भारत सदैव ऋषि मुनियों, देवताओं, समाज सुधारकों, दार्शनिकों, योगियों एवं चमत्कारिक शक्ति रखने का दावा करने वालों का देश रहा है । किसी न किसी रूप में ये सदैव भारत में अवतरित होकर अपनी प्रतिभा का चमत्कार दिखाते रहे हैं। और तो और इस घोर कलयुग में भी गौड़पाद, शंकराचार्य, बुद्ध, महावीर, कुमारिल, प्रभाकर, रामानुज, चेतन्य, कबीर, नानक, दादू, मीरा, स्वामी दयानंद, महर्षि महेश योगी, श्रीराम शर्मा आचार्य, कृष्णमूर्ति एवं ओशो रजनीश जैसे चमत्कारिक व्यक्तित्त्व के धनी महापुरुषों ने जन्म लेकर स्वयं को जाना तथा दूसरों को भी स्वयं को जानने में मदद की । सब बाधाओं व मर्यादाओं का ख्याल करके उन्होंने पूरे विश्व को एक रचनात्मक दिशा प्रदान की । हित-अहित हेतु एवं प्राणीमात्र के प्रति असीम करुणा के कारण ही उन्होंने अपने शरीर तक की आहुति दे डाली ।
कभी भी वे अपने कर्तव्य-पथ से डिगे नहीं तथा होश व विवेक को बनाए रखा । यह सब भारत में सदैव होता रहा है । लेकिन इस आशावादी व रचनात्मक पहलू के अतिरिक्त एक निराशावादी एवं दिशाभ्रष्ट तथा स्वार्थपूर्ण व मूढ़तापूर्ण पहलू भी है जिसके लिए देश का ऐसा वर्ग कार्य कर रहा है जिससे ऐसा करने की आशा कोई भी नहीं सकता । मेरा संकेत फिल्मी अभिनेताओं एवं प्रसिद्ध खिलाड़ियों की तरफ है । ये दोनों धन, दौलत, वैभव, संपत्ति व समृद्धि से अटे व भरे पड़े हैं लेकिन इनकी धन एकत्र करने की लालसा बढ़ती ही जाती है । टी. वी., रेडियो, समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं तथा रास्तों पर लगे होर्डिगों द्वारा विज्ञापन करने का कार्य अधिकांशतया इन्हीं द्वारा पूंजीपति करवाते हैं । युवा वर्ग के आदर्श इस समय अभिनेता या खिलाड़ी ही हैं ।
हर युवा अपने कपड़े, केश-सज्जा, चाल-ढाल, जीवनशैली, आचरण, व्यवहार व खानपान को किसी न किसी अभिनेता या खिलाड़ी को देखकर निश्चित करता है। वह ठीक उसी तरह रहना पसंद करता है जैसे कि उसका आदर्श रहता है । यह कितने बड़े दुःख व पीड़ा की बात है कि आज के युवा का जीवन-आदर्श कामुकतापूर्ण, वासनापूर्ण, चरित्रहीन, नैतिकताविहीन एवं देशभक्ति से रहित लोग हैं । जैसा ही इन युवाओं के आदर्श ये अभिनेता व खिलाड़ी करते हैं वैसा ही ये युवा भी करने लगते हैं। एक तरह से इन युवाओं को विज्ञापनों के माध्यम से मूच्र्छित, बेहोश व सम्मोहित कर दिया जाता है । उनके अचेतन मन में उल्टी व खतरनाक बातें भर दी जाती हैं, फिर ये सम्मोहित युवा उसी के अनुरूप एक खंडित, चरित्रहीन एवं समाज व देश हेतु घातक प्रकृति का जीवन जीने लगते हैं। उन्हें पता भी नहीं रहता कि वे कितना घृणित कृत्य कर रहे हैं । इस संबंध में संविधानशास्त्री, नेता, पूंजीपति, मनोवैज्ञानिक, शिक्षाशास्त्री व समाज-सुधारक सब चुप्पी साधे बैठे हैं ।
इन्हें भी शायद भ्रम हो गया है कि हमारा युवा आधुनिक हो गया है। आधुनिक होने की कितनी घृणित, चरित्रहीन, पथभ्रष्टक एवं विनाशक परिभाषा है यह? ये अभिनेता व खिलाड़ी कभी भी देशी छाछ, दूध, दही, चना, सलाद, मेस्सी रोटी, सत्तू, जलजीरा, शिकंजी, ठंडाई, कसरत करना, योगासन, ध्यान, ब्रह्मचर्य आदि के विज्ञापन नहीं देते । ये सदैव ही शरीर व मन हेतु घातक व हानिकारक अंडे, मांस, रसायनों से विषाक्त फास्ट फूड, हानिकारक व खर्चीले शीतल पेय, सिगरेट, बीड़ी, शराब, गुटके आदि के विज्ञापनों में काम करते मिलेंगे । जैसे ये विज्ञापनों में करते दिखाई देते है फिर वैसे ही युवा भी करने लगते हैं । क्योंकि आदर्श के अनुरूप ही तो जीवनशैली होती है । पूरा युवा वर्ग चरित्र-भ्रष्ट हो चुका है । इसकी पूरी जिम्मेदारी इन खिलाड़ी व अभिनेताओं की है । इनके कारण देश की रीढ़ विनाश को प्राप्त हो रही है । यदि ये खिलाड़ी व अभिनेता शरीर, मन व आचरण हेतु लाभकारी व रचनात्मक देशी भोजन, देशी योग व ध्यान से पूर्ण जीवनशैली, देशी शीतलपेयों, कसरत, स्वास्थ्य, ब्रह्मचर्य आदि के विज्ञापन करें, तो देश का युवा दिशाविहीन न होकर अपने जीवन का निर्माण तो करें ही साथ ही समाज व देश हेतु भी अपना भरपूर योगदान प्रदान करे । लेकिन देशी वस्तुओं के विज्ञापनों में ज़्यादा रूपया नहीं मिलता है, जबकि विदेशी शीतल पेय, भोजन, शराब व सिगरेट आदि के विज्ञापनों से इन्हें करोड़ों की आय हो जाती है । इनको करवाले वाली कंपनियां विदेशी अरबपति होती हैं । उन्हें किसी के विनाश से कोई मतलब नहीं है । अपना लाभ ही उन हेतु सर्वाधिक जरूरी होता हैं । इन विदेशी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने भारतीय अभिनेताओं व खिलाड़ियों के साथ मिलकर भारत की युवाशक्ति को नपुंसक बना दिया है । यह कतई दिशाहीन हो चुकी है । धन्य हैं ऐसे में गोपीचंद जैसे बैडमिंटन खिलाड़ी जो करोड़ों रूपयों को लात मारकर देश के युवा-वर्ग के चरित्र को महत्त्व देते हैं ।
आचार्य शीलक राम
दर्शन-विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
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