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जन्म हुआ तो मरना होगा,
यह नियम कतई अटल है!
कोई तो आज चला गया ,
किसी को जाना कल है!!
पंचभूत मिले पंचभूत में,
आत्म -पंछी निकल गया!
कोई चलता बना आज ही,
कोई कोई सुनो कल गया!!
सबको एक दिन जाना है,
दार्शनिक,विचारक महान!
कोई बचा न क्रूर काल से,
इसे स्मरण रखना नादान!!
कोई राजा बचा न मौत से,
बचा नहीं कोई संत,फकीर!
सबको ही काल ने छीना है,
ज्ञानी, ध्यानी, क्षत्रिय वीर!!
व्यर्थ का घमंड मत करना,
सबको काल ग्रास बनना है!
जीते जी होश को जानो,
न अहम् अकड तनना है!!
यह जीवन बुलबुला पानी,
जन्मा और बस बिगड़ गया!
प्राणों ने साथ छोड दिया,
पंचभूत संघात सड गया!!
तर्क- वितर्क व वाद-विवाद,
विश्लेषण और संश्लेषण!
आलोचना संग समीक्षा,
शोध, अन्वीक्षा, अन्वेषण!!
ये सभी ही छूट गए पीछे,
संग में जाएगी पुण्य-पूंजी!
स्व दर्शन का पुष्प साथ में,
सनातन दर्शनशास्त्र कूंजी!!
फिलासफी .....दर्शनशास्त्र,
इनसे पार सत्ता "दर्शन" की!
दर्शन न हुए आत्मतत्व के,
व्यर्थ शब्द चर्चा कृष्न की!!
जीते जी ही आत्म-साधना,
स्व से स्व का आत्म -ज्ञान!
परमपिता प्रभु की अनुभूति,
अस्तित्व का यही सम्मान!!
इस जन्म की हिम्मत सुनो,
साथ निभाएगी परलोक में!
श्रद्धांजलि महान आत्मा,
प्रयाण कृष्ण -गोलोक में!!
फिर से वो जन्में धरा पर,
परमपिता से यही अर्जी है!
दर्शनशास्त्र सेवा फिर से,
बाकी भगवान श्री मर्जी है!!
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आचार्य शीलक राम
दर्शन- विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
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