महर्षि दयानंद ने यह तो नहीं सोचा था.....
आर्यसमाज द्वारा महर्षि दयानंद सरस्वती का 200 वां जन्मदिवस मनाया जा रहा है... महर्षि जी का जन्म 1823 ई. में हुआ था तथा बहुत बड़ी विडम्बना है कि सनातन धर्म में आई हुई कुरीतियों को दूर करते हुए 1884 ई. को स्वयं सनातन धर्मियों ने ही उनको विष देकर मार डाला था... आज अधिकांश आर्यसमाजी भी उसी अंधभक्त भीड में सम्मिलित हो गये हैं जिस भीड़ के अगुवाओं ने महर्षि जी के प्राण लिए थे... आज अधिकांश आर्यसमाजी भारत को विश्वशक्ति और विश्वगुरु बनाने से रोकने वाली शक्तियों यानि पौराणिक पाखंडियों, मूर्तिपूजकों, मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा करने वालों, आकाश से भभूत निकालकर सभी समस्याओं का हल करने वालों, फलित ज्योतिषियों, गंडा -ताबीज- माला -कंठी- रुद्राक्ष-रामनाम चदरियाधारियों, तांत्रिकों, मांत्रिकों, झाडफूंकियों, शक्तिपातियों, आशीर्वादियों, बागेश्वरवरियों, बालाजियों, योग को योगा बनाने वाले व्यापारी शरीर तोडमरोडवादियों,भविष्यवक्ताओं, राजाओं के राजा अन्नदाता किसान विरोधियों, झंडा व डंडा पूजकों के साथ मिलकर "आर्य - स्वदेशी - विश्वगुरु भारत- विश्वशक्ति भारत- आत्मनिर्भर भारत - चक्रवर्ती भारत- आर्य भाषा- संस्कृत भाषा " के सनातन वैदिक जीवन मूल्यों के विरोध में कार्य करते हुए दिखाई दे रहे हैं.... उत्तर भारत में अनेक पाखंडी बाबाओं, नकली भगवानों, मनघड़त तत्वदर्शियों,स्वघोषित जगत्गुरुओं, दिग्भ्रमित कथाकारों,योगभ्रष्ट योगाचार्यो,भारत की हरेक समस्या का हल करने वाले पौराणिक चमत्कारी संतों, अंग्रेजी शिक्षा संस्थानों, एंग्लो वैदिक शिक्षा संस्थानों, जागरणों, शाखाओं आदि की बाढ आ जाना आर्यसमाज व आर्यसमाजियों की निष्क्रियता व विफलता का परिचायक है... लग रहा है कि अब तो आर्यसमाज केवल जलसे, जुलूस, साप्ताहिक सत्संग, दैहिक तोडमरोड, पौराणिकों के प्रशस्ति गान, शुष्क कुतर्क, प्रधानी, जमीन व समाजों के विवाद में कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने आदि तक सीमित होकर रह गया है...आज आर्यसमाज भी अधिकांशतः अद्वैतवादियों, द्वैतवादियों,विशिष्टाद्वैतवादियों, शुद्धाद्वैतवादियों, कबीर पंथियों, दादूपंथियों, नककटावादियों की तरह का एक संप्रदाय बनकर रह गया है... आज आर्यसमाजी महर्षि के बताए अनुसार न तो विवाह करते हैं, न शिक्षा ग्रहण करते हैं, न संस्कृत व हिंदी पढते पढाते हैं, न वेदादि शास्त्रों का अध्ययन अध्यापन करते हैं, न वेशभूषा पहनते हैं, न संध्या हवन करते हैं, न धर्म- अध्यात्म -विज्ञान को बढावा देने के लिए काम कर रहे हैं... महर्षि के बताए अनुसार यदि कोई अभिनव, सृजनात्मक व क्रांतिकारी कार्य करने का प्रयास करता भी है तो उसे या तो अपमानित किया जाता है या बाहर फेंक दिया जाता है... महर्षि के नाम से प्रचलित संपत्ति, जमीन- जायदाद, पुस्तकों, संस्थानों, मठों, भवनों आदि का घोर दुरूपयोग किया जा रहा है... सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा की दयनीय दुर्गति सबके सामने है... वेद, उपनिषद्, दर्शनशास्त्र, चरक, सुश्रुत, गणित, गणित ज्योतिष आदि क्षेत्रों में महर्षि के सुझाए अनुसार आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक व्याख्याएं बिलकुल नहीं की गई हैं...यदि किसी ने इस पर कुछ काम करने की कोशिश की तो उसे अपमानित करके बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.... पिछले 20-30 वर्ष के दौरान हरियाणा में ही आर्यसमाज व आर्यसमाजियों की निष्क्रियता के कारण कई ऐसे बलात्कारी व अपराधी संत पैदा हो गये जो आज जेल में बंद हैं... सजा हो जाने के बाद भी इन पाखंडियों के करोड़ों अनुयायी आए दिन सडकों व चौक चौराहों पर हुडद़ंगबाजी करते हुए देखे जा सकते हैं... कुछ दशक व्यतीत हो जाने के पश्चात हरेक महापुरुष द्वारा स्थापित संस्थान की जो दयनीय दुर्गति व दुरुपयोग होता देखा जाता रहा है वही आज आर्यसमाज के साथ हो रहा है... किसी क्रांतिकारी संगठन का इस तरह से पतन व अधोगति को प्राप्त होना हम सब भारतीयों के लिए चिंता का विषय है!
आचार्य शीलक राम
वैदिक योगशाला
आचार्य शीलक राम
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