होश का दीपक
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मानसिक तनाव ज्वालामुखी
कुंठा , हताशा बने तूफान।
अतृप्ति मचलती नदियां बनी
पर - पग पर खडे व्यवधान।।
जिस पथ पर भी चलना हुआ
वहां पर कांटें करें इंतजार।
सृजन के कहीं न दर्शन हुए
मिला दुश्मनों सा व्यवहार।।
चुनौतियां सदा बुलाती रहीं
प्रतीक्षा बस मारने -मरने की
मुर्दा यह जीवन बना दिया
नहीं आशा कोई सुधरने की।।
चिंता सदैव चिता बनती रही
यहां पर निराशा ने डाला डेरा।
दशों दिशाएं अंधकारमय सी
कभी भी नहीं देखा सवेरा।।
व्यथा,पीडा प्रियतमाएं रहीं
अतृप्ति को अपने संग लेकर।
मित्रों के दिए विश्वासघात ने
असफलताओं को रखा संजोकर।।
कहां से आया,कहां पर जाना
इस जीवन में क्या करना है।
सबके मध्य 'होश' का दीपक
इन सबसे यहां गुजरना है।।
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डॉ शीलक राम
दर्शन विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र
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