Sunday, February 14, 2016

जाग हिंदू जाग

जाग हिंदू -मत भाग हिंदू
यदि दुनिया में तुझे रहना है!!
मार हिंदू - मत हार हिंदू
यदि दुनिया को कुछ कहना है!!
हमला कर हिंदु -जलाकर हिंदू
चरैवेति चरैवेति यहां बहना है!!
कुछ कर हिंदू -डर मत हिंदू
कायरता जुल्म को सहना है!!
आक्रामक हिंदू -झुक मत हिंदू
किला दुशमन का ढहना है!!
अपना जो हिंदू- खपना वहां हिंदू
गहरी मार से विरोधी गह ना है!!
मिट जा हिंदू -डट जा हिंदू 
गद्दारों से जरुर तुझे खहना है!!
मारकर हिंदू -उद्धार कर हिंदू
मारकर ही उत्तर तुझे कहना है!!
हिंसा भी हिंदू -अहिंसा भी हिंदू
कपटी दुश्मन की कोई तह ना है!!
करुणा उनके साथ -जो बढाएं प्रेम हाथ
देशद्रोहियों को रावण मान दहना है!!
याद कर रुद्र -ब्राहमण से शूद्र
सब हेतु दुश्मनों से जा फहना है!!
यह जान हिंदू -तू ब्रह्म बिंदू
समस्त धरा पर तुझ हेतु ' डर' ना है!!
शिव व राम कीऔलाद- तू बना फौलाद
दशों दिशाओं में तुम्हें कोई भय ना है!!
अब छोड शील को -कर दूर भारत शूल को
इस जगत में सिर उठा तुझे अब रहना है!! 
                                                -आचार्य शीलक राम


Saturday, February 13, 2016

आर्य हिन्दू भारतीय कौन?

सनातन से जो इस धरावासी, उनको हिन्दू जान।
करोडो वर्ष से यहां रह्ते आए, बिना किसी व्यवधान॥
जिससे सब मत उत्पन्न हुए, ईसाई पारसी, मुसलमान।
यहुदियों का भी निकास जहां से, उनको ले हिन्दू पहचान॥
यहुदी, पारसी, ईसाई सभी ही, या सुन  लो मुसलमान।
भारत से ही ये गए सभी हैं, भिन्न-भिन्न काल के मान॥
जेन्द अवेस्ता भी नकल वेद की, बाईबल नई या पुरानी।
हिन्दू नकल पर कुरान रची है, कर-करके बेईमानी॥
आर्य हिन्दू उन्हे कहा जाता, जो इन सबकी है माता।
एक बेल को मीठे-खट्टे फल, धर्म सनातन को कहा जाता॥
भू-सांस्कृतिक-गुण अवधारणा, आर्य हिन्दू भारत की।
अपने संग करो हित अन्य का, स्वार्थ संग परमार्थ की॥
विरोधाभासी आर्य हिन्दू का जीवन, माने प्रकृति को माता।
फूल व कांटे जरुरी साथ-साथ, नियम इन्हें कह विधाता॥
विरोधाभास में जीवन जीना सीखा, इन्हीं को मूल तत्व माना।
आर्य हिन्दू वह कहलाए भारतीय, रहस्य संसार का जाना॥
किसी भी पथ से चलना चाहे, किसी को करे स्वीकार।
आर्य हिन्दू वह कहलाए भारतीय, रहस्य संसार का जाना॥
करुणा संग कट्टरता जिसमें, अवसर के अनुसार।
आर्य हिन्दू वह भारतीय है, जो उचित करे इनका समाहार॥
परम धर्म अहिंसा को कहता, तत्पर हिंसा धर्म रक्षा को।
आर्य हिन्दू उसको कहा जाता, जो अपनाए इसी शिक्षा को॥
आतंकवाद को जो दे न बढावा, पर सक्षम विनास करने को।
मरने संग मारना भी आता, तत्पर परपीडा हरने को॥
आतंकवाद है पंथों का कुपुत्र, यहुदी, पारसी या ईसाई।
मुसलमान बस आंतक का पथ है, निर्दोष हिंसा जिसने बढाई॥
आर्य हिन्दू भारत धर्म है, सनातन से जो चला आता।
बाकि इसके सभी पंथ या मत है, यह सब इनका बाप कहलाता॥
जिस धर्म में अनेक पंथ हैं, भिन्न प्रकार के विचार।
आर्य हिन्दू वह कहलाए भारत, जिसका दर्शनशास्त्र सर्व स्वीकार॥
                                                                  -आचार्य शीलक राम

"बारहमासा"


चैत्रमे चित चिंतित, चंचल चहु चकोर।
प्रिया बिन सब सूना लगे, ना सुझे कौर॥
वैशाखवैरी विष समान, वल्लरी बन विलगाय।
दोबारा फूल खिलेंगे तभी, अनुकूल रितु को पाय॥
ज्येष्ठ; ज्वाला ज्वर जवान, तन-मन लागी आग।
प्रेम में बस यह दिया है, मिले दाग ही दाग॥
आषाढ आया आम्र-बौर, आग आक्रोश आकार।
अकेला मैं सुनो प्रिये, असहाय हर प्रकार॥
श्रावणसारा सम शशि, शीश लगे पूछ ओर।
वह तो करे सब प्रेमवश, सुप्रभात बुरा दौर॥
भाद्रपदभया भ्रमपूर्णभय की शुरुआत।
विरहाग्नि प्रबल हुईलगी अंग-अंग खात॥
आसौजआया चौमासा गया, रहा खाली का खाली।
समाज-मर्यादा प्रधान रही, प्रिया कोयल मतवाली॥
कार्तिककमनीय कौमार्य, काम लगे हर अंग।
पल-पल मैं यही सोचता, स्यात मिले प्रिया संग॥
मार्गशीर्षमर्ममय मन, मैं मर्माहत मतंग।
मारा-मारा मर रहाकब जीत मिले प्रेम जंग॥
पौषप्रिया पास नहीं, परे-परे जाती जाए।
प्राण निकलकर अटके हलक, मरणासन्न कहलाए॥
माघमारा मर रहा मैं, मिमियाना गया बेकार।
जनता-जनार्दन को सुने नहीं, चुनी हुई सराकार॥
फाळ्गुनफंसा फहमी गलत, बस आश्वासन मिलते।
षड रितु, बारहमाश अरि; क्यों पूल प्रेम के खिलते॥
                                              -आचार्य शीलक राम