य की सोचने में भी गुप्त रूप से
आपका हित छिपा हुआ होना चाहिए तभी आप एक अच्छे राजनेता बना पाओगे । क्या भाजपायी, क्या
कांग्रेसी, क्या साम्यवादी, क्या समाजवादी, क्या दलितवादी व क्या गांधीवादी-सबके सब
अवसरवादी हैं । जो जितना ज्यादा सत्य, अहिंसा, अचैर्य, संयम, त्याग, राष्ट्रसेवा, सत्कार,
विनम्रता, करूणा एवं राष्ट्रवाद की बातें करता है वह उतना ही बड़ा, झूठा, हिंसक, चोर,
भोगी, राष्ट्रघाती, उज्जड़, क्रोधी एवं राष्ट्र को लूटने वाला सिद्ध होता है । राजनीति
में सफलता का अचूक मन्त्र बन गए हैं नकारात्मक अवगुण तथा राजनीति में बर्बाद होने का
अचूक अस्त्र बन गए हैं सकारात्मक गुण । सब सबको पीछे छोड़े दे रहे हैं । एक नेता भ्रष्ट
है तो दूसरा उसको उसी हालत में पद से हटा सकता है जब वह उससे अधिक भ्रष्ट हो जाए ।
राजनीति में झूठ की चिकित्सा सच, असत्याचरण की चिकित्सा सत्याचरण, घृणा की चिकित्सा
प्रेम, क्रोध की चिकित्सा करूणा, भ्रष्टाचरण की चिकित्सा स्पष्टाचरण, लूटखसोट की चिकित्सा
राष्ट्रसेवा एवं अवसरवाद की चिकित्सा नैतिक नियमों पर दृढ़ रहना नहीं है अपितु झूठ
की चिकित्सा अधिक झूठ, असत्याचरण की चिकित्सा अधिक असत्याचरण, भ्रष्टाचरण की चिकित्सा
अधिक भ्रष्टाचरण, लूटखसोट की चिकित्सा खूंखार व लूटेरा बन जाना तथा अवसरवाद की चिकित्सा
और भी बड़ा अवसरवादी बन जाना है । जो भी व्यक्ति राजनीति व राजनेताओं के इस रहस्य को
जान लेता है केवल वही राजनीति में सफल हो सकता है ।
गांधी महात्मा न
होते हुए भी महात्मा बन गए तथा राजनीति में खूब कबड्डी खेली । तीस वर्ष तक भारत की
राजनीति के शीर्ष पर रहे वे तथा किसी को भी अपने पास न फटकने दिया । भगत सिंह, सुभाष
चंद्र, पटेल आदि सभी क्रांतिकारियों को ठिकाने लगा दिया था गान्धी ने। लेकिन नेहरु
के सामने गान्धी भी मार खा गए । गान्धी का हाथ पकड़कर
चलना सीखने वाले नेहरु ने उन्हें ऐसी पटकनी दी कि राष्ट्र की आजादी के समय गान्धी एक
गांव तक सीमित होकर रह गए तथा नेहरु को शीर्ष पर पहुंचाने वाले गान्धी को ही यह कहना
पड़ा कि कांग्रेस को समाप्त कर दो तथा भारत को मिली आजादी आजादी किसी भी रूप में नहीं
है । नेहरु व गान्धी की सारी राजनीति अवसरवादी भी। इसी अवसरवाद के कारण ही गान्धी ने
सदैव गर्मदल को गालियां ही दीं । इसी अवसरवाद के कारण गान्धी ने सावरकर को आगे नहीं
आने दिया। इसी अवसरवाद के कारण गान्धी ने भगतसिंह व अन्य क्रान्तिकारियों को शहीद होने
से नहीं रोका । इसी अवसरवद के कारण गान्धी ने सुभाष जैसे वीर राष्ट्रवादी को कांग्रेस
का अध्यक्ष नहीं बनने दिया तथा उन्हें भारत छोड़ने को विवश कर दिया । इसी अवसरवाद ने
पटेल को सर्वमान्य नेता होने के बावजूद भारत का प्रधानमन्त्री नहीं बनने दिया । गान्धी
सदैव ऊपर से ऐसा दिखलाते थे कि जैसे वे प्रेम, शान्ति, करूणा व सत्य व अहिंसा के परम
भक्त हों लेकिन उनका आचरण सदैव ही तानाशाहीपूर्ण होता था । अपने हर निर्णय को अपनी
आत्मा की आवाज कहकर उन्होंने इसे भारत राष्ट्र पर जबरदस्ती थोप दिया- चाहे वह निर्णय
कितना ही उथला, मूर्खतापूर्ण, अवसरवादी, घातक एवं मूढ़तापूर्ण क्यों न रहा हो। यह है
हमारे जबदरस्ती से थोप दिए गए राष्ट्रपिता गान्धी जी का अवसरवाद का आचरण ।
पिछले लगभग 70 वर्ष
से गान्धी के अनुयायी जो कुछ करते आ रहे हैं वह सब भी गान्धी की सोच, विचारधारा व शैली
के अनुरूप ही है । कोई कितनी ही दुहाई दे कि गान्धी के आदर्शों पर कांग्रेसी नहीं चल
रहे हैं लेकिन सच्चाई यही है कि कांग्रेसियों ने पिछले सात दशक से जो भी किया है वह
सब पूरी तरह से गान्धी के आदर्शों के अनुकूल ही है । अनुनय निवेदन यह है कि पहले गान्धी
के आचरण को समझ तो लें । केवल इसके बाद ही कुछ कहें । जो-जो कांग्रेसी पिछले सात दशक
से कपटाचरण, दुष्टाचरण, दुराचरण, अवसरवादचरण, भ्रष्टाचरण व लूटाचरण करते चले आ रहे
हैं । इसके बीज कहीं न कहीं गान्धी की सोच में ही मिल जाएंगे ।
अब तथाकथित राष्ट्रवादियों
की सरकार भारत में सत्तासीन हो चुकी है। सन् 1925 ई॰ में बने संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ’ ने उस वक्त भी राजनीति में सक्रिय भाग लेना
उचित नहीं समझा जब गान्धी की मूढ़ताएं व अवसरवादी आचरण अपने प्रारंभिक चरण में था तथा
इस राष्ट्र को स्वदेशी, राष्ट्रवाद, स्वभाषा एवं स्वसंकृति के पोषक व समर्थकों की महती
जरूरत थी । उस विकट समय में इस संगठन ने केवलमात्र संस्कृति-निष्ट संगठन ही कहा अपने
आपको । यह कहकर इस संगठन ने गान्धी हेतु मैदान खाली छोड़ दिया था । अरे ! कुछ नहीं
कर सकते थे तो सावरकर का ही साथ दे दिया होता । नहीं तो जरूरी तो उस समय यह था कि यह
संगठन भारतीयता के प्रत्येक पक्ष यथा सभ्यता, संस्कृति, भाषा, स्वदेशी, राष्ट्रवादी,
स्वदेशी राजनीति, राष्ट्र की स्वतन्त्रता आदि सबमें बढ़-चढ़कर भाग लेता । लेकिन ऐसा
किया नहीं किया गया तथा स्वयं को इस संगठन ने भारतीय संस्कृति तक ही सीमित रखकर पलायवाद
व अवसरवाद का ही परिचय दिया । इस समय की सत्तासीन सरकार कितनी राष्ट्रवादी है यह सब
इसके पिछले 4-5 महीने के कामकाज से पता चल चुका है । श्री मोदी जी के सारे निर्णय अब
तक अवसरवादी ही सिद्ध हुए हैं । जब सत्ता में नहीं थे तब कुछ कहते थे लेकिन अब जबकि
सत्तासीन हुए 4-5 महीने हो चुके हैं अब अन्य कुछ ही कहते हैं। धारा 370, समान नागरिक
संहिता, हिन्दी भाषा को लागू करना, हर दिन एक कानून को समाप्त करना, भारत को हिन्दू
राष्ट्र घोषित करना, संविधान को भारतीय रूप देना, किसानों के सम्बन्ध में स्वामीनाथन
आयोग रिपोर्ट लागू करना, भारतीय शिक्षा को भारतीय बनाना, भारतीय शिक्षा संस्थानों में
नैतिक शिक्षा-जीवन-मूल्यों-दर्शनशास्त्र के महत्त्व को बढ़ाना, स्वदेशी चिकित्सा का
उद्धार करना, उग्रवाद के विरूद्ध कड़े निर्णय लेना, चीन व पाकिस्तान के विरूद्ध कड़े
निर्णय लेना, एफ॰डी॰आई॰ का विरोध, गौहत्या को रोकना, गौमांस निर्यात पर पाबंदी तथा
काला धन वापिस लाना आदि कितने ही ऐसे विषय हैं जिन पर मोदी जी की सरकार ने अवसरवाद
का परिचय दिया है। कांग्रेसराज में मोदी जी व इनके साथी राजनेता जिन निर्णयों, तथ्यों,
विचारों व योजनाओं का दिन-रात खंडन करते थे अब सत्ता मिल जाने पर वे भी उन्हीं निर्णयों,
तथ्यों, विचारों व योजनाओं को मान्यता दे रहे हैं । इसे अवसरवाद न कहें तो और क्या
कहें? हिन्दुओं ने एकमत होकर प्रथम बार किसी राष्ट्रवादी कहे जाने वाले व्यक्ति को
पूर्ण बहुमत देकर प्रधनमन्त्री बनाया है । यदि अब भी भारत, भारतीयता व भारतीय की सुरक्षा
न हो पाई तो यह बहुत बड़ी अनहोनी ही होगी । हिन्दुओं की आशाएं टूट जाएंगी इससे । श्री
मोदी जी को इसका ख्याल होना चाहिए। श्री मोदी जी इस अवसरवाद के दलदल से निकलकर भारत
को फिर से ‘विश्वगुरु’ की
पदवी पर आसीन करने में सफल हों- इसी आस व विश्वास के साथ भारत के लोग प्रतीक्षारत हैं
। जय मां भारती ! जय भारतीय सभ्यता व संस्कृति !! जय सनातन भारतीय जीवन-मूल्य एवं दर्शनशास्त्र
!!!
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