Sunday, December 17, 2023

(गीता जयंती के अवसर पर) क्या श्रीमद्भगवद्गीता में सभी समस्याओं का समाधान है? (On the occasion of Geeta Jayanti) Is there solution to all the problems in Shrimadbhagvadgita? )

             वैसे तो सनातन धर्म व संस्कृति में सभी ग्रंथ महान हैं! हमारी धरती सहित समस्त संसार की समस्याओं के समाधान के लिये हमारे ग्रंथों में आज्ञाएं, उपदेश, शिक्षाएं व आदेश उपलब्ध हैं! लेकिन पौराणिक भाईयों ने वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, दर्शनशास्त्र,स्मृति आदि ग्रंथों को भूलाकर एकमात्र श्रीमद्भगवद्गीता को ही सनातन धर्म व संस्कृति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ सिद्ध करने पर कुछ शताब्दियों से अपना पूरा जोर लगाया हुआ है! इसीलिये तो हमारे पौराणिक भाई हमारे भारतीय सभ्यता,संस्कृति व इतिहास को पक्षपाती पाश्चात्य इतिहासकारों की तरह ही 5000 वर्ष से अधिक पुरातन नहीं मानते हैं!लाखों वर्ष पुरातन सनातन सभ्यता, संस्कृति व धर्म के साथ हमारे अपनों द्वारा यह व्यवहार किया जाना ठीक नहीं है! लेकिन जब मस्तिष्क के हरेक कोने में अंग्रेजियत घुसी हुई हो तो इसके सिवाय अन्य कुछ हो भी क्या सकता है!
          
    वैसे तो श्रीमद्भगवद्गीता को केंद्र में रखकर वर्ष भर हमारे यहाँ प्रवचन,शिविर, सत्संग,योग कक्षाएं व गीता ज्ञानयज्ञ कथाएँ चलते ही रहते हैं! लेकिन ज्यों -ज्यों गीता जयंती समीप आती जाती है त्यों- त्यों हमारे साधु, महात्मा, स्वामी, संन्यासी, मुनि, योगी, कथाकार, नेता व शिक्षा- संस्थान श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से भारत सहित समुचे संसार की हरेक समस्या का समाधान करने के दावे करने लगते हैं! क्या ये दावे सही हैं? क्या श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया की हरेक समस्या का समाधान करने में समर्थ है? क्या वेद, उपनिषद्, दर्शनशास्त्र, रामायण, महाभारत,जिनसूत्र,त्रिपिटक, जैंद अवेस्ता,बाईबिल, कुरान, ग्रंथ साहिब,दास कैपिटल या फिर हमारी संविधान की पुस्तक आदि आदि ग्रंथ हमारी सभी आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक समस्याओं का समाधान करने में समर्थ हो सकते हैं?
            जनसाधारण तो क्या प्रबुद्ध वर्ग भी इस संबंध में अंधभक्ति,तर्कहीनता व अंधानुकरण का परिचय देते हुये मिल जायेगा! धर्म,अध्यात्म, योग,नीति,आचरण, राजनीति,युद्ध, शासन प्रशासन आदि से संबंधित   ग्रंथों में केवल वर्णों, शब्दों, वाक्यों,अनुच्छेदों,श्लोकों के माध्यम से किसी विषय से संबंधित सूचनाएं, जानकारियां, आज्ञाएं एवं उपदेश ही मौजूद होते हैं!इसके सिवाय उनमें कुछ भी नहीं होता है!कोई इन शिक्षाओं व उपदेशों को माने या नहीं माने-यह सब व्यक्ति के स्वयं के विवेक, रुचि,रुझान, परिस्थिति एव लाभ हानि पर निर्भर करता है!
अपने आपमें कोई ग्रंथ या सीख या शिक्षा या आज्ञा या उपदेश या नीति या सुझाव कितना ही सही, सामयिक व भला क्यों न हो-जब तक व्यक्ति इनको अपने नित्यप्रति के जीवन में आचरण में नहीं लाता है, तब तक इनका अच्छा या बुरा होना किसी भी काम का नहीं है! शिक्षाओं और उपदेशों को तोतों की तरह दोहराते रहने से किसी पर कुछ भी असर नहीं होनेवाला है!अधिकांश गुरु व चेले यही सोचते रहते हैं कि इन शिक्षाओं और उपदेशों की हमें नहीं अपितु दूसरों को जरुरत है! हम तो पहले ही बहुत बडे ज्ञानी, ध्यानी, सज्जन,विवेकी, संयमी व आदर्श नागरिक हैं!केवल दूसरे ही चरित्रहीन, चोर, लूटेरे, हिंसक, झूठे, पापी एवं अधार्मिक हैं! ध्यान रहे कि लोगों की जब तक इस तरह की चयनित सोच रहेगी,किसी पर किसी ग्रंथ की शिक्षाओं का कोई भी अच्छा प्रभाव पडनेवाला नहीं है!सत्संगों,शिविरों, कथाओं, शिक्षा संस्थाओं, गोष्ठियों में कितना भी दोहराते रहो-मानव प्राणी नहीं सुधरने वाला!
रोटी -रोटी दोहराने से भूख नहीं मिटेगी तथा पानी -पानी दोहराने से प्यास नहीं बुझेगी! इसके लिये पुरुसार्थ करना पडेगा!भोजन व पानी की प्राप्ति के लिये धरातल पर उतरकर मेहनत करनी पड़ेगी;तभी भूख व प्यास का समाधान होगा!विविध मंचों से तोतों की तरह श्रीमद्भगवद्गीता की शिक्षाओं व श्लोकों को दोहराते रहने या उच्चारण प्रतियोगिता करते रहने या श्लोकों को कंठस्थ करने का आज तक कोई भला प्रभाव भारत के जनमानस या फिर स्वयं गीता के मनीषियों पर पड़ा हो तो बतलाओ!
            हमारे धर्मगुरुओं व गीता ज्ञान धुरंधरों के अनुसार यदि श्रीमद्भगवद्गीता में भारत सहित दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान मौजूद है तो फिर भारत से गरीबी, बदहाली, बेरोजगारी, भूखमरी, अशिक्षा,भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, अपराध,अंधभक्ति व आतंकवाद की समस्याओं का समाधान करके दिखलाओ!भारत पाकिस्तान व चीन सीमा विवाद का समाधान करके दिखलाओ! किसान व मजदूर को उसका पूरा मेहनताना दिलवाकर दिखलाओ! रुस- यूक्रेन व इजराइल- फिलस्तीन युद्ध का समाधान करके दिखलाओ! श्रीमद्भगवद्गीता ही क्यों; इसके सिवाय वेद, उपनिषद् सहित सारी दुनिया के सभी शास्त्रों को एकत्र करके ले आओ! देखते हैं इनसे भारत सहित विश्व की समस्याओं का समाधान कैसे होता है! वास्तविकता यह है कि चतुर लोगों ने विभिन्न ग्रंथों को माध्यम बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहने का तरीका निकाला हुआ है! वो ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता भी हो सकता है, वेद भी हो सकता  है, उपनिषद् भी हो सकता है, बाईबल व कुरान भी हो सकते हैं, जिनसूत्र व त्रिपिटक भी हो सकते हैं या फिर चाणक्य-नीति, दास कैपिटल,दिव्य योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति आदि ग्रंथ  भी हो सकते हैं!
    भगवान् श्रीकृष्ण को पांडवों की अपेक्षा कौरवों की तरफ से अधिक धन दौलत व पद प्रतिष्ठा मिल सकते थे !लेकिन उन्होंने सत्य, धर्म, व्यवस्था आदि कई रक्षा के लिये पांडवों की मदद करना स्वीकार किया! क्या आज के हमारे नेता, धर्माचार्य, गुरु ,संन्यासी, स्वामी, मुनि, योगाचार्य, शिक्षक, शोधार्थी व गीता के प्रचारक ऐसा करने की हिम्मत कर सकते हैं? क्या अपने निजी स्वार्थ, पद, प्रतिष्ठा व लाभादि की उपेक्षा करके सच को सच और झूठ को झूठ कहने की हिम्मत कर सकते हैं? अधिकांश की तरफ से इसका उत्तर नहीं में ही आयेगा! और आश्चर्य देखिये कि जब निजी रुप से इनसे एकांत में बात की जाती है तो ये लोग साफ स्वीकार करते हैं कि गीता आदि शास्त्रों की सत्य, धर्म,व्यवस्था, नैतिकता, सद्भावना, करुणा,सद्गुण,त्रिगुणातीत, युद्ध, निष्काम -कर्म, निष्ठा, सात्विकता आदि की शिक्षाएं सिर्फ विभिन्न मंचों से दोहराने के लिये होती हैं! इन्हें आचरण में उतारकर क्या हमें बर्बाद होना है? गीता गोष्ठियों में निष्कामता के उपदेश देने वाले तथाकथित गीता मनीषी अपने पारिश्रमिक व किराये भाड़े को प्राप्त करने के लिये व्यवस्थापकों से कुत्ते बिल्लियों की तरह लडते झगडते देखे जाते हैं! ऐसे में श्रीमद्भगवद्गीता जैसे कालजयी ग्रंथ के उपदेश धरे के धरे रह जाते हैं!
           
        जब तक उपदेशों को निजी आचरण में नहीं उतारा जाता है तब तक वो किसी काम के नहीं हैं! चहुंदिशा में यही सब हो रहा है! प्रवचन, उपदेश,व्याख्यान, गोष्ठियाँ, सत्संग, गीता ज्ञानयज्ञ आदि की बाढ आई हुई है लेकिन लोगों के आचरण में झूठ, कपट, विश्वासघात, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, क्रूरता आदि बढते जा रहे हैं! चालाक किस्म के लोग हर भलि वस्तु, परिस्थिति, घटना, ग्रंथ, शिक्षा, उपदेश आदि पर कब्जा करके उसके माध्यम से अपनी दुकानदारी शुरू कर देते हैं! इससे दुनिया दिन पर दिन अधिक अमानवीय होती जा रही है! आज यदि भगवान् श्रीकृष्ण फिर से धरती पर जन्म धारण कर लें तो सर्वप्रथम इन ढोंगियों की ही खबर लेने का पुरुषार्थ करेंगे! जिसको देखो वही अपनी दुकानदारी करने पर लगा हुआ है! जिसको देखो वही श्रीमद्भगवद्गीता जैसे ग्रंथों को माध्यम बनाकर अपने आर्थिक लाभ को पाने में लगा हुआ है! जिसको देखो वही श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से कुछ न कुछ आयोजन की आड में ग्रांट पाकर पद व प्रतिष्ठा को पाने में जुटा हुआ है! और अब तो इस तरह के ग्रंथों की महत्वपूर्ण शिक्षाओं को जनमानस की जमीनी समस्याओं से ध्यान भटकाने की तिकडमबाजियां भी होने लगी हैं!
                श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्यायों में शुरू से अंत तक श्रीकृष्ण व अर्जुन संवाद में उच्च कोटि के प्रश्न, तर्क, संदेह, जिज्ञासा व वाद- विवाद का संग्रह मौजूद है लेकिन हमारे आजकल के गीता उपदेशक सर्वप्रथम गीता के श्रोताओं व पाठकों के मन- मस्तिष्क से इनको हटाकर उन्हें मंदबुद्धि, बंदबुद्धि,अंधानुयायी  आदि बनाने पर लगे हुये हैं! इन्होंने तर्क, जिज्ञासा व संदेह आदि को तो नास्तिकता, अधार्मिकता व अनैतिकता का प्रतीक मान लिया है!
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आचार्य शीलक राम
दर्शन विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र- 136119
मोबाइल- 8222913065

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