परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है कि जिसे प्रार्थना करके या अजान देकर पुकारा
जाए । परमात्मा एक ऊर्जा है जिसे हम महसूस कर सकते हैं । परमात्मा कोई कहीं पर विराजमान
पैगम्बर या अवतार या गाॅड नहीं है कि जिसकी हम प्रार्थना करें । परमात्मा समस्त अस्तित्व
है । परमात्मा सर्वस्व है। परमात्मा सब कुछ है । इस या उस ऊर्जा या शक्ति या सर्वस्व
या सब कुछ की हम पूजा या प्रार्थना नहीं कर सकते । इसको हम पुकार नहीं सकते कोई अजान
देकर । इसको हम महसूस कर सकते हैं । इसमें हम डूब सकते हैं । इसमें हम स्नान कर सकते
है । इससे हम अद्वैत की अनुभूति कर सकते हैं । लेकिन सृष्टि के कण-कण में व्याप्त इस
ऊर्जा में स्नान या इससे अद्वैतानुभूति या इससे एकत्व या इसको महसूस करने का कृत्य
हम केवल व केवल योग के माध्यम से कर सकते हैं । योगाभ्यास ही इसका एकमात्र माध्यम है,
प्रार्थना, पूजा, अजान, कनफैसन, जपादि से कुछ होने वाला नहीं है । योग की सनातन आर्य
वैदिक भारतीय हिन्दू ऋषियों द्वारा खोजी गई संजीवनी विद्या योग ही इसमें हमारी सहायक
हो सकती है । यहां पर यह बतलाना भी दिलचस्प है कि संसार के जितने भी सम्प्रदाय हैं
उन सभी को प्रेरणा महर्षि पतंजलि द्वारा 5200 वर्ष पूर्व रचित योग के ग्रन्थ ‘योगसूत्र’ या इसकी टीका-टिप्पणियों से ही मिली हैं । हां,
आलस्य या प्रमादवश इन सबमें योग के किसी एक अंश, पक्ष, अंग या हिस्से को पकड़ लिया
तथा खड़े कर दिए उसी की नींव पर सम्प्रदायों के विराट भवना । संकीर्णता, पूर्वाग्रह
व मैं ठीक बाकी गलत की मूढ़ धारणा भी इसी एकांगीपन से जन्मी है।
अभी-अभी जून के महीने में 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ पूरे विश्व में मनाया गया। 200 के लगभग देशो
ंमें योगाभ्यास का प्रदर्शन विभिन्न शहरों में बड़ी भव्यता व तड़क-भड़क में किय गया
। हमारे देश में मुसलमान, ईसाई व साम्यवादी योग का विरोध करके अपनी मूढ़ चित्तता का
परिचय देते रहे तो मुस्लिम, ईसाई व साम्यवादी देशों (पूर्व के) के लोगों ने सड़कों,
पार्कों, राजपथों, योग-केन्द्रों एवं अपने-अपने घरों में योगाभ्यास किया । इस तथ्य
को तो सभी विचार करने वाले लोग मानेंगे कि पूरे झूठ से आधा झूठ अधिक खतरनाक होता है
। सुना नहीं है आपने अश्वत्थामा हतोहतः नरो वा कुंजरो वाः । योग के सम्बन्ध में भी
अनेक भ्रमपूर्ण बातें धर्मगुरुओं, नेताओं एवं योग-शिक्षकों ने फैला रखी हैं । योग क्या
है व योग क्या नहीं है - इसका कोई विचार नहीं किया जा रहा है। देखा जा रहा है सिर्फ
आर्थिक या राजनीतिक लाभ । देखा जा रहा है सिर्फ तुष्टीकरण । देखा जा रहा है अपनी अज्ञानता
की धारणाओं को योग पर थोपकर उन्हंे प्रचारित करना । किन्हीं बेवकूफ कट्टरवादियों को
खुश करने हेतु योग में कांटछांट की जा रही है तथा अपने आपको इस समय का योग का सबसे
बड़ा प्रचारक व स्वमी बताने वाले स्वामी रामदेव जी भी चुप्पी साधे बैठे हैं । राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ तथा इसके अनुसंगी संगठनों को योग के सम्बन्ध में कोई व्यावहारिक अनुभव
नहीं है, अतः इनसे तो कोई यह आशा करना व्यर्थ है कि इसके लोग योग के सम्बन्ध में कोई
आधिकारिक बयान दे सकें । इस मामले में तो ये लोग स्वामी रामदेव जी से भी गए-गुजरे हैं
। शारीरिक उठापटक को योगाभ्यास कहकर प्रचारित करने का दोष स्वामी रामदेव, श्री श्री
रवि शंकर आदि सभी तथाकथित योगाचार्यों व इनके संगठनों पर ही है । इससे ये कितना ही
मना करें, लेकिन सच तो यही है ।
इस सब चर्चा व योगाभ्यास के मध्य में मुसलमान बुद्धू भी कूद पड़े हैं ।
ये कह रहे हैं कि पैगम्बर मोहम्मद भी येाग-साधना करते थे । वे एक आर्य वैदिक ऋषि थे
। इस्लाम, योग, नमाज आदि में कोई भेद नहीं है । ओ3म् व अल्लाह एक ही हैं । मोहम्मद
से पहले भी अनेक पैगम्बर आ चुके हैं । पैगम्बर मोहम्मद इन सबमें अन्तिम पैगम्बर हैं
। अतः वेद, उपनिषद् व वैदिक हिन्दू दर्शनशास्त्र की आज कोई उपयोगिता नहीं है । उपयोगिता
है सिर्फ पैगम्बर मोहम्मद, कुरान, नमाजादि की । पुराने को छोड़ो व नए को अपनाओ - यह
परमेश्वर का उपदेश व आदेश है । जाकिर नाईक जैसे प्रसिद्धि के भूखे एवं संकीर्ण कट्टरवाद
के साक्षात् राक्षस वेद, उपनिषद्, दर्शन ग्रन्थ व महाकाव्यों के मन्त्रों, श्लोकों
व प्रसंगों की तोडमरोड़पूर्ण नासमझ व्याख्याएं कर रहे हैं । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
व अन्य सनातनी हिन्दू पहले की तरह चुप हैं । कारण दो ही हैं - प्रथम इनकी आर्य वैदिक
हिन्दू सभ्यता व संस्कृति के प्रति अज्ञानता तथा दूसरा श्री मोदी जी का प्रधानमंत्री
पद पर आसीन होना । समझ में नहीं आता कि कैसे हिन्दू हैं ये? अरे! योग से ओ3म् के उच्चारण
को हटाकर अल्लाह का उच्चारण शुरू करने की वकालत की जा रही है - ये फिर भी चुप हैं ।
मुझे तो ऐसा लगता है कि योग को इस्लाम का रूप दे दिया जाए तो भी इन तथाकथित राष्ट्रवादियों
को कोई आपत्ति नहीं होगी । कट्टर हिन्दुत्व यही होता है क्या? कहा तक झुकोगे तुम मुसलमान
व ईसाईयों को खुश करने हेतु? योग जाए भाड़ में परन्तु इनकी राजनीति चलती रहनी चाहिए
। सारी धरा को आतंक, उपद्रव, नरसंहार, मारामारी, कट्टरता व एकपक्षीय सोच के सड़े हुए
दलदल में धकेलने वाले लोगों की सोच, उनकी पूजापाठ-विधि तथा उनके कर्मकांड किसी भी तरह
से योगाभ्यास का हिस्सा नहीं हो सकते हैं। आर्य वैदिक हिन्दू संस्कृति के साथ यही षड्यन्त्र
कई सदियों तक शान्ति, प्रेम व भाईचारे का प्रचारक कहे जाने वाले सभी सन्तों ने रचा
था । इनके इन षड्यन्त्रों के कारण करोड़ों हिन्दुओं को या तो मार डाला गया या इनको
धर्मान्तरित कर दिया गया । अरे मूर्खों सौहार्द व भाईचारा कायम रखना क्या केवल हिन्दुओं
का ही कत्र्तव्य है, ईसाई व मुसलमानों का नहीं है? भाजपा भी तुष्टीकरण करने लगी है
कांग्रेस की तरह ।
योगाभ्यास में तो तुम नमाज व अल्लाह को घुसेड़ दो लेकिन नमाज व अल्लाह व
कुरान व मस्जिद में योगाभ्यास व ओ3म् का उच्चारण करके दिखाओ तो तुम्हें मान जाएं ।
सही भाईचारे व सौहार्द की मिसाल तो तभी कायम होगी । करो यह सब करने की हिम्मत राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ, इसके संगठन, अन्य सुधारक, शिक्षा-विद्, प्रचारक, योगाचार्य व राजनेता
। कोई यह सब करके तो दिखलाए? गांधी जी भी ऐसे बे-सिरपैर के एक तरफा प्रयोग करते रहते
थे । मन्दिर में कुरान पढ़ने-पढ़ाने का उन्हें भी पागलपन सवार या लेकिन जब उनसे मस्जिद
में गीतादि हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ पढ़ने-पढ़ाने की कही जाती तो उनके पास या तो कोई
जवाब नहीं होता था या वे अनशन पर बैठ जाते थे । ऐसी ही महामारियों के शिकार आज के सभी
राजनीतिक दलों के नेता हैं ।
मुसलमान यदि अल्लाह के सिवाय किसी भी इबादत नहीं कर सकते तथा ईसाई यदि जीसस
क्राईस्ट के सिवाय किसी के सामने नहीं झूक सकते तो फिर केवल हिन्दुओं को ही कुरान व
बाईबिल पढ़ने-पढ़ाने की सीख क्यों दी जाती है? जब दूसरा कोई सर्वमतसमभाव को नहीं मानता
तो सिर्फ व सिर्फ हिन्दुओं को ही इस जीवनशैली की सीख क्यों दी जाती है? मुसलमान तो
उन सबको काफिर मानकर दोजख में डाल देता है जो कुरान व मोहम्मद पर ईमान नहीं लाता तथा
ईसाई उन सबको शैतानी कहता है जो जीसस क्राईस्ट पर विश्वास नहीं लाता । लेकिन जब हिन्दू
ऐसी कोई बात कहता है तो इन मुसलमान व ईसाई भाईयों तथा मीडिया व सामाजिक कार्यकत्र्ताओं
में हड़कम्प क्यों मच जाता है? सम्प्रदाय के आधार पर यह भेदभाव क्यों? इसका जवाब न
तो कभी पहले के सत्तासीन दलों ने दिया तथा न ही समकालीन सत्तासीन दल इसका कोई जवाब
दे रहा है ।
योगाभ्यास करने व करवाने के सम्बन्ध में वास्तव में मुसलमानों व ईसाईयों
तथा कांग्रेस की यह आपत्ति है ही नहीं कि इसमें ओ3म् क्यों है या हिन्दुत्व को थोपा
जा रहा है । सही बात तो यह है कि इन लोगों को (योग का विरोध करने वालों को) तो सनातन
आर्य वैदिक सभ्यता, संस्कृति व राष्ट्रवाद का विरोध करना है । राजनीतिक दलों पर ही
नहीं अपितु धर्माचार्यों व समाज सुधारकों पर भी भेदभाव व तुष्टीकरण का जादू सिर पर
चढ़कर बोल रहा है । यदि हिन्दू जीवनशैली जबरदस्ती थोपने की बात सच होती तो फिर 21 जून
को होने वाले योगाभ्यास से ओ3म् व सूर्य नमस्कार को हटा लेने के बावजूद भी अनेक मुसलमान
व ईसाई, कांग्रेसी व साम्यवादी संगठनों ने योगाभ्यास कार्यक्रम में भाग क्यों नहीं
लिया? पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाकर योग का विरोध करना किस मानसिकता का परिचायक
है? मोदी सरकार का यह निर्णय ही गलत था कि इसने योगाभ्यास से ओ3म् व सूर्य नमस्कार
को हटा दिया तथा इसे वैकल्पिक घोषित कर दिया । तुष्टीकरण के सिवाय यह अन्य क्या हो
सकता है? योगाभ्यास के मूल स्वरूप के साथ यह छेड़छाड़ किसी भी तरह से सही नहीं है ।
क्या इसी तरह की छेड़छाड़ इस्लाम व ईसाईयत की नमाज व बपतिस्मा आदि के साथ भी की जा
सकती है?
योग को सेक्युलर कहना परले दर्जे की मूढ़ता है । योग का आविष्कार हिन्दुओं
ने किया है । हाँ, यह जरूर है कि हिन्दू किसी भी विश्वास, मत, सम्प्रदाय आस्था के साथ
भेदभाव नहीं करता हैं, जैसा कि मुसलमान व ईसाई करते है । हिन्दू मनुष्य या आर्य बनने
की सीख देता है लेकिन राक्षस या सैतान बनने की नहीं । हिन्दू अपने सिवाय अन्यों में
भी सत्य के दर्शन करना चाहता है लेकिन वह मुसलमान व ईसाईयों की तरफ स्वयं पर विश्वास
न लाने वालों मार देने की सीख नहीं देता । हिन्दू काफिरों का नरसंहार करने की आज्ञा
नहीं देता । योग के हिन्दू आर्य वैदिक ग्रन्थों की शुरूआत ही अहिंसा, सत्य, अस्तेय,
ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वरप्रणिधान से होती है । हिंसा,
मारामारी, चोरी, डकैती, बलात्कार, शोषण, जबरन धर्मान्तरण, तलवार के जोर पर जिहाद, भेदभाव,
नर-नारी में भेदादि को योग मान्यता नहीं देता । सैक्युलर एक सड़ी हुई भौतिकतावादी एकांगी
विचारधारा है जबकि योग सर्वस्वीकारभाव से पूर्ण जीवनशैली है जिसमें, किसी की कोई उपेक्षा
नहीं है । ‘एकं सत विप्रा बहुदा वदन्ति’ का जीवनदर्शन-शास्त्र
है योग । सबको अपने भीतर समा लेता है योग । योग जिहाद व आत्माओं के उद्धार के नाम पर
नरसंहारों को प्रायोजित नहीं करता । ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः’ है योग , ‘योगश्चित वृत्तिप्रबोधः’ है योग । जागरण है योग । होश है योग। साक्षीभाव
है योग । द्रष्टाभाव है योग । स्व का बोध है योग । आत्मा का साक्षात्कार है योग । स्वयं
को जानना है योग । स्थितप्रज्ञ हो जाना है योग । कर्मों में कुशलता है योग । अपने वास्तविक
घर को प्राप्त कर लेना है योग । चित्त के मलों की शुद्धि है योग । अस्तित्व से अद्वैत
है योग। आत्मा का परमात्मा से मिलन है योग । अन्य सम्प्रदायों के नमाज़, कनफैशन आदि
मात्र कर्मकाण्ड हैं जबकि योग कर्मकाण्डों से बहुत दूर स्वयं की शुद्धि है । कर्मकाण्ड
में ‘मैं’ को खाद-पानी दिया जाता है जबकि योग में देहशुद्धि,
श्वासशुद्धि, प्राणशुद्धि, भावशुद्धि करते हुए परमशुद्धि की अनुभूति है । ओशो के अनुसार
ध्यान हमारी जिन्दगी में उस डायमैन्सन, उस आयाम की खोज है जहां हम बिना प्रयोजन के
सिर्फ होने मात्र में, जस्ट टू बी, होने मात्र में आनन्दित होते हैं । चिन्ताओं से
दूर अपने में होने का आनन्द है योग । परम शान्ति की अनुभूति का विज्ञान है योग । योग
के सम्बन्ध में जो भ्रम व आपत्तियां दर्ज करवाई जा रही हैं वे सबकी सब नासमझी से उपजी
हैं । योग का क, ख, ग भी नहीं जानते ये लोग । इसमें चाहे कोई दूसरे सम्प्रदाय का हो,
हिन्दू योगाचार्य हो, समाज सुधारक हो, शिक्षाविद हो, आरक्षणवादी दलित हो या नारीवादी
भोगवादी हो ।
हिन्दुओं की सूर्यपूजा के कारण यदि मुसलमान योग में भाग नहीं ले रहे हैं
तो फिर उन्हंे चन्द्रमा, धरती, जल, वायु आदि का भी त्याग कर देना चाहिए क्योंकि हिन्दू
तो इनकी भी पूजा करता है । हिन्दुओं से प्रतियोगिता यदि तुम इस तरह करना चाहते हो तो
छोड़ दो धरती पर निवास करना, छोड़ दो चन्द्रमा को देखकर रोजा आदि का निर्धारण, छोड़
दो श्वास लेना, छोड़ दो जलपान करना व छोड़ दो सूर्य की ऊर्जा से उत्पन्न हुए अन्न व
सब्जियों का उत्पादन करना । हिन्दू तो गाय की भी पूजा करते हैं। तो फिर तुम क्यों गाय
का वध करके उसका मांस खाते हो? छोड़ दो गाय का मांस खाना । कितना हास्यास्पद है मुसलमान
भाईयों का यह आचरण? हिन्दू संस्कृति का विरोध करते हो और उनसे मेलजोल की आशा करते है
- यह निरी बुद्धिहीनता है । तुम्हारी यह नमाज, दिन में पांच बार नमाज, तुम्हारा संगे
अश्वद, तुम द्वारा संगे अश्वद की परिक्रमा, हज पर जाते समय वहां पर श्वेत वस्त्र धारण
करना, तुम्हारा इस्लाम शब्द आदि कितनी ही बातें हिन्दुओं से ली गई हैं । त्याग कर सकोगे
इन सबका? तुम्हारे नेता व तुम्हारे धर्माचार्य तुम्हें बरगला रहे हैं । समझो तुम उनकी
कपट लीला । यदि तुम्हें योगाभ्यास पसन्द नहीं है तो तुम उसे मत करो लेकिन उसका विरोध
न करो । तुम क्या ईशन, अफगानिस्तान, इराक, बांग्लादेश, अमीरात, कुवैत, सीरिया आदि देशों
के मुसलमानों से भी अधिक मुसलमान हो? अरे ! वो सब तो योग कर रहे हैं । तुम्हारे औवेसी
व आजम तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन है । कुछ भी राष्ट्रहित में करो इन मूढ़ों को उसके
विरुद्ध झण्डा उठाना ही है । राष्ट्र की एकता व अखण्डता तथा राष्ट्र के भाई चारे से
इनका कोई सरोकार नहीं है । यदि योगाभ्यास करो तो इस तरह की नकारात्मक सोच का रूपान्तरण
अवश्य हो सकता है ।
राष्ट्र पर छह दशक तक शासन करनेवाले दल कांग्रेस की सूझबूझ जैसे तुप्त ही
हो गई है, कांग्रेसी कह रहे हैं कि भारत को रोजगार चाहिए लेकिन मोदी जी दे रहे हैं
योग । कितनी मूढ़तापूर्ण है इनकी यह सोच । अरे अक्ल के दुश्मनों योग के न करने से क्या
भारतवासियों की रोजगार की समस्या हल हो जाएगी? योग भी करो व रोजगार भी पाओ । यदि केवल
देह के व्यायाम को व चित्त की शान्ति को योग कहते हो तो भी योग के करने व करवाने से
अनेक लोगों को रोजगार मिल जाऐगा । अनेक योग केन्द्र खुलेंगे जितनमें देश-विदेश के लोग
अपनी शारीरिक व मानसिक व्याधियों की चिकित्सा हेतु आपके योग-केन्द्रों पर आएंगे तथा
तुम्हें डालर के रूप में अथाह धन प्रदान करेंगे। मूढ़ों । कुछ तो अक्ल से काम लिया
करो । यदि थोड़ा वैज्ञानिक ढंग से भारत सरकार तथा यहाँ के धर्माचार्य ध्यान दें तो
केवल योग से ही भारत के अनेक बेरोजगार युवा रोजगार पा सकते हैं । एक समय हमने भारत
के प्रसिद्ध रहस्यदर्शी, योगाचार्य व दार्शनिक ओशो रजनीश पर भी यही प्रश्न उठाए थे
। ओशो रजनीश के ध्यान प्रयोगों से प्रतिवर्ष लाखों लोग भारत में आते थे तथा करोड़ों
डालर यहां देकर जाते थे । लेकिन फिर भी बेहूदा प्रश्न उन पर उठाए जाते थे । विरोध के
लिए विरोध करना जैसे हमारा पेशा बन गया है । देशहित से हमें कोई मतलब नहीं है । मुसलमान
व कांग्रेस का एक ही सुर में योग का विरोध करना सन्देह पैदा करता है ।
श्री श्री रविशंकर, स्वामी रामदेव, आयंगर आदि योगाचार्यों ने दुनिया में
योग का उस तरह प्रचार करने में खूब सफलता पाई है जैसा योगभ्यासी चाहते हैं । थोड़ी
सी दैहिक कसरत, थोड़ा सा श्वास की कसरत, थोड़ा सा हास्य, थोड़ा सा नृत्य, तोड़ी सी
गम्भीरता तथा थोड़ा सा विश्राम । हो सकें तो साथ में आयुर्वेद, मालिश, दिनचर्या व राष्ट्रवाद
को भी जोड़ दो । इन्होंने योगाभ्यास को उस तरह से नहीं समझाया व करवाया कि जैसा योग
के सम्बन्ध में हमारे आदरणीय महर्षि पतंजलि, कृष्ण, सिद्धार्थ गौतम, शंकराचार्य गोरखनाथ
आदि कहते हैं । वेद व उपनिषदों की चर्चा तो इन हेतु करना ही व्यर्थ है कि जहां से यह
योगविद्या निकली है। ओशो रजनीश ने उपनिषदों की तो खूब चर्चा की लेकिन वेदों को इन महानुभाव
ने भी उपेक्षित ही छोड़ दिया । योगविद्या को इन दिनों व्यवसाय का रूप देने की सनक लगभग
सभी योगाचार्यों को स्वीकार है । क्योंकि भौतिकताप्रधान युग है यह अतः सब व्यवसाय की
ही भाषा समझते हैं । इसीलिए योगाचार्य योगाभ्यासियों को समझाने के बजाय स्वयं भी भोग-विलास
व व्यापार के पीछे दोड़ लगाने लगे हैं । चारों तरफ भव्य आयोजन हो रहे हैं योग के; बिना
यह जाने कि इनसे कुछ वह हो रहा है या नहीं कि जिस होने हेतु योग की खोज की थी ऋषियों
ने। राजा भोज ने महर्षि पतंजलि के योगसूत्र की प्रशस्ति में कहा है -
पतंजलिमुनेसक्तिः काप्यपूर्वा
जयत्यसौ ।
पुष्प्रकृत्योर्वियोगोऽपि
योग इत्यदितो यया ।।
अर्थात् मुनि पतंजलि
के अपूर्व योगसूत्र की जय हो, जिसमें उन्होंने प्रकृति व पुरुष के वियोग को भी योग
कहा है । ऐसा वियोग जहां पर घटित हो वही योगाभ्यास है । इसे अभ्यास करवाने वाले ही
योगाचार्य हैं । इसे संपन्न करवाने वाला ही सच्चा योगी है । चित्त की वृत्तियों का
निरोध होकर जहां पर
द्रष्टा की अपने स्वरूप में स्थिति हो जाए, वही सत्य योग है । महर्षि पतंजलि उस स्थिति
हेतु कथन कुछ यों करते हैं -
तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्
।।
इसे आप कहीं भी कर
सकते हैं लेकिन यदि पेड़-पौधों के मध्य, जंगल में, नदी तट पर, पहाड़ों पर या गुफाओं
में इसका अभ्यास किया जाए तो फल शीघ्रता से मिलता है । निर्जनता इस हेतु आवश्य है
- ऋग्वेद में कहा गया है -
उपह्नरे गिरीणां संगथे
च नदी नाम् ।
धिया विप्रो अजायत
।। मण्डल 8, सूक्त 6, मंत्र 28
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