Saturday, March 21, 2020

मौन

सरल-सहज है तुम्हारी सूरत
देवलोक की जैसे कोई मूरत
मूरत होकर भी अमूर्त लगती
भीतर जाने को शक्ति जगती । 1
देख-देखकर कोई समझ न पाए
बिन समझे क्या खाक बताए
सारा खेल है समझ, अनुभूति का
प्रज्ञा-रूप एक दिव्य द्युति का । 2
अवलोकन करते जो बाहरी रूप का
वे रहस्य न जाने शश्वत् अरूप का
क्षणभंगुर है बाहरी सब दिखावा
मिलेगा अंत में बस पछतावा । 3
मैदानी क्षेत्र में जैसे नदिया बहती
रहकर मौन बहुत कुछ कहती
बहती रहती वह शांत भाव से
संघर्ष किए बिन, बिना दुराव से । 4
तृप्तिदायी है तुम्हारी झलक
मन करता देखने को अपलक
भीतर तक शांति छा जाती
अपनी ऊर्जा से खूब नहलाती । 5
""आचार्य शीलक राम""

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