Thursday, March 19, 2020

हमने आजादी प्राप्त नहीं की अपितु अंग्रेजों से भीख में मिली है!!

       भारत के भ्रष्ट नेता कितना ही यह राग अलापते रहें कि हमने भारत को आजादी दिलवाई, गांधी ने बिना खड़ग व ढाल के भारत को आजाद करवा दिया (हालांकि 1947 के आसपास आजादी के नाम पर 10 लाख लोगों का कत्लेआम हुआ था), हमने आजादी की प्राप्ति हेतु अंग्रेजों द्वारा दिए अनेक दुख सहे, हम अनेकों बार जेलों की यात्रा पर गए (हालांकि अनेक नेता बलात्कार, लूटपाट व चोरी-जारी के कुकर्मों के कारण जेलों में गए थे तथा बाद में उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानी’ की पैंशन भी सम्मान स्वरूप मिली), हमने भारत की आजादी हेतु अपना घर-बार व गृहस्थी बर्बाद कर दी, हम दर-दर की ठोकरें खाते रहे आदि-आदि कितनी ही बातें भारत की आजादी के संबंध में नेता लोग विभिन्न मंचों से सुनाते रहते हैं लेकिन सच यह है कि अंग्रेजों से हमने भारत को आजाद नहीं करवाया अपितु उन्होंने हमें स्वयं की बेहूदी शर्तों पर आजादी प्रदान की भी । वे ऐसा करने को विवश हुए इसमें भी सुभाषचन्द्र, सावरकर, श्री अरविंद, लाला लाजपतराय, विपिनचंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु तथा अन्य अनेक गुमनाम शहीद वीरों का खौफ काम कर रहा था । नरम दल वाले नेताओं के वैभव-विलास का जीवन जीने वाले जमावड़े ने पूरे मन से कभी नहीं चाहा कि अंग्रेज भारत छोड़कर ब्रिटेन में वापिस चले जाएं । इसीलिए आज भी कांग्रेस की सारी राज-काज की नीतियां दुष्ट अंग्रेजों वाली ही है । लूट मची है पूरे देश में । घोटाले पर घोटाले करके राष्ट्र का धन विदेशों में जमा करवाया जा रहा है । खरबों के घोटाले करने वाले भी दो-चार महीने जेल में आराम करके संसद भवन में खड़े दिखाई देते हैं । कानून की मार गरीब पर ही पड़ती है जबकि अंग्रेजी भक्त 2-4 प्रतिशत लोगों की सुरक्षा करने को सारा तंत्र सदैव तत्पर रहता है । गर्म दल ने पूरे मन से भारत की आजादी हेतु कार्य किया था लेकिन आश्चर्य देखिए कि न तो उनका कोई नाम लेवा बचा है तथा न ही उनका कोई वारिस समकालीन राजनीति में है । नरम दल वाले यानि कि गांधीवादी जिन्होंने पूरे मन से कभी आजादी चाही ही नहीं, 1947 से सत्ता का भोग कर रहे है, को कुछ कहें तो राजद्रोह या सांप्रदायिक का ठप्पा लगाकर जेल में ठोक देंगे । हां, राष्ट्रतोड़क इस्लामी उग्रवादियों की पांच सितारा सेवा खूब की जाती है ताकि मुसलमानों के वोट अपने कब्जे में रहे । क्या होगा इस देश का?
    जिस वक्त देश आजाद हुआ उस वक्त राष्ट्र को आजाद करवाने का कोई भी आन्दोलन नहीं चल रहा था, फिर अंग्रेजों ने इस देश को क्यों आजादी दे दी? - इस प्रश्न के उत्तर में अनेक षड्यंत्रों का भांडाफोड़ हो सकता है । किसी अंग्रेजी या कांग्रेस समर्थक नेता के पास इसका कोई जवाब हैं क्या? जवाब नहीं है अपितु हो-हल्ला जरूर हो जाएगा । राष्ट्रवादी क्रांतिकारी गर्म दल के नेता तो 1947 से पूर्व ही अधिकांशतः या तो देहत्याग कर चुके थे या नरम दल वालों की गद्दारी ने उनको मौत के मुंह में पहुंचा दिया था या एक-दो बचे हुए नेता अज्ञातवास में जा चुके थे । गांधीवादी नरम दल वालों के राष्ट्र को आजाद करवाने के आन्दोलन 1942 में समाप्त हो चुके थे - इसी काल में अग्रेजों ने एकदम से भारत को आजाद करने की सोची तो क्यों? हम आजादी प्राप्त करते तो उसकी कोई गरिमा भी होती लेकिन अंग्रेजों ने तो अपनी मनमानी, बेहूदी, अपमानजनक एवं दयनीय शर्तों पर हमें आजादी भीख में प्रदान की थी । उस आजादी का खामियाजा हम पिछले छह दशक से भोग रहे हैं । हर तरफ लूट-खसोट, व्यभिचार, बलात्कार, अनाचार, बेईमानी, भ्रष्टाचार, गरीबी, बदहाली, कुकर्म, उपद्रव, आंतक, शोषण एवं गद्दारी का बोलबाला है । देश के 2-4 प्रतिशत लोग बाकी 98-96 प्रतिशत लोगों को गुलाम मानते हैं तथा अंग्रेजों जैसा कमीना व दुष्ट व्यवहार करते हैं । इस सब से शायद गांधी व विनोबा की आत्मा खुश हो सकती है लेकिन दयानंद, सावरकर, सुभाष, अरविंद एवं राष्ट्रवादी मूल भारतीय की नहीं । गांधी का नाम लेकर व गांधीवादी होने का दावा करने वाले क्या-क्या राष्ट्रद्रोहपूर्ण कृत्य नहीं कर रहे हैं और वह भी लोकशाही की छत्र-छाया में । सब कुछ होते हुए भी देश की हालत बदतर है । बिजली, पानी, स्वास्थ्य, रोजगार, खेल, किसान, मजदूर एवं राष्ट्र की अस्मिता हेतु 1947 के पश्चात् अन्य देशों की तुलना में हम कहीं नहीं हैं । हां, आंतकवाद, उपद्रव, भ्रष्टाचार, शोषण, तुष्टीकरण, विश्वासघात एवं गद्दारी में जरूर हमने कीर्तिमान स्थापित किए हैं ।
    आपको जानकर आश्चर्य होना चाहिए कि हमने आज भी ‘राष्ट्रमंडल’ की सदस्यता ग्रहण की हुई है । इस राष्ट्रमंडल में वे देश सम्मिलित हैं जो कभी ब्रिटेन के गुलाम थे । वे सारे देश आजाद होने के बावजूद भी इंग्लैण्ड की महारानी को अपनी महारानी उसी तरह मानते हैं जैसेकि आजादी से पहले मानते थे । यानि कि आज भी गुलामी की निशानी को इन्होंने जीवित रखा हुआ है । यह सब नरम दल वालों की साजिश है । ये अपने आपको इंग्लैण्ड का पढ़ा-लिखा तथा अन्य समस्त भारत को अपना गुलाम, अपनी जागीर या अपनी भोगलीला भूमि मानते हैं । इंग्लैण्ड की महारानी को भारत आने पर वीजा आदि की जरूरत नहीं पड़ती है जबकि भारत का राष्ट्रपति जब इंग्लैण्ड जाता है तो उसे वीजा आदि की सारी औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं - इससे बड़ा और सबूत क्या होगा कि हम आज भी गुलाम हैं - अंग्रेजों के या उन द्वारा स्थापित प्रतिनिधियों के । यदि हमें अपनी शर्तों पर आजादी मिलती तो हम आज समृद्ध, विकसित, निर्भय, आंतकवादमुक्त, धनी, पूर्ण शिक्षित, ईमानदार एवं न्यायप्रिय होते । लेकिन भीख में मिली आजादी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है । भारत, भारतीयता, भारतवाद एवं सनातन आर्य वैदिक हिन्दू जीवन-मूल्यों का पग-पग पर अपमान हो रहा है । जो इनकी बातें करता है, उसे किसी न किसी अपराध में फंसाकर जेल भेज दिया जाता है । कब होगा भारत का भाग्योदय? कब मिलेगी भारत को आजादी? कब श्वास लेंगे हम स्वतंत्र भारत में? इस संबंध में सोचें तथा भारत को बचाने में अपना योगदान दें । निष्टले बैठने से कुछ न होगा । सक्रियता, सचेतता एवं प्रतिशोध के विचारों की आशा में ‘प्रमाण’ त्रैमासिक रिसर्च जर्नल का यह नया अंक आपके हाथों में है ।
""आचार्य शीलक राम""
वैदिक योगशाला

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