आइंस्टीन ने कहा था - ‘मेरा धर्म उस असीमित सर्वोपरि आत्मा की विनम्र स्तुति है जो उन थोड़ी सी बारीकियों में प्रकट होती है जिन्हें हम अपने क्षीण तथा दुर्बल मस्तिष्क से देखते हैं’ गांधी ने कहा था- ‘धर्म वह पदार्थ नहीं जिसे मस्तिष्क ग्रहण कर सके । धर्म तो हृदयग्राह्य है’। ओशो ने कहा है- ‘धर्म है मन से पार जाने का मार्ग’ । ये हैं कुछ आधुनिक मनीषियों के धर्म के संबंध में विचार । आज समस्त संसार में हो इसका विपरीत ही रहा है । इसी समय के एक संत माने जाते हैं इनका नाम साईंबाबा है। हालांकि उन्हें संत मानना विवादों के घेरे में है । कहा तो यह भी जाता है कि वे यौनाचार में लिप्त रहे हैं । उनके चमत्कार मात्र धोखा हैं तथा सम्मोहन की मामूली ट्रिक्स के सिवाय वे कुछ भी नहीं है । बहुत से लोग उन्हें ईश्वर का अवतार मानते हैं लेकिन पंद्रह वर्ष की आयु में उन्हें संदिग्ध मानसिक रोगी घोषित करके उनका उपचार किया गया था । इसके बाद साईं बाबा ने अपने आपको ईश्वर का अवतार घोषित कर दिया । ओशो रजनीश ने तो जादूगर आनंद को लेकर अनेक शहरों में अपने जादू के ‘शो’ प्रदर्शित किए थे ताकि लोगों को पता चल सके कि ये साईंबाबा जैसे ढोंगी जादू की कला का दुरूपयोग करके लोगों की धार्मिक भावनाओं किस तरह से शोषण करते हैं ।
साईंबाबा का धर्म का व्यवसाय खूब चल रहा है । अनेक बड़े-बड़े शिक्षित लोग, उद्योगपति व नेता उनके शिष्य हैं, तथा उनसे आशीर्वाद प्राप्त करके अपने को धन्य समझते हैं । साईंबाबा को अपने जन्म दिवस पर ही अरबों के उपहार भक्तों की तरफ से मिल जाते हैं । इनके देहावसान के पश्चात् अरबों रूपये उनके बिस्तर, पूजाघर तथा अन्य जगहों से मिले हैं ।
अनुयायियों व भक्तों की मूढ़ता देखिए कि इन्हीं साईंबाबा का संग-साथ पाने या उनसे बातें करने हेतु उनके ही एक भक्त ने, उनके नजदीक पहुंचने हेतु उन पर गोली चला दी थी । छब्बीस वर्षीय इस सोमसुन्दरम नामक युवक ने अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अपने भगवान् पर ही गोली चला दी और अब वह पुलिस हिरासत में है। साईंबाबा का आशीर्वाद पाने का कितना अच्छा ढंग उन्होंने निकाला। ऐसे हताश भक्तों से साईंबाबा सीधी बातचीत करते हैं । कमाल देखिए कि इस सोमसुन्दरम ने साईंबाबा पर हमले की प्रेरणा स्वामी विवेकानंद के इन वचनों से ली - ‘किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है और यही कारण है कि ऐसे व्यक्ति को इन परिणामों से निबटने के लिए, स्वयं को मन से तैयार भी करना होता है’ ।
इस मूढ़ भक्त ने किसी दिव्य लक्ष्य, आत्मिक-शांति या अन्य कोई रचनात्मक उपलब्धि पाने की बजाए अपनी मामूली मानसिक हताशाओं को हल करने के लिए साईंबाबा का आशीर्वाद पाने का यह तरीका खोज निकाला । अब ऐसे मूढ़ भक्तों व उनके गुरूओं के संबंध में क्या कहा जाए? धर्म, अध्यात्म, योग, साधना आदि का जितना अहित इन साईंबाबा व उनके भक्तों जैसे लोगों ने किया है उतना धर्मविरोधी या नास्तिक लोगों ने नहीं किया है। इसलिए आज के शिष्य व अनुयायी मात्र गुरू का आशीर्वाद पाने या उनकी चमत्कारिक सिद्धियों पर विश्वास करते हैं- साधना व तप पर इनका कोई भरोसा नहीं है ।
क्या है कि जितने गुरू व बाबा बढ़ रहे हैं उतनी ही विश्व में अशांति बढ़ रही है । जितने ये प्रवचनकत्र्ता व कथाकार बढ़ रहे हैं उतना ही तनाव, हताशा, द्वेष, ईष्र्या व युद्ध का माहौल बन रहा है? धर्म तो अपना निज का मार्ग है । अपने स्वयं के भीतर प्रवेश करके अपनी सुप्त शक्तियों का जगाना है । मन से पार दूसरी ओर ये संत हैं कि लोगों को मन व विचारों के जाल में ही फंसा कर रखना चाहते हैं । ऐसे में सोमसुन्दरम जैसे अंध भक्त पैदा नहीं होंगे तो और कौन पैदा होंगे? गुरु वे चेले दोनों अंधकार में हाथ-पैर ............. रहे हैं । हरियाणा में भी कई वर्ष से एक व्यक्ति जो अक्षरज्ञान व साधना दोनों से कौरा है (रामपालदास) ने खूब अपना ढोंग फैला रखा है । उनके समीप जाते ही कैंसर, टी. बी. व एड्स रोग भी तुरंत ठीक हो जाते है। तथा व्यापार में लाभ ही लाभ - ऐसा प्रचार उनके अंधे भक्त करते हैं । बाकी सब गलत लेकिन वे ठीक - इस सिद्धांत को मानकर ढोंग व पाखंड की सारी सीमाएं इन धर्म के व्यापारी ने तोड़ दी है ।
*आचार्य शीलक राम*
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