सनातन से जो इस धरावासी, उनको हिन्दू जान ।
करोड़ों वर्ष से यहां रहते आए, बिना किसी व्यवधान ॥1
जिससे सब मत उत्पन्न हुए, ईसाई, पारसी, मुसलमान ।
यहुदियों का भी निकास जहां से, उनको ले हिन्दू पहचान ॥2
यहुदी, पारसी, ईसाई सभी ही, या सुन लो मुसलमान ।
भारत से ही ये गए सभी हैं, भिन्न-भिन्न काल के मान ॥3
जेन्द अवेस्ता भी नकल वेद थी, बाईबिल नई या पुरानी ।
हिन्दू नकल पर कुरान रची हैं, कर-करके बेईमानी ॥4
आर्य हिन्दू उन्हें कहा जाता, जो इन सबकी है माता ।
एक बेल को मीठे-खट्टे फल, धर्म सनातन उसे कहा जाता ॥5
भू-सांस्कृतिक-गुण अवधारणा, आर्य हिन्दू भारत की ।
अपने संग करो हित अन्य का, स्वार्थ संग परमार्थ की ॥6
विरोधाभासी आर्य हिन्दू का जीवन, माने प्रकृति को माता ।
फूल व काँटे जरूरी साथ-साथ, नियम इसे कहें विधाता ॥7
विरोधाभास में जीना सीखा, इन्हीं को मूल तत्त्व माना ।
आर्य हिन्दू वह कहलाए भारतीय, रहस्य संसार का जाना ॥8
किसी भी पथ से चलना चाहे, किसी को करे स्वीकार ।
आर्य हिन्दू उसे कहा जाता, समान महत्त्व सकार व नकार ॥9
करुणा संग कट्टरता जिसमें, अवसर के अनुसार ।
आर्य हिन्दू वह भारतीय है, जो उचित करे इनका समाहार ॥10
परम धर्म अहिंसा को कहता, तत्त्पर हिंसा धर्म रक्षा को ।
आर्य हिन्दू उसको कहा जाता, जो अपनाए इसी शिक्षा को ॥11
आतंकवाद को जो दे न बढ़ावा, पर सक्षम विनाश करने को ।
मरने संग मारना भी आता, तत्त्पर परपीड़ा हरने को ॥12
आतंकवाद है पंथों का कुपुत्र, यहुदी, पारसी या ईसाई ।
मुसलमान बस आतंक का पथ है, निर्दोष हिंसा जिसने बढ़ाई ॥13
आर्य हिन्दू भारत धर्म है, सनातन से जो चला आता ।
बाकी इसके सभी पंथ या मत हैं, यह इन सबका बाप कहलाता॥14
जिस धर्म में अनेक पंथ हैं, भिन्न प्रकार के विचार ।
आर्य हिन्दू वह कहलाए भारत, जिसका दर्शनशास्त्र सर्व स्वीकार॥15
जिसका इतिहास सर्व प्राचीन है, जो प्रचलित सृष्टि के आदि से ।
अनेक आए व अनेक चले गए, जो रहा सुरक्षित बर्बादी से ॥16
महत्त्व दे जो पुरुषार्थ को, धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष ।
तर्क हो चाहे हो तर्कातीत, महत्त्व दे परोक्ष-अपरोक्ष ॥17
एक अकेला जो धर्मस्वरूप है, आर्य हिन्दू सुनो भारतीय ।
बाकी तो सब एकपक्षीय हैं, प्रस्तुत ब्रह्माण्ड यह अद्वितीय ॥18
बेवजह जिसने न सताया किसी को, कहलाए वही आर्य हिन्दू ।
चक्रवर्ती राज करोड़ों साल तक, समस्त भूमि समस्त सिन्धु ॥19
शान्ति संग क्रान्ति को माने, वह आर्य हिन्दू कहलाए ।
अपनों संग परायों की रक्षा, न बेवजह रक्त बहाए ॥20
दर्शनशास्त्र जिसका सर्वगुणसंपन्न, हरेक विचार सम्मान ।
नास्तिक संग आस्तिक मर्यादा, बिना किसी भी व्यवधान ॥21
स्थायित्व संग परिवर्तन भी माने, आर्य भारतीय हिन्दू उसे जान ।
‘अतिथि देवोभवः’ जिसकी मर्यादा, दे प्रतिष्ठा देवता के समान ॥22
केन्द्र हमारा एक है सबका, परिधि पर हम हैं अनेक ।
रोम-रोम में समाई सीख यह, वह हिन्दू कहलाए प्रत्येक ॥23
अच्छा बनने की जिसे सनक है, वैदिक आर्य हिन्दू भारतीय ।
समस्त धरा पर नहीं समानता, प्रथम द्वितीय या तृतीय ॥24
सिद्धान्तों की जहां भरमार है, जो परस्पर हैं विरोधी ।
आर्य हिन्दू वह कहा जाए भारतीय, निरोधी संग, प्रबोधी ॥25
सिन्धु नदी के आसपास का क्षेत्र, हिन्द महासागर का परिवेश ।
अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, मंगोलिया, चीन सब देश ॥26
म्यांमार, नेपाल से लेकर, पूर्वी एशिया सब स्थान ।
भूमि से लेकर हिन्द सागर तक, कहलाता आर्य हिन्दूस्थान ॥27
करोड़ों वर्ष तक जो यहां रहे हैं, समस्त धरा जिनके संस्कार ।
आर्य हिन्दू वे कहलाएं भारतीय, होती आई है जय-जयकार ॥28
छोटी ईकाई जिसका परिवार, वृहद् ईकाई आर्य बनना ।
पग-पग पर विरोध बुराई का, वसुधैव कुटुम्बकम् सुनना ॥29
हिन्दू शब्द नहीं दिया विदेशी ने, तद्भव शब्द यह हमारा ।
आर्य है वही भारतीय सुन लो, हिन्दू शब्द नहीं उधारा ॥30
इतिहास बिगाड़ कहते कुछ भी, सत्य नहीं यह किसी प्रकार से ।
सिन्धु का ही तद्भव शब्द यह, जो वीरोचित निज व्यवहार से ॥31
हिन्दू, हिन्दी, हिन्दुस्थान सब, शब्द अपने ही हमारे हैं ।
बचे रहें कुप्रचार विदेशी से, पूर्ण स्वेदशी-नहीं उधारे हैं ॥32
जाति-भावना की अकड़ त्यागकर, कहलाओ सब आर्य हिन्दू ।
परस्पर रखो विवाह सम्बन्ध भी, पर्यन्त आसिन्धू सिन्धु ॥33
इस लोक का सुख भोगकर, जो सोचे दूसरे भी लोक की ।
आर्य हिन्दू वह सुनो भारतीय, जिसकी शैली मध्य शोक-विशोक की ॥34
पूर्वजन्म में जिसकी प्रतिष्ठा, माने जो चैरासी लाख को ।
आर्य, हिन्दू वह सुनो भारतीय, जो तत्पर मरने साख को ॥35
‘मैं’ के संग जो माने ‘हम’ भी, दे अन्यों को भी आदर ।
आर्य हिन्दू वह जगत् प्रसिद्ध है, प्राण गंवाने को तत्पर हिन्द चादर॥36
आसिन्धू-सिन्धु करोड़ों साल में, जन्में नए-नए विचार ।
उन सबका संग्रह आर्य हिन्दू चिन्तन, करे नए-नए आविष्कार ॥37
बुराई का जो सदैव विरोधी, सत्य की खोज निकाल ।
हिन्दू आर्य वह कहलाए भारतीय, जो रहा करोड़ों वर्ष भूपाल ॥38
अन्धविश्वासी जो नहीं अन्धभक्त, तर्क की प्रतिष्ठा पूरी ।
अन्तिम सीमा तक उसे ले जाए, न तृप्ति हिन्दू अधूरी ॥39
सर्वप्राचीन जिसकी राष्ट्र धारणा, मेलजोल व भाईचारा ।
हिन्दू वही जो आर्य कहलाता, जो सदैव सर्वधरा का सहारा ॥40
स्वयं के चरित्र को निखारने हेतु, जिसने हर युग में दी है सीख ।
देने व लेने में रखा सन्तुलन, न मांगी किसी से भीख ॥41
आर्य हिन्दू व सुनों भारतीय, जिसने दुनिया को विज्ञान सिखाया ।
कला, संस्कृति, दर्शनशास्त्र सब, खेती करने का राज सुझाया ॥42
प्रकृति के अनेक रहस्यों का, जिसने किया प्रथम उद्घाटन ।
आर्य हिन्दू वह सुनो भारतीय, सोचे कल्याण की हर जन ॥43
वेद संहिता जिसके आदि ग्रन्थ हैं, इन्हें माने परम प्रमाण ।
आर्य वैदिक वही जानो भारतीय, जिसका धरा वृहद् परिमाण ॥44
वेद-उपनिषद् को उतारे जीवन, आसिन्धू-सिन्धु उपजे विचार ।
आर्य वैदिक वे सभी भारतीय, जो इन सबको करें स्वीकार ॥45
तुलामान जिसने दिया विश्व को, काल मान व दूरी मान ।
आर्य हिन्दू वही भारतीय है, माने मनु की सन्तान ॥46
आर्य हिन्दू भारतीय सभी, भले व सृजक के प्रतीक ।
न आए किसी बहकावे में, सुनो यहीं है सब ठीक ॥47
देशी-विदेशी बचो षड्यन्त्र, हम आर्य हिन्दू सब भारतीय ।
इस से शुद्ध न कोई धरा पर, न मिले उदाहरण द्वितीय॥त्र48
इस अपनी धरा को पवित्र माने, करे इसी की ही पूजा ।
तत्पर रहे मरने-मिटने को, जड़ लगान अन्य नहीं दूजा ।।49
मातृभूमि व पितृभूमि के प्रति, जिसका समर्पण है विचित्र ।
कण-कण जिसका सेवनीय है, वह धरती भारत की पवित्र ।।50
‘कृण्वन्तो विश्मार्यम्’ कहता नित, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जाने ।
आर्य है वह हिन्दू भारतीय, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ पहचाने ।।51
‘यतेमहि स्वराज्ये’ उद्घोष कर, जो सारी धरा पर घूमे ।
आर्य है वह हिन्दू भारतीय सुनो, रज को पावन मानकर चूमे ।।52
‘मा कश्चिद् दुखभागभवेत’ की, जिसकी है करुण पुकार ।
चक्रवर्ती साम्राज्य की ध्वजा की, उस हिन्दू की रही है सरकार ।।53
भगवा ध्वज समस्त मही पर, जिसने करोड़ों वर्ष फहराया ।
आर्य हिन्दू वह वीर भारतीय, ‘वीर भोग्या वसुन्धरा’ कहलाया ।।54
आचार्य शीलक राम
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
आचार्य अकादमी चुलियाणा
रोहतक (हरियाणा)
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