झांक रही है मेरी
अधखुली खिडकी से
सूखे दरख्त की सूखी डाली,
एक संप्रेक्षण था,
थी एक मौन अभिव्यक्ति,
मानो कुछ ना कहकर भी
सब कह दिया उसने,
उस ठूंठ होते दरख्त की
जीजिविषा, कितना जीवट,
हां वह दरख्त सूख रहा है
लेकिन कहां अटकी हैं
उसकी सांसे, उस आखिरी
पत्ते पर, हां उसी
सूखी सी डाली पर जो
झांक रही है मेरी खिडकी में...
Posted by : अरुणा
अधखुली खिडकी से
सूखे दरख्त की सूखी डाली,
एक संप्रेक्षण था,
थी एक मौन अभिव्यक्ति,
मानो कुछ ना कहकर भी
सब कह दिया उसने,
उस ठूंठ होते दरख्त की
जीजिविषा, कितना जीवट,
हां वह दरख्त सूख रहा है
लेकिन कहां अटकी हैं
उसकी सांसे, उस आखिरी
पत्ते पर, हां उसी
सूखी सी डाली पर जो
झांक रही है मेरी खिडकी में...
Posted by : अरुणा
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