"क्रांतिकारी विचारक, लेखक, कवि, आलोचक, संपादक" हरियाणा की प्रसिद्ध दार्शनिक, साहित्यिक, धार्मिक, राष्ट्रवादी, हिन्दी के प्रचार-प्रसार को समर्पित संस्था आचार्य अकादमी चुलियाणा, रोहतक (हरियाणा) का संचालन तथा साथ-साथ कई शोध पत्रिकाओं का प्रकाशन। मेरी अब तक धर्म, दर्शन, सनातन संस्कृति पर पचास से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। आचार्य शीलक राम पता: आचार्य अकादमी चुलियाणा, रोहतक हरियाणा वैदिक योगशाला कुरुक्षेत्र, हरियाणा ईमेल : shilakram9@gmail.com
Friday, January 31, 2025
Monday, January 20, 2025
विज्ञापनों का दर्शनशास्त्र (Philosophy of Advertising)
भारत सदैव ऋषि मुनियों, देवताओं, समाज सुधारकों, दार्शनिकों, योगियों एवं चमत्कारिक शक्ति रखने का दावा करने वालों का देश रहा है । किसी न किसी रूप में ये सदैव भारत में अवतरित होकर अपनी प्रतिभा का चमत्कार दिखाते रहे हैं। और तो और इस घोर कलयुग में भी गौड़पाद, शंकराचार्य, बुद्ध, महावीर, कुमारिल, प्रभाकर, रामानुज, चेतन्य, कबीर, नानक, दादू, मीरा, स्वामी दयानंद, महर्षि महेश योगी, श्रीराम शर्मा आचार्य, कृष्णमूर्ति एवं ओशो रजनीश जैसे चमत्कारिक व्यक्तित्त्व के धनी महापुरुषों ने जन्म लेकर स्वयं को जाना तथा दूसरों को भी स्वयं को जानने में मदद की । सब बाधाओं व मर्यादाओं का ख्याल करके उन्होंने पूरे विश्व को एक रचनात्मक दिशा प्रदान की । हित-अहित हेतु एवं प्राणीमात्र के प्रति असीम करुणा के कारण ही उन्होंने अपने शरीर तक की आहुति दे डाली ।
कभी भी वे अपने कर्तव्य-पथ से डिगे नहीं तथा होश व विवेक को बनाए रखा । यह सब भारत में सदैव होता रहा है । लेकिन इस आशावादी व रचनात्मक पहलू के अतिरिक्त एक निराशावादी एवं दिशाभ्रष्ट तथा स्वार्थपूर्ण व मूढ़तापूर्ण पहलू भी है जिसके लिए देश का ऐसा वर्ग कार्य कर रहा है जिससे ऐसा करने की आशा कोई भी नहीं सकता । मेरा संकेत फिल्मी अभिनेताओं एवं प्रसिद्ध खिलाड़ियों की तरफ है । ये दोनों धन, दौलत, वैभव, संपत्ति व समृद्धि से अटे व भरे पड़े हैं लेकिन इनकी धन एकत्र करने की लालसा बढ़ती ही जाती है । टी. वी., रेडियो, समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं तथा रास्तों पर लगे होर्डिगों द्वारा विज्ञापन करने का कार्य अधिकांशतया इन्हीं द्वारा पूंजीपति करवाते हैं । युवा वर्ग के आदर्श इस समय अभिनेता या खिलाड़ी ही हैं ।
हर युवा अपने कपड़े, केश-सज्जा, चाल-ढाल, जीवनशैली, आचरण, व्यवहार व खानपान को किसी न किसी अभिनेता या खिलाड़ी को देखकर निश्चित करता है। वह ठीक उसी तरह रहना पसंद करता है जैसे कि उसका आदर्श रहता है । यह कितने बड़े दुःख व पीड़ा की बात है कि आज के युवा का जीवन-आदर्श कामुकतापूर्ण, वासनापूर्ण, चरित्रहीन, नैतिकताविहीन एवं देशभक्ति से रहित लोग हैं । जैसा ही इन युवाओं के आदर्श ये अभिनेता व खिलाड़ी करते हैं वैसा ही ये युवा भी करने लगते हैं। एक तरह से इन युवाओं को विज्ञापनों के माध्यम से मूच्र्छित, बेहोश व सम्मोहित कर दिया जाता है । उनके अचेतन मन में उल्टी व खतरनाक बातें भर दी जाती हैं, फिर ये सम्मोहित युवा उसी के अनुरूप एक खंडित, चरित्रहीन एवं समाज व देश हेतु घातक प्रकृति का जीवन जीने लगते हैं। उन्हें पता भी नहीं रहता कि वे कितना घृणित कृत्य कर रहे हैं । इस संबंध में संविधानशास्त्री, नेता, पूंजीपति, मनोवैज्ञानिक, शिक्षाशास्त्री व समाज-सुधारक सब चुप्पी साधे बैठे हैं ।
इन्हें भी शायद भ्रम हो गया है कि हमारा युवा आधुनिक हो गया है। आधुनिक होने की कितनी घृणित, चरित्रहीन, पथभ्रष्टक एवं विनाशक परिभाषा है यह? ये अभिनेता व खिलाड़ी कभी भी देशी छाछ, दूध, दही, चना, सलाद, मेस्सी रोटी, सत्तू, जलजीरा, शिकंजी, ठंडाई, कसरत करना, योगासन, ध्यान, ब्रह्मचर्य आदि के विज्ञापन नहीं देते । ये सदैव ही शरीर व मन हेतु घातक व हानिकारक अंडे, मांस, रसायनों से विषाक्त फास्ट फूड, हानिकारक व खर्चीले शीतल पेय, सिगरेट, बीड़ी, शराब, गुटके आदि के विज्ञापनों में काम करते मिलेंगे । जैसे ये विज्ञापनों में करते दिखाई देते है फिर वैसे ही युवा भी करने लगते हैं । क्योंकि आदर्श के अनुरूप ही तो जीवनशैली होती है । पूरा युवा वर्ग चरित्र-भ्रष्ट हो चुका है । इसकी पूरी जिम्मेदारी इन खिलाड़ी व अभिनेताओं की है । इनके कारण देश की रीढ़ विनाश को प्राप्त हो रही है । यदि ये खिलाड़ी व अभिनेता शरीर, मन व आचरण हेतु लाभकारी व रचनात्मक देशी भोजन, देशी योग व ध्यान से पूर्ण जीवनशैली, देशी शीतलपेयों, कसरत, स्वास्थ्य, ब्रह्मचर्य आदि के विज्ञापन करें, तो देश का युवा दिशाविहीन न होकर अपने जीवन का निर्माण तो करें ही साथ ही समाज व देश हेतु भी अपना भरपूर योगदान प्रदान करे । लेकिन देशी वस्तुओं के विज्ञापनों में ज़्यादा रूपया नहीं मिलता है, जबकि विदेशी शीतल पेय, भोजन, शराब व सिगरेट आदि के विज्ञापनों से इन्हें करोड़ों की आय हो जाती है । इनको करवाले वाली कंपनियां विदेशी अरबपति होती हैं । उन्हें किसी के विनाश से कोई मतलब नहीं है । अपना लाभ ही उन हेतु सर्वाधिक जरूरी होता हैं । इन विदेशी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने भारतीय अभिनेताओं व खिलाड़ियों के साथ मिलकर भारत की युवाशक्ति को नपुंसक बना दिया है । यह कतई दिशाहीन हो चुकी है । धन्य हैं ऐसे में गोपीचंद जैसे बैडमिंटन खिलाड़ी जो करोड़ों रूपयों को लात मारकर देश के युवा-वर्ग के चरित्र को महत्त्व देते हैं ।
आचार्य शीलक राम
दर्शन-विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
संसार का वर्तमान और भविष्य 'दर्शनशास्त्र' की शरण में आने से ही सुरक्षित और संरक्षित (The present and the future of the world can be secured and protected only by taking refuge in 'Philosophy')
समस्त विषयों के माता- पिता 'दर्शनशास्त्र' विषय को महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की संकीर्ण चारदीवारी से निकालकर इसे लोकोन्मुख बनाने की आज सर्वाधिक जरूरत है! यह कार्य महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के तनख्वाहभोगी शिक्षकों द्वारा नहीं हो सकता है! यदि ऐसा होना संभव होता तो कब का हो गया होता! इन्होंने तो इस विषय को मृतप्राय: बनाने में कोई कमी नहीं छोड रखी है!तनख्वाह के बल पर उदरभोगी, सुविधाभोगी और 'मैं तेरा समर्थन करता हूँ, तू मेरा समर्थन करना' जीवनशैली के शिक्षकों ने इस विषय का बहुत अधिक अहित किया है! ऐसे मुफ्तभोगी निठल्ले शिक्षकों के कारण ही हमारे नेता लोग,अन्य संकायों के वरिष्ठ शिक्षक तथा शिक्षा संस्थानों के प्रशासकों को यह प्रचारित करने को विवश कर दिया है कि दर्शनशास्त्र विषय का बेकार का विषय है, इसका कोई वर्तमान और भविष्य नहीं है, मानव जीवन में इसकी कोई उपयोगिता नहीं है, इस विषय में कोई रोजगार नहीं हैं तथा इस विषय को पढकर अपना जीवन खराब मत करना! बाहरी दुश्मनों ने नहीं अपितु बाड ने ही खेत को खाया है! अपनी नौकरी सुरक्षित रहे, बाकी जाये भाड में!
आज के संसार में आर्थिक विषमता की खाई सर्वाधिक है! गरीब लोग एक इंजैक्शन तक नहीं लगवा सकते हैं तो दूसरी तरफ अमीर लोग चिकित्सा के लिये एक दिन में लाखों रुपये खर्च कर देते हैं! करोड़ों लोगों को दो वक्त का भोजन उपलब्ध नहीं है तो अमीर लोग एक दिन के भोजन पर कई- कई हजार रुपये खर्च कर देते हैं!गरीब लोगों के पास बच्चों की शिक्षा के लिये मासिक फीस के भी रुपये नहीं हैं तो दूसरी तरफ अमीर लोग अपने बच्चों को लाखों करोड़ों रुपये खर्च करके देश विदेश के महंगे शिक्षा संस्थानों में पढाते हैं! भारत की हालत दुनिया में सर्वाधिक खराब है लेकिन नेता और धर्मगुरु भारत को विश्वगुरु बनाने के नारे दे रहे हैं! विश्वगुरु की फीलिंग मात्र कुछ करोड़ भारतीयों तक सीमित है! 2017 के दौरान अमीर लोगों की संपत्ति 73 गुना बढी थी तो 75 करोड़ आबादी की आमदनी सिर्फ एक प्रतिशत बढी! जीएसटी एकत्र करने का 64 प्रतिशत हिस्सा 50 प्रतिशत गरीब आबादी से था, तो 4 प्रतिशत हिस्सा 10 प्रतिशत लोगों से और अमीर लोगों से सिर्फ 4 प्रतिशत जीएसटी एकत्र हुआ था! मध्यमवर्गीय लोग उधार के रुपये से जीवन जी रहे हैं! भारत में जो बडे बडे फ्लाईओवर,हाईवेज,भवन, कार्यालय, ओवरब्रिज आदि बनाये जा रहे हैं, वो विकास के लिये कम तथा कमीशन खाने के लिये अधिक बनाये जा रहे हैं! विभिन्न मेलों,उत्सवों,पर्वों, जयंतियों,सैमिनारों, गोष्ठियों,कांफ्रेंसों,गंगा और सरस्वती आदि नदियों की सफाई,गीता जयंती, शिक्षा संस्थानों में चेयर आदि खोलने तथा महामारियों की रोकथाम आदि की आड़ में सैकड़ों - सैकड़ों करोड़ रुपये के बजट को नेता, अधिकारी, ठेकेदार, ईंजीनीयर आदि हज्म करके डकार तक नहीं मारते हैं!भारत की अधिकांश आबादी तक उस द्वारा सरकार को दी गई जीएसटी का थोड़ा सा भी अंश खर्च नहीं होता है!एक बार की विधायकी, सांसदी और पुलिस एसएचओ, डीएसपी,एसपी का कोई विशेष स्टेशन या जिला प्रदान करने के एवज में 200-400 करोड़ रुपये इधर-उधर हो जाते हैं! जनसाधारण को तो इसकी भनक तक लगने नहीं जाती है!
यदि जनमानस के नित्य प्रति के जीवन में विश्वास,आस्था, भक्ति आदि के साथ में तर्कयुक्त जिज्ञासा, चिंतन, विचार और संदेह करने की योग्यता मौजूद हो तो वह जनमानस अवश्य ही नेताओं, धर्मगुरुओं और नीति -निर्माताओं की उपरोक्त लूटवादी नीतियों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उसका विरोध करता! केवल इसीलिये भारत के ये तथाकथित सर्वेसर्वा लोग जनमानस को तार्किक,संदेहवादी और चिंतनपूर्ण होने से रोकता आया है!भारत में यह प्रवृत्ति पिछली कुछ शताब्दियों में अधिक प्रचलित हुई है! जनमानस का तार्किक होना सदैव से लूटेरे और शोषक नेताओं, धर्मगुरुओं ,नीति- निर्माताओं और अमीर घरानों की दुकानदारी के लिये खतरनाक बनता आया है!पिछली दो सदियों के दौरान महर्षि दयानंद सरस्वती, आचार्य रजनीश और राजीव भाई दीक्षित जैसे महापुरुषों ने जनमानस को तार्किक बनाने का भरपूर प्रयास किया है! लेकिन उनके साथ हमने जो दुर्व्यवहार किया, उसको सारा भारत जानता है!
सनातन धर्म, संस्कृति, दर्शनशास्त्र, विज्ञान, अध्यात्म और वेदों पर छाये हुये पाखंड, ढोंग और व्यापार के बादलों को तीतर बीतर करने के लिये आजकल महत्वपूर्ण कार्य आचार्य अग्निव्रत जी कर रहे हैं! आपने साढ़े सात हजार वर्ष पुराने महिदास के ग्रंथ एतरेय ब्राह्मण तथा साढ़े पांच हजार वर्ष पुराने यास्क के ग्रंथ निरुक्त की विस्तृत व्याख्याएँ करके सनातन धर्म,संस्कृति,दर्शनशास्त्र, अध्यात्म और योग के अनेक रहस्यों को खोलने की चाबी प्रदान कर दी है! भौतिक विज्ञान के लिये भी आपने आगामी 100 वर्षों तक रिसर्च करने की सामग्री प्रदान कर दी है!आपने वेदों,निरुक्त और षड्दर्शनशास्त्र को पारंपरिक अध्यात्मशास्त्र,ज्ञानशास्त्र, नीतिशास्त्र, तर्कशास्त्र,सौंदर्यशास्त्र से आगे बढकर क्वांटम फिजीक्स, कोस्मोलाजी,एनालिटिकल फिलासफी, कलाशास्त्र,शास्त्रीय संगीत,मंत्रशास्त्र, छंदशास्त्र, ध्वनिशास्त्र, बायोमैडिकल इथिक्स,बिजनैस इथिक्स, इन्वायरमैंटल इथिक्स आदि से जोड दिया है! लगता है कि आचार्य अग्निव्रत जी वास्तव में सनातन भारत के पुरातन वैभव को जीवित करके विश्वगुरु बनाने का कार्य कर रहे हैं! बाकी लोग तो सिर्फ भारत को विश्वगुरु बनाने की थोथी डींगें ही मार रहे हैं! धरातल पर कोई भी कार्य करने के लिये उत्सुक नहीं है!उनके ग्रंथों के अध्ययन से मुझे लगता है कि दर्शनशास्त्र विषय के शिक्षक, शोधार्थी और छात्र काफी कुछ सीख सकते हैं! दर्शनशास्त्र विषय को धरती से जोडकर उसे लोकोपकार हेतु तैयार करने में काफी मदद मिल सकती है!
दर्शनशास्त्र विषय निर्णय करने की योग्यता प्रदान करने के साथ साथ दूरगामी परिणामों पर पहुंचने में मदद करता है!यह योग्यता विज्ञान,धर्म, अध्यात्म,नीति, योग, राजनीति, खेतीबाड़ी, शिक्षा, व्यापार, प्रबंधन आदि हरेक क्षेत्र में लाभकारी है!उपरोक्त सभी क्षेत्रों से पाखंड, ढोंग, लूट, शोषण और भेदभाव को समाप्त करने का कार्य केवलमात्र दर्शनशास्त्र विषय ही करने में समर्थ है! आजकल के लोकप्रिय सोशल मीडिया,एआई,चैट जीपीटी,दूरसंचार, टीवी चैनल्स,सिनेमा, विज्ञापन आदि से उत्पन्न अवचेतन मन को सम्मोहित करके जनमानस को बेवकूफ बनाने के षड्यंत्र से छूटकारा दर्शनशास्त्र विषय दिलवा सकता है! क्योंकि यह विषय बिना सोच- विचार, चिंतन, तर्क, जिज्ञासा और संदेह के केवल मानने, अंधविश्वास करने और किसी की अंधभक्ति करने से रोकने में मदद करता है!विज्ञान, तकनीकी,समाज विज्ञान, वाणिज्य, प्रबंधन, चिकित्सा,विधि, भाषाविज्ञान, अध्यात्म, खेलकूद, खेतीबाड़ी, मानविकी आदि विषयों का सैद्धांतिक पक्ष मूलतः दर्शनशास्त्र ही है!
वास्तविकता तो यह है कि समकालीन आधुनिक वैज्ञानिक युग में जीवन और जगत् के हरेक क्षेत्र में कार्यरत लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दर्शनशास्त्र विषय के अंतर्गत मौजूद तर्क, चिंतन,विचार, जिज्ञासा, संदेह और प्रश्न उठाने आदि की मदद लेते हैं लेकिन दर्शनशास्त्र विषय के महत्व को स्वीकार करने से हिचकते हैं! लोगों के व्यवहार को समझने,डार्क साईकोलाजी,काउंसलिंग, लाईफ स्किल प्रशिक्षण, कंपनी सलाहकार,पत्रकारिता, साहित्य, लेखन,नेतागिरी, कथा-वाचन,योग-प्रशिक्षण, वैज्ञानिक शोध आदि प्रत्येक क्षेत्र में दर्शनशास्त्र विषय की भूमिका मौजूद है!
और तो और आजकल के मोटीवेशनल स्पिकर,प्रवचनकार,सत्संग, भजन संध्या, जागरण आदि करने वाले लोग भी श्रोताओं और दर्शकों की मानसिकता को समझने के लिये दर्शनशास्त्र विषय की युक्तियों का प्रयोग धडल्ले से करते हैं!कहने का आशय यह है कि जीवन और जगत् के हरेक क्षेत्र में इस विषय की प्रासंगिकता, उपयोगिता, महत्ता, लाभ और मार्गदर्शन मौजूद है!
आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119
Sunday, January 19, 2025
'कुंभ मेला' सनातन भारतीय अध्यात्म,धर्म और संस्कृति का प्रतीक दर्शनशास्त्र
अंग्रेज कौम ने भारत में कदम रखते ही सर्वप्रथम यह समझा था कि यदि भारत को बर्बाद करना है तो इसके सनातन ग्रंथों,पर्वों,त्योहारों ,उत्सवों,मेलों, कर्मकांड, शिक्षा, आयुर्वेद,योग,दर्शनशास्त्र, राजनीति, स्थापत्य, संगीत, आहार विहार आदि को बर्बाद करना आवश्यक है!अंग्रेजों से पहले के आक्रमणकारी यवन, मंगोल, मुगल आदि ने तो केवल यहाँ के पूजास्थलों, आश्रमों,गुरुकुलों, महलों,बावडियों, मठों, विहारों, पुस्तकालयों आदि को तहश नहश करके यहाँ की अकूत दौलत लूटकर अपने अपने देशों में ले जा ने तथा सामूहिक नरसंहार करके अपने मजहब का प्रचार करने तक सीमित रखा था!लेकिन वो सब मिलकर भी भारतीय धर्म और संस्कृति पर कोई विशेष आघात नहीं कर पाये थे!अंग्रेज कौम अपनी कुटिलता के लिये प्रसिद्ध है!अपनी इसी कुटिलता का प्रयोग अंग्रेज कौम ने भारत में बखूबी किया था! कुंभ मेले पर भी उनकी कुदृष्टि रहती थी!अंग्रेजों ने कुंभ मेले पर भी कयी प्रकार के टैक्स और प्रतिबंध लगाकर इसके प्रवाह को रोकने की कोशिशें की थीं! वो कामयाब नहीं हो पाये, यह अलग बात है!आधुनिक युग में स्वामी दयानंद, महारानी लक्ष्मीबाई ,महात्मा गॉंधी, महामना मदन मोहन मालवीय आदि सैकड़ों महापुरुषों का कुंभ मेले से किसी न किसी रुप में संबंध रहा है!वैदिक धर्म के प्रचारार्थ स्वामी दयानंद ने सन् 1867 ईस्वी में सनातन धर्म से पाखंड,ढोंग, मूर्ति पूजा और कोरे कर्मकांड के आधार पर शोषण को समाप्त करने हेतु 'पाखंड खंडनी पताका' फहराई थी!वह पताका हरिद्वार के वैदिक मोहन आश्रम में आज भी फहरा रही है!सन् 1857 ईस्वी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महारानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर के नागा साधु गंगा दास के यहाँ शरण ली थी!उस दौरान 2000 से अधिक नागा साधुओं ने अंग्रेजी सेना से लडाई लडी थी! इस लडाई में 750 से अधिक नागा साधुओं का बलिदान हुआ था! अंग्रेजी कौम की पूर्वाग्रह से भरी संकीर्ण बुद्धि में यह बात कभी समझ नहीं आई कि बिना किसी बुलावे के कडकडाती सर्दी में अपना कामधाम छोडकर एक ही स्थान पर लाखों लोग कैसे एकत्र हो जाते हैं!वास्तव में हमलावर और लूटेरी सोच की अंग्रेज कौम भारत को कभी समझ ही नहीं पाई!महात्मा गॉंधी स्वयं सन् 1918 ईस्वी में प्रयागराज कुंभ में गये थे!भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कुंभ मेले ने सक्रिय भूमिका निभाई थी!
कुंभ मेले की जानकारी हजारों वर्ष पहले प्रामाणिक रूप से महाभारत, पुराणों,तीर्थ पुरोहितों, चंद्रगुप्त मौर्य, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, समुद्रगुप्त, हर्षवर्धन तथा अधकचरी गौणत: विदेशी मैगस्थनीज,फाह्यान, ह्वेनसांग तथा अबूल फजल,तुजुक ए तैमुरी आदि के विवरणों में उपलब्ध होती है!यह पर्व कब से शुरू हुआ, इसकी सही तिथि किसी को मालूम नहीं है! इतना जरूर है कि इस धरती के हजारों वर्ष के ज्ञात इतिहास में शुरू होने वाले सामूहिक पर्वों में कुंभ पर्व सर्वाधिक पुराना पर्व है! दीपावली, होली, मकर सक्रांति की तरह ही यह पर्व सृष्टि के शुरू से ही चलता आ रहा है!मनु,श्रीराम,श्रीकृष्ण, परीक्षित,चाणक्य,पुष्यमित्र तथा 2500 वर्ष पहले शंकराचार्य के समय भी यह पर्व आयोजित होता था!तैमुरलंग ने तो हरिद्वार अर्धकुंभ मेले पर हमला करके सैकड़ों श्रद्धालुओं को मौत के घाट उतार दिया था!गजनवी,गौरी,तैमूर, नादिरशाह,अब्दाली, बख्तियार, हुमायूँ अकबर, शाहजहाँ, औरंगजेब आदि की इस मेले के आयोजन पर अवश्य ही वक्र दृष्टि रही होगी! इन्होंने सनातन के किसी भी प्रतीक, आयोजन, पर्व, त्यौहार, उत्सव, ग्रंथ, आश्रम, गुरुकुल, मठ, महल, किले आदि को नुकसान पहुंचाने को अपना मजहबी फर्ज माना हुआ था!अपने आपको सर्वपंथसमभावी दिखलाने के लिये कभी कभार एक दो काम सनातन हित में कर दिया करते थे! यह इनकी खलनायकी का हिस्सा होता था! अकबर इसके लिये प्रसिद्ध है! दीन ए ईलाही एक ऐसा ही प्रयोग था!
मार्क ट्वेन ने कहा था कि जीवन और जगत् में जो किया जाना चाहिये वह भारत में पहले ही हो चुका है! भारतीयों ने जीवन के विविध क्षेत्रों में चमत्कारी काम बहुतायत से अतीत में किये हुए हैं!शायद मार्क ट्वेन कुंभ मेले में भी गये हों! समकालीन धर्मगुरु जग्गी वासुदेव ने कुंभ को भूतशुद्धि से जोडकर देखा है!जिस तरह से भारत में हजारों वर्षों से हठयोग और अष्टांगयोग में नियम,आसन,प्राणायाम, षटकर्म आदि द्वारा देहशुद्धि की जाती है, ठीक उसी तरह से कुंभ का स्नान भी देहशुद्धि के लिये जल तत्व को प्रयोग में लाना है!सनातन धर्म के सभी तीर्थ स्थान नदियों के किनारे पर इसीलिये बनाये गये हैं!जल की स्मृति सबसे अधिक होती है!जल का प्रभाव प्राणी देह पर सबसे अधिक होता है!देह में होने वाली अधिकांश बिमारियाँ जल के माध्यम से ही प्रवेश करती हैं!स्वामी दयानंद और श्रीराम शर्मा आचार्य ने यज्ञ को भारतीय संस्कृति का प्राण कहा है!यज्ञों में भी जलपात्र, जलपान, आचमन और स्नान का महत्वपूर्ण स्थान होता है! भारतीयों का कोई भी शुभ कार्य जल स्नान के बगैर पूरा नहीं होता है! समकालीन युग के क्रांतिकारी धर्मगुरु, दार्शनिक और आलोचक आचार्य रजनीश की पुस्तक 'मैं कहता आंखन देखी' में सनातन धर्म के तीर्थ स्थानों में जल तत्व के आध्यात्मिक पहलू पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है!उनके अनुसार जल तत्व किसी योगी की आध्यात्मिक तरंगों को हजारों वर्षों तक सरंक्षित रख सकता है! गंगाजल के पवित्र होने का रहस्य इसी में छिपा हुआ है! उनके अनुसार इतने अधिक लोगों का एक जगह पर, एक ही स्थान पर और एक ही मानसिकता लेकर आना और स्नान करना एक आध्यात्मिक बदलाव बनने का अवसर बन सकता है!इसलिये विशेष अवसरों पर इतने अधिक लोगों द्वारा सामुहिक स्नान करना कोरा पाखंड नहीं है! हां, पिछले कुछ दशकों से धर्मगुरुओं और पुरोहितों ने तीर्थ स्थानों पर स्नान करने को पाखंड अवश्य बना दिया है!
ग्रहों की गति और राशियों की गणना के अनुसार कुंभ मेला प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक आदि तीर्थ स्थानों पर लगता है!इसका निर्धारण सनातन धर्म के वरिष्ठ धर्माचार्यों और ज्योतिषियों की गणना के अनुसार होता है!उज्जैन में लगने वाले आयोजित कुंभ को सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है!तेरह जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाले प्रयागराज के इस कुंभ मेले में भारत सहित बाकी विश्व से करोड़ों श्रद्धालु पहुँच रहे हैं! इनमें से अनेकों श्रद्धा भाव से स्नान करने के लिये आ रहे हैं तो अनेकों कुतुहलवश तमाशबीन की तरह भी आ रहे हैं! उनकी कोई विशेष श्रद्धा आदि नही होते हैं! ऐसे लोगों को मोक्षादि की भी कामना नहीं होती है!वास्तविक श्रद्धालुओं की संख्या तीर्थों पर कम ही होती हैं! कुराचरण, दुराचरण,दुष्टाचरण, पापाचरण करके उनसे सस्ते में मुक्ति चाहने वालों की तादाद भी ऐसे स्थलों पर खूब होती है!इस बार के कुंभ मेले में 40 दिन में 45 करोड़ लोगों के आने की खबरें प्रचारित की जा रही हैं यानि प्रतिदिन एक करोड से भी अधिक! इतनी बड़ी संख्या में एक ही स्थान पर एक दिन में एक करोड़ से अधिक लोगों के आने, जाने, रहने, खाने, पीने, स्नान करने आदि की व्यवस्था असंभव लगती है!इतने बड़े उत्तर प्रदेश की आबादी ही 22 करोड है!अकेले एक शहर प्रयागराज में इतने बडे लोगों के समूह का इस प्रकार से आना, जाना, रहना आदि असंभव है!इतनी अधिक संख्या में लोगों के आने, जाने, रहने, खाने,पीने आदि की व्यवस्था के लिये ही लाखों अन्य लोगों, वाहनों, चिकित्सकों, पुलिस कर्मचारियों की जरूरत होती है!इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुंभ पर्व संसार का सबसे बड़ा पर्व है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिये ऐसी व्यवस्था करने संभव नहीं लगता है!कुंभ मेले में विलासिता का जीवन यापन करने वालों के लिये भी प्रति दो व्यक्तियों के लिये एक एक लाख रुपये में टैंट सुविधा उपलब्ध करवाई गई है! बीस बीस हजार रुपये में तो टैंटों की सुविधा बहुतायत से उपलब्ध है!धार्मिक मेले में इस प्रकार के विलासी लोगों के लिये कोई जगह न नहीं होनी चाहिये! आखिर तीर्थस्थानों पर तो धन, दौलत, छोटे, बडे आदि का प्रदर्शन नहीं होना चाहिये! लेकिन हमारे यहाँ सनातन धर्म के तो मंदिरों में भी वीआईपी दर्शन करवाये जाते हैं!इसे किसी भी तरह से न तो धार्मिक कहा जा सकता है, न नैतिक कहा जा सकता है तथा न ही आध्यात्मिक! जब बडे लोग ही नियमों को छोडेंगे तो जनसाधारण से क्या आशा की जा सकती है! ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे हमारे धर्म, अध्यात्म, पूजापाठ, सत्संग, कथा,मंदिरों और राजनीति में विशिष्टजन और सामान्यजन में भेदभाव सरेआम किया जा रहा है!इसी की वजह से सन् 1954 ईस्वी में उस समय के राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद के आने से भीड में भगदड़ मचने के कारण 800 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी! उसके बाद वीआईपी लोगों का मेला क्षेत्र में जाना शायद निषिद्ध कर दिया गया है!सनातन धर्म के तेरह अखाड़े अपनी पूरी शान शक्ति से स्नान करने के लिये प्रदर्शन करते हुये जुलूस के रूप में आते हैं! इनमें प्रथम स्नान को लेकर कई बार अखाड़ा साधुओं के परस्पर खूनी संघर्ष भी होते रहे हैं! नागा साधु तो वैसे भी अपने क्रोध के लिये जाने जाते हैं! विदेशी क्रूर हमलावरों से अनेकों बार नागा संन्यासियों ने लोहा लिया है!अपनी वीरता और राष्ट्रभक्ति के लिये नागा संन्यासी प्रसिद्ध हैं!
हमारे राजनीतिक दल इस पर्व को राजनीतिक फायदा लेने के लिये भी इस्तेमाल करते हैं! इस बार के कुंभ पर्व में पत्रकारों के लिये 70 पृष्ठ की एक एडवायजरी जारी की गई है जिसमें टीवी चैनल्स और अखबारों से विशेष प्रकार के समाचार प्रसारित करने या छापने पर मोटा मुनाफा प्रदान किया जायेगा! धर्म की आड़ में इस प्रकार से राजनीति करने स्वयं में एक अधार्मिक और अनैतिक कृत्य है! वैसे युनैस्को ने इस बार के कुंभ पर्व को 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत' के रूप में मान्यता प्रदान की है!इस बार के कुंभ को महाकुम्भ भी कहा जा रहा है क्योंकि ग्रहों और राशियों का ऐसा योग 144 वर्षों बाद बना है!हर बारह वर्षों में पूर्ण कुंभ तथा छह वर्षों में अर्ध कुंभ का आयोजन होता है!
स्टीव जाब्स की पत्नी तथा कई अन्य विदेशी नागरिकों द्वारा सनातन धर्म को ग्रहण करके सनातनी बन जाने का हमारे टीवी चैनल्स और धर्माचार्य खूब प्रचार कर रहे हैं! लेकिन इन धर्माचार्यों को क्या यह मालूम नहीं है कि भारत के सनातनी धर्मी करोड़ों अन्नदाता किसानों और मजदूरों को हमारे भ्रष्ट और तानाशाह सिस्टम ने किस कदर ऐसी बदहाल स्थिति में पहुंचा दिया है कि उनको खुद के सनातनी होने पर कोई गर्व महसूस नहीं होता है?सनातन का डंका पीटने वाले सिस्टम को तथा टीवी चैनल्स को यह सब क्यों नहीं दिखाई दे रहा है? फसलों के सही भाव नहीं मिलने तथा कर्जे को नहीं चुकाने के कारण प्रतिवर्ष एक लाख के करीब किसान आत्महत्या करने को विवश हो रहे हैं!एक अनुमान के अनुसार कुंभ मेले पर 35000 हजार करोड़ रुपये खर्च होने की संभावना है! धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव हमारी सनातन संस्कृति का प्राण हैं! लेकिन केवल ये उत्सव ही काफी नहीं हैं!कृषि प्रधान भारत का धर्म, अध्यात्म, योग, सेना आदि सभी अन्नदाता किसानों के कंधों पर टिका हुआ है! सिस्टम करोड़ों किसानों और मजदूरों को ईसाई, मुसलमान, बौद्ध बनने को विवश कर रहा है और एक स्टीव जाब्स की पत्नी को कमला नाम देकर सनातन के महान होने का ढिंढोरा पीट रहा है! यह बहुत बड़ी मूढता,अदूरदर्शिता और पाखंड है!
कुंभ मेले का इतिहास शास्त्र और शस्त्र दोनों से जुडा हुआ है! पाश्चात्य शैली की गणना के अनुसार भारतीय इतिहास को जानने का प्रयास सनातन संस्कृति के पर्वों,उत्सवों, त्यौहारों और मेलों के साथ अन्याय करना ही कहा जायेगा!लेकिन पिछले कुछ दशकों से भारतीय इतिहास के शिक्षकों, शोधकर्ताओं और छात्रों पर पाश्चात्य मनघड़ंत पूर्वाग्रहग्रस्त अध्ययन अध्यापन शैली हावी हो चुकी है! तथाकथित हिंदू हितकारी सत्तासीन नेता भी पाश्चात्य शैली का अंधानुकरण कर रहे हैं! कुंभ पर्व भी इससे अछूता नहीं है!जरुरत पड़ने पर भारत के साधु संन्यासियों ने शास्त्र के साथ शस्त्र उठाकर राष्ट्र रक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है!मैकाले, मैक्समूलर द्वारा पौषित और साम्यवादियों,कांग्रेसियों, संघियों, मूलनिवासियों द्वारा प्रचारित भारतीय इतिहास अधिकांशतः विकृत, मनघड़ंत,पूर्वाग्रहग्रस्त और छल - कपट से भरा हुआ है!ऐसे लोग सिंधु घाटी, हडप्पा सभ्यता, वैदिक और पूर्व वैदिक की अधकचरी जानकारियों के सहयोग से ऊटपटांग कल्पनाएं करते रहते हैं!
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119
Monday, January 13, 2025
धर्म को अधिक नुकसान किसने पहुंचाया: धार्मिकों ने या नास्तिकों ने? (Who has done more harm to religion : The Religious or The Atheists?)
आइंस्टीन ने कहा था - ‘मेरा धर्म उस असीमित सर्वोपरि आत्मा की विनम्र स्तुति है जो उन थोड़ी सी बारीकियों में प्रकट होती है जिन्हें हम अपने क्षीण तथा दुर्बल मस्तिष्क से देखते हैं’ गांधी ने कहा था- ‘धर्म वह पदार्थ नहीं जिसे मस्तिष्क ग्रहण कर सके । धर्म तो हृदयग्राह्य है’। ओशो ने कहा है- ‘धर्म है मन से पार जाने का मार्ग’ । ये हैं कुछ आधुनिक मनीषियों के धर्म के संबंध में विचार । आज समस्त संसार में हो इसका विपरीत ही रहा है । इसी समय के एक संत माने जाते हैं इनका नाम साईंबाबा है। हालांकि उन्हें संत मानना विवादों के घेरे में है । कहा तो यह भी जाता है कि वे यौनाचार में लिप्त रहे हैं । उनके चमत्कार मात्र धोखा हैं तथा सम्मोहन की मामूली ट्रिक्स के सिवाय वे कुछ भी नहीं है । बहुत से लोग उन्हें ईश्वर का अवतार मानते हैं लेकिन पंद्रह वर्ष की आयु में उन्हें संदिग्ध मानसिक रोगी घोषित करके उनका उपचार किया गया था । इसके बाद साईं बाबा ने अपने आपको ईश्वर का अवतार घोषित कर दिया । ओशो रजनीश ने तो जादूगर आनंद को लेकर अनेक शहरों में अपने जादू के ‘शो’ प्रदर्शित किए थे ताकि लोगों को पता चल सके कि ये साईंबाबा जैसे ढोंगी जादू की कला का दुरूपयोग करके लोगों की धार्मिक भावनाओं किस तरह से शोषण करते हैं ।
साईंबाबा का धर्म का व्यवसाय खूब चल रहा है । अनेक बड़े-बड़े शिक्षित लोग, उद्योगपति व नेता उनके शिष्य हैं, तथा उनसे आशीर्वाद प्राप्त करके अपने को धन्य समझते हैं । साईंबाबा को अपने जन्म दिवस पर ही अरबों के उपहार भक्तों की तरफ से मिल जाते हैं । इनके देहावसान के पश्चात् अरबों रूपये उनके बिस्तर, पूजाघर तथा अन्य जगहों से मिले हैं ।
अनुयायियों व भक्तों की मूढ़ता देखिए कि इन्हीं साईंबाबा का संग-साथ पाने या उनसे बातें करने हेतु उनके ही एक भक्त ने, उनके नजदीक पहुंचने हेतु उन पर गोली चला दी थी । छब्बीस वर्षीय इस सोमसुन्दरम नामक युवक ने अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अपने भगवान् पर ही गोली चला दी और अब वह पुलिस हिरासत में है। साईंबाबा का आशीर्वाद पाने का कितना अच्छा ढंग उन्होंने निकाला। ऐसे हताश भक्तों से साईंबाबा सीधी बातचीत करते हैं । कमाल देखिए कि इस सोमसुन्दरम ने साईंबाबा पर हमले की प्रेरणा स्वामी विवेकानंद के इन वचनों से ली - ‘किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है और यही कारण है कि ऐसे व्यक्ति को इन परिणामों से निबटने के लिए, स्वयं को मन से तैयार भी करना होता है’ ।
इस मूढ़ भक्त ने किसी दिव्य लक्ष्य, आत्मिक-शांति या अन्य कोई रचनात्मक उपलब्धि पाने की बजाए अपनी मामूली मानसिक हताशाओं को हल करने के लिए साईंबाबा का आशीर्वाद पाने का यह तरीका खोज निकाला । अब ऐसे मूढ़ भक्तों व उनके गुरूओं के संबंध में क्या कहा जाए? धर्म, अध्यात्म, योग, साधना आदि का जितना अहित इन साईंबाबा व उनके भक्तों जैसे लोगों ने किया है उतना धर्मविरोधी या नास्तिक लोगों ने नहीं किया है। इसलिए आज के शिष्य व अनुयायी मात्र गुरू का आशीर्वाद पाने या उनकी चमत्कारिक सिद्धियों पर विश्वास करते हैं- साधना व तप पर इनका कोई भरोसा नहीं है ।
क्या है कि जितने गुरू व बाबा बढ़ रहे हैं उतनी ही विश्व में अशांति बढ़ रही है । जितने ये प्रवचनकत्र्ता व कथाकार बढ़ रहे हैं उतना ही तनाव, हताशा, द्वेष, ईष्र्या व युद्ध का माहौल बन रहा है? धर्म तो अपना निज का मार्ग है । अपने स्वयं के भीतर प्रवेश करके अपनी सुप्त शक्तियों का जगाना है । मन से पार दूसरी ओर ये संत हैं कि लोगों को मन व विचारों के जाल में ही फंसा कर रखना चाहते हैं । ऐसे में सोमसुन्दरम जैसे अंध भक्त पैदा नहीं होंगे तो और कौन पैदा होंगे? गुरु वे चेले दोनों अंधकार में हाथ-पैर ............. रहे हैं । हरियाणा में भी कई वर्ष से एक व्यक्ति जो अक्षरज्ञान व साधना दोनों से कौरा है (रामपालदास) ने खूब अपना ढोंग फैला रखा है । उनके समीप जाते ही कैंसर, टी. बी. व एड्स रोग भी तुरंत ठीक हो जाते है। तथा व्यापार में लाभ ही लाभ - ऐसा प्रचार उनके अंधे भक्त करते हैं । बाकी सब गलत लेकिन वे ठीक - इस सिद्धांत को मानकर ढोंग व पाखंड की सारी सीमाएं इन धर्म के व्यापारी ने तोड़ दी है ।
*आचार्य शीलक राम*
संस्कृति या विकृति (Culture or Distortion)
Friday, January 10, 2025
देशभक्ति का दर्शनशास्त्र (Philosophy of Patriotism)
चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है । सबको अपनी-अपनी चिंता है। किसी को किसी से कोई लेना-देना नहीं । देश, संस्कृति, सभ्यता, शांति, संतुष्टि, करुणा, मैत्री, भाईचारा एवं समन्वय से सब दूर हटते जा रहे हैं । अपने हित में ही सब रमे हुए हैं । अपना काम निकालकर सब साफ निकल जाते हैं । इस हेतु चाहे उन्हें कुछ भी करना पड़े, वे करने से कतई नहीं हिचकते । ऐसे में कुछ विचारणीय प्रश्न हैं जो सदैव कचोटते रहते हैं । आप भी इन पर सोचिए तथा कुछ करने का संकल्प लीजिए । क्या भारत राष्ट्र के प्रति निष्ठा एवं प्रेम रखना एक अपराध है? क्या देशभक्ति गद्दारी से भी गई बीती बात हो गई है? आजादी के बाद से ही साम्यवादी तथा पश्चिमी सभ्यता में पढ़े-पले व अंग्रेजी के समर्थक बहुत से बुद्धू हर समय यही चिल्लाते रहते हैं कि देशभक्ति व देशप्रेम जैसे कि कोई घोर अपराध व कुकृत्य हो । ये सदैव देशभक्ति व देशप्रेम को कट्टरता कहते हैं तथा इसे देश की उन्नति हेतु एक बहुत बड़ी बाधा मानते हैं ।
अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठा व भक्ति रखने से क्या कट्टरता, साम्प्रदायिकता, विद्वेष एवं घृणा फैलती है तथा क्या इससे देश की एकता को कोई खतरा हो सकता है? आज के समय तथा पहले भी वामपंथी, कांग्रेसी, पाश्चात्य जीवन शैली के प्रशंसक तथा वोटों के लालची भेडिये नेता हर समय यह चिल्लाते रहते हैं कि देशभक्ति व देशप्रेम रखने वाले संगठन व लोग देश हेतु बहुत बड़ा खतरा हैं ।
विश्व इतिहास में आज तक एक भी उदाहरण ऐसे राष्ट्र का नहीं मिलेगा जिसमें उसके ही कुछ दल, नेता व व्यक्ति अन्न, जल व हवा तो उसी देश का ग्रहण करते हैं लेकिन अपनी निष्ठा व भक्ति किसी बाहरी राष्ट्र से रखते हैं । हमारे भारत में वामपंथी, अंग्रेजी भाषा के समर्थक तथा पश्चिमी सभ्यात व संस्कृति के संग शिक्षा पाए कांग्रेसी सदैव अन्य देशों की प्रशंसा करते रहते हैं तथा भारत से निष्ठा रखने वाले संगठनों को देशद्रोही, साम्प्रदायिक व देश की एकता के शत्रु घोषित करते रहते हैं । आश्चर्य है कि अधिकतर समय तक ऐसे ही लोगों के हाथों में देश की बागडोर रही हैं । विश्व इतिहास में ऐसा उदाहरण भी नहीं मिलेगा जिसमें देश के कुछ राजनैतिक दल, नेता व संगठन अपनी रोजी-रोटी, राजनीति व दिनचर्या देश की निंदा, देशभक्त संगठनों का मजाक करना, देशप्रेम को देश के साथ गद्दारी कहना तथा देश के माहौल को विषाक्त करने को ही देश का सबसे बड़ा हितचिंतक मानना आदि से निर्धारित करते हैं । भारत में ऐसा हो रहा है ।
इन्हें ही सर्वश्रेष्ठ, प्रामाणिक तथा सार्थक माना जाता है । प्रचार से लोगों का मस्तिष्क किस हद तक लकवाग्रस्त किया जा सकता है इसका इससे बड़ा उदाहरण अन्यत्र नहीं मिलेगा । किसी देश के मूल निवासियों को ही उस देश में बहुसंख्यक होने पर भी शर्मिंदगी, अपमान भरा, हीनता की ग्रन्थि से ग्रस्त तथा शरणार्थियों का जीवन जीने पर विवश कर दिया जाए-ऐसा उदाहरण अन्यत्र नहीं अपितु हमारे भारत में ही मिलेगा । यहां पर हिंदुओं को सब तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है । और यह भी पश्चिमी तथा विधर्मी चापलूस व झूठे इतिहासकारों ने प्रचारित तथा स्थापित कर दिया कि हिंदू व आर्य कोई कुछ नहीं हैं, अपितु विदेशी आक्रमणकारियों का समूह या उनकी संतानें हैं । ये सब प्रश्न भारतीयों के सोचने व विचारने हेतु है । प्रतिभावान उसी को माना जाता है, जो बिना किसी भेदभव व लागलपेट के सोचे व उस पर चले भी । ऐसी हिम्मत सब नहीं कर पाते । तो सोचें व विचारें तथा सावधान रहें देश के दुश्मनों से । ऐसे ही धूर्त लोगों की स्वार्थवृत्ति के कारण भारत आज तक असहाय, गरीब एवं घोटालों का गढ़ बना हुआ है ।
लोकतंत्र या लूटतंत्र? (Democracy or plunder?)
राजनीति में जो लोग हैं, उनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनकी किसी भी विचारधारा के प्रति कोई निष्ठा नहीं होती । अपने स्वार्थ हेतु वे किसी भी पार्टी में जा सकते हैं तथा किसी को भी अपना आदर्श घोषित कर सकते हैं । इनके लिए कोई विचारधारा या अपना राष्ट्र महत्त्वपूर्ण नहीं होता अपितु येन-केन प्रकारेण ये अपने स्वार्थों की सिद्धि ही करना अपना कत्र्तव्य समझते हैं । इस हेतु ये किसी भी सीमा तक जा सकते हैं । इनका आचरण, इनकी जीवन-शैली, इनकी सोच तथा इनका रहन-सहन सब एक ढोंग होता है । एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलटी मारना तो कोई हमारे नेताओं से सीखे । उच्चतम न्यायालय ने चुनावों में ईमानदार व स्वच्छ छवि के लोगों को लाने हेतु तथा भ्रष्ट व आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को रोकने हेतु यह आदेश दिया था कि चुनाव से पहले सब प्रत्याशी अपना पूरा विवरेण देंगे । अपनी राय, आपराधिक रिकार्ड, शिक्षा आदि के संबंध में पहले ही उन्हें बताना होगा।
किसी भी राजनैतिक दल ने इसे स्वीकार नहीं किया तथा एक अन्य लचर कानून बनाकर सब दलों ने आम सहमति से इसे पास भी कर दिया व राष्ट्रपति के पास भेज दिया । आपराधिक छवि के प्रत्याशियों को खड़ा करने, सीमा से कई गुणा धन चुनाव पर खर्च करने, भ्रष्टाचार को बढ़ाने तथा गुंडे व बदमाशों को राजनीति के अखाड़े में उतारने में सारे दल एकमत हैं । तभी तो सबने मिलकर उच्चतम न्यायालय की सिफारिशों को स्वीकृत न करके एक ऐसा कानून पारित कर दिया है जिसमें अपराधी व गुंडे सरलता से विधानसभाओं व लोकसभा में पहुंच सकेंगे । यह है हमारे राजनीति दलों का चरित्र । सब के सब भ्रष्ट, बेईमान व स्वार्थी हैं । सत्ता पक्ष व विपक्ष ने मिलकर एक ऐसे कानून को पारित करवा ही लिया जिससे कि अपरहणकत्र्ता, बलात्कारी व गुडे भी चुनाव लड़ सकेंगे । इससे तो भारत के राजनैतिक दलों ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे गंुडे, बदमाशों व बलात्कारियों के सहारे के बिना चुनाव लड़ ही नहीं सकते । ऐसा करके भी ये सार्वजनिक मंचों से ईमानदारी, परमार्थ, देशभक्ति एवं स्वच्छता की बातें करेंगे । कितने पाखंड़ी, ढोंगी व दोगले चरित्र के हैं हमारे देश के ये नेता । राष्ट्रपति महोदय ने चुनाव सुधार अध्यादेश के कुछ प्रावधानों पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था । लेकिन सरकार ने मूल अध्यादेश पर ही हस्ताक्षर करने हेतु उनको विवश कर दिया । सभी दल इस षड्यंत्र में शामिल थे । और अब कांग्रेस पार्टी का पाखंड देखिए कि उसने जनता की वाहवाही लूटने हेतु कानून बन जाने के बाद यह शोर मचाना शुरू कर दिया है कि हमें तो उच्चतम न्यायालय की बातें ही स्वीकार्य थी तथा जो कुछ उच्चतम न्यायालय ने चुनाव सुधार प्रस्तुत किए थे वे ही लागू किए जाने चाहिएं । इस तरह के दोगले चरित्र का परिचय इस पार्टी ने सदैव ही दिया है । भारत की सारी समस्याओं की जड़ में हमें सब कहीं यह कांग्रेस पार्टी ही मौजूद मिलेगी । अब भी छल व कपट करना नहीं छोड़ते हैं ये लोग ।
कोई भी दल राजनीति के अपराधीकरण को रोकने हेतु तैयार नहीं हैं । कोई भी नेता ज्यों-ज्यों ऊपर चढ़ता जाता है, त्यों-त्यों उसके चारों तरफ आपराधिक छवि के गुंडे, बदमाशों की भीड़ बढ़ती जाती है । चुनाव ये लोकप्रियता या अपने किये कार्मों के बल पर नहीं, अपितु गुंडों के आंतक के बल पर जीतते हैं । यह है हमारा लोकतंत्र जिसका गुणगाान करने से हमारे नेता कभी नहीं थकते हैं । इसी लोकतंत्र ने हमारे नेताओं को अरबपति-खरबपति बनाया है, ऐसे में ये सब इसका गुणगान तो करेंगे ही ।
आचार्य शीलक राम