Tuesday, March 24, 2020

माँ


जीवनदायिनी तुम
है जीवन का सार तुमसे
तुम हो अनंत
तुलना नही तुम्हारी किसी से
धरा सी तुम हो सहनशील
सबकी प्यास बुझाने वाला
जल हो शीतल
दुःख सहकर सुख बांटती
परिस्थिति हो चाहे जितनी विकल
सागर की गहराई जितना
गहरा होता माँ का प्यार
अपने बच्चों पर माँ तो बस
उसे लुटाती बार-बार ॥
..........Posted by Aruna

Saturday, March 21, 2020

मौन

सरल-सहज है तुम्हारी सूरत
देवलोक की जैसे कोई मूरत
मूरत होकर भी अमूर्त लगती
भीतर जाने को शक्ति जगती । 1
देख-देखकर कोई समझ न पाए
बिन समझे क्या खाक बताए
सारा खेल है समझ, अनुभूति का
प्रज्ञा-रूप एक दिव्य द्युति का । 2
अवलोकन करते जो बाहरी रूप का
वे रहस्य न जाने शश्वत् अरूप का
क्षणभंगुर है बाहरी सब दिखावा
मिलेगा अंत में बस पछतावा । 3
मैदानी क्षेत्र में जैसे नदिया बहती
रहकर मौन बहुत कुछ कहती
बहती रहती वह शांत भाव से
संघर्ष किए बिन, बिना दुराव से । 4
तृप्तिदायी है तुम्हारी झलक
मन करता देखने को अपलक
भीतर तक शांति छा जाती
अपनी ऊर्जा से खूब नहलाती । 5
""आचार्य शीलक राम""

Friday, March 20, 2020

अधखुली खिडकी ...

झांक रही है मेरी
अधखुली खिडकी से
सूखे दरख्त की सूखी डाली,
एक संप्रेक्षण था,
थी एक मौन अभिव्यक्ति,
मानो कुछ ना कहकर भी
सब कह दिया उसने,
उस ठूंठ होते दरख्त की
जीजिविषा, कितना जीवट,
हां वह दरख्त सूख रहा है
लेकिन कहां अटकी हैं
उसकी सांसे, उस आखिरी
पत्ते पर, हां उसी
सूखी सी डाली पर जो
झांक रही है मेरी खिडकी में...


Posted by : अरुणा