Friday, August 30, 2024

राजनीति और धर्म सेवा नहीं रहे (Politics and religion are no longer serviceable)

 

अन्य व्यवसायों की तरह ही राजनीति भी एक व्यवसाय है! राजनीति सेवा किसी भी कोण से नहीं है। कमाई, बैंक बैलेंस, लूटखसोट,भ्रष्टाचार, पूंजीवाद,मानसिकता, नेतागिरी, दुर्व्यवहार, हीनताग्रंथि,अंध-प्रतियैगिता,उपलब्धि, दादागिरी, बदमाशी,परिवारवाद, दलबदल आदि हरेक पहलू से राजनीति एक शुद्ध धंधा है, व्यापार है,छीनाझपटी है!जिनको राजनीति में आना होता है, उनको 'सेवा' की आड़ लेना पड़ता है! नाम सेवा का लेकिन खूलेआम लूटखसोट चलती है! अपवादस्वरूप एकाध कोई नेता सेवा के लिये राजनीति में आता होगा! बहुतायत से राजनीति में आनेवाले लोग धंधेबाजी करते हैं! और अपवाद कभी नियम नहीं होता है! आप सोचिये कि यदि राजनीति सेवा होती तो आज भारत विकास में कितनी ऊंचाइयों पर चला जाता! वास्तव राजनीति और नेताओं में सेवाभाव तो होता है लेकिन वह सेवाभाव जनता जनार्दन के प्रति नहीं अपितु अपने खुद के लिये होता है! पिछले सात दशक के दौरान राजनीति में मौजूद रहे हजारों विधायक, सांसद और नेताओं की गहराई से पडताल करके देख लो! अधिकांश नेता राजनीति में आते समय हजार पति ही मुश्किल से होंगे लेकिन एक दो योजना राजनीति में रहते ही करोडपति और अरबपति बन जाते हैं! उनके पास कयी -कयी कोठियां, प्लाट, जमीन, होटल, फैक्ट्रियां , कालोनियां आदि हो जाते हैं!विदेशों में भी प्रोपर्टी हो जाती है!शेयर बाजार में भी इन्वेस्टमेंट हो जाती है! कोरपोरेट जगत में भी हिस्सेदारी हो जाती है! आखिर इतनी धन दौलत कहाँ से और कैसे एकत्र हो जाती है? इतनी जल्दी करोडपति और अरबपति बनने का यह चमत्कारी फार्मूला नेता लोग जनता जनार्दन को क्यों नहीं बतलाते हैं? इनके इस फार्मूले से जनता भी तो अमीर बन सकती है!

ध्यान रहे कि सेवा से कोई व्यक्ति इतनी जल्दी अमीर नहीं बन सकता है!आज तक सेवा के माध्यम से कोई व्यक्ति करोडपति और अरबपति नहीं बन सका है! अरबों की संपत्ति कमाने के लिये सैकड़ों प्रकार की अन्य तिकडमबाजियां करनी पड़ती हैं!लोगों को धोखे देने पडते हैं! सिस्टम की कमजोरी का फायदा उठाकर काम निकालने पडते हैं! भ्रष्टाचार करना पडता है! काले और सफेद धन की अदला बदली करनी पडती है! अधिकारियों से साठगांठ करनी पडती है! रिश्वत देकर काम निकलवाने होते हैं! राजनीतिक दलों को भारी भरकम चंदे देने होते हैं! लाख रुपये दान करने की आड लेकर करोड़ों की कमाई करनी पडती है!अंधानुयायियों के थोक में वोट लेने के लिये धर्मगुरुओं को करोड़ों के चंदे देने पडते हैं! भोली -भाली जनता को कानोकान खबर न हो और देश को लूटते रहो! कुल जमा यही है राजनीति!नेताओं के समान झूठा, कपटी, धंधेबाज, धोखेबाज, भ्रष्टाचारी,अय्याश, बेहरूपिया, दलबदलू और रंगबदलू इस धरती पर अन्य कोई भी प्राणी नहीं है! लेकिन इस सबके बावजूद भी नेता अपने आपको बस एक अदना से सेवक के रूप में प्रचारित करता है!जितनी विनाशकारी तिकडमबाजियां नेताओं के पास होती हैं, उतना अन्य किसी  के  पास नहीं होती हैं!

जिस तरह से नेता अपने आपको राष्ट्रसेवक कहते हैं, ठीक उसी तर्ज पर धर्मगुरु अपने आपको धर्मसेवक कहते हैं!दोनों सेवा की आड में अपना लूटखसोट का धंधा चलाते हैं!

आज के हालात देखिये!राष्ट्रवादी कहे जाने वाले नैतिकता और धार्मिकता को तिलांजलि देकर अधिकांश आर्यसमाजी पौराणिक संघी बन चुके हैं!आखिर सत्ता, दौलत और प्रसिद्धि के नशे से कौन बच पाया है? शायद ही कोई विरला बचा होगा! कुछ समय पहले कथाकार कहे जाने वाले रामभद्राचार्य ने महर्षि दयानंद के बारे में वाहियात टिप्पणी की थी! कुछ समय तक आर्यसमाजी भाईयों ने सोशल मीडिया पर इस संबंध में खूब उछलकूद की!रामभद्राचार्य को माफी नहीं मांगने पर कोर्ट में घसीटने की धमकी भी दी! लेकिन रामभद्राचार्य पर संघ और सरकार की छत्रछाया है! उनका कौन क्या बिगाड़ सकता है?इन्होंने तो सारे शंकराचार्यों को ठिकाने लगा दिया है!और फिर महर्षि दयानंद तो संघ और भाजपा को कभी अच्छे ही नहीं लगे!रामभद्राचार्य द्वारा  महर्षि दयानंद का अपमान करने पर माफी मांगना तो दूर रहा, बाबा ने तो बीचबिचाला करके मामले को शांत करने आर्यविरोधी कोशिश को ही अंजाम दे दिया!और ये अपने आपको महर्षि दयानंद का परम भक्त भी कहता है! वास्तव में आर्यसमाज को गर्त में ले जाने के लिये इस बाबा का भी बहुत बड़ा हाथ है!इस बाबा को लताडने की कितने आर्यसमाजी भाईयों की हिम्मत है? वास्तव में रामदेव को आयुर्वेद और योग की आड़ में अपना व्यापार करना है तो रामभद्राचार्य को कथा के माध्यम से यही काम करना है!

ठीक ही कहा है कि गरीब की औलाद जब बिगडती है तो सारी सीमाओं को तोड देती है! आजकल के अधिकांश बाबा लोग इसी पृष्ठभूमि से आते हैं! ये अरबपति तो बाद में बने हैं! ये व्यापार चलायें या महर्षि दयानंद के सम्मान की रक्षा करें? इनको केवल व्यापार से मतलब है! व्यापार के लिये ये कुछ भी अनैतिक, अधार्मिक कार्य कर सकते हैं! अंधभक्ति आज भी बहुमत में है तथा तर्कबुद्धि अल्पमत में होकर लगभग गायब है!

नेताओं के छल का एक उदाहरण देखिये! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जब भी विदेश यात्राओं पर जाते हैं तो वहाँ पर विभिन्न मंचों से अपने संबोधनों में भारत को बुद्ध और गांधी का देश कहते हैं! उन्होंने कभी भी भारत को श्रीराम, श्रीकृष्ण, मनु, वेदव्यास, शंकराचार्य, दयानंद, अंबेडकर, हेडगेवार, सावरकर का देश नहीं कहा है! यह सब कौनसी मानसिकता के कारण हो रहा है- समझदार व्यक्ति इसे आसानी से समझ सकता है!यहाँ भारत में श्रीराम या उनके पूजास्थल के नाम से वोट मांगते हैं लेकिन विदेशों में इनका नाम अपनी जबान पर लाना उचित नहीं समझते! इसमें राजनीति है या धर्म है? इसमें वोट बैंक है या सनातन संस्कृति है? इसमें चालाकी है या हिंदुत्व के प्रति प्रेम? आखिर मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम, पूर्णावतार श्रीकृष्ण, प्रथम मानव संहिता प्रदान करने वाले मनु,ज्ञान के प्रतीक वेदव्यास, दार्शनिक चुडामणि शंकराचार्य, राष्ट्रवाद और स्वदेशी के प्रतीक दयानंद, समता और न्याय के प्रतीक अंबेडकर को विदेशी धरती पर याद करने से हमारे नेताओं को डर क्यों लगता है? यह डर हीनभावना का प्रतीक है या कोरी राजनीति है या भौतिकवादी विदेशी ताकतों को खुश करने का प्रयास है?वास्तव में नेताओं की कुटिल कुचालों को जनता जब तक समझ पाती है तब तक नेता और आगे निकलकर और भी घटिया दर्जे की हरकतें करने लगते हैं! नाम सेवा का लेकिन शुद्ध रूप से लूटखसोट चलती रहती है! राष्ट्रसेवा की आड़ में सारे कुकर्म छिप जाते हैं!वो दिन लद गये जब संघी भाई पैरों में चप्पल पहनते थे, पैदल या साईकिल पर चलते थे, तख्तों पर सोते थे, रुखी सूखी खाकर गुजारा करते थे! बिना पारिश्रमिक में सेवा करते थे! अब तो सबके पास महंगी गाडियां, भव्य आवास, हवाई हवाई यात्राएं, विदेशों में सैर सपाटा, बड़े -बड़े पद, आलीशान कार्यालय हो गये हैं! जमीनी भारत से ये पूरी तरह से कट चुके हैं! इनका लक्ष्य अब सेवा नहीं अपितु मेवा, अय्याशी, पद और प्रतिष्ठा हैं!

ध्यान रहे कि भ्रष्टाचार का शिकार हुये जनमानस को जब भी कोई पद मिलेगा तो वह जमकर भ्रष्टाचार करेगा! खेल,राजनीति, शिक्षा, बिजली, पानी, परिवहन,पुलिस,शासन- प्रशासन, उद्योग,विभिन्न पदों की भर्तियों तथा परीक्षाओं में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है!भ्रष्टाचार पहले भी होता था, लेकिन पिछले एक दशक के दौरान तो भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड टूट गये हैं!इस भ्रष्टाचार ने भारत की कमर तोड दी है! प्रतिभा पलायन का एक प्रमुख कारण यह भ्रष्टाचार ही है! फिसड्डी सिफारशी आगे निकल जाते हैं और बिना सिफारिश के प्रतिभावान या तो तिल तिलकर मर जाते हैं या जुगाड़ हुआ तो विदेशों में चले जाते हैं या माता -पिता- परिवार - रिश्तेदारों या पडौसियों की गालियाँ खाते रहते हैं! खेलों  में ब्लाक स्तर और स्कूल स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर और विश्वविद्यालय स्तर तक भाई- भतीजावाद व्याप्त है! 140 करोड़ के देश भारत में  अनगिनत खेल प्रतिभाएं हैं लेकिन अधिकांश में भ्रष्टाचार की भेंट चढ जाती हैं! ओलंपिक, राष्ट्रमंडल, विश्व प्रतियोगिताओं में मैडल इसीलिये नहीं आ रहे हैं! विनेश फोगाट,बजरंग आदि इसके ताजा उदाहरण हैं! भ्रष्ट सिस्टम से लडते -लडते प्रतिभाएं बर्बाद हो जाती हैं लेकिन सिस्टम और भी अधिक भ्रष्ट बनता जाता है! ऊपर से नीचे तक इस भ्रष्टाचार को सरकारी सरंक्षण प्राप्त है!और ये इस तरह के महा -भ्रष्टाचारी नेता, धर्मगुरु, शासक, प्रशासक, शिक्षक, कोच और खेल संघ आदि भारत को विश्वगुरु बनाने की घोषणा कर रहे हैं! हम भ्रष्टाचार में तो विश्वगुरु बन चुके हैं लेकिन विकास और समृद्धि में हम विश्वगरीब हैं!खेलों,विज्ञान, शिक्षा, तकनीक, शोध आदि में विश्व में हमारा कोई भी योगदान नहीं है! इस विविध प्रकार की बर्बादी और भ्रष्टाचार के बावजूद हमारे नेता और धर्मगुरु अपने आपको राष्ट्रसेवक और धर्मसेवक कह रहे हैं!बेशर्मी की सारी हदें टूट चुकी हैं!एक प्रकार के बेशर्म लूटेरे सत्ता से जाते हैं तो दूसरे प्रकार के बेशर्म लूटेरे सत्तासीन हो जाते हैं!अखबारी,इलेक्ट्रॉनिक, सोशल मीडिया तथा प्रचारी तंत्र वाला विकसित और समृद्ध भारत कहीं भी दिखाई नहीं देता है! जमीनी भारत की हालत अत्यधिक दयनीय,बदहाल,भ्रष्ट, अभावग्रस्त, बेरोजगार, बिमार, भूखमरी और कुपोषण से ग्रस्त है!अपने आपको राष्ट्रसेवक कहने वाले  राष्ट्र- लूटेरे बन चुके हैं तथा धर्मसेवक धर्म की आड़ में व्यापारी बन चुके हैं! दोनों ही सारे नियम, कानून, नैतिकता, धार्मिकता को छोडकर दौलत जोडने में लगे हुये हैं!

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आचार्य शीलक राम

दर्शनशास्त्र -विभाग

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय

कुरुक्षेत्र 136119

 

1 comment:

  1. राजनीति और धर्म कभी अलग हो ही नहीं सकते

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