Saturday, July 16, 2016

सब झूठ के पुजारी

 
किसी भी कर्म का फल नहीं मिला।
आरंभ से ही यह चल रहा सिलसिला।।
अच्छा करके सदैव मिली बर्बादी।
छिन गई सारी आशाएं, आजादी।।

सारी आशाएं मिल चुकी धूल।
मेरे सब हो चूके हैं प्रतिकूल।।
साथ देने में सब पीछे रहते।
पूरा स्वार्थ कर मुझे बुरा कहते।।

कोई भी नहीं मर्यादा मानते।
काम पूरा हो फिर नहीं जानते।।
सबको अपने-अपने से मतलब।
मित्र दु¢खी उन्हें यह चिंता कब।।

सीढ़ी बनाने को सब उत्सुक।
बना दिया उन सबने भिक्षुक।।
सच कहो तो हो जाते नाराज।
झूठ के पूजक हैं सब आज।।

कपट नहीं कर सकता सच्चा मित्र।
एक समान होता वह बाहर-भीतर।।
ऐसे मित्रों की समझे कोई कीमत।
केवल वो समझे, करे जो हिम्मत।।

कहां हैं ऐसे समझाने वाले।
उपर से मित्र भीतर से काले।।
झूठों के सब झूठे हैं दावे।
है कोई जो इनको समझावे।।

दृष्टि रखते अपने हित पर।
अपने हो जाएं चाहे इससे बेघर।।
मित्र हित को माने झमेला।
सच्चा मित्र जग में अकेला।।

लोग सरल हैं, यहां पर कितने।
क्यों तत्पर हैं, मरने-मिटने।।
सीख लो अवश्य कुटिलता प्यारे।
नही ंतो जीओगे किसके सहारे।।

तुम दोगे, देगा कोई अन्य।
बनकर टेढ़ा, हो जाओ धन्य।।
अस्तित्व भी मदद करेगा तुम्हारी।
स्वर्णिम सीख यही है हमारी।।

सीधे वृक्ष यहां शीघ्र कटते हैं।
टेढ़े-मेढ़े ही जाते डटते हैं।।
सरल-सहज का भी यही हाल है।
ले जाता उनको शीघ्र काल है।।

विश्व के संघर्ष में यदि डटना है।
विरोधी लोगों से नहीं पिटना है।।
चाणक्य कुटिलता तुम अपनाओ।
मिलेगी सफलता कहीं भी जाओ।।
समझे कौन यहां मेरी पीड़ा।
हर पथ होता रहा भीड़ा।।
संकट में हूं कतई अकेला।
अन्यथा यहां सदा रहता मेला।।
-आचार्य शीलक राम

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