अपने स्वार्थ के लिए अपनी जन्मभूमि, अपने राष्ट्र एवं अपनी मां की इज्जत का सौदा करने वाले आपको भारत में खुले घूमते मिल जाएंगे। अपने पैरों तले की जमीन खिसकते देखकर साम्यवादी, कांग्रेसी व अन्य कई दलों के करीब 65 सांसदों ने अमरीका से पत्र लिखकर यह मांग कर डाली कि आप नरेंद्र मोदी को अपने देश में प्रवेश करने का वीजा न दें और रहस्य खुलने पर इन्होंने मना भी कर दिया कि हमने ऐसा कोई पत्र लिखा ही नहीं। ये लोग व नेता भारत में रहते हुए भी इंडियावादी हैं। इन्हें भारत से कोई लेना-देना नहीं है। यहां के नेता, यहां की राजनीति, यहां का संविधान और यहां बनने वाली सरकारें-सब के सब इंडिया के रंग मंे रंगे हुए हैं। 1885 ई. एवं 1947 ई. में हमारे यहां शुरुआत ही ठीक नहीं हुई। प्रसिद्ध राष्ट्रवादी
स्तंभ लेखक श्री हृदय नारायण दीक्षित के अनुसार-‘‘चूकें किससे नहीं होतीं? भारत के संविधान निर्माता भी चूक गए । इंडिया बनाम भारत के सवाल पर संविधान सभा में बहस हुई । वोट पड़ा । ‘भारत’ को 38 और इंडिया को 51 वोट मिले। भारत हार गया । इंडिया जीत गया और संविधान में ‘इंडिया टैट इज भारत’ दर्ज कर लिया गया। भारत विश्व का प्राचीनतम राष्ट्र है। संविधान सभा ने भारत को नया नाम इंडिया देकर अच्छा नहीं किया । जो भारत है, उसका नाम भी भारत है। यह ”इंडिया जो भारत है“ पारित करवाकर सत्तारूढ़ कांग्रेसजनों ने एक नए राष्ट्र की अपनी कल्पना के बीज बोए । आगे इन्हीं ने इंडिया को निर्माणाधीन राष्ट्र कहा । एक राष्ट्र के भीतर राष्ट्र के रूप, स्वरूप, दशा, दिशा, नवनिर्माण, भविष्य और नाम को लेकर दो धाराएं जारी है । एक धारा भारतीय और दूसरी इंडियन।’’ स्वामी दयानंद, सावरकर, अरविंद, डाॅ॰ राममनोहर लोहिया, डाॅ॰ हेडगेवर, बंकिमचंद्र और सुभाष चंद्र बोस भारतीय धारा के अग्रज है। पं॰ जवाहरलाल नेहरू पर सम्मोहित धारा इंडियावादी है। वैसे मूल रूप से देखा जाए तो गांधी ने ही भारत को इंडिया बनाने के बीज बोए थे।
कोई कह सकता है कि देश का नाम इंडिया हो या भारत हो, नाम में क्या धरा है? असल चीज देश का विकास है । लेकिन ऐसा सोचना गलत है । आयरलैंड ने 1957 में संविधान बनाया । वहां के संविधान (अनुच्छेद 4) में नामकरण के बारे में लिखित है, ”राज्य का नाम एयर अथवा अंग्रेजी भाषा में आयरलैंड है।“ यों आयरलैंड सारी दुनिया में सुपरिचित नाम था, पर वहां के संविधान निर्माताओं ने अपनी संस्कृति से जुड़ा नाम ही रखा और आयरलैंड नाम को भी अंग्रेजी भाषा में स्वीकृत कर लिया । दूसरी तरफ हमारे देश के मूढ नेता हैं कि जिनके सिर पर अंग्रेजी हित का भूत सवार है। इन्हें भारत की तरक्की अंग्रेजियत में दिखलाई पड़ती है। आज 65 वर्ष बाद भी भारत अंग्रेजियत मंे रंगा हुआ है लेकिन फिर भी भ्रष्ट, गरीब, असहाय, पिछड़ा हुआ एवं अपनी जड़ों से कटा हुआ है। अंग्रेजियत क्यों नहीं भारत का भरपूर विकास कर पाई पिछले 65 वर्षों में? अपनी जड़ों से कटा राष्ट्र कभी भी उन्नति नहीं कर सकता।
भारत की संविधान सभा में भी हरिविष्णु कामथ ने इसी तर्ज पर ”भारत या अंग्रेजी भाषा में इंडिया“ नामकरण का संशोधन पेश किया । कामथ ने कहा कि भारत पसंद न हो तो विकल्प में ”हिंद या अंग्रेजी भाषा में इंडिया“ रख दिया जाय । (संविधान सभा कार्यवाही
18 सितम्बर, 1949) अपने भाषण में उन्होंने भारत, हिंदुस्तान, हिंद भारतभूमि, भारतवर्ष आदि नामों के सुझाव देते हुए दुष्यंत पुत्र भरत की कथा से भारत का उल्लेख किया । सेठ गोबिंद दास ने कहा, ”इंडिया दैट इज भारत“ यह नाम रखने का बहुत सुदंर तरीका नहीं है । ”भारत जिसे विदेशों में इंडिया भी कहा जाता है, यह नाम ठीक होता ।“ सेठ ने इंडिया नाम को यूनानी प्रदाय बताया और भारत को महाभारत से खोजते हुए ”अथते कीर्ति पष्यामि, वर्ष भारत भारत“ सुनाकर भारत पर जोर दिया। मद्रास के के॰ एस॰ सुब्बाराव ने ‘भारत’ को प्राचीन नाम बताकर अपना पक्ष रखा और कहा ”भारत नाम ऋग्वेद् में है ।“ पं॰ कमलापति त्रिपाठी ने नामकरण के प्रस्ताव पर बोलते हुए कहा था, ”अध्यक्ष महोदय इंडिया दैट इज भारत के स्थान पर भारत दैट इज इंडिया लगाया जाता वह अधिक उपयुक्त होता । एक हजार वर्ष की पराधीनता में हमारे देश ने अपना सब कुछ खो दिया । संस्कृति, सम्मान, मनुष्यता, गौरव, आत्मस्वरूप और अपना नाम भी।“ त्रिपाठी ने तमाम वैदिक, पौराणिक तर्क दिए । डाॅ॰ अंबेडकर ने उन्हें अनावश्यक बताया । उसने समय की कमी भी बतायी, लेकिन त्रिपाठी बोलते रहे ”भारत एज इज नोन इन इंगलिश लैंग्वेज इंडिया“ होता तो देश के गौरव की रक्षा होती । डाॅ॰ अंबडेकर ने कहा ”यह सब सुनने के लिए मेरे पास समय नहीं ।“ पी॰एस॰ देशमुख ने कहा ”तो आप जा सकते हैं ।“ हरगोबिंद पंत ने कहा ”भारतवर्ष नाम सीधे क्यों नहीं ग्रहण किया जाता । इंडिया से हमारी ममता क्यों है?“ यहां पर अंबेडकर भी इंडिया के पक्ष में खड़े मिले। वे भी चूक गए।
भारत में 1947 ई. के पश्चात् इंडियावादियों का ही शासन रहा है। अंग्रेजी, अंग्रेजियत, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, साम्यवाद, सैक्यूलर व दलितवाद के तीखे एवं जहर बुझे तीरों से ये अब तक भारत की छाती को छलनी करते आए हैं। भारत की जमीन से इन्हें कोई लेना-देना नहीं है। असल में राजनीति करने वाले लोगों का नाम और काम से कोई खास मतलब नहीं होता। राष्ट्र सर्वोपरिता उनका मानस नहीं बनती । अंग्रेजों से लड़ते समय सारे भारत ने ”भारत माता की जय“ का गगनचुंबी नारा लगाया । ऐसी ही नारेबाजी के बीच पं॰ नेहरू ने एक सभा में भीड़ से पूछा ”यह भारत माता कौन है?“ एक जाट ने कहा कि यह धरती। पंडित जी ने पूछा ”कौन सी धरती? किसी खास गांव की? जिले की या पूरे भारत की? फिर पं॰ नेहरू ने स्वयं उत्तर दिया ”भारत वह सब कुछ है जो वे सोचते है लेकिन इससे भी कुछ ज्यादा है । पर्वत, नदियां, वन, विशाल खेत मैदान और आप सब हम सब । आप भारत माता के अंग है। आप स्वयं भारत माता है।“ (डिस्कवरी आॅफ इंडिया, पेज 61-62) पंडित जी ने इसी किताब में चीनी यात्री इत्सिंग द्वारा इस देश को भारत कहे जाने का उल्लेख किया । अपनी इस दस्तावेजी कृति में पंडित जी ने ऋग्वेद्, उपनिषद्, महाभारत, रामायण, इतिहास, संस्कृति और देश के सभी प्रतीकों को भारत के वैभव से जोड़ा, लेकिन भारत के संविधान में उन्हीं के प्रभाव से भारत का नाम इंडिया हो गया । ‘भारत माता’, ‘मदर इंडिया’ हो गयी, लेकिन सौभाग्य है कि हम सब भी इंडियन ही नहीं हो गए । राष्ट्र की चित्ति, चैतन्य और संस्कृति ने हमारा रूप-स्वरूप मौलिक बनाए रखा है । इसी वजह से इंडिया बनाम भारत के सवाल अक्सर उठा करते हैं। भारत सारी दुनिया का प्राचीनतम राष्ट्र है। सारी दुनिया भारत के ऋग्वेद्् को मानवता का प्राचीनतम ग्रंथ कहती है । दुष्यंत पुत्र भरत से भारत नाम पर विवाद हो सकता है, लेकिन ऋग्वेद् निर्विवाद रूप से विश्व का प्राचीनतम ज्ञानकोष है। मैक्डनल व कीथ ने ऋग्वेद के हवाले से भारत का उल्लेख किया । (वैदिक इंडिक्स, खंड-1)
भारत सनातन से भारत है। यह सनातन राष्ट्र है। नेहरूवादियों व पाश्चात्यों के यह कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता कि राष्ट्र की अवधारणा भारत में अभी जन्म ले रही है। भारत में तो वेदों तक में राष्ट्र की अवधारणा विद्यमान है। राजनेताओं के प्रस्ताव या राजा की इच्छा से भारत को भारत की संज्ञा नहीं मिली है। जैसे यह राष्ट्र सनातन है वैसे ही यह संज्ञा भी । भारत कोई सीमांकित जमीन का टुकड़ा ही नहीं है। भारत संप्रभु राष्ट्रराज्य तक सीमित राज्य सत्ता भी नहीं है । यह एक प्रवाह है । एक संपूर्ण जीवन सृष्टि। भारत एक स्वभाव है । सत्य-अमृत खोजी कोई व्यक्ति अमेरिकी होकर भी भारतीय है और भोगासक्त भारतीय भी अमेरिकी या इंडियन होते हैं । भारत परमव्योम से उतरी ऋचा या आसमान से उतरी आयत है । प्रीतिकर ऋचायें आयतें आकस्मिक आती हैं। सौभाग्यवश आती है । गद्य में प्रयत्न होता है । काव्य में आकस्मिक प्रसाद । सदियों से प्रत्येक छोटे-बड़े शुभ कार्य के प्रारम्भ में हम भारत के लोग ”जम्बूद्वीप आर्यावर्त भारत खंडे“ कहकर संकल्प लेते आए हैं। इस संकल्प से भारत राष्ट्र की सनातनता की सुगंध को लेने में आनाकानी क्यों?
ओशो रजनीश ने सैकड़ों बार यह कहा है कि भारत कोई जमीन का टुकड़ा नहीं अपितु यह एक प्यास है सत्य की, स्वयं के खोज की, आत्मसाक्षात्कार की। धरा पर कहीं भी व्यक्ति ध्यान कर रहा है, योग-साधना कर रहा है, अंतर्यात्रा कर रहा है-वहीं भारत है। स्वयं को जानने की प्यास जिस धरा पर सर्वप्रथम जागी थी वह धरा भारतभूमि है। ऋषियों के, मुनियों के सिद्धों के, संन्यासियों के भीतरी आनंद की बाहरी अभिव्यक्ति का स्थान एवं स्वंय अभिव्यक्ति भारत है। भारत कोई रूस, अमरीका या जर्मनी की तरह भूमि का टुकड़ा मात्र नहीं है। लेकिन यह बात भारतीय नेताओं, वामपंथियों तथा नेहरूवादियों को समझ में आता ही नहीं है। वास्तविकता यह है कि भारत के संबंध में इस रहस्य को अंग्र्रेजों ने 1830 के आसपास ही जान लिया था। इसीलिए तो भारत को जीतने व इसको बर्बाद करने का अचूक हथियार उन्होंने भारत के सनातन दर्शन, इसकी संस्कृति व इसके जीवन-मूल्यों को बर्बाद करने को स्वीकार किया तथा इसी मिशन पर सैकड़ों विद्वानों को लगा दिया। हथियारों के बल पर भारत को आज तक कोई भी आक्रमणकारी जब नहीं जीत पाया तो दुष्ट एवं कुटिल अंग्रेजों ने यह षड्यंत्र रचा भारत को इंडिया में परिवर्तित करने को। आज 2013 तक गांधी व नेहरू के चेलों की मेहनत से अंग्रेज अपने कुचक्र में सफल होते आ रहे हैं। भारत में भारत तो कहीं-कहीं दिखलाई पड़ता है, अधिकांश जगह हमें ‘इंडिया’ के ही दर्शन होते हैं। जब-जब भारत की आत्मा अपनी आवाज उठाती है तो ये इंडियावादी टूटकर पड़ते हैं तथा अपने अंग्रेजों द्वारा खोजे गए हथियारों यथा सापं्रदायिकता, सैक्यूलर व दलितवाद के बल पर हमला कर देते हैं। आजादी के बाद इन दुष्टों की ढाल बनते आए हैं गांधी जी। एक भले व्यक्ति से भारत की आत्मा को सर्वाधिक घाव मिले हैं। इन्हीं गांधी की कृपा से कांग्रेस पार्टी शकील अहमद व दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को पाल रही है। जिनमें से एक कहता है कि इंडियन मुजाहिदीन जैसा कोई आतंकवादी संगठन भारत में है ही नहीं तथा दूसरा कहता है कि इस संगठन का जन्म राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गतिविधियों के फलस्वरूप हुआ है। ऐसे ही पागल वृत्ति के लोग भारत को इंडिया बनाने में सहयोग कर रहे हैं। बेचारी सोनिया गांधी व उनके सुपुत्र राहुल को भारत के संबंध में कुछ पता ही नहीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी अपने में ही मगन रहते हैं, शायद उनको पता भी न हो कि वे प्रधानमंत्री हैं। लेकिन अब सावधान इंडिया वालो! भारत अंगड़ाई ले रहा है। कई अमृतपुत्र भारत से इंडिया के प्रभाव को समाप्त करके भारत को स्वतंत्र करवाने हेतु संघर्षरत हैं। भारत भारत बनकर रहेगा। जय भारत ! जय भारतीय संस्कृति !! जय भारतीय दर्शनशास्त्र!!!
आचार्य शीलक राम, 9813013065, 8901013065
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