झुकी हुई गर्दन
सिकुडे पेट!
फाल्गुन हो
सावन या जेठ!!
टुटी झोपडी
टपके पानी!
चौमासा सुनो
करे मनमानी!!
मक्खी मच्छर
अबाध विचरण!
बिमारियो का
हर मौसम ग्रहण!!
बात व्यर्थ की
साफ सफाई !
चोंचले ये सब
अन्य समझाई!!
भूख प्यास जब
बेदर्द सताती!
ऐसी बातें सुनो
मन में न आती!!
हताश व
कुंठित
माने क्या इनको!
आग पेट की
जलाती जिनको!!
व्यवस्था न
देश
किया है बर्बाद!
बीस प्रतिशत ही
बस है आबाद!!
व्यवस्था आज भी
गुलामों वाली है!
1300 साल से जो
देखी - भाली है!!
सत्तर करोड किसान
विदेशी दया पर!
उन्हीं की नीतियों
पर हैं निर्भर!!
खुद का ही जब
सम्मान नहीं है!
नियमविहिन होना
गरीब का सही है!!
क्या नीति नियम
क्या राष्ट्रभक्ति!
पेटाग्नि बुझाने
व्यय सब शक्ति!!
क्या मिलेगा यहां
शिक्षित होकर!
बेरोजगारी के
बीजों को बोकर!!
सिफिरिस रिश्वत
काम की कसौटी!
प्रतिभा की यहां
होती बोटी बोटी!!
मंचों की बोलियां
बस कहने को हैं!
गरीब व
किसान
हताशा सहने को हैं!!
कोई दल आए
फर्क न
पडता!
सम्मान भारत का
जाता सिकुडता!!
रहना; खाना न
बिजली न
पानी!
शिक्षा विदेशी ये
दे रहे मनमानी!!
प्राकृतिक रुप से
सबसे धनी देश!
बदहाल ;गुलाम
दिया उसको भेष!!
धोखे दे रहे बस
सत्तर साल से!
संपन्न होते जाते
खुद हर राल से!!
बुरा हो रहा है
व्यवस्था कारण!
समस्त धरा पर
न ऐसा उदाहरण!!
पिछलग्गू बने हैं
लोग अधिकांश!
तर्क व
विवेक का
भूल गए सारांश!!
विश्वगुरु भारत
बनाया बदहाल!
चरित्र बिगडा है
बिगडी है चाल!!
सुधारक ही सुनो
विकृतिग्रस्त हैं !
व्यापारी बाबाओं से
भारतीय त्रस्त हैं!!
जागो भारतीय
खुद सुधरो पहले!
कोई विकृति फिर
हममें क्यों रह ले!!
व्यवस्था परिवर्तन का
दबाव बनाओ!
आओ भारतीय सब
मिलकर के आओ!!
आचार्य शीलक राम
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