राष्ट्रभाषा भारती, हम तेरा करें अभिनंदन।
नेताओं ने कब सुना, तेरा करूण क्रंदन।।
भारतवर्ष का भाल तुम, सर्व-जगत् सिरमौर।
देख रही तुम बुरा समय, आंग्लभाषा के दौर।।
अपमानों के घूंट पीकर, तुमने बुरा नहीं माना।
जन-संपर्क का कार्य, जन-मानस पहचाना।।
बिना किसी मदद तुमने किया, भारतवर्ष को एक।
क्षेत्रवाद को लांघकर मां, सेवा की प्रत्येक।।
भिन्न-भिन्न भाषा बोलते, भिन्न-भिन्न हैं मतवाद।
राष्ट्र एकता का सूत्र तुम, राष्ट्र विकास की खाद।।
शब्द-संपदा समृद्ध तुम, कोई नहीं तुम्हारे समान।
राष्ट्रभाषा तुम बन जाती, नेता न बनते व्यवधान।।
इंग्लिश-विंग्लिश छोड़कर, राष्ट्रभाषा अपनाओ।
इसी से हमारी सुरक्षा हो, भारतवासी समझ जाओ।।
विदेशी भाषा गुलामी है, स्वभाषा है आजादी।
अपनी अपनी ही होती है, अन्यथा निश्चित बर्बादी।।
भारतपुत्र ध्यान दो तुम, करो राष्ट्रभाषा प्रयोग।
इसकी प्रगति करने को, कुछ भी करो उद्योग।।
सृजनात्मक कृत्य कोई भी, हो सकता निज भाषा में।
नेता कुछ भी करेंगे यहां, मत रहना इस आशा में।।
बाहर-भीतर का विकास हो, या हो कोई आविष्कार।
मातृभाषा में ही संभव हो, पग-पग विजय सवार।।
धूर्त, कपटी नेताओं ने, कहीं का भारत को न छोड़ा।
भाषावाद व क्षेत्रवाद से, मनोबल भारत का तोड़ा।।
भारतवासी हर जन सुनो, राष्ट्रभाषा करो सम्मान।
मुंहतोड़ उसको उत्तर दो, जो दुष्ट करे इसका अपमान।।
राष्ट्रभाषा के बिना, रहे गूंगा-बहरा देश।
उसकी रक्षा कर नहीं सकते, ब्रह्म-विष्णु-महेश।।
-आचार्य शीलक राम
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