संसार में ऐसा कौनसा दर्शनशास्त्र, ऐसी कौनसी फिलासफी,ऐसी कौनसी विचारधारा, ऐसा कौनसा सिद्धांत, ऐसा कौनसा संप्रदाय, ऐसा कौनसा मजहब, ऐसा कौनसा महापुरुष हैं जिसकी आड़ लेकर इन्हीं के अनुयायियों ने उपरोक्त को जनमानस की लूट और अपने स्वयं को मालामाल करने के लिये दुरुपयोग नहीं किया गया हो। किसी का कम तो किसी का अधिक सभी का दुरुपयोग हुआ है। दुरुपयोग करने वाले कोई अन्य ग्रहों से आये व्यक्ति नहीं अपितु इनके स्वयं के नजदीकी भक्त लोग ही रहे हैं।हर सही को ग़लत,हर नैतिक को अनैतिक तथा हर मानवीय को अमानवीय बना देने का हूनर अनुयायियों, भक्तों और नकल करने वालों में मौजूद होता है।इसका पता अनुयायियों के आराध्य महापुरुषों को होता भी है। लेकिन कुछ तो इसलिये चुप रह जाते हैं कि उनकी सोच ही लूटेरी,शोषक और भेदभाव की होती है और कुछ इसलिये चुप रह जाते हैं कि क्योंकि उनको मालूम होता है कि अनुयायी, भक्त, नकलची लोग ऐसे ही होते हैं। उपरोक्त दोनों हालात में जनमानस ठगा जाता है। उपरोक्त दोनों से उत्पन्न ऊहापोह के कारण सत्य के खोजियों को ही दिक्कत होती है। सत्य के खोजियों के लिये कंकड़-पत्थर से हीरे निकालने के समान मेहनत करनी पड़ती है।
No comments:
Post a Comment