Friday, October 18, 2024

अपनी भाषा- सबकी भाषा संस्कृत और भारती हिंदी (Our language – everyone's language Sanskrit and Bharti Hindi)

प्रसिद्ध भाषाविद् और इतिहासकार पंडित भगवद्दत्त ने मनुष्य के लिये भाषा की उत्पत्ति और फिर उस मूल भाषा से संसार की अन्य भाषाओं की उत्पत्ति होने के संबंध में कहा है कि भारतीय लोग सनातन से दो प्रकार की वाक् मानते आये हैं- दैवी वाक् और आसुरी वाक्! दैवी वाक् मंत्रमयी है! दैवी इसलिये कि मंत्र द्युलोक अथवा अंतरिक्ष में देवों द्वारा उच्चरित हुये! मानुषी वाक् अथवा मनुष्यों से व्यवहृत वाक्! इसमें पद लगभग वही हैं जो दैवी वाक् में थे, पर वाक्य रचना और आनुपूर्वी के हेरफेर के कारण यह एक नया रूप धारण करती है! मूल इसका दैवी वाक् ही है! मानुषी वाक् आगे चलकर अतिभाषा, आर्यभाषा, महाभारत कालीन लोकभाषा संस्कृत तथा पाणिनि के उत्तरकालीन संस्कृत!संस्कृत भाषा से ही संसार की सभी भाषाओं की उत्पत्ति के संबंध में प्रसिद्ध इतिहासकार नरेंद्र पिपलानी के अनुसार विश्व की समस्त प्राचीन भाषाएं संस्कृत से लैटिन तथा ग्रीक व अरामाईक द्वारा उत्पन्न हुई हैं! भाषाओं में जलवायु , मानवता परिस्थितियों, युद्ध तथा तकनीकी विकास व व्यापार का प्रभाव पड़ता है! जिसके कारण भाषा में परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है! परंतु मूल धातु में परिवर्तन नहीं होता है! आज युरोपीय और भारतीय भाषाओं में इतना अधिक अंतर है कि कोई विद्वान भी सोच नहीं सकता कि ये सभी भाषाएं संस्कृत से निकली हैं!

बाईबल ने भाषाओं की उत्पत्ति अपने  निराधार, अबोध बालवत् और गंवारु मीनार सिद्धांत को प्रस्तुत करते हुये कहा है कि शुरू में सारी धरती की एक ही भाषा थी! लोगों को एक गगनचुम्बी मीनार बनाते देखकर यहोवा ने उनमें भाषा भेद पैदा करके समस्त धरा पर फैला दिया! उस मीनार का नाम बाबेल था!

लौकिक संस्कृत, जेंद, ग्रीक, लैटिन आदि भाषाओं का एक ही उद्गम 'देववाणी वैदिक संस्कृत' है! इन्हीं से आगे चलकर प्राकृत, अपभ्रंश, भारती हिंदी, पंजाबी, कश्मीरी, असमी, सिंधी, तमिल, तेलगु, इटालियन, फ्रैंच, अंग्रेजी, जर्मन,स्पेनिश, केल्टिक,पर्शियन, पश्तो, बलूच, कूर्द आदि भाषाओं का निर्माण हुआ है! प्रसिद्ध वैदिक विद्वान स्वामी विद्यानंद के अनुसार जिस प्रकार गुजराती, मराठी, बांग्ला आदि विविध भारतीय भाषाओं का उद्भव प्राचीन संस्कृत से हुआ है, वैसे ही यूरोप और एशिया विभिन्न भाषाओं का स्रोत भी संस्कृत है!इसलिये आज इन भाषाओं को बोलने वाले सभी लोग एक समय पर जरुर भारतभूमि में ही रहते होंगे! इसी भूमि से वो धरती के विभिन्न हिस्सों में जाकर बस गये थे! मैक्समूलर ने तो यहाँ तक कहा है कि वो सभी भारतीय, ईरानी, यूनानी, रोमन, रुसी, केल्ट और जर्मनों के पूर्वज एक चारदीवारी में ही नहीं अपितु एक ही छत के नीचे रहते थे!संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी है, इसके लिये स्वामी विद्यानंद सरस्वती के द्वारा दिये गये कुछ शब्दों के उदाहरण देखिये - पितृ शब्द ईरानी में पिदर तथा अंग्रेजी में फादर हो गया! असुर शब्द जेंद में अहुर हो गया! अंगुष्ठ शब्द फारसी में अंगुस्त हो गया! मनु शब्द अंग्रेजी में मैन हो गया! अंतकाल शब्द अरबी में इंतकाल हो गया! होम शब्द चीनी में घोम हो गया! अहिफेन शब्द जापानी में आहेन हो गया! भ्राता शब्द ग्रीक में फ्राता हो गया! त्रय शब्द लेटिन में त्रे हो गया! मृत्यु शब्द फ्रैंच में मौर्त हो गया! विधवा शब्द जर्मन में विदवे हो गया! अग्नि शब्द रसियन में ओग्न हो गया! माता शब्द पुर्तगाली में माइ हो गया!

जिस रुप में वैदिक ऋचाएं अंतरिक्ष में उच्चरित हुई, उनका क्रम  वैसे ही रखा गया है! बाद में वैदिक शाखा ग्रंथों में वर्णानुपूर्वी में बदलाव हुआ है! यज्ञ में या अन्यत्र इस वर्णानुपूर्वी को बदलने का किसी को भी अधिकार नहीं है! पाश्चात्य विचारकों और भाषाविज्ञानियों को तथा इनकी पुस्तकों में इस रहस्य का मामूली अहसास भी नहीं है! इसीलिये तथा अन्य कुछ कारणों की वजह से वर्तमान व्याकरण वेद की व्याख्या में अधिक दूर तक सहायता नहीं कर सकता! इसके लिये योग साधना एकमात्र मददगार है! वैदिक ऋचाओं में शब्द अर्थ संबंध नित्य है! यह निर्वचन विद्या से प्राप्त होता है! शब्दार्थ तथा उनके संबंध की नित्यता को जानकर ही ऋषियों ने धातुओं का आकर्षण किया था! प्रसिद्ध वैदिक विद्वान स्वामी दर्शनानंद सरस्वती के अनुसार देववाणी वैदिक संस्कृत कभी बोलचाल की भाषा नहीं रही!इसका अपभ्रंश लौकिक संस्कृत बोलचाल की भाषा रही है! इससे परमात्मा पर क्षेत्रवाद का यह आरोप नहीं लग सकता कि  भारत में जन्मी लौकिक संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है!अपितु परमात्मा ने तो समस्त सृष्टि के हितार्थ देववाणी वैदिक संस्कृत में वेद ज्ञान प्रदान किया! इसी से भाषाओं और विविध ज्ञान का प्रचार -प्रसार समस्त सृष्टि में हुआ! वेद में सभी नाम यौगिक हैं! रूढि नाम पदार्थों के बनने पर दिये गये! वैदिक संस्कृत परमात्मा ने ऋषियों को प्रदान की तथा उसके अपभ्रंश लौकिक संस्कृत में शुरू से ही बदलाव शुरू होकर सृष्टि की विविध भाषाओं का निर्माण हुआ!

लौकिक संस्कृत से प्राकृत, अपभ्रंश,भारती हिंदी, हरियाणी,कश्मीरी, असमी, गुजराती, तमिल, कन्नड़ आदि भाषाओं का जो इतिहास बतलाया जा रहा है,उसे छोटा करके बतलाया जा रहा है! इनका इतिहास काफी पुराना है!  बलौच,परसियन,हिब्रू, फ्रैंच, ग्रीक, लैटिन, चीनी,अंग्रेजी, आदि भाषाओं की अपेक्षा भारतीय भाषाओं में अपभ्रंश अधिक हुआ है! नरेंद्र पिपलानी के अनुसार विश्व की समस्त भाषाएं संस्कृत से लैटिन तथा ग्रीक व अरामाईक द्वारा उत्पन्न हुईं! भाषाओं पर जलवायु, माननीय परिस्थितियों, युद्ध तथा तकनीकी विकास व व्यापार का प्रभाव पडता है! जिसके कारण भाषा में परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है! परंतु मूल धातु में परिवर्तन नहीं होता है!...... साधुवाद के पात्र योरोपवासियों ने अपनी भाषा में वैदिक संस्कृत के शब्दों को भारतीयों से अधिक सहेज कर रखा है! जबकि भारतीयों ने पर्याय शब्दों का सृजन कर आदिकालीन संस्कृत शब्दों को विस्मृत ही कर दिया है! अंग्रेजी का शर्ट संस्कृत के शब्द श्रित से बना है! अंग्रेजी का टूंड्रा शब्द संस्कृत शब्द तंद्रा से बना है! अंग्रेजी का अबोरिजन शब्द संस्कृत शब्द आभीरजन  से बना है!लैटिन का ओमेन संस्कृत शब्द ओम् से बना है! अंग्रेजी का गाईज शब्द संस्कृत के गाय ज से बना है! गाड शब्द गौदेव से बना है! एशिया, यूरोप तथा अफ्रीका में राम के नाम से अनेकों शहर बसे हुये हैं!जीसस क्राईस्ट ईशसकृष्ण से बना है! चर्चा से चर्च, वाटिका से वैटिकन तथा मक्का-मदीना  संस्कृत मख- मेदिन( यज्ञ वेदी) से बने हैं!

वाक्,भाषाओं,बोलियों तथा इनके पीछे निहित रहस्य एवं दर्शनशास्त्र के सभी गूढ रहस्यों का उद्घाटन पुरातन काल में  आर्यावर्त भारतभूमि पर ही हुआ था!लेकिन लाखों से इतनी समृद्ध, वैभवशाली और पुरातन धरोहर होने के बावजूद, हम भारतीयों पर विदेशी भाषा अंग्रेजी का प्रेत सवार है! हमारे नेता, राजनीतिक दल, उच्च- अधिकारी,सिविल सर्विस परीक्षाओं के स्वंयभू अधिकारी, न्यायविद्, एलोपैथिक चिकित्सक, वरिष्ठ प्रोफेसर तथा उच्च शिक्षा -संस्थानों के शीर्ष पर विराजमान कुलपति महोदय आदि उच्च पदों पर अपना मनमाना एकाधिकार बनाये रखने के लिये अधिकांशतः भारतीय भाषाओं की उपेक्षा करके अंग्रेजी को थोपते आ रहे हैं! भारत की किसी भी भाषा में कोई भी सरकारी पत्र, सूचना, जानकारी,अधिसूचना, प्रश्न- पत्र आदि हों- लेकिन केवल अंग्रेजी प्रारूप को ही वैध माना जाता है!आजादी के पचहत्तर वर्षों बाद भी भारतीय भाषाओं की इस दयनीय स्थिति पर रोना आता है! स्वार्थी नेताओं द्वारा जनमानस का माईंडवाश किये जाने की वजह से ही दक्षिण भारतीय लोग संपर्क भाषा के रूप में गुलामी की प्रतीक और बेरोजगारी की माँ अंग्रेजी को सहर्ष स्वीकार किये हुये हैं!भारती हिंदी का नाम आते ही दंगे शुरू हो जाते हैं! जितने पढ़े -लिखे, उतने बडे मूर्ख और मूढ!मैकाले, मैक्समूलर,मैक्डोनाल्ड के मानसपूत्रों ने कैसी विषम स्थिति पैदा कर दी है?
भारती हिंदी की इतनी उपेक्षा के बावजूद आज यह भाषा दुनिया की सबसे अधिक लोगों द्वारा बोले जाने, समझे तथा लिखे जाने  जानेवाली पुस्तक है!

दुनिया के अधिकांश व्यापार,प्रबंधन,उद्योग-धंधों,बहुराष्ट्रीय कंपनियों,तकनीक,हथियार निर्माण,उपभोक्ता सामान निर्माण, पूंजी, आर्थिक नीति निर्माण, राजनीतिक गतिविधियों, वैश्विक संगठनों पर यूरोपियन देशों, अमरीका, आस्ट्रेलिया, चीन आदि का एकाधिकार है! जिसकी लाठी, उसी की भैंस! जिनके हाथों में ताकत है, वो देश आज भी हरेक क्षेत्र में अपनी मनमानी कर रहे हैं! उपरोक्त एकाधिकार के साथ ये देश अपनी भाषा, अपने मजहब तथा अपने राजनीतिक वर्चस्व को भी भारत तथा भारत जैसे गरीब और विकासशील देशों पर जबरदस्ती से थोपते आ रहे हैं! भारती हिंदी जिसे स्वामी दयानंद सरस्वती ने 'आर्यभाषा' कहा था,को भारत के गरीब और मध्यम वर्ग ने अवश्य खुले दिल से स्वीकार किया है!लेकिन भारतीय प्रशासनिक सेवा,राज्य प्रशासनिक सेवा,भारतीय सुरक्षा सेनाओं,न्याय सेवा, डाक सेवा,रेलवे परिवहन,हवाई परिवहन,उद्योग धंधों, व्यापार, प्रबंधन, चिकित्सा,राजनीति, सरकारी मंत्रालयों, शिक्षा, शोध, विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं आदि सभी क्षेत्रों में नीति -निर्माण, क्रियान्वयन तथा परिणाम में बहुसंख्यक भारतीय जनमानस से कोसों दूर गुलामी की प्रतीक अंग्रेजी भाषा राज कर रही है!हमारा सिस्टम भारती हिंदी को आज भी ज्ञान,विज्ञान और बुद्धिमान भारतीयों की भाषा मानने से परहेज कर रहा है! 800 करोड की आबादी में से 135 करोड़ लोगों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा की यह बुरी स्थिति राष्ट्रप्रेमी भारतीयों द्वारा स्वीकार्य नहीं हो सकती है!भारती हिंदी की इस दयनीय स्थिति के लिये हमारी राजनीति,हमारे राजनेता,हमारे अंग्रेजीभाषी नीति-निर्माता,शिक्षक तथा भारती हिंदी भाषा के साहित्यकार सर्वाधिक जिम्मेदार हैं! जनता- जनार्दन तो आज भी भारती हिंदी को बोलचाल तथा भावाभिव्यक्ति की  भाषा मानता, जानता और प्रयोग करता आ रहा है!
स्वतंत्रता सेनानियों के लिये वेदव्यास रचित श्रीमद्भगवद्गीता तथा स्वामी दयानंद सरस्वती लिखित सत्यार्थ प्रकाश प्रेरणा के प्रमुख स्रोत रहे हैं! उस गुलामी के दौर में आर्यभाषा भारती हिंदी में स्वामी दयानंद सरस्वती लिखित 'सत्यार्थ प्रकाश' ग्रंथ ने सनातन भारतीय सभ्यता,संस्कृति,धर्म,दर्शनशास्त्र,जीवन मूल्यों,राष्ट्रभक्ति,स्वदेशी, राष्ट्रभाषा की आवश्यकता को सर्वप्रथम भारतीयों के सम्मुख रखा था!लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात् आर्यसमाजियों को छोडकर  भारतीयों ने स्वामी दयानंद सरस्वती के इस महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार करने के लिये हिम्मत नहीं दिखलाई!

.........
आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र- 136119

No comments:

Post a Comment