Tuesday, May 17, 2016

सार्वभौम, सार्वकालिक व सर्व-कल्याणकारी नैतिक जीवन-मूल्य

विश्व की वे सभी वस्तुएं जिनकी एक व्यक्ति इच्छा करता है, उनको मानवीय मूल्य की श्रेणी में गिना जा सकता है। शारीरिक-मूल्यों से हमारी देह की जरूरतें पूरी होती हैं, जैसे भोजन, वस्त्रादि। आर्थिक-मूल्यों से हमारी आर्थिक जरूरतें पूरी होती हैं, जैसे धन, संपत्ति, दौलत, व्यापार, लेनदेन आदि। मनोरंजन के मूल्यों से तात्पर्य है-जिन वस्तुओं से मन बहलाव हो, जैसे खेल, सिनेमा, नौटंकी, फाग-नृत्य आदि। साहचर्य के मूल्यों से परस्पर सद्भाव, दोस्ती, लगाव आदि की वृद्धि होती है, जैसे-दोस्ती, मैत्री आदि। चारित्रिक मूल्यों के अंतर्गत ईमानदारी दयालुता, सच्चाई आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। सौंदर्यात्मक मूल्यों के अंतर्गत कला, सुंदरता, नक्काशी आदि को सम्मिलित किया जाता है। बौद्धिक मूल्यों के अंतर्गत ज्ञान, बौद्धिकता, तर्क, वाद-विवाद आदि की गिनती की जा सकती है। धार्मिक मूल्यों के अंतर्गत आत्मा, ईश्वर, ब्रह्म, चेतना, सृष्टि आदि को लिया जाता है। सामाजिक-मूल्यों के अंतर्गत समाज की उन्नति, प्रगति विकास निहित होता है, जैसे-सौहार्द, सूझबूझ, बंधुत्व आदि। मूल्यों को दो भागों में बांटा जा सकता है। कुछ मूल्य बाहरी होते हैं तथा कुछ मूल्य भीतरी होते हैं। मानव प्रकृति के आधार पर कुछ मूल्य शाश्वत् एवं अपरिवर्तनशील होते हैं, जिनमें स्वास्थ्य, निरोगता, ज्ञान, बुद्धिमत्ता, सुख, साहस, ईमानदारी, मित्रता, प्रेम, कृतज्ञता, सौंदर्य, विश्व-बंधुत्व, व्यक्तित्व, सहानुभूति, समानुभूति तथा हित आदि सम्मिलित हैं। इनका महत्व एवं इनकी उपयोगिता अखिल विश्व स्तर पर सदैव से है, तथा रहेगी।
जरूरत के अनुसार मनुष्य के अधिकांश जीवन-मूल्य परिवर्तित होते रहते हैं। समयानुसार मनुष्य का जीवन-मूल्यों या नैतिक-मूल्यों के प्रति दृष्टिकोण बदलता रहता है। उपर्युक्त सभी मूल्यों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम को जैविक-मूल्य तथा द्वितीय को अति-जैविक मूल्य कह सकते हैं। जैविक-मूल्य जीवन की सुरक्षा के लिए आवश्यक होते हैं तथा अति जैविक-मूल्य देह के ऊपर के होते हैं। इनमें सामाजिक एवं सौंदर्यात्मक मूल्य रखे जा सकते हैं।
साधन-मूल्य से साध्य-मूल्य, अस्थाई मूल्य से स्थाई मूल्य तथा अनुत्पादक मूल्य से उत्पादक मूल्य श्रेष्ठ होते हैं।
भारत में नैतिक मूल्यों को प्रारंभ से ही बहुत महत्व दिया जाता रहा है। वैदिक-काल से समकालीन संतों तक सभी नैतिक जीवन-मूल्यों को महत्व देते आए हैं। उनमें से कुछ का वर्णन अग्रलिखित प्रकार से कर सकते हैं-
पुरुषार्थ-चतुष्ट्य नैतिक-मूल्य: पुरुषार्थ चार कहे गए हैं।धर्मधारण करने योग्य कर्म को कहते हैं।अर्थके संबंध में महर्षि भर्तृहरि ने धन को ही सभी गुणों की खान कहा है। चाणक्य ने वाणी से लगे हुए घाव को धन से भरने की बात कही है।कामके दो अर्थ होते हैं-सामान्य विशिष्ट। सामान्य में बाहरी सुख की गिनती की जा सकती है तथा विशिष्ट में मानसिक सुख को लिया जा सकता है।मोक्षसभी दुखों से छूटने को कहते हैं।
वर्ण-नैतिक-मूल्य: वर्ण भी चार कहे गए हैं।ब्राह्मणका कार्य यज्ञ करना कराना, वेद पढ़ना पढ़ाना तथा ज्ञान लेना देना कहे गए हैं।क्षत्रियका गुण वीर्य, शौर्य, बलिदान, राष्ट्र-रक्षा आदि कहे गए हैं।वैश्यका कार्य धनार्जन व्यापार आदि होते हैं। जो व्यक्ति उपर्युक्त कार्य नहीं कर सकते, उनको सेवा कार्य में लगाया जाता है। अतः उनके मूल्य मेहनत, मजदूरी भार उठाना आदि कहे जा सकते हैं।
आश्रम-नैतिक-मूल्य: ये मूल्य जीवन के चार पड़ावों के अनुसार निर्धारित किए गए हैं। इसके अंतर्गत ब्रह्मचर्य-आश्रम के नैतिक मूल्य संयम, नियंत्रण, समर्पण आदि होते हैं। गृहस्थ के संतानोत्पत्ति आदि, वानप्रस्थ के सेवा, शिक्षा त्याग आदि तथा संन्यास के मानव सेवा, भक्ति, योग, साधना मोक्ष आदि कहे गए हैं।
उपनिषदों के नैतिक-मूल्य साधना, योग, तप, शिक्षा, समर्पण, आज्ञापालन एवं मोक्ष आदि कहे गए हैं।
गीता के नैतिक-मूल्य प्रतिकार, प्रतिशोध, आज्ञापालन, सेवा, त्याग, भक्ति, ज्ञान, कर्म, युद्ध, मोक्ष, निष्काम-कर्म आदि कहे गए हैं।
बौद्धों के नैतिक-मूल्य सम्यक्-दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाणी, सम्यक् व्यवसाय, सम्यक् प्रयत्न, सम्यक् स्मृति, सम्यक्-समाधि, मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा आदि कहे गए हैं।
जैनों के नैतिक-मूल्य ब्रह्मचर्य, संन्यास, वैराग्य, साधना, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिगृह आदि कहे गए हैं।
योगसूत्र के नैतिक-मूल्य शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि, कैवल्य आदि कहे गए हैं।
न्यायसूत्र के नैतिक-मूल्य तर्क, वाद, निर्णय, निग्रहस्थान आदि हैं।
सांख्यसूत्र का महत्वपूर्ण नैतिक-मूल्य प्रकृति-पुरुष-विवेक को कहा जा सकता है।
मीमांसासूत्र के नैतिक-मूल्यों में धर्म, कर्म यज्ञ आदि को लिया जा सकता है।
ब्रह्मसूत्र के नैतिक-मूल्यों में ज्ञान, आत्मा, ब्रह्म, चित्त-शुद्धि मोक्ष आदि को लिया जा सकता है।
स्मृति-ग्रंथों में नैतिक-मूल्यों के अंतर्गत महर्षि मनु, पाराशर विदुर ने धर्म, सत्य, प्रतिष्ठा, अहिंसा, अपरिग्रह, क्षमा, विवेक आदि को गिना है।
महाभारत एवं रामायण नामक महाकाव्यों में युद्ध, प्रतिशोध, दंड, कर्म, न्याय, क्षमा आदि का समावेश नैतिक-मूल्यों में किया है।
स्वामी दयानंद ने नैतिक-मूल्यों में सत्य, ज्ञान, तर्क, करुणा, विवेक, विद्या, क्षमा, दया, सहनशीलता आदि को लिया है।
गांधी ने सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, सत्याग्रह आदि को नैतिक-मूल्य कहा है। जिद्दू कृष्णमूर्ति ने नैतिक-मूल्यों के अंतर्गत ध्यान, विवेक, जागरण, होश जागृति की गिनती की है। ओशो रजनीश के अनुसार-साधना, ध्यान, चित्त-शुद्धि, रेचन, भोग, जागरण, विवेक, होश आदि नैतिक मूल्य हैं।
सनातन आर्य वैदिक भारतीय संस्कृति के जीवन-मूल्य या नैतिक-मूल्य विविधतापूर्ण, सर्वांगीण, समयानुकूल एवं वैज्ञानिक हैं। इसके कुछ मूल्य शाश्वत, कालातीत एवं अपरिवर्तनशील हैं। शाश्वत्-मूल्य सृष्टि के सभी व्यक्तियों हेतु है, जबकि परिवर्तनशील-मूल्य समय, जरूरत एवं परिस्थिति अनुसार बदलते रहते हैं। पाश्चात्य नीतिशास्त्रीय मूल्य भौतिक एवं बौद्धिक जरूरत अनुसार ही निर्धारित किए गए हैं, इसीलिए वे आंशिक रूप से ही उपयोगी हैं। सार्वभौम नैतिक-मूल्य केवल भारतीय आर्य सनातन वैदिक संस्कृति के जीवन-मूल्य हैं, जो बाह्य का सम्मानपूर्ण भोग करते हुए आंतरिक की ओर जाने का मार्ग-निर्देशन करते हैं। अशांत-चिंत, तनावग्रस्त, हताशाग्रस्त, युद्धग्रस्त एवं बदले की भावना से भरे-पूरे विश्व हेतु भारतीय नैतिक-मूल्य ही सर्वोत्तम सिद्ध हो सकते हैं।

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