भारतराष्ट्र पर कोई भी संकट
एक रहें सब मतभेद भूलाकर!
राष्ट्र के दुश्मन चारों दिशाओं
समझ नआई समझा बूझाकर!!
एक रहें सब मतभेद भूलाकर!
राष्ट्र के दुश्मन चारों दिशाओं
समझ नआई समझा बूझाकर!!
नेता व दल आते जाते रहते
राष्ट्र भारत सनातन हमारा !
रक्षा हेतु कुछ भी कर दें
सारी धरा पर सबसे प्यारा!!
सभ्यता व संस्कृति इसकी
सबसे पुरातन सबसे न्यारी!
आततायियों के हमले हजारों
जीवित फिर भी कभी न हारी!!
इसकी अस्मिता चोटिल होती
दर्द हमें होना चाहिए समान!
किसी भी दल का शासन हो
कोई भी हो सुनो राष्ट्र प्रधान!!
अंध भक्ति बस करें राष्ट्र की
या फिर अपनी सभ्यता संस्कृति!
नेता;गुरु;सुधारक आते जाते हैं
न हो पाए अपनी सोच विकृति!!
राष्ट्र; धर्म; सभ्यता व संस्कृति
एकजुट रहें सब इसकी रक्षा !
छोटे मोटे मतभेद भुलाकर
सफल हों जाएं राष्ट्रप्रेम परीक्षा!!
परमपिता हमें दो सद्बुद्धि
संकीर्ण सोच बने बस खुली!
अपने प्यारे भारत राष्ट्र हेतु
जरुरत पर चढ सकें हम शूली!!
वहीं नेता हम हेतु है भला
वहीं गुरु हम हेतु है पुजा!
अस्मिता हेतु कुछ भी कर दे
बाकी नहीं कोई पुजनीय दूजा!!
न अंधभक्ति ; न टांगखिंचाई
विवेक;सोच सब अपनी जगाओ!
नेता गुुरुअंधभक्त सबके दुश्मन
इस व्याधि को राष्ट्र से भगाओ!!
तर्क; विचार; होश का जागना
हर क्षेत्र में अत्यंत ही जरुरी!
राष्ट्र; सभ्यता ;संस्कृति सुन लो
यहां तो त्याग दो अपनी गरुरी!!
वीर सेनाओं को नमस्कार है
सबसे अद्भूत; सबसे साहसी!
किसी को भी हराने में सक्षम
इतनी कट्टर; इतनी दुस्साहसी!!
भारत राष्ट्र प्राण जीवन मेरा
समर्पित इस हेतु हर एक श्वास!
सब कुछ इसका विचित्र इतना
आकर्षण इसका दिव्य है खास!!
आचार्य शीलक राम
राष्ट्र भारत सनातन हमारा !
रक्षा हेतु कुछ भी कर दें
सारी धरा पर सबसे प्यारा!!
सभ्यता व संस्कृति इसकी
सबसे पुरातन सबसे न्यारी!
आततायियों के हमले हजारों
जीवित फिर भी कभी न हारी!!
इसकी अस्मिता चोटिल होती
दर्द हमें होना चाहिए समान!
किसी भी दल का शासन हो
कोई भी हो सुनो राष्ट्र प्रधान!!
अंध भक्ति बस करें राष्ट्र की
या फिर अपनी सभ्यता संस्कृति!
नेता;गुरु;सुधारक आते जाते हैं
न हो पाए अपनी सोच विकृति!!
राष्ट्र; धर्म; सभ्यता व संस्कृति
एकजुट रहें सब इसकी रक्षा !
छोटे मोटे मतभेद भुलाकर
सफल हों जाएं राष्ट्रप्रेम परीक्षा!!
परमपिता हमें दो सद्बुद्धि
संकीर्ण सोच बने बस खुली!
अपने प्यारे भारत राष्ट्र हेतु
जरुरत पर चढ सकें हम शूली!!
वहीं नेता हम हेतु है भला
वहीं गुरु हम हेतु है पुजा!
अस्मिता हेतु कुछ भी कर दे
बाकी नहीं कोई पुजनीय दूजा!!
न अंधभक्ति ; न टांगखिंचाई
विवेक;सोच सब अपनी जगाओ!
नेता गुुरुअंधभक्त सबके दुश्मन
इस व्याधि को राष्ट्र से भगाओ!!
तर्क; विचार; होश का जागना
हर क्षेत्र में अत्यंत ही जरुरी!
राष्ट्र; सभ्यता ;संस्कृति सुन लो
यहां तो त्याग दो अपनी गरुरी!!
वीर सेनाओं को नमस्कार है
सबसे अद्भूत; सबसे साहसी!
किसी को भी हराने में सक्षम
इतनी कट्टर; इतनी दुस्साहसी!!
भारत राष्ट्र प्राण जीवन मेरा
समर्पित इस हेतु हर एक श्वास!
सब कुछ इसका विचित्र इतना
आकर्षण इसका दिव्य है खास!!
आचार्य शीलक राम
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