Sunday, January 19, 2025

'कुंभ मेला' सनातन भारतीय अध्यात्म,धर्म और संस्कृति का प्रतीक दर्शनशास्त्र

 

 

 अंग्रेज कौम ने भारत में कदम रखते ही सर्वप्रथम यह समझा था कि यदि भारत को बर्बाद करना है तो इसके सनातन ग्रंथों,पर्वों,त्योहारों ,उत्सवों,मेलों, कर्मकांड, शिक्षा, आयुर्वेद,योग,दर्शनशास्त्र, राजनीति, स्थापत्य, संगीत, आहार विहार आदि को बर्बाद करना आवश्यक है!अंग्रेजों से पहले के आक्रमणकारी यवन, मंगोल, मुगल आदि ने तो केवल यहाँ के पूजास्थलों, आश्रमों,गुरुकुलों, महलों,बावडियों, मठों, विहारों, पुस्तकालयों आदि को तहश नहश करके यहाँ की अकूत दौलत लूटकर अपने अपने देशों में ले जा ने तथा सामूहिक नरसंहार करके अपने मजहब का प्रचार करने तक सीमित रखा था!लेकिन वो सब मिलकर भी भारतीय धर्म और संस्कृति पर कोई विशेष आघात नहीं कर पाये थे!अंग्रेज कौम अपनी कुटिलता के लिये प्रसिद्ध है!अपनी इसी कुटिलता का प्रयोग अंग्रेज कौम ने भारत में बखूबी किया था! कुंभ मेले पर भी उनकी कुदृष्टि रहती थी!अंग्रेजों ने कुंभ मेले पर भी कयी प्रकार के टैक्स और प्रतिबंध लगाकर इसके प्रवाह को रोकने की कोशिशें की थीं! वो कामयाब नहीं हो पाये, यह अलग बात है!आधुनिक युग में स्वामी दयानंद, महारानी लक्ष्मीबाई ,महात्मा गॉंधी, महामना मदन मोहन मालवीय आदि सैकड़ों महापुरुषों का कुंभ मेले से किसी न किसी रुप में संबंध रहा है!वैदिक धर्म के प्रचारार्थ स्वामी दयानंद ने सन् 1867 ईस्वी में  सनातन धर्म से पाखंड,ढोंग, मूर्ति पूजा और कोरे कर्मकांड के आधार पर शोषण को समाप्त करने हेतु 'पाखंड खंडनी पताका' फहराई थी!वह पताका हरिद्वार के वैदिक मोहन आश्रम में आज भी फहरा रही है!सन् 1857 ईस्वी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महारानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर के नागा साधु गंगा दास के यहाँ शरण ली थी!उस दौरान 2000 से अधिक नागा साधुओं ने अंग्रेजी सेना से लडाई लडी थी! इस लडाई में 750 से अधिक नागा साधुओं का बलिदान हुआ था! अंग्रेजी कौम की पूर्वाग्रह से भरी संकीर्ण बुद्धि में यह बात कभी समझ नहीं आई कि बिना किसी बुलावे के कडकडाती सर्दी में अपना कामधाम छोडकर एक ही स्थान पर लाखों लोग कैसे एकत्र हो जाते हैं!वास्तव में हमलावर और लूटेरी सोच की अंग्रेज कौम भारत को कभी समझ ही नहीं पाई!महात्मा गॉंधी स्वयं सन् 1918 ईस्वी में प्रयागराज कुंभ में गये थे!भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कुंभ मेले ने सक्रिय भूमिका निभाई थी!

कुंभ मेले की जानकारी हजारों वर्ष पहले प्रामाणिक रूप से महाभारत, पुराणों,तीर्थ पुरोहितों, चंद्रगुप्त मौर्य, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, समुद्रगुप्त, हर्षवर्धन तथा अधकचरी गौणत: विदेशी मैगस्थनीज,फाह्यान, ह्वेनसांग तथा अबूल फजल,तुजुक ए तैमुरी आदि के विवरणों में उपलब्ध होती है!यह पर्व कब से शुरू हुआ, इसकी सही तिथि किसी को मालूम नहीं है! इतना जरूर है कि इस धरती के हजारों वर्ष के ज्ञात इतिहास में शुरू होने वाले सामूहिक पर्वों में कुंभ पर्व सर्वाधिक पुराना पर्व है! दीपावली, होली, मकर सक्रांति की तरह ही यह पर्व सृष्टि के शुरू से ही चलता  आ  रहा  है!मनु,श्रीराम,श्रीकृष्ण, परीक्षित,चाणक्य,पुष्यमित्र   तथा 2500 वर्ष पहले शंकराचार्य के समय भी यह पर्व आयोजित होता था!तैमुरलंग ने तो हरिद्वार अर्धकुंभ मेले पर हमला करके सैकड़ों श्रद्धालुओं को मौत के घाट उतार दिया था!गजनवी,गौरी,तैमूर, नादिरशाह,अब्दाली, बख्तियार, हुमायूँ अकबर, शाहजहाँ, औरंगजेब आदि की इस मेले के आयोजन पर अवश्य ही वक्र दृष्टि रही होगी! इन्होंने सनातन के किसी भी प्रतीक, आयोजन, पर्व, त्यौहार, उत्सव, ग्रंथ, आश्रम, गुरुकुल, मठ, महल, किले आदि को नुकसान पहुंचाने को अपना मजहबी फर्ज माना हुआ था!अपने आपको सर्वपंथसमभावी दिखलाने के लिये कभी कभार एक दो काम सनातन हित में कर दिया करते थे! यह इनकी खलनायकी का हिस्सा होता था! अकबर इसके लिये प्रसिद्ध है! दीन ए ईलाही एक ऐसा ही प्रयोग था!

 मार्क ट्वेन  ने कहा था कि जीवन और जगत् में जो किया जाना चाहिये वह भारत में पहले ही हो चुका है! भारतीयों ने जीवन के विविध क्षेत्रों में चमत्कारी काम बहुतायत से अतीत में किये हुए हैं!शायद मार्क ट्वेन कुंभ मेले में भी गये हों! समकालीन धर्मगुरु जग्गी वासुदेव ने कुंभ को भूतशुद्धि से जोडकर देखा है!जिस तरह से भारत में हजारों वर्षों से  हठयोग और अष्टांगयोग में नियम,आसन,प्राणायाम, षटकर्म आदि द्वारा देहशुद्धि की जाती है, ठीक उसी तरह से कुंभ का स्नान भी देहशुद्धि के लिये जल तत्व को प्रयोग में लाना है!सनातन धर्म के सभी तीर्थ स्थान नदियों के किनारे पर इसीलिये बनाये गये हैं!जल की स्मृति सबसे अधिक होती है!जल का प्रभाव प्राणी देह पर सबसे अधिक होता है!देह में होने वाली अधिकांश बिमारियाँ जल के माध्यम से ही प्रवेश करती हैं!स्वामी दयानंद और श्रीराम शर्मा आचार्य ने यज्ञ को भारतीय संस्कृति का प्राण कहा है!यज्ञों में भी जलपात्र, जलपान, आचमन और स्नान का महत्वपूर्ण स्थान होता है! भारतीयों का कोई भी शुभ कार्य जल स्नान के बगैर पूरा नहीं होता है! समकालीन युग के क्रांतिकारी धर्मगुरु, दार्शनिक और आलोचक आचार्य रजनीश की पुस्तक 'मैं कहता आंखन देखी' में सनातन धर्म के तीर्थ स्थानों में जल तत्व के आध्यात्मिक पहलू पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है!उनके अनुसार जल तत्व किसी योगी की आध्यात्मिक तरंगों को हजारों वर्षों तक सरंक्षित रख सकता है! गंगाजल के पवित्र होने का रहस्य इसी में छिपा हुआ है! उनके अनुसार इतने अधिक लोगों का एक जगह पर, एक ही स्थान पर और एक ही मानसिकता लेकर आना और स्नान करना एक आध्यात्मिक बदलाव बनने का अवसर बन सकता है!इसलिये विशेष अवसरों पर इतने अधिक लोगों द्वारा सामुहिक स्नान करना कोरा पाखंड नहीं है! हां, पिछले कुछ दशकों से धर्मगुरुओं और पुरोहितों ने तीर्थ स्थानों पर स्नान करने को पाखंड अवश्य बना दिया है!

 ग्रहों की गति और राशियों की गणना के अनुसार कुंभ मेला प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक आदि तीर्थ स्थानों पर लगता है!इसका निर्धारण सनातन धर्म के वरिष्ठ धर्माचार्यों और ज्योतिषियों की गणना के अनुसार होता है!उज्जैन में लगने वाले आयोजित कुंभ को सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है!तेरह जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाले प्रयागराज के इस कुंभ मेले में भारत सहित बाकी विश्व से करोड़ों श्रद्धालु पहुँच रहे हैं! इनमें से अनेकों श्रद्धा भाव से स्नान करने के लिये आ रहे हैं तो अनेकों कुतुहलवश तमाशबीन की तरह भी आ रहे हैं! उनकी कोई विशेष श्रद्धा आदि नही होते हैं! ऐसे लोगों को मोक्षादि की भी कामना नहीं होती है!वास्तविक श्रद्धालुओं की संख्या तीर्थों पर कम ही होती हैं! कुराचरण, दुराचरण,दुष्टाचरण, पापाचरण करके उनसे सस्ते में मुक्ति चाहने वालों की तादाद भी ऐसे स्थलों पर खूब होती है!इस बार के कुंभ मेले में 40 दिन में 45 करोड़ लोगों के आने की खबरें प्रचारित की जा रही हैं यानि प्रतिदिन एक करोड से भी अधिक! इतनी बड़ी संख्या में एक ही स्थान पर एक दिन में  एक करोड़ से अधिक लोगों के आने, जाने, रहने, खाने, पीने, स्नान करने आदि की व्यवस्था असंभव लगती है!इतने बड़े उत्तर प्रदेश की आबादी ही 22 करोड है!अकेले एक शहर प्रयागराज में इतने बडे लोगों के समूह का इस प्रकार से आना, जाना, रहना आदि असंभव है!इतनी अधिक संख्या में लोगों के आने, जाने, रहने, खाने,पीने आदि की व्यवस्था के लिये ही लाखों अन्य लोगों, वाहनों, चिकित्सकों, पुलिस कर्मचारियों की जरूरत होती है!इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुंभ पर्व संसार का सबसे बड़ा पर्व है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिये ऐसी व्यवस्था करने संभव नहीं लगता है!कुंभ मेले में विलासिता का जीवन यापन करने वालों के लिये भी प्रति दो व्यक्तियों के लिये एक एक लाख रुपये में टैंट सुविधा उपलब्ध करवाई गई है! बीस बीस हजार रुपये में तो टैंटों की सुविधा बहुतायत से उपलब्ध है!धार्मिक मेले में इस प्रकार के विलासी लोगों के लिये कोई जगह न नहीं होनी चाहिये! आखिर तीर्थस्थानों पर तो धन, दौलत, छोटे, बडे आदि का प्रदर्शन नहीं होना चाहिये! लेकिन हमारे यहाँ सनातन धर्म के तो मंदिरों में भी वीआईपी दर्शन करवाये जाते हैं!इसे किसी भी तरह से न तो धार्मिक कहा जा सकता है, न नैतिक कहा जा सकता है तथा न ही आध्यात्मिक! जब बडे लोग ही नियमों को छोडेंगे तो जनसाधारण से क्या आशा की जा सकती है! ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे हमारे धर्म, अध्यात्म, पूजापाठ, सत्संग, कथा,मंदिरों और राजनीति में विशिष्टजन और सामान्यजन में भेदभाव सरेआम किया जा रहा है!इसी की वजह से सन् 1954 ईस्वी में उस समय के राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद के आने से भीड में भगदड़ मचने के कारण 800 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी! उसके बाद वीआईपी लोगों का मेला क्षेत्र में जाना शायद निषिद्ध कर दिया गया है!सनातन धर्म के तेरह अखाड़े अपनी पूरी शान शक्ति से स्नान करने के लिये प्रदर्शन करते हुये जुलूस के रूप में आते हैं! इनमें प्रथम स्नान को लेकर कई बार अखाड़ा साधुओं के परस्पर खूनी संघर्ष भी होते रहे हैं! नागा साधु तो वैसे भी अपने क्रोध के लिये जाने जाते हैं! विदेशी क्रूर हमलावरों से अनेकों बार नागा संन्यासियों ने लोहा लिया है!अपनी वीरता और राष्ट्रभक्ति के लिये नागा संन्यासी प्रसिद्ध हैं!

 हमारे राजनीतिक दल इस पर्व को राजनीतिक फायदा लेने के लिये भी इस्तेमाल करते हैं! इस बार के कुंभ पर्व में पत्रकारों के लिये 70 पृष्ठ की एक एडवायजरी जारी की गई है जिसमें टीवी चैनल्स और अखबारों से विशेष प्रकार के समाचार प्रसारित करने या छापने पर मोटा मुनाफा प्रदान किया जायेगा! धर्म की आड़ में इस प्रकार से राजनीति करने स्वयं में एक अधार्मिक और अनैतिक कृत्य है! वैसे युनैस्को ने इस बार के कुंभ पर्व को 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत' के रूप में मान्यता प्रदान की है!इस बार के कुंभ को महाकुम्भ भी कहा जा रहा है क्योंकि ग्रहों और राशियों का ऐसा योग 144 वर्षों बाद बना है!हर बारह वर्षों में पूर्ण कुंभ तथा छह वर्षों में अर्ध कुंभ का आयोजन होता है!

 स्टीव जाब्स की पत्नी तथा कई अन्य विदेशी नागरिकों  द्वारा सनातन धर्म को ग्रहण करके सनातनी बन जाने का हमारे टीवी चैनल्स और धर्माचार्य खूब प्रचार कर रहे हैं! लेकिन इन धर्माचार्यों को क्या यह मालूम नहीं है कि भारत के सनातनी धर्मी करोड़ों अन्नदाता किसानों  और मजदूरों को हमारे भ्रष्ट और तानाशाह सिस्टम ने किस कदर ऐसी बदहाल स्थिति में पहुंचा दिया है कि   उनको खुद के सनातनी होने पर कोई गर्व महसूस नहीं होता है?सनातन का डंका पीटने वाले सिस्टम को तथा टीवी चैनल्स को यह सब क्यों नहीं दिखाई दे रहा है? फसलों के सही भाव नहीं मिलने तथा कर्जे को नहीं चुकाने के कारण प्रतिवर्ष एक लाख के करीब किसान आत्महत्या करने को विवश हो रहे हैं!एक अनुमान के अनुसार कुंभ मेले पर 35000 हजार करोड़ रुपये खर्च होने की संभावना है! धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव हमारी सनातन संस्कृति का प्राण हैं! लेकिन केवल ये उत्सव ही  काफी नहीं हैं!कृषि प्रधान भारत का धर्म, अध्यात्म, योग, सेना आदि सभी अन्नदाता किसानों के कंधों पर टिका हुआ है! सिस्टम करोड़ों किसानों और मजदूरों को ईसाई, मुसलमान, बौद्ध बनने को विवश कर रहा है और एक स्टीव जाब्स की पत्नी को कमला नाम देकर सनातन के महान होने का ढिंढोरा पीट रहा है! यह बहुत बड़ी मूढता,अदूरदर्शिता और पाखंड है!

 कुंभ मेले का इतिहास शास्त्र और शस्त्र दोनों से जुडा हुआ है! पाश्चात्य शैली की गणना के अनुसार भारतीय इतिहास को जानने का प्रयास सनातन संस्कृति के पर्वों,उत्सवों, त्यौहारों और मेलों के साथ अन्याय करना ही कहा जायेगा!लेकिन पिछले कुछ दशकों से भारतीय इतिहास के शिक्षकों, शोधकर्ताओं और छात्रों पर पाश्चात्य मनघड़ंत पूर्वाग्रहग्रस्त अध्ययन अध्यापन शैली हावी हो चुकी है! तथाकथित हिंदू हितकारी सत्तासीन नेता भी पाश्चात्य शैली का अंधानुकरण कर रहे हैं! कुंभ पर्व भी इससे अछूता नहीं है!जरुरत पड़ने पर भारत के साधु संन्यासियों ने शास्त्र के साथ शस्त्र उठाकर राष्ट्र रक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है!मैकाले, मैक्समूलर द्वारा पौषित और साम्यवादियों,कांग्रेसियों, संघियों, मूलनिवासियों द्वारा प्रचारित भारतीय इतिहास अधिकांशतः विकृत, मनघड़ंत,पूर्वाग्रहग्रस्त और छल - कपट से भरा हुआ है!ऐसे लोग सिंधु घाटी, हडप्पा सभ्यता, वैदिक और पूर्व वैदिक की अधकचरी जानकारियों के सहयोग से ऊटपटांग कल्पनाएं करते रहते हैं!

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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119

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