सांसारिक जीवन परस्पर आदान-प्रदान, लेन-देन, सहभागिता, सौहार्द, भाईचारे एवं सेवाभाव से चलता है । मानव प्राणी के साथ-साथ पशु-पक्षी, जलचर, थलचर, नभचर, पेड़-पौधे, जंगल आदि भी परस्पर सहभागिता एवं आदान-प्रदान से अपना जीवन-यापन करते हैं । यहां तक कि पहाड़, नदियां, झीलें, झरने, तालाब आदि भी परस्पर लेन-देन पर चलते हैं । पंचभूतों के इस संसार में कुछ भी ऐसा नहीं हैं जो अस्तित्व से टूटा हुआ अकेला हो । जड़-चेतन जगत् सब कुछ एक माला के मनकों की तरह अस्तित्व के धागे में पिरोया हुआ होता है । जहां भी व जिस भी समय इस कड़ी में कोई व्यवधान या रूकावट या टूटन आई तो वहीं पर शोषण, विकार व कमियां प्रवेश करना शुरू कर देंगी । समकालीन युग में यदि ध्यान से चहुंदिशि नजर दौड़ाई जाए तो मानव प्राणी ने अपनी स्वार्थपूर्ति, उन्मुक्तभोग एवं पद-प्रतिष्ठा की तृष्णा को पूरा करने के लिए शाश्वत सनातन जीवन-मूल्यों को तोड़ना शुरू कर दिया है । आधुनिकता एवं विकास की अंधी दौड़ ने मानव प्राणी को इतना स्वार्थी एवं यूज एण्ड थ्रो की विचारधारा वाला बना दिया है कि इसको अपने सिवाय किसी का भी हित दिखलाई नहीं पड़ता है । मानव की इस कभी पूरी नहीं होने वाली अन्धी तृष्णा की चिकित्सा सिर्फ हमारे आदरणीय योगियों, महर्षियों, सन्तों एवं धर्मगुरुओं के पास है - बशर्ते ये वास्तविक योगी, महर्षि, सन्त व धर्मगुरु होने चाहिएं । हरियाणा में धर्मनगरी के नाम से प्रसिद्ध गीता की उपदेश-स्थली कुरुक्षेत्र के चूहड़माजरा गांव में एक ऐसे ही सनातनी सन्त ने जन्म लिया था । सम्पूर्ण भारत में आपको जगद्गुरु स्वामी ब्रह्मानंद कुरुक्षेत्री के नाम से जाना जाता है । आपकी वाणियों को केन्द्र में रखकर इनकी सार्वभौमिक महत्ता को ध्यान में रखते हुए दर्शन-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. शीलक राम ने एक वृहद्काय ग्रन्थ ‘दर्शनामृत’ का लेखन किया है । प्रस्तुत इसी ग्रन्थ ‘जगद्गुरु स्वामी ब्रह्मानन्द वाणी दर्शनामृत’ का लोकार्पण आज दर्शन-विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र में आयोजित राष्ट्रीय कांफ्रैंस के दौरान किया गया । इस अवसर पर विश्वविद्यालय डीन एकेडेमिक अफेयर्स प्रो॰ मंजूला चैधरी, प्रसिद्ध दार्शनिक प्रो॰ हिम्मत सिंह सिन्हा, आईसीपीआर के पूर्वाध्यक्ष एस॰ आर॰ भट्ट, प्रो॰ पंकज श्रीवास्तव, पंजाब विश्वविद्यालय से प्रो॰ सैबेस्टियन, दर्शन-विभागाध्यक्षा प्रो॰ अनामिका गिरधर, प्रो॰ सुरेन्द्र कुमार, डीडीई से प्रो॰ कुलदीप, प्रो॰ अशोक कुमार, प्रो॰ सचिन, देश-प्रदेश से आए हुए शोधार्थी एवं छात्र उपस्थित रहे । प्रस्तुत वृहद्काय 800 पृष्ठ के इस ग्रंथ में जगद्गुरु स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के जीवन एवं जीवन-दर्शन को विस्तार से समझाया गया है । आचार्य शीलक राम की इससे पहले 47 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है ।
No comments:
Post a Comment