शोध और अनुसंधान की तर्कपूर्ण प्रस्तुति : ‘प्रमाण अन्तरराष्ट्रीय शोध पत्रिका’
डॉ. सुरेश कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिन्दी)
राजकीय महाविद्यालय सांपला
रोहतक (हरियाणा)
वर्तमान सदी के परिदृश्य में जो विसंगतियां एवं विद्रूपताएं हमारे समक्ष हैं वे हमारी शिक्षा व्यवस्था की कमियों के कारण ही पैदा हुई हैं। वास्तव में यदि देखा जाए तो हम साक्षर तो हुए हैं लेकिन शिक्षित नहीं। हमारी शिक्षा में नैतिक मूल्यों के अभाव ने ने केवल हमारे वर्तमान को संकट ग्रस्त किया है बल्कि हमारे भविष्य को भी मुसीबत में डाल दिया है। शिक्षा से भावी पीढ़ी के व्यवसायिक हितों के साथ-साथ उनके चहुंमुखी विकास को सुनिश्चित करने हेतु जिस एक अति आवश्यक पक्ष को हमारे शिक्षाविदों ने रेखांकित किया है, वह हमारी शिक्षा प्रणाली में अनुसंधान पर बल देने की बात है। अनुसंधान के प्रति हमारी शिक्षा संस्थाओं की संवेदनशीलता में वृद्धि का यही कारण है। शोध के क्षेत्र में गुणात्मक तथा परिमाणात्मक सुधारों को ध्यान में रखते हुए महाविद्यालायें में स्नातक व स्नातकोतर पर प्रोजेक्ट के रूप में तथा पीएच॰डी॰ के लिए पंजीकृत किए जाने वाले शोधार्थियों के लिए लिखित एवं मौखिक परीक्षा की व्यवस्था की गई है। वह एक सराहनीय कदम है। दूसरी ओर पीएच॰डी॰ में पंजीकृत हो चुके शोधार्थियों के लिए भी न्यूनतम दो शोधपत्रों के प्रकाशन की अनिवार्यता शोध की गुणवता में सुधार करने के लिए उठाया गया कदम है । इसी के अन्तर्गत शोध गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए यू॰जी॰सी॰ द्वारा विश्वविद्यालयों में प्रकाशन की व्यवस्था के साथ-साथ सेमिनारों, कार्यशालाओं व अन्य प्रकार की शोध सहायक गतिविधियों का भी आयोजन किया जाता रहा है। इस संबंध में कुछ साहित्यिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा शोध-पत्रिकाओं का प्रकाशन मुख्य स्थान रखता है! शोध के स्तर व गरिमा से समझौता करके केवल धन लेकर शोध-पत्रों का प्रकाशन कर रही । जबकि ऐसी शोध-पत्रिकाओं का भी अभाव नहीं है जो स्वच्छ तथा प्रामाणिक अनुसंधान गतिविधियों में लगी है। आचार्य अकादमी चुलियाणा रोहज, रोहतक (हरियाणा) द्वारा प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय त्रैमासिक शोध-पत्रिका ‘प्रमाण’ (आईएसएसएन: 2249-2976) इस संदर्भ में उल्लेखनीय है! यह एक अन्तरराष्ट्रीय पीयर रिव्यूड एवं रेफर्ड शोध पत्रिका है, जो शोध- पत्रिकाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है! इसके अतिरिक्त भी इसमें हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, संस्कृत आदि भाषाओं के शोध-पत्रों का प्रकाशन होता है। पत्रिका सभी विषयों के शोध-पत्रों के माध्यम से नए-नए विचार सामने लाने के लिए प्रयासरत रही है। यह शोध-पत्रिका शिक्षा व अनुसंधान के प्रति समर्पित है। अतः बिना किसी व्यावसायिक उद्देश्य के इस पत्रिका में केवल उन्हीं शोध-पत्रों को स्थान दिया जाता है, जो मौलिक चिन्तन, प्रमाणिक तथ्यों पर आधारित तथा प्रासांगिक विषयों पर लिखे होते हैं और ज्ञान-विज्ञान में किसी नई अवधारणा को प्रस्तुत करते हैं!
यह यह शोध-पत्रिका शोधार्थियों के साथ-साथ प्राध्यापकों के लिए भी काफी उपयोगी है। स्तरीय शोध-विषय चयन, वस्तु चयन, उत्कृष्ट प्रस्तुतीकरण और शोधपरक सामग्री से युक्त यह शोध - पत्रिका पिछले दो दशक से शोध मानकों पर खरी उतरने के साथ-साथ शोध-क्षेत्र में एक बड़ी कमी को पूरा करती है। शोध-पत्रों के प्रस्तुतीकरण में शोध-पत्र का सारांश एवं मुख्य शब्द पहले दिए जाते है, जो पाठकों की सुविधा की दृष्टि में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।
इस शोध- पत्रिका को भारतीय व विदेशी विश्वविद्यालयों में कार्यरत लगभग 60 विद्वानों की टीम के साथ आचार्य ‘शीलक राम’ अपने कुशल संपादन के साथ राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा व सम्मान दिलवाने के संकल्प के साथ प्रयत्नशील हैं। अतः शोध रूपी यज्ञ में जुटी संस्था आचार्य अकादमी चुलियाणा, रोहतक (हरियाणा) में अपनी आहुति देकर शिक्षा व अनुसंधान जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के इस पुनीत कार्य में सहभागी बनें
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