Thursday, August 18, 2016

अपनी भूमि से उखड़े लोग अशांत, अनैतिक, भ्रष्ट, बलात्कारी, देशद्रोही एवं आत्मघाती ही होंगे यानि कि...... अपनी सनातन संस्कृति, अपने सनातन दर्शन-शास्त्र तथा अपनी मातृभाषा को महत्त्व न देना आत्मघात है.......


       इस देश में जो लोग 1947 के पश्चात् से लेकर आज तक सत्ता में रहे हैं, वे अनिश्चय की स्थिति में हैं। उनका अनिश्चय कहीं बाहर से आयातित न होकर उनके भीतर की आत्मग्लानि व हीनता की भावना की उपज है । ये इस तरह की हीनता की ग्रंथि से ग्रसित लोग अपने आपको गजनवी, गौरी, चंगेज, तैमूरलंग, अकबर, शाहजहां, जहांगीर, औरंगजेब, पुर्तगाली, अंग्रेजादि की तानाशाही एवं भारत को अपनी जागीर मानने की मानसिकता से दूर नहीं कर पा रहे तथा न ही भारतवर्ष, इसकी सभ्यता, इसके विकसित दर्शन-शास्त्र तथा इसकी मातृभाषा को महत्त्व दे पा रहे हैं। ऐसे लोग एक ऐसी खतरनाक भंवर में फंसे हैं कि ये अपने आपको किसी भी पाले में सुरक्षित महसूस नहीं कर पाने की महाव्याधि से ग्रसित हो गए हैं । आप आजादी के बाद हर दिन देख नहीं पा रहे हैं क्या कि कैसे ये लोग जो आजादी के शुरू से ही सत्ता में रहे हैं लेकिन फिर भी इनकी आत्मघाती अपनी जमीन से उखड़ी सोच के कारण, विदेशी भाषा के लाद देने के कारण तथा पाश्चात्य उधारी अनैतिक जीवन-शैली के कारण हमारा महान राष्ट्र हर दिन और गरीब, और अधिक असहाय, और अधिक दीन-हीन, और अधिक लापरवाह और अधिक अनैतिक, और अधिक अपनी जमीन से उखड़ा हुआ तथा और अधिक लूट-खसोट वाला बनकर रह गया है । सत्ता पर कब्जा जमाए लोग जिन कृत्यों को (हालांकि ये कुकृत्य ही अधिक हैं) आए दिन कर रहे हैं उन्हीं को जब इस देश का साधारण नागरिक करता है तो उसे जेल की हवा खानी पड़ती है । उसी काम को हमारा नेता करे तो ठीक लेकिन साधारण नागरिक करे तो गलत । हमारे यहां यदि नेता भ्रष्ट, बलात्कारी, देशद्रोही एवं डकैत हो तो वह और भी बड़ा नेता बन जाता है लेकिन यदि साधारण नागरिक किसी के हजार-दो हजार रुपया भी हड़प ले या किसी लड़की को घूर ले या छोटी कोई रिश्वतादि ले ले तो उसे तुरंत जेल में ठूंस दिया जाऐगा। यहां तो ऐसा लगने लगा है कि छोटा अपराध करो तो जेल में सड़ना पड़ेगा लेकिन यदि बड़े-बड़े अपराध करने में सक्षम हो जाओ तो उस व्यक्ति को नेता बनने से कोई नहीं रोक सकता । यह सब धर्म के क्षेत्र में नहीं चलता था लेकिन अब तो धर्मगुरु भी नेता ही बन गए हैं । करौंथा आश्रम जिला-रोहतक (हरियाणा) से निष्कासित तथा धर्म व अध्यात्म का अ, ब, स भी न जानने वाले रामपाल गंभीर आरोप  लगने व जेल की हवा खाने से कुछ ही दिन में अखिल भारतीय संत व अरबों रुपये के स्वामी बन गए हैंे । ऐसे पाखंडी लोग धार्मिक न होकर राजनैतिक ही हैं । लोगों के भीतर छिपे भय का शोषण करके ऐसे चालाक व शातिर लोग अरबों रुपये की संपत्ति के स्वामी होकर खूब विलास भोग रहे हैं । सचखंड, सतलोकादि की मीठी गोलियां लोगों में बांटकर खूब भय को अपने व्यापार का माध्यम बनाया जा रहा है । भीतर यानि कि अपने स्वयं के भीतर अपने चित्त को शुद्ध करके कोई जा नहीं रहा है। इन पाखंडी धर्मगुरूओं ने धर्म, अध्यात्म, योग व इसकी ध्यान-विधियों को बहुत बड़ा व्यापार बना दिया है ।
            ये धर्मगुरु, पुरोहित व राजनेता एक ही मंडी के आढ़ती हैं । इनके पहनावे, इनकी शैली तथा इनकी भाषा में फर्क हो सकता है परंतु ये सब हैं एक ही लूट की गाड़ी में सवार लुटेरे । साधारण जनता को भिन्न-भिन्न बहानों से लूटे जा रहा है । नेता टैक्स लगाकर और भ्रष्टाचरण करके साधारणजन को लूट रहा है जबकि धर्मगुरु सचखंड, सतलोक, स्वर्गादि का प्रलोभन देकर साधारणजन से उसकी मासिक आमदनी से एक निश्चित प्रतिशत दान के रूप में लेकर उनको लूट रहा है । दोनों के तरीके भिन्न-भिन्न हैं लेकिन लूट दोनों ही रहे हैं । संपत्ति, वैभव-विलास एवं सुख-सुविधाओं के अंबार दोनोंके पास ही प्रचुरता से हैं ।
           यहां पर यह विशेष रूप से ध्यान रहे कि साधारणजन से मतलब कोई अनपढ़ अशिक्षित या देहांत में निवास करने वाले से ही न होकर सभी भारतवासियों से है । भीरूता, पाखंड, अज्ञानता गंवारपन या मूढ़ता जहां पर अनपढ़ों के पास है वहां पर उच्चशिक्षितों के पास भी है । ज्ञान का अर्थ जानकारियों से भरा हुआ न होकर सजग, संवेदनशील एवं होशपूर्ण होने से है । ज्ञान-अज्ञानी के संबंध में व्याप्त भ्रम का विच्छेदन भी होना अति आवश्यक है । एक अनपढ़ लेकिन होशपूर्ण ग्रामीण भी ज्ञानी कहा जाऐगा लेकिन एक उच्च शिक्षित परंतु संवेदनहीन एवं मुच्र्छित शहरी व्यक्ति अज्ञानी कहा जाऐगा । इस दृष्टि से अज्ञानी व्यक्तियों का आजकल बड़े-बड़े शिक्षा-संस्थाओं, शोध-प्रयोगशालाओं, विधान-सभाओं व लोक-सभाओं तथा बड़े-बड़े मठों पर कब्जा हो गया है ।
ऐसी विषम परिस्थिति में एक ही औषधि हमारे भारतवर्ष के महारोग की बच जाती है और वह है कि हम अपनी जमीन से फिर से जुड़ जाएं । हम अपनी बहु-आयामी संस्कृति व सभ्यता को फिर से अंगीकार करने लगें, हम अपने समृद्ध व वैज्ञानिक दर्शन-शास्त्र कसे फिर से सम्मान देने लगें, हम अपनी मातृभाषा का प्रयोग जीवन के हरेक क्षेत्र में करने लगें तथा हम अपनी ‘योग-साधना’ नामक विद्या का सहारा फिर से लेने लगें । पता नहीं हमारे नेताओं, हमारे धर्मगुरुओं, हमारे शिक्षकों, हमारे शिक्षा-शास्त्रियों हमारे सुधारकों एवं हमारे लेखकों व वैज्ञानिकों में कब अक्ल जागृत होगी कि वे फिर से अपनी जमीन से जुड़ जाएं, वे अपनी जड़ों को याद करें, वे अपनी मातृभाषा को अपनाएं, वे अपने जीवन-मूल्यों को स्वीकार करें । वह दिन भारतवर्ष के लिए ही नहीं अपितु समस्त धरा के लिए कल्याणकारी होगा। भारतवर्ष जागेगा तो ही समस्त धरा जागेगी । आए दिन होने वाले अनैतिक दुष्कर्म, बलात्कार, डकैतियां, भ्रष्टाचरण, बेहोशी, संवेदनहीनता, संग्रह-वृत्ति, लूटपाट, हिंसा, उपद्रव, तनाव, चिंता, हीनता की ग्रंथि, अहम् को महत्त्व देना आदि अपनी जननी, अपनी जन्मभूमि, अपनी भाषा, अपने दर्शन-शास्त्र, अपने लोकाचार, अपने जीवन-मूल्यों तथा अपनी संस्कृति व सभ्यता से उखड़ने के ही दुष्परिणाम हैं । व्याधियां कितनी ही हों लेकिन कारण उनके मूल में कुछ ही हैं । किसी पौधे को जमीन से उखाड़ दो तथा उसे खाद-पानी-हवा- प्रकाश भी मत दो; ऐसे में वह पौधा मरेगा ही मरेगा । ऐसी ही कुछ स्थिति भारतवर्ष की हो गई है । हमारे नेता, धर्मगुरू, योग- गुरू, लेखक, शोधार्थी, वैज्ञानिक, सुधारक, शिक्षाशास्त्री आदि सभी के सभी लगभग बिगाड़ के रास्ते पर हैं लेकिन वे सब भारतवर्ष, इसकी जनता तथा जनता के वर्तमान व भविष्य को स्वर्णिम एवं समृद्ध बनाने के दावे भी कर रहे हैं । ऐसी विरोधाभासी जीवन-शैली से भारतवर्ष का कल्याण कभी भी नहीं हो सकता । भारतवर्ष का कल्याण भारत वर्ष की भूमि से जुड़ने से ही होगा । विदेशी अनार्य एवं आसुरी जीवन-शैली से हमारा कल्याण संभव कभी भी नहीं है । हठधर्मिता त्यागकर हमें भारतीय बनना चाहिए । विदेशी अनार्य एवं आसुरी जीवन-शैली को अपनाने से भारतीय जीवन-मूल्यों के पालन की आशा युवक व युवतियों से नहीं की जा सकती । जागो भारत, जागो ।
-आचार्य शीलक राम

Sunday, August 7, 2016

राष्ट्र् गान

आर्य वैदिक हिन्दू राष्ट्र
सनातन सब से प्यारा है॥

समस्त धरा को चरित्र शिक्षा
ज्ञान-विज्ञान की देकर शिक्षा
सदैव दिया है सबको सहारा॥
आर्य वैदिक ......
मिल-जुलकर तूने रहना सिखाया
किसी मत को कोई भी आया
दिया मुफ्त में, नहीं उधारा॥
आर्य वैदिक ......
जिससे हो सकता जग मे सृजन
सुख, समृद्धि संग ज्ञान का अर्जन
तृप्ति प्रदाता भारत न्यारा॥
आर्य वैदिक ......
भौतिक संग अध्यात्म की शैली
चहुं दिशा में तुम से ही फैली
किसी ने भ्रम नहीं सीखा तेरे द्वारा॥
आर्य वैदिक .......
तर्क व श्रद्धा का संगम विचित्र
भरा है तेरी संस्कृति के भीतर
बस देना ही तूने विचारा॥
आर्य वैदिक .....
सगर तेरे चरण पखारे
खडा हिमालय तेरे दवारे
तूने समस्त धरा का जीवन संवारा॥
आर्य वैदिक ......
तेरे रक्षा को कटा दें शीश
अनुकपा तुझ पर जगदीश
तेरी सनातन से अविरल धारा॥
आर्य वैदिक ................
-आचार्य शीलक राम
दर्शन विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

Saturday, August 6, 2016

राष्ट्रभाषा

राष्ट्रभाषा भारती, हम तेरा करें अभिनंदन।
नेताओं ने कब सुना, तेरा करूण क्रंदन।।
भारतवर्ष का भाल तुम, सर्व-जगत् सिरमौर।
देख रही तुम बुरा समय, आंग्लभाषा के दौर।।
अपमानों के घूंट पीकर, तुमने बुरा नहीं माना।
जन-संपर्क का कार्य, जन-मानस पहचाना।।
बिना किसी मदद तुमने किया, भारतवर्ष को एक।
क्षेत्रवाद को लांघकर मां, सेवा की प्रत्येक।।
भिन्न-भिन्न भाषा बोलते, भिन्न-भिन्न हैं मतवाद।
राष्ट्र एकता का सूत्र तुम, राष्ट्र विकास की खाद।।
शब्द-संपदा समृद्ध तुम, कोई नहीं तुम्हारे समान।
राष्ट्रभाषा तुम बन जाती, नेता न बनते व्यवधान।।
इंग्लिश-विंग्लिश छोड़कर, राष्ट्रभाषा अपनाओ।
इसी से हमारी सुरक्षा हो, भारतवासी समझ जाओ।।
विदेशी भाषा गुलामी है, स्वभाषा है आजादी।
अपनी अपनी ही होती है, अन्यथा निश्चित बर्बादी।।
भारतपुत्र ध्यान दो तुम, करो राष्ट्रभाषा प्रयोग।
इसकी प्रगति करने को, कुछ भी करो उद्योग।।
सृजनात्मक कृत्य कोई भी, हो सकता निज भाषा में।
नेता कुछ भी करेंगे यहां, मत रहना इस आशा में।।
बाहर-भीतर का विकास हो, या हो कोई आविष्कार।
मातृभाषा में ही संभव हो, पग-पग विजय सवार।।
धूर्त, कपटी नेताओं ने, कहीं का भारत को न छोड़ा।
भाषावाद व क्षेत्रवाद से, मनोबल भारत का तोड़ा।।
भारतवासी हर जन सुनो, राष्ट्रभाषा करो सम्मान।
मुंहतोड़ उसको उत्तर दो, जो दुष्ट करे इसका अपमान।।
राष्ट्रभाषा के बिना, रहे गूंगा-बहरा देश।
उसकी रक्षा कर नहीं सकते, ब्रह्म-विष्णु-महेश।।
-आचार्य शीलक राम
दर्शन विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
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             8901013065

Tuesday, August 2, 2016

हिन्दुत्व को कलंकित न करें

     तेरह सदी से हिन्दुतव पर हमले हो रहे हैं । इन हमलों का कारण कुछ हमारे ही भाईयों की गद्दारी रही तथा इसके साथ-साथ इसके भौगोलिक कारण भी थे । इन तेरह सदियों में हमने बहुत कुछ खोया तथा सीखा बहुत कम । हमारे महान योद्धाओं ने पूरी शक्ति से बाहरी हमलावरों का सामना किया । ये नहीं है कि कोई भी बाहरी हमलावर आया तथा उसने भारत के किसी हिस्से पर कब्जा कर लिया । भारत को लूटने व यहां पर शासन करने के प्रयास में विदेशी हमलावरों को भारतीय वीरों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था । यही तो कारण था कि जो भी लूटेरा या हमलावर यहां आता था उसे कई-कई वर्ष लग जाते थे कुछ विशेष क्षेत्रों को लूटने या उन पर अधिकार करने में । भारत पर हमला करने वाला कोई भी विदेशी हमलावर सहजता से अपने उद्देश्य में कभी भी सफल नहीं रहा । भारतीय वीरों ने उनके कई-कई हमलों को नाकाम भी किया था तथा उनके लाखों सैनिकों को मौत के घाट भी उतारा था । भारत के अनेक क्षेत्र तो ऐसे थे जिन पर विदेशी कभी भी अपना अधिकार नहीं कर सके । भारतीय इतिहासकारों की यह उक्ति की विदेशी हमलावर यहां आते थे तथा यहां का धन-दौलत लूटकर अपने देश को चले जाते थे या यहां पर अपना राज्य स्थापित कर लेते थे- निरी कपोलकल्पना है । पूरे भारतीय इतिहास लेखन में कपोलकल्पना व पूर्वाग्रह से काम लिया गया है । इस तरह से हिन्दुत्व पर प्रत्येक दिशा से हमले हो रहे हैं। हमारे हिन्दू भाई इसका सही मुकाबला अब भी नहीं कर पा रहे हैं । 1947 ई॰ से लेकर अब तक कांग्रेस व इसकी सोच के लोगों का यहां पर शासन रहा है । इसके अन्तर्गत हिन्दुत्व पर हमले पहले की अपेक्षा कम नहीं हुए अपितु बढ़े हैं। स्वतन्त्रता से पूर्व अंग्रेजों ने तथा अंग्रेजों से भी पूर्व मुगलों ने इस राष्ट्र को खूब लूटा । इन मुगलों व अंग्रेजों के चपलूसों को भी तो लूट का अवसर मिलना चाहिए था । इन चापलूसों को लूट का अवसर मिला 1947 ई॰ के पश्चात् और जब अवसर मिला तो खूब लूटा इन्होंने इस देश को। सत्तर वर्ष तक इनकी लूट खूब चली । जिन्होंने अंग्रेजों को इस देश से भगाने में वास्तविक भूमिका निभाई थी उनको परे फेंककर ये सत्ता पर काबिज हो गए । इस देश को आजाद करवाने का श्रेय खुद लेकर ये देश की छाती पर चैकड़ी मारकर बैठ गए । और बैठे भी ऐसे कि कुछ साल छोड़कर सत्तर वर्ष तक जमकर बैठे रहे । किसी ने कुछ कहने की हिम्मत की तो उसे साम्प्रदायिक करार दे दिया । इस देश को आजाद करवाने की लड़ाई व उसमें अपने झूठे योगदान को सत्तर वर्ष तक शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति, व्यापार व विदेशी नीति सबको पाश्चात्य व मुगलिया रंग में रंग दिया गया । किसी ने इसके विरूद्ध आवाज उठाई तो तुरन्त उसे साम्प्रदायिक कहकर चुप करा दिया गया । राष्ट्रवादी संगठनों आर्यसमाज, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, हिन्दू महासभा व जनसंघ ने इस अन्याय, भेदभाव व पूर्वाग्रह के विरूद्ध आवाज खूब उठाई तथा व्यावहारिक धरातल पर काम भी खूब किए । लेकिन अधिकांश समय तक इन्होंने राजनीति से दूरी बनाए रखकर अंग्रेजों व मुगलों के मानसपुत्रों को खूब अवसर प्रदान किए इस देश को लूटने व नीचा दिखाने के। जब भी इन्होंने थोड़ा-बहुत भी प्रयास राजनीतिक रूप से सचेत होने का किया तो उसके परिणाम भी सुखद व राष्ट्रवादी ही आए । जनसंघ से भाजपा में परिवर्तित राजनीतिक दल ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में छह साल तक सत्ता पाई थी तथा इसके बाद अब आश्चर्यजनक ढंग से श्री नरेन्द्र मोदी जी पूर्ण बहुमत से केन्द्र में अपनी सरकार बनाने में सफल रहे हैं । लेकिन राष्ट्रवादी दल के सत्तासीन होने के बावजूद भी दुर्घटना जो घटी वह यह है कि यह दल जब सत्ता में नहीं होता तो हिन्दुत्व की बातें करता है लेकिन जब यह सत्ता में आ जाता है तो इस पर सेक्युलरवाद हावी हो जाता है । यानि इसका यह अर्थ है कि राष्ट्रवादी कहे जाने वाले भी राष्ट्रवादी नहीं है अपितु इनकी खोपड़ी में भी कांग्रेस व साम्यवादियों का सेक्युलरवाद भरा हुआ है । हिन्दुत्व का नारा देकर हिन्दुत्व का विरोध, हिन्दुत्व के नाम पर वोट मांगकर अल्पसंख्यककों के अधिकार सुनिश्चित करने की बातें करना तथा बहुसंख्यक की उपेक्षा करना-यह क्या महारोग लगा हुआ है इन्हें? हिन्दुओं के मतों के बल पर सत्तासीन हो गए हैं लेकिन अब बातें कर रहे हैं सिर्फ अल्पसंख्यकों के अधिकारों की । अनेक तरह से हिन्दू मतदाता के साथ 1947 ई॰ से ही ठगी चल रही है लेकिन अब उस ठगी का रूप बदल गया है । पहले सेक्युलर कहे जाने वाले लोग हिन्दुओं की भावनाओं से खेल रहे थे लेकिन अब राष्ट्रवादी कहे जाने वाले लोग हिन्दुओं की भावनाओं से खेलने की तैयारी लगभग कर चुके हैं । श्री मोदी जी को सत्तासीन हुए तीन महीने हो चुके हैं लेकिन उनकी शासन करने की शैली वही कांग्रेस वाली है यानि कि सेक्युलरवादी है । हालांकि तीन महीने के शासन से अधिक होने की आशा नहीं की जानी चाहिए परन्तु कुछ निर्णय जो वे ले सकते थे वे भी उन्होंने नहीं लिए । सर्वाधिक खतरनाक बात जो हुई है वह यह है कि जो कोई भी आलोचक श्री मोदी जी के निर्णयों या नीतियों पर प्रश्नचिह्न लगाने की कोशिश करता है उसको ये तुरन्त बिना सोचे-समझे मूल्ला, कटुआ, सेक्युलर, कांग्रेसी आदि कहकर गालियां देने लगते हैं । इन गालियों का शिकार अनेकों वे बुद्धिजीवी भी हो रहे हैं जो जन्म से ही राष्ट्रवादी हैं तथा जिनका कांग्रेसी, साम्यवादी या मुगलिया जीवनशैली का दूर-दूर का भी सम्बन्ध नहीं रहा है । श्री मोदी जी की सोच भलि है तथा वे राष्ट्रहित में काफी कुछ करना चाहते हैं- लेकिन इसका यह अर्थ तो नहीं है कि कोई भी उनके कार्यों पर टिप्पणी ना करे । यह तालिबानी सोच हिन्दुत्व का अंग तो नहीं है । यह सोच तो मुगलिया सोच है, यह सोच तो फिरंगी सोच है, यह सोच तो साम्यवादी सोच है । हम किसी को कुछ भी कहें वह सब उचित है लेकिन हमारे सम्बन्ध में किसी ने कुछ टिप्पणी करने का प्रयास किया तो उसकी खैर नहीं । हम उसके साथ कोई भी दुव्र्यवहार कर सकते हैं, यहां तक कि उसकी हत्या भी कर सकते हैं । ऐसे हुल्लड़बाज बुद्धिहीन होते हैं जो कि भाजपा व श्री मोदी जी के पथ को कंटकाकीर्ण कर रहे हैं । दुश्मनों का कुछ बिगाड़ने के लिए कलेजे में हिम्मत व स्वयं को न्यौछावर करने की सनक होनी चाहिए लेकिन ये तो अपनों को ही धमकियां देकर अपने बहादुर होने का परिचय दे रहे हैं ।
         आर्य वैदिक हिन्दुत्व की जीवनशैली सदैव से ही वाद-विवाद, खण्डन-मण्डन एवं शास्त्रार्थ से आगे बढ़ने की रही है । हम जो कह रहे हैं वही ठीक है, बाकी सब झूठ है । हम किसी की सुनते ही नहीं । किसी बैठक या सभा में विचार-विमर्श से पूर्व ही निर्णन सुना देना हिन्दुत्व नहीं है । हिन्दू तो सांसारिक जीवन को खुशहाल बनाने हेतु किसी समस्या के प्रत्येक पहलू पर खूब तर्क-वितर्क करता है तथा विरोधी पक्षों को भी पूरा सम्मान देता है । मेरा कहा सही है तथा अन्यों का कहा सब गलत है । यह हिन्दुत्व कतई नहीं है। ऐसे लोग हिन्दुत्व का इतना नुकसान कर रहे हैं कि जिसकी कोई सीमा नहीं है और अब तो सत्ता भी इनके हाथों में आ गई है। सोचा तो यह था कि तेरह सदी के पश्चात् अच्छे दिन हिन्दुत्व के आ ही गए लेकिन जब हिन्दुत्व के हित की बातें करने पर खूब लताड़, गालियां व निकृष्ट उपाधियां मिलीं तो भ्रम टूटा । पता चला कि अभी तो र्सिु सत्ता का हस्तान्तरण हुआ है, शासन करने के ढंग पूर्ववत् फिरंगी, मुगलिया व कांग्रेसी ही हैं । अब राष्ट्रवादी ही कह रहे हैं कि धारा 370, समान नागरिक संहिता, राममन्दि निर्माण, गौहत्या पाबन्दी, हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में लागू करना, हिन्दुत्व की बातें करना, नैतिक व योग सम्बन्धी ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन भारतीय शिक्षा-संस्थानों में शुरू करवाना, दर्शनशास्त्र विषय की गरिमा वापिस लौटाना, भारतीय चिकित्सा व खेतीबाड़ी की चिन्ता करना, महंगाई पर काबू पाना, किसानों की स्थिति को सुधारना तथा भ्रष्टाचरण पर काबू पाना आदि की बातें अब कोई भी कुछ मत कहो । यदि किसी ने कुछ कहने का प्रयास किया तो समझो उसे हिन्दू विरोधी, सेक्युलर, कांग्रेसी, साम्यवादी, कटुआ, मुल्ला आदि कहकर अपमानित किया जायेगा । ये कैसे राष्ट्रवादी हैं कि जो आलोचना को भी नहीं सुनना चाहते? खण्ड-खण्ड की बातें कर रहे हैं ये। अखण्ड की बातों से इन्हें चिढ़ है। इसी सोच व आचरण ने भारत को तेरह सदी तक गुलाम बनाए रखा था और अब भी वही मूढ़ता चलाने का प्रयास हो रहा है । इस फतवागिरी से सावधान । आर्य वैदिक सनातन हिन्दू की मूल-भावना को जीवित रखें तथा विदेशी व देशी षड्यन्त्रकारियों से सावधान रहें । जागो हिन्दुओं जागो ।

-आचार्य शीलक राम
मो. 9813013065,
      8901013065