Friday, April 29, 2016

ईश्वर प्रार्थना

    सृष्टि का इतना विविधतापूर्ण विस्तार क्या प्रयोजनहीन हो सकता है? सृष्टि का इतना विविघतापूर्ण विकास एवं ”ह्रास क्या बिना किसी करने वाले के हो सकता है? सृष्टि में लाखों नियम शाश्वत् से सतत् काम कर रहे हैं - क्या इन नियमों का इस काम करना बिना किसी करने वाले के सम्भव हो सकता है? सृष्टि के अनन्त विस्तार में अनन्त ग्रह-उपगह-तारें-उल्काएं आदि बनते एवं विनष्ट होते रहते हैं - क्या इनका यह बनना व बिगड़ा तथा नियमानुसार कार्यरत रहना बिना किसी संचालक के सम्भव हो सकता है? क्या साधारण मनुष्य-क्या मध्यम मनुष्य तथा क्या प्रतिभासम्पन्न मनुष्य-सभी चेतन-अचेतन रूप से सर्वप्रयासों में हार के बाद एक ऐसी असीम सर्वव्यापक सत्ता के सम्मुख विनीत क्यों हो जाते हैं कि जो केवल वही अब उनका एकमात्र आश्रय बची है? नास्तिक से नास्तिक व्यक्तियों द्वारा मार्गदर्शित एवं संचालित संगठन भी कुछ वर्ष पश्चात् एक असीम सर्वशक्तिमान सहायक सत्ता के रूप में उन्हीं की पूजा-उपासना शुरू क्यों कर देते हैं? बिना संचालक, बिना कत्र्ता, बिना करने वाले या बिना किसी चेतन गति देने वाले के क्या यह सब अपने आप स्वाभाविक रूप से सम्पन्न हो सकता है? एक छोटे से छोटा कण भी स्वयं कुछ नहीं कर सकता है तो अनन्त सृष्टि का अनन्त विस्तार बिना किसी चेतन सत्ता के कैसे सम्भव हो सकता है? यह जड़ सृष्टि बिना किसी चेतन सत्ता के अपने आप कुछ नहीं कर सकती है - यही चेतन सत्ता ईश्वर, परमात्मा, ब्रह्म, पुरुषोत्तम आदि नामों से व्यक्तियों द्वारा सम्बोधित की जाती है । धर्म एवं विज्ञान दोनों ही इस निष्कर्ष पर लाखों बार पहुंचे हैं कि जड़ सृष्टि के पीछे चेतन सत्ता शाश्वत् कार्यरत हैं ।
    ईश्वर की उपासना का कुछ निहितार्थ तभी निकलता है कि जब कोई व्यक्ति ईश्वर को मान्यता देता हो या निष्पक्ष भाव से उसकी खोज करने को उद्यत हो या इस भोगप्रधान भौतिक जीवन से जिसका चित्त भर गया हो । आजकल तो ईश्वर के नाम पर ऐसे-ऐसे व्यक्ति ईश्वर बन बैठे हैं जिनको केवलमात्र भोले-भाले व्यक्तियों की भौतिक जरूरतों या मानसिक परेशानियों से लाभ उठाकर अपने आर्थिक एवं प्रसिद्धि के साम्राज्य को चार चान्द लगाना ही उद्देश्य रह गया है । यह पाखंड या ढोंग भी इसीलिए पनप सकता है क्योंकि लोग वेदों में प्रदर्शित वास्तविक ईश्वर उपासना से दूर होते गए हैं । ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना एवं उपासना- यह वैदिक विज्ञान है स्वयं को जानकर ईश्वर साक्षात्कार करते हुए आनन्दानुभूति का । ईश्वरोपासना का एक पूरा विज्ञान भारत में विकसित किया गया था वेदों की शिक्षाओं के आधार पर । इसके आधार पर लाखों पुस्तकों की रचना हुई है जिनमें से अधिकांश मतान्ध ईसाई एवं इस्लामी हमलावरों के हमलों या आगजनी का शिकार होकर विनष्ट हो चुकी हैं । केवलमात्र महर्षि पतंजलिप्रणीत ‘योगसूत्र’ नामक रचना तथा इसके आधार पर लिखी साम्प्रदायिक योग व उपासना की पुस्तकें अब उपलब्ध होती हैं । विडम्बना यह है कि उपासना का केवल निम्न तल ही अधिकांशतः आजकल प्रचलित है, लोग इससे ऊपर उठना ही नहीं चाहते । अधिकांश साम्प्रदायिक धर्मगुरु या योगगुरु भी उपासना के मामले में मार्गदर्शक कम अपितु भटकाने वाले ही अधिक सिद्ध हो रहे हैं । भक्ति के नाम पर उपासना के प्रचलित पाखण्डों ने तथाकथित धर्मगुरुओं को अरबपति-खरबपति बना दिया है लेकिन उपासना के मामले में ये कतई कोरे हैं । स्तुति, प्रार्थना एवं उपासना - इनका एक पूरा विज्ञान है क्रमशः आगे बढ़ने का - कि जिससे परमात्मा के समीप हमारा आसन लग जाए । हम परमात्मा का साक्षात्कार कर लें । हम उसके समीप हो जाएं । हमारे आचरण में उच्च गुणों का प्रवेश हो जाए । हम होश से जीने लगें । मूर्तिपूजा, गुरुपूजा, तीर्थस्थान, जागरण, सत्संग, चैकी, नामदान या शक्तिपात के कुचक्र में फंसकर ‘अष्टांगयोगयुक्त’ योगसूत्रोक्त साधना ही सत्य उपासना है ।
-आचार्य शीलक राम

Saturday, April 9, 2016

ज्ञान एवं विज्ञान

     ज्ञान एवं विज्ञान शब्दों के सम्बन्ध मे­ बड़ा झमेला है। ज्ञान क्या है एवं विज्ञान क्या है - इस सम्बन्ध मे­ सामान्यजन ही नही अपितु पढ़े-लिखे व्यक्ति भी दिग्भ्रमित हैं। साधारणतः अपनी इन्द्रियों­ से जो जानकारियां हम­ उपलब्ध होती हैं तथा हमारा चित्त उनके सम्बन्ध में अपनी एक निश्चित धारणा बनाता है हम उसी को ‘ज्ञान होना’ या ‘ज्ञान’ कह देते हैं। देखना, स्पर्श करना, सूंघना, चखना या सुनना - इससे हम­ बाहरी जगत् की ज्ञानकारी प्राप्त करते हैं। यह पंच ज्ञानेन्द्रियों­ से प्राप्त जानकारी ही प्रचलित भाषा मे है। वर्तमान में­ जो ज्ञान प्रचलित है वह विज्ञान कहा जाऐगा। वर्तमान का विज्ञान भारतीय दृष्टि से सामान्य ज्ञान ही है अर्थात् वह कांर्य-जगत् का ही वर्णन है। भारतीय दृष्टिकोण से तो विज्ञान कार्य-जगत के मूल पदार्थों का वर्णन है। इसे वर्तमान युग के वैज्ञानिक या तो अनावश्यक समझकर छोड़े हुए हैं या उन तक उनकी अभी तक पहुंच नहीं है। दूसरे शब्दा­ में­ वर्तमान विज्ञान केवलमात्र प्रकृति के अष्टधा स्वरूप के गुण, कर्म और स्वभाव तक ही सीमित है। (गुरुदत्त, विज्ञान और विज्ञान, पृ॰ 15)। सही बात जो है वह यह है कि वास्तव में­ पाश्चात्य जगत् में­ विज्ञान की तरक्की तो बहुत कम हुई है जबकि जो तरक्की चहुंदिशि दिखलाई पड़ रही है वह तकनीक की तरक्की है, न कि विज्ञान की। विज्ञान की मूलभूत खोज­ तो पाश्चात्य जगत् में­ बहुत कम खोजी गई है, विज्ञान में सैद्धान्तिक प्रगति बहुत कम लेकिन इसके प्रयोग में­ काफी काम हुआ है। विज्ञान के प्रयोग की कला ने गजब की उन्नति दिखलाई है। अतीत में भारत मे­ विशुद्ध विज्ञान की सारी खोज­ पहले खोजी जा चुकी है लेकिन उन्हा­ने जानते हुए भी प्राकृतिक सन्तुलन को बनाए रखने हेतु विज्ञान की कला का बहुत कम प्रयोग किया। आज का पाश्चात्य विज्ञान पूरी तरह से भोग या शोषण पर निर्भर है अतः प्राकृतिक सन्तुलन की चिन्ता किए बगैर विज्ञान की खोजा­ का कलात्मक उपयोग हद से अधिक किया है। इसका परिणाम हम चारों तरफ हो रहे प्रदुषण, घातक व्याधियों, मानसिक परेशानिया­ एवं प्रकृति के खतरनाक उतार-चढ़ावों­ के रूप में देख रहे हैं। अतीत में विज्ञान का तकनीक के रूप में­ कम प्रयोग भारतीयों­ की सन्तुलित समझ का परिचायक है।
    वैसे भारतीय मनीषियों ने परमात्मा के स्वरूप को जानने हेतु कभी भी विज्ञान को बाधक नहीं माना अपितु उन्हा­ने तो परमात्मा के ज्ञान हेतु ज्ञान, विज्ञान दोनों को साधक ही स्वीकार किया है। यह अवधारणा भारतीय मनीषिया­ के सम्बन्ध में­ पाश्चात्या­ की निर्मित सोच के कतई विपरीत है जो यह दुष्प्रचारित करते रहे हैं कि प्राचीन भारतीय सदैव ही भौतिकवाद के विरोधी रहे हैं। देखिए गीता का एक श्लोक -
ज्ञानं तेऽहं सुविज्ञान मिदं वक्ष्याम्यशेषतः।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातत्यमवशिष्यते।। 7-2
ब्रह्म के समग्र स्वरूप को जानने के लिए ज्ञान-विज्ञान को जानना चाहिए। वह में बताता हूँ। इसे जान लेने के बाद अन्य कुछ जानने को शेष नही रह जाता है।
    ज्ञान सामान्य ज्ञान है जबकि विज्ञान विशेष प्रकार का ज्ञान है। यह सारा चराचर जगत् कहां से पैदा हुआ है - इसके स्वरूप, लक्षण व स्वभाव को जानना विज्ञान है। आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथिवी, मन, अहंकार व बुद्धि - यह अष्टधा प्रकृति ही यह अपरा प्रकृति है। यह अपरा इसलिए है क्या­कि यह दूर न होकर हमारे सामने है। इस अष्टधा अपरा प्रकृति से जो परे है वह है परा। उस परा से जानना ही विज्ञान है। यह कहा जा सकता है कि ‘कार्य जगत्’ ज्ञान है जबकि ‘जगत् कारण’ विज्ञान है। पाश्चात्य जिसे साईंस कहते हैं वह भारतीय अर्य में­ ज्ञान ही है। पश्चिम में­ अरस्तू इसके प्रचारक माने जाते है। यह विशेष से सामान्य की तरफ गतिमान रहता है। यह विश्लेषणप्रधान होता है। पाश्चात्य साईंस हेतु यह एक विडम्बना कही जाऐगी कि यह पिछले 2300 वर्ष से वही का वही खड़ा है। अब लगता है कि इक्के-दुक्कें साईंटिस्ट ‘कार्य जगत्’ के मूल तक जाने से कतराते आए हैं जबकि भारतीय वैज्ञानिको का यह जीवन-मरण का प्रश्न है। यह केवल व केवल भारतीय वैज्ञानिकों का साईंस है कि वे कार्य जगत् व ‘जगत् कारण’ दोना­ में प्रवेश कर पाए हैं। सनातन भारतीय ग्रन्थ भारतीयों­ की खोज एवं साहस का चमत्कारिक उदाहरण हैं। वैदिक भाषा में­ एक शब्द है ‘सांख्य’। इसका अर्थ है ज्ञान। हमारा यह विचारित मत है कि लैटिन भाषा का SCIENTIA । और अंग्रेजी का साईंस शब्द ‘सांख्य’ से ही निकले हैं। (गुरुदत्त, विज्ञान और विज्ञान, पृ॰ 14)। श्रीमद्भगवद्गीता ने कहा है कि पूर्ण कार्य जगत् दस पदार्थों से निर्मित है। प्रकृति के आठ तथा बाकी दो आत्मा व परमात्मा। आत्मा व परमात्मा तो मूल पदार्थ हैं। प्रकृति के आठ रूप मूल प्रकृति का परिणाम है। वास्तव में­ ही भारतीय विज्ञान की पहुंच व इसका विस्तार पाश्चात्य साईंस से अधिक है। स्वामी दयानन्द सारस्वती ने तो ‘ऋग्वेद्’ शब्द का अर्थ ही सब पदार्थों के गुण, कर्म व स्वभाव को जानना माना है। इस वेद में­ परमात्मा से लेकर धरती तक सब पदार्थों के गुण, कर्म व स्वभाव का नाम है तथा इनका ज्ञान अर्जित करने को ऋग्वेद् कहते हैं। अष्टधा प्रकृति के सभी रहस्या को भारतीय पूरी तरह से जानते थे इसम­ कोई सन्देह नही रह जाना चाहिए। यह हिम्मत केवल भारतीयों की ही रही है जो ‘विप्रा ऋतस्य वाहसा’ (ऋग्वेद्, 8.6.2) कह सके­ या ‘यतेमहि स्वराज्ये’ (ऋग्वेद् 5.66.6) का उद्घोष कर सके­। पूर्ण सत्य कथन करने व जीने की हिम्मत केवल भारतीयों­ ने की है। हां, वर्तमान में­ इनकी हालत दयनीय एवं असहाय है - यह हमारे नेताओं की कमी एवं हमारी फूट की वजह से हुआ है। इसकी भरपाई शीघ्र ही हम भारतीय कर पाएंगे - ऐसी आशा है।

Tuesday, April 5, 2016

साहित्य अकादमी के पुरस्कार वापिस लौटाने का मसखरापन

ईसाई मिशनरियों का कपट जाल इस्लामी कट्टरतादलित बुद्धिजीवियों का मामूली प्रलोभन के लिए पश्चिम के हाथों बिक जानासाम्यवादियों की दोगलेपन की पाखंडलीला$गांधीवादी कांग्रेसियों का पूर्वाग्रहपूर्ण अंग्रेजी अन्धानुकरण = साहित्यकारों द्वारा मोदी सरकार के विरोध-स्वरूप दिए जाने वाले इस्तीफे यह है कुल रहस्य इस समय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कारप्राप्त लेखकों द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों को वापिस करने का जो लेखक विरोधस्वरूप इस्तीफे दे रहे हैं इनमें तो शर्म बची है तथा ही भारतभूमि यहां के संस्कारों के प्रति सम्मान की भावना अरे मूढ़ों के सरदार महामूढ़ों ! ये पुरस्कार तो तुम्हें तुम्हारी मनपसन्द सरकारों ने चापलूसी करने के फलस्वरूप प्रदान किए थे तो फिर तुम इन पुरस्कारों को वापिस लौटाकर उनका अपमान क्यों कर रहे हो? तुममें क्या इतनी भी अक्ल नहीं बची है कि तुम यह जान सको कि जो तुम यह कर रहे हो यह वास्तव में एक बुद्धिहीन कृत्य है लेखक हो कर तुम ऐसा कृत्य कर रहे हो कि जिसका सृजनात्मकता से दूर दूर तक भी सम्बन्ध नहीं है तुम्हारे माई-बापों ने तुम्हें ये सम्मान दिए हैं और इस तरह से इनको वापिस करके तुम उन्हीं को गलत सिद्ध करने पर उतारू हो क्या महामूढ़ता चल रही है यह? भारत में कोई इनकी इस महामूढ़ता का विरोध करे तो वह साम्प्रदायिक लेकिन जो इनकी हां में हां मिलाए वह सेक्युलर वास्तव में भारत में सम्प्रदाय, मत या विश्वासों ने जो धर्म का मखोल उड़ा रखा है तथा जितनी बेवकूफियों यहां पर चल रही हैं उतनी शायद दुनियां में कहीं पर भी होंगी अभी का उदाहरण देखिए। रूस के राष्ट्रपति पुटिन ने सार्वजनिक घोषणा की है कि यदि रूस में मुसलमानों को रहना है तो उन्हें यहां की संस्कृति एवं यहां की जमीन की वास्तविकता का सम्मान करना होगा इसी तरह से आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि यदि मुसलमान आस्टेªलिया के जीवन-मूल्यों को नहीं मानते तो वे इस देश को छोड़कर कहीं बाहर चले जाएं लेकिन इसी तरह का बयान जब हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर देते हैं तो पूरे भारत में बावेला उठ जाता है। उन पर यह तक आरोप लगाए जाते हैं कि वे हरियाणा राज्य में पांथिक उन्माद फैला रहे हैं रूस एवं आस्ट्रेलिया की जनता अपने-अपने राष्ट्रपतियों के समर्थन में खड़ी हो जाती है तो भारत में देशद्रोहियों की आवाज को मजबूती से सहयोग मिलता है ऐसे में कैसे बनेगा हमारा भारत विश्वगुरु? कैसे हम पुनः अपनी पुरानी स्वर्णिम उन्नति को उपलब्ध कर पाऐंगे? कैसे हमारा भारत सनातन सार्वभौमिक आर्य हिन्दू जीवनमूल्यों को समस्त धरा पर फिर से प्रचारित कर पाऐगा? यह कैसे होगा?
अरे तथाकथित लेखकों ! यदि भारत में बन रहे असहिष्णु वातावरण के विरोधस्वरूप ही आप पुरस्कार वापिस करने का ड्रामा कर रहे हो तो फिर ऐसी असहिष्णुता तो भारत में सन् 1947 ई॰ के पश्चात् सैकड़ों बार उत्पन्न हो चुकी है। तब तुम्हारी आत्मा कहां सो गई थी? एक साजिश के तहत भारतीय इतिहास को बदलकर लिखवाने का महाषड्यन्त्र कांग्रेस साम्यवादियों ने सातवें दशक में रचाया जिसके अन्तर्गत समस्त भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शनशास्त्र आदि को विकृत करके भौंड़े एवं निम्न ढंग से प्रस्तुत किया गया था इस हेतु सैकड़ों लेखक लगाए गए तथा हजारों पुस्तकें लिखी र्गईं यह क्रम बंद नहीं हुआ अपितु आजादी के पश्चात् सातवें दशक से ही कांग्रेस साम्यवादियों ने मिलकर भारत की साहित्यक अकादमियों एवं विभिन्न साहित्यिक एवं शैक्षिक संस्थाओं पर कब्जा करके भारत के इतिहास, यहां की संस्कृति एवं अन्य प्राचीन विज्ञानों के साथ बलात्कार जारी रखा कितने साहित्यकारों ने इस कुकर्म का विरोध किया है? भारत की आत्मा के साथ यह कुकर्म करने पर तुम्हारी आत्मा क्यों नहीं जागी? शराब, शबाब एवं कबाब में डूबे रहने वाले तुम क्यों अपने राष्ट्र से प्रेम कराोगे? जिन्होंने अपनी आत्मा को विदेशी शक्तियों के हाथों गिरवी रख दिया हो वे क्या सोचेंगे अपनी भूमि अपने जीवन मूल्यों के बारे में? सन् 1975 ई॰ में इन्दिरा गांधी ने अपने कुकर्मों को छिपाने हेतु आपातकाल लगाया यह आपातकाल उन्नीस महीने तक लगा रहा सारे विपक्षी नेताओं एवं सामाजिक कार्यकत्र्ताओं को जेलों में ठूंस दिया गया। लोकतान्त्रिक मूल्यों को दफना दिया गया प्रैस का गला घोंट दिया गया अनेक जुल्म किए गए निर्दोष लोगों पर इन्दिरा गांधी ने अपनी असफलता एवं क्रूरता को जबरदस्ती देश पर थोपे रखा तब कहां चले गए थे विरोध करने वाले ये साहित्यकार? तब इनको अक्ल क्यों नहीं आई इन्दिरा गांधी के इस कुकर्म का विरोध करने की? तब भी इन साहित्यकारों के बड़े भाई देश में मौजुद थे एक गौ हत्यारे अखलाक की हत्या या दक्षिण भारत के किसी साहित्यकार की हत्या के कारण भारत में असहिष्ण्ुाता का वातावरण बन गया जबकि पूरे भारत को दहलाने वाले कुकृत्यों से सहिष्णुता को कोई नुकसान नहीं हुआ विरोध के नाम पर विरोध करने का यह एक ज्वलन्त उदाहरण है
मुझे सबसे अधिक आश्चर्य तब हुआ जब मुझे ालूम पड़ा कि विरोधस्वरूप पुरस्कार वापिस करने वालों में सबसे अधिक साहित्यकार पंजाब से हैं ये नकली एवं नाम के साहित्यकार साहित्य पर कलंक हैं पंजाब के साहित्यकार तब कहां चले गए थे जब भिंडरावाले के आदेश पर सिख आंतकवादी चुन-चुनकर हिन्दुओं को मार रहे थे? हजारों हिन्दुओं का निर्भमता से नरसंहार किया गया लेकिन ये पंजाब के साहित्यकार चुप रहे - क्या यही है एक साहित्यकार का धर्म? अरे मूढ़ों! डूबकर मर जाओ कहीं चूटलीभर पानी में अखलाक गौ हत्यारे की मौत पर बावेला करने वाले दुष्ट दक्षिण भारत में एक पूजारी प्रशान्त की मुसलमानों द्वारा की गई हत्या पर चुप क्यो हैं? अरे देश के दुश्मनों! यदि कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम भारत के पंजाब में आतंकवाद के पोषक पाकिस्तानी कलाकारों का ही विरोध कर दो कम से कम कुछ तो देशभक्ति का परिचय दो पांचजन्य में तुफैल चतुर्वेदी के गौहत्या सम्बन्धी लेख पर आकाश-पाताल एक करने वालों मुस्लिम मूल्लों के फतवों पर तुम्हारी अन्याय के विरुद्ध आवाज कहां खो जाती है? यह एकतरफा व्यवहार तुम्हारा दोगलापन सिद्ध करता है या नहीं? देश में किसी भी विकासपरक या सृजनात्मक कृत्य का विरोध करना ही तुम्हारी राजनीति का अहम् अंग है
कश्मीर से पांच लाख हिन्दुओं को मार-मारकर भगा दिया गया अपने ही देश में हिन्दू शरणार्थी बनने को पिछले कई दशक से विवश हैं हिन्दुओं को कश्मीर में मारा गया, उनकी जमीनें हड़प ली गईं, बहन-बेटियों की ईज्जत लूटी गई तथा जबरदस्ती इस्लाम में उनका मतान्तरण किया गया जब देश में ही हिन्दुओं पर यह अमानवीय अत्याचार हो रहा था तो ये साहित्यकार कहां नशे में गर्क होकर पड़े थे? तब क्यों नहीं इन्होंने अपने पुरस्कार वापिस किए? हिन्दुओं का कसूर केवल इतना ही था कि वे हिन्दू थे यदि वे मुसलमान होते तो अब तक तो पता नहीं क्या हो जाता अरे! जब कश्मीर को हिन्दुओं  से खाली किया जा रहा था तुम उस वक्त आगे क्यों नहीं आए? इन्दिरा गांधी की हत्या के समय दिल्ली में तीन हजार से अधिक सिखों का कत्लेआम किया गया तब ये घटिता भेदभावी साहित्यकार सामुहिक रूप से अपने पुरस्कार वापिस करते क्या सिख इन्सान नहीं होते हैं? किस कोटि के साहित्यकार हो तुम? मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करते समय सैंकड़ों युवाओं ने आत्महत्याएं की थीं तब तुम्हारी भावनाएं कहां सोई पड़ी थी? भारत में प्रति वर्ष 70000 के लगभग किसान आत्महत्याएं करते हैं- लौटा दो अपने साहित्यिक पुरस्कार वापिस अरे मूढ़ों यदि तुममें थोड़ी भी तर्कबुद्धि होती तो तुम उसका प्रयोग करते तथा इन किसानों की दयनीय दुर्दशा पर उपन्यास, कहानियां, निबन्ध, लेख, नाटक आदि लिखकर सरकारों के साथ-साथ राष्ट्रवासियों को भी आन्दोलित करते लिखा तुमने कोईगोदान जैसा उपन्यास या लिखी तुमने कोईपूष की रात जैसी कहानी? पंच सितारा कुसंस्कृति के उदण्ड पुत्रों! शायद पूर्वाग्रहों एवं अन्ध धारणाओं में डूबे रहकर देश में विभ्रम की स्थिति पेैदा करना ही तुम्हारा काम रह गया है सन् 2002 ई॰ में रेल में यात्रा कर रहे 57 निर्दोष राम सेवकों को मुसलमानों ने भूल-भूनकर मार डाला तुमने इस पर अपना साहित्यिक विरोध दर्ज करवाया क्या? अपने पुरस्कार सरकार को वापिस लौटाए क्या? बस तुम्हारी तो पूरी ऊर्जा इस पर खर्च हो गई कि सन् 2002 ई॰ में गुजरात में हुए दंगों को कैसे बढ़ा-चढ़ाकर बतलाया जाकर देश को बदनाम किया जाए? यदि तुममें साहित्यकार की संवेदना होती तो तुम 57 हिन्दुओं के मरने पर भी आंसू बहाते तुम साहित्यकार भी कैसे घटिया किस्म के हो इसके एक-दो प्रमाण देना ठीक रहेगा अवलोकन कीजिए सन् 2010 ई॰ में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त एक साहित्यकार श्री उदयप्रकाश की कविताओं का -
1.            दोस्त चिट्ठी में
                लिखता है -
                मैं सकुशल हूँ
                दोनों आश्चर्यचकित हैं
2.            एक था रंगा एक था बिल्ला
                दोनों भाई-भाई नहीं थे
                लेकिन दोनों को फांसी हो गई
                एक थे टाटा एक थे बिड़ला
                दोनों भाई-भाई हैं
                लेकिन दोनों को फांसी नहीं हुई

3.            गान्धी जी कहते थे -
अहिंसा
और डंडा लेकर पैदल घूमते थे
इस-इस तरह की बकवास कूड़े-कर्कट को भी हमारे यहां अतीत में पुरस्कार दिए गए हैं इनको पढ़ते-पढत्रते कोई भी अपना सिर ठोंक लेगा अन्धा बांटे रेवड़ी, बस अपनों को दे तू मेरी गलतियों को छिपाओ, बदले में मैं तुम्हारे पापों को छिपाऊँगा यह लेन-देन हैं इन लेखकों साहित्यकारों का अभी-अभी सऊदी अरब में सोमवार के दिन मीट के खाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है यदि यह भारत में होता तो सारे भारत को पागलपन में धकेल दिया जाता है दिल्ली के एक प्रसिद्ध महाविद्यालयसेन्ट स्टीफन्स महाविद्यालय में प्राचार्य के रिक्त पद को भरने हेतु विज्ञापन दिया गया है इसमें साथ-साफ निर्देश है कि प्रार्थी ईसाई हो और वह भी ब्छप्ध्ब्ैप् मार्थोमा चर्च से दीक्षित हो वह इस महाविद्यालय मंे पढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थी हिन्दू होते हैं यही है इस देश का सैक्युलरवाद? यही है इस देश की तरक्की का रहस्य? अरे घटिया सोच के साहित्यकारों ! इस तरह की मूढ़ताओं का विरोध करो तो मानें लेकिन तुम तो केवल हिन्दुओं में ही कमियों की तलाश में रहते हो तथा ईसाई मुसलमानों की देशद्रोहपूर्ण कमियों पर तुम मौन धारण कर लेते हो यही है तुम्हारी लेखनी का स्वधर्म?
पाकिस्तान में प्रतिवर्ष एक हजार हिन्दू लड़कियों का अपहरण करके उनको बलात्कार के नरक में ढकेला जाता है। बीस लाख हिन्दुओं की धार्मिक जगहों को वहां के मुसलमानों ने छीन लिया है सन् 1947 ई॰ में पाकिस्तान में 15 प्रतिशत हिन्दू थे जो कि घटकर आज 1ण्6 प्रतिशत रह गए हैं बाकी के हिन्दुओं को कौन खा गया? इस सामुहिक घिनौने कुकर्म पर कभी अपनी आवाज को उठाया इन सैक्युलर लेखकों ने? अकेले पाकिस्तान के कराची शहर मंे ही आजादी के समय 51 प्रतिशत हिन्दू थे जो कि आज मात्र 2 प्रतिशत रह गए हैं कहां चले गए ये हिन्दू? कौन खा गया इन्हें? हिन्दू होना पाकिस्तान में एक गुनाह है पाकिस्तान में कुल 336 सांसदों में मात्र 7 ही हिन्दू सांसद हैं कब प्रश्न उठाए इन साहित्यकारों ने इस तरह की समस्याओं पर? हाँ, नसरूद्दीन शाह जैसे कलाकार भारत में अपनी कम्युनिटी के प्रताडि़त होने पर तो खूब बोलते हैं लेकिन पाकिस्तान में हो रहे हिन्दुओं के नरसंहार एवं उनके मतांतरण पर इनकी जबान पर ताला पड़ जाता है। पाकिस्तान में हिन्दू मैरिज एक्ट नहीं है तथा वहां पर हिन्दुओं की शादी अभी भी कानून सम्मत नहीं है क्या इस पर भारत का कोई मुस्लिम बुद्धिजीवी, कलाकार, साहित्यकार, अभिनेता, लेखक या नेता कुछ बोलेगा? नहीं, ये नहीं बोलेंगे इनकी यह जन्मजात वृति है कि हम रहेंगे बाकी को रहने नहीं देंगे अन्य को यदि रहना है तो हमारी पांथिक मान्यताओं के गणित से रहना होगा यदि ऐसा नहीं किया तो हम उसको मार देंगे या फिर पलायन करने पर विवश कर देंगे भारत में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में यह चल रहा है जहां भी मुस्लिम बहुमत में होते हैं ये अन्य संप्रदायों के मानने वालों को निगल जाते हैं या वहां से भगा देते हैं भारत में कश्मीर तथा पािकस्तान इसके समकालीन उदाहरण हैं क्या हमारे इन ढोंगी साहित्यकारों ने इस समस्या पर कोई उपन्यास, निबन्ध संग्रह, काव्य संग्रह, नाटक, कहानी संग्रह या रिपोर्टाज आदि लिखे? उतर कतई ना में है ये ऐसा कतई नहीं करेंगे वास्तव में ये इतने असहिष्णु हैं कि ये अपने सिवाय किसी को भी नहीं जीने देना चाहते इसे ये अपने अल्लाह की मर्जी मानते हैं वेदों की ऋचाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले मूढ़बुद्धि कुरान की आयतों की मूढ़ता, अवैज्ञानिकता एवं पाखंड पर कुछ क्यों नहीं कहते? जब बात भारतीय धर्मग्रन्थों की आती है तो टिप्पणी करने की एवं अभिव्यक्ति की पूरी आजादी होनी चाहिए लेकिन जब बात ईसाई एवं इस्लामी पांथिक ग्रन्थों की आती है तो उनकी साम्प्रदायिक भावनाओं की रक्षा का हवाला दिया जाता है यह भेदभाव क्यों? इस भेदभाव पर ये सेक्युलर साहित्यकार कुछ क्यों नहीं बालेते हैं?
वास्तव में भारत में जिस तरह से ईसाईयत इस्लाम को लिया जाता है, ये वास्तव में इस तरह के हैं ही नहीं। इनकी यह मारने एवं स्वयं को ही सर्वोच्च मानने की वृति किसी से छिपी नहीं है परन्तु लेखक, साहित्यकार, नेता एवं कलाकार जानबूझकर इनकी इस राक्षसी वृत्ति की उपेक्षा कर देते हैं और इस उपेक्षा का सर्वाधिक नुकसान इस धरा पर यदि किसी का हुआ है तो वह हिन्दुओं का हुआ है हिन्दू इस धरा पर पिछली लगभग तेरह सदी से ईसाईयत इस्लाम की क्रूरताओं जुल्मों का शिकार होता आया है ये जुल्म क्रूरताएं अब भी पूर्ववत जारी हैं हां, आज इतना अन्तर अवश्य आया है कि आज हिन्दू थोड़ा सजग हो गया है लेकिन इसके बावजूद भी राजनीतिक स्तर पर हिन्दुओं की आज भी उपेक्षा हो रही है। वोट बैंक के मोह में नेता मुसलमानों की बकवास एवं ऊटपटांग मांगों का समर्थन करते रहते हैं जबकि हिन्दुओं की जायज मांगों को भी दरकिनार कर दिया जाता रहा है जीयो और जीनो दो की जीवन शैली केवल हिन्दुओं की है इस धरा पर बाकी तो यहुदी, ईसाई मुसलमान स्वयं के सिवाय किसी को भी जीने देने के समर्थक रहीं हैं।
बांग्लादेश से निष्कासित प्रसिद्ध निर्भिक लेखिका सुश्री तस्लीमा नसरीन ने अभी-अभी अपने एक साक्षात्कार में ठीक ही कहा है कि भारत में हिन्दुओं के साथ भेदभाव किया जाता है यहां पर हिन्दू कट्टरपंथियों का तो सब विरोध करते हैं लेकिन इस्लामी कट्टरपंथ का सभी द्वारा समर्थन किया जाता है सभी राजनीतिक दल यह भेदभाव करने के दोषी हैं। कांग्रेस, साम्यवादी, सपा, बसपा, आआप तथा भाजपा आदि सभी दल इसी भेदभाव की मानसिकता के शिकार हैं अभी का ताजा उदाहरण है भेदभाव का उत्तर प्रदेश में एक मुसलमान अखलाक की हिन्दुओं द्वारा हत्या पर पूरे देश का मीडिया तथा राजनीतिक दल पंद्रह दिन से सारे देश को उद्वेलित किए हुए हैं तथा मुसलमान नेता आजम तो यु॰ एन॰ ओ॰ तक इसकी शिकायत की बात कर चुका है। लेकिन ऐसी ही एक हत्या दक्षिण भारत में प्रशान्त नामक पूजारी की हुई है इस हत्या पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है अखलाक को करोड़ों रूपये तथा कई मकान सरकार की तरफ से दे दिए गए हैं जबकि प्रशान्त नामक इस पूजारी की खबर खबर भी बन सकी यह है भारत की जड़ों में लगा दीमक सैक्युलरवाद। पिछले 100 साल से गान्धी से लेकर अब मोदी तक इस सैक्युलरवाद ने भारत का बेड़ा गर्क करके रखा हुआ है नेताओं को तो सिर्फ वोट ही दिखलाई पड़ते हैं हिन्दुओं के प्रति भेदभाव कोई कश्मीर, पाकिस्तान या सऊदी अरब में ही होता हो यह बात नहीं है अपितु स्वयं भारत में बहुसंख्यक हिन्दू उपेक्षित हैं इस महामारी की चिकित्सा क्या हो सकती है? हिन्दुओं की समर्थक कही जाने वाली भाजपा भी सैक्युलरवादी होती जा रही हे इसने भी गान्धी को अपना आदर्श मान लिया है ऐसी स्थिति में आर्य हिन्दू धर्म के धर्माचार्यों, गुरुओं, योगियों, मनीषियों, कथाकारों, सुधारकों, दार्शनिकों, ऋषियों का यह कत्र्तव्य बनता है कि वे समय एवं परिस्थिति के अनुसार आर्य हिन्दू धर्म के करुणा प्रेम पक्ष के साथ-साथ दण्ड, बदला लेना एवं रक्षा करने वाले पक्ष का भी प्रचार-प्रसार करें इस पक्ष को हमारे इन महानुभावों ने छोड़ ही दिया है अहिंसा अकेली कुछ नहीं कर सकती अहिंसा के साथ हिंसा, करुणा के साथ बदले की भावना, सहिष्णुता के साथ कट्टरता आदि धर्म एवं राष्ट्ररक्षा हेतु अति आवश्यक हैं भारतीयता में विश्वास करने वाले व्यक्तियों का यह फर्ज बनता है कि वे जीवन के दोनों पहलूओं पर ध्यान दें केवल अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अचैर्य, करुणा, प्रेम, सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व की भावना ने हिन्दुओं को नपुंसक एवं नकारा बनाकर रख छोड़ा है हिन्दू अपने पौरूष को जागएं हिन्दू अपने अतीत को याद करें हिन्दू दुश्मन द्वारा किए गए हमले की प्रतीक्षा करके पहले ही उस पर टूट पड़ने की तैयारी रखें
गान्धी की भीरूता पलायन की नीति का त्याग करके हमें सावरकर सुभाएं की नीति को स्वीकार करना ही होगा यदि हमने यह नहीं किया तो हमारे भारत की दुर्गति भविष्य में और भी अधिक होती ही जाऐगी जागो हिन्दुओं जागो! मांँ भारती एवं स्वयं अपने को बचाने हेतु आगे आएं अपनी रक्षा या अपने को बचाने का ढंग केवल मात्र आक्रामक होना है कि गान्धीवाद को छाती से लिपटाए रहना जागो! अभी भी अधिक देर नहीं हुई है