भारत राष्ट्र है सबसे प्यारा,
सर्वजगत में
इसकी ख्याति
।।
अहिंसा संग बदले की भावना,
सनातन से
यह भावना
मदमाती ।।
अहिंसा कहा है परमधर्म, धर्म
की खातिर
हिंसा करना
।।
करूणा करना सर्व के प्रति,
प्रतिशोध भी
न चाहिए
मरना ।।
अहिंसा, करूणा संग व्यक्ति एकांगी;
ऐसा व्यक्ति
आधा-अधूरा
।।
कोई भी उसको सताने को
तत्त्पर, खो
जाता जीवन
का जहूरा
।।
वह व्यक्ति यहां सदैव पिटता,
केवल अहिंसा
का जो
हो पूजारी
।।
समय पड़े पर हिंसा भी
जरूरी, अधिक
न बनाओ
इससे दूरी
।।
लातों के भूत न बातों
से मानें,
घूस्से-लात
की समझें
भाषा ।।
कायर, अहिंसक, दब्बू व्यक्ति से,
राष्ट्र रक्षा
की नहीं
कोई आशा
।।
अपनी ही जो रक्षा नहीं
कर सकता,
राष्ट्रधर्म वह कैसे निभाऐगा ।।
रोता-बिलखता रहेगा जग में,
डरा-सहमा
सा यहां
से जाऐगा
।।
अकेली नीति अहिंसा या करूणा,
व्यक्ति व
राष्ट्र के
नहीं काम
की ।।
पिटना-पिटना-पिटना भाग्य में,
जाए शरण
चाहे वह
श्रीराम की
।।
प्रतिशोध या बदले
की भावना,
रोम-रोम
में होनी
ही चाहिए
।।
करूणा व अहिंसा की यह
संगी, ऐसी
खेती कुछ
बोनी चाहिए
।।
रोनी शक्ल-बस कायरता की
बातें, दब्बूपन
की जीवनशैली
।।
न खुद की रक्षा-न
राष्ट्र की
रक्षा, आत्मा
भी कर
दी मैली-कुचैली ।।
अहिंसक, कायर, दब्बू लोग सुनो,
भारतभूमि पर
व्यर्थ भार
हैं ।।
अहिंसा भी अधूरी-करूणा भी
अधूरी, पाते
नहीं किसी
का प्यार
हैं ।।
सही जीवन यहां वहीं जीते,
अहिंसा संग
जो हिंसा
को जीते
।।
प्रतिशोध यदि रहा
न जीवन,
मर जाते
वे सुनो
जी जीते
।।
जीना भी हुआ मरने के
बराबर, प्रतिशोध
जो ले
नहीं सकते
।।
म्याऊं-म्याऊं बस संकट में
करते, रक्षा
को मुंह
अन्यों का
तकते ।।
स्वयंभू राष्ट्र की अस्मिता की
खातिर, प्रतिशोध
का महत्त्वपूर्ण
स्थान ।।
अन्यथा गुलामी आनी निश्चित, दीन-हीन वह
बिन बुलाया
मेहमान ।।
अहिंसा अकेली बस कायरता है,
कपड़े इसने
कैसे भी
पहने हों
।।
प्रतिशोध भावना की
चमक निराली,
क्यों किसी
के कष्ट
सहने हों
।।
भले व्यक्ति की यह अच्छाई
मानी, हर
स्थिति में
वह शांत
हो ।।
अच्छाई नहीं-यह बुराई है,
संकट समय
वह क्यों
न अशांत
हो ।।
प्रतिशोध जो लेना
भूल गया,
जीवन उसका
हुआ बेकार
।।
असुरक्षा उसके चारों
तरफ रहेगी,
न्यायदृढ़ हो-
मजबूत सरकार
।।
मुझे क्या - तुझे क्या को
त्यागो, स्व-रक्षा संग
राष्ट्र की
रक्षा ।।
दुखी करें जो यहां पर
हमको, प्रतिशोध
ही सबसे
बड़ी शिक्षा
।।
अहिंसक अहिंसक नहीं होता है,
अहिंसक होना
उसकी कायरता
।।
अच्छेपन की पोशाक पहन लेता,
कोई भी
उसको सकता
सता ।।
पहने हुए लबादों को छोड़ो,
पहचानो अपनी
छिपी हुई
शक्ति ।।
डरे-डरे से रहना व्यर्थ
है, जरूरी
है धरा
पर राष्ट्र
की भक्ति
।।
राष्ट्रभूमि हमें सबसे
प्यारी है,
कुछ भी
करें हम
इसकी रक्षा
को ।।
राष्ट्र से प्रेम जो न करना सिखलाए,
धिक्कार ऐसी
शिक्षा को
।।
हम हेतु सबसे पहले राष्ट्र
है, सब
कुछ इसके
बाद में
आता ।।
बलिदान इस हेतु कुछ भी
कर दें,
इतना महत्त्वपूर्ण
यह कहलाता
।।
स्वर्ग सी प्यारी भारतभूमि हमारी,
इसकी ओर
जो आंख
उठाए ।।
धरती से उसका वजूद मिटा
दें, कभी
कहीं भी
वह पकड़ा
जाए ।।
सहमे-सहमे से रहना व्यर्थ
है, अपनी
भूमि शान
से जीना
।।
छेड़छाड़ करे कोई व्यर्थ में,
फाड़कर रख
दें उसका
सीना ।।
चड्डी पहनने से वीरता नहीं
आती, यह
तो होती
व्यक्ति की
छाती ।।
ऐसी चोट मारो दुश्मन को,
अपना दर्द
वह स्वयं
बतलाती ।।
पाकिस्तान हो या
हो चीन
विरोधी, सबका
हमें सामना
करना है
।।
इन दुष्टों को हमें धूल
चटानी है,
मारना-काटना,
नहीं मरना
है ।।
अहिंसा, करूणा, समझ, विवेक सुनो;
पंचशील इस
संदर्भ में
बेकार ।।
जो इनकी ही रट लगाते
रहते, राष्ट्रविरोधी
है उनका
व्यवहार ।।
अंतरराष्ट्रीय सीमा न
क्राॅस करेंगे,
प्रत्येक स्थिति
में यह
गलत सोच
।।
राष्ट्र पर जब कोई संकट
आता, त्याग
देनी चाहिए
यह लोच
।।
जिन्होंने भी यह
विचार दिया
है, राष्ट्र
का उन्होंने
किया है
नुकसान ।।
राष्ट्ररक्षा को कहीं
तक जा
सकते, सीमा
पार दूर
करने को
व्यवधान ।।
राष्ट्रद्रोही भीतर या
बाहर का,
दंड हर
हालत चाहिए
मिलना ।।
ऐसी गहरी चोट उनको मारना,
खाता न
चाहिए उनका
खुलना ।।
लातों के भूत बातों से
न मानें,
भाषा समझें
ये मारामारी
।।
घातक चोट के ये योग्य
हैं, रखो
न इनकी
कभी उधारी
।।
प्रतिशोध ही जीने
का पथ
है, जीवनदर्शन
नहीं इसके
सिवाय ।।
राष्ट्रभूमि भारत हमें
सबसे प्यारी,
इसकी प्रतिष्ठा
को शीश
कटवाय ।।
राष्ट्रद्रोहियों के प्रति
कैसी नरमी,
इनके प्रति
सदैव कठोर
व्यवहार ।।
जनसाधारण कोई भी
भारतीय, या
हो हमारी
भारतीय सरकार
।।
पाकिस्तान हो या
चीन राष्ट्र
हो, सबसे
बड़े ये
दुश्मन हमारे
।।
इनकी नीयत गंदी व भ्रष्ट
है, भारत
के ये
नहीं हैं
प्यारे ।।
ईंट का जवाब पत्थर से
देना है,
राजधर्म की
यही सीख
है ।।
व्यवहार इनके प्रति करूणा का,
राष्ट्रघाती यह सुनो लीख है
।।
भलों के साथ भला व्यवहार
करो, बुरों
की नाक
में डालनी
नकेल ।।
राष्ट्रभला है हम
हेतु सर्वोपरि,
खेलना पड़े
चाहे कैसा
भी खेल
।।
अपनी शक्ति का सही प्रयोग
करो, राष्ट्रवाद
व स्वदेशी
की पूजा
।।
मरना व जीना बस राष्ट्र
के हेतु,
इसके समान
कोई प्यारा
न दूजा
।।
गोली का जवाब देना है
तोप से,
यह सोच
हम सबको
रखनी ।।
जो भी हमसे युद्ध में
टकराऐगा, हार
उसको अवश्य
पड़ेगी चखनी
।।
उग्रवादी हो चाहे
हो आतंकवादी,
बाहर का
हो चाहे
हो भीतर
का ।।
मार-मारकर जमीन में दफना
दो,पता
लगे हमारे
प्रतिशोध चरित्र
का ।।
नेहरूवाद व गांधीवाद
को छोड़ो,
भारत की
बर्बादी का
ये कारण
।।
सावरकरवाद व सुभाषवाद
अपनाओ, राष्ट्र
समस्याओं का
यही निवारण
।।
चाणक्य नीति हम यह बतलाती,
दुश्मन का
खात्मा करके
छोड़ो ।।
धरा के हर कोने पीछो
करो उसका,
हड्डी-पसली
उसकी तोड़ो
।।
कहीं भी घुसना पड़े-घुसना
चाहिए, दुश्मन
की तोड़ने
को कमर
।।
जो जीवन राष्ट्र के काम
आता, वह
हो जाता
है यहां
पर अमर
।।
एक ही भाषा-प्रतिशोध की
भाषा, इसी
में हमें
करनी है
बात ।।
थोड़ा भी यदि कोई राष्ट्रद्रोही
बोले, व्यवहार
उससे घूस्से
व लात
।।
भारत माता हमें सबसे प्यारी
है, शाश्वत-सनातन-हम
सेवक इसके
।।
आँख उठाकर कोई इसको देखे,
गहरी चोट
उसको हम
मारें कसके
।।
‘आक्रमण
ही रक्षा’
का सूत्र
है, यह
हमें पड़ेगा
अपनाना ।।
कितने वीर हम भारतवासी हैं,
अपनी गर्जना
को पड़ेगा
सुनाना ।।
वीर अलबेले हम परम साहसी,
भारतमाता के
धनी सपूत
।।
उत्तर देना हमें भलि तरह
आता; चीन,
पाकिस्तान से जन्मजात कपूत ।।
एक के बदले जब सौ
को मारेंगे,
तभी दुश्मन
को अक्ल
आऐगी ।।
अहसास होगा हमारी वीरता का,
जगत प्रसिद्ध
फिर से
कहलाऐगी ।।
रक्षात्मक नीति जो
चलती भारत
में, यह
भारत के
अपमान का
कारण ।।
आक्रामक नीति अपनानी चाहिए, राष्ट्र
समस्याओं का
यही है
निवारण ।।
टूट पड़ो तुरंत दुश्मन पर,
कोई भी
अवसर उसे
करो न
प्रदान ।।
राष्ट्ररक्षा हम हेतु
सर्वोपरि हो,
रक्षात्मक न बनो तुम नादान
।।
किसी अन्य की न करो
प्रतीक्षा, अपनी शक्ति से आक्रामक
बनो ।।
कैसा भी अवसर राष्ट्र अस्मिता
का, दुश्मन
के सामने
जाकर तनो
।।
पठानकोट या उरी की घटनाएं,
मुंबई हमला
या संसद
की गरिमा
।।
आक्रमण ही रक्षा की नीति
हो, इसी
में छिपी
है भारतराष्ट्र
की महिमा
।।
धूर्त कायर नेताओं के चक्कर
न पड़ना,
भारत के
साथ इन्होंने
किए हैं
छल ।।
गद्दारी अब तक येकरते आए
हैं, कोई
भी समस्या
हुई नहीं
हल ।।
बातचीत, संवादादि बाप में होते
हैं, दुश्मन
की आए
जब अक्ल
ठिकाने ।।
अभी तो बस प्रतिशोध लेना
है, मजा
तभी आऐगा
राष्ट्रवादी कहलाने ।।
‘प्रतिशोध
का दर्शन’
अभी जरूरी
है, इस
समय की
यह जरूरत
हमारी ।।
धूर्त नेता या धर्मगुरु हों
कोई, इस
हेतु शक्ति
लगनी चाहिए
सारी ।।
दबाव बनाएं सभी दलों पर,
धर्मगुरुओं संग शिक्षाविशारद सभी ।
भारतराष्ट्र राष्ट्र रक्षा
को नीतियां
बदलो, फिर
नहीं दूसरी
जरूरत हैं
अभी ।।
प्रतीक्षा बहुत हमने
कर ली,
नेता व
गुरुओं ने
किया बस
छल ।।
‘प्रतिशोध’
बस नीति
हो हमारी,
यही है
भारत की
सुरक्षा का
हल ।।
पहले गोली फिर बात होगी,
इस नीति
पर हमें
चलना चाहिए
।।
पंचशील, करूणा, नरम राष्ट्र, इस
एकतरफा दलदल
से निकलना
चाहिए ।।
भारतराष्ट्र जय हो
तेरी सदैव,
सनातन-शाश्वत्-सबसे प्यारा
।।
शीश कटवा तेरी रक्षा को,
यही जीवनदर्शन
है सुनो
हमारा ।।
-आचार्य शीलक राम
दर्शन विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
e mail : shilakram9@gmail.com
No comments:
Post a Comment