तेरह सदी की गुलामी, मुगलिया दुष्प्रभाव, पाश्चात्य पूर्वाग्रही सोच, साम्यवादी आतंकी चिन्तन तथा कांग्रेसी सेक्युलरी प्रभाव की वजह से हमारे राष्ट्र के लोगों पर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की मूढ़ता सवार है । यह मूढ़ता शिक्षित लोगों पर विशेष रूप से हावी है । अनपढ़, कम शिक्षित व अन्य व्यक्ति तो शिक्षितों की सोच से ही प्रभावित होते हैं । इन शिक्षितों को ही सभी अपना आदर्श मानते हैं तथा इन्हीं के सुझाए व बताए रास्ते पर चलने का प्रयास करते हैं । जब इन तथाकथित शिक्षितों में ही हीनभावना कूट-कूटकर भरी हुई है तो अन्य भारतीय नागरिकों की मनःस्थिति क्या होगी, इसके सम्बन्ध में अलग से कहने की कोई विशेष जरूरत नहीं है । अपने समृद्ध अतीत को गालियां देना, अपने समृद्ध अतीत को पिछड़ा हुआ मानना, अपने समृद्ध अतीत को देहाती व गंवार कहना, अपने समृद्ध अतीत को सपेरों व ओझाओं तक सीमित करके देखना, अपने समृद्ध अतीत को विज्ञान से रहित सिद्ध करके विचार रखना, अपने समृद्ध अतीत को राष्ट्र की भावना व सोच से रहित मानना तथा हर प्रसंग में अपने समृद्ध अतीत को कूपमंडूक कहते रहना हमारे दार्शनिकों, विचारकों, चिन्तकों, इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों, शिक्षाविदों, राजनेताओं नौकरशाहों एवं रणनीतिकारों की एक आदत सी बन गई है । कितनी बड़ी विडंबना है कि अमेरिका, आस्टेªलिया, इंग्लैण्ड आदि देश अपने समृद्ध अतीत के बिना ही उसे समृद्ध व स्वर्णिम सिद्ध करके उसे ही अपने शिक्षा-संस्थानों में पढ़ाते हैं लेकिन हमारे भारत में इसके कतई विपरीत हो रहा है । हमारे यहां वास्तव में समृद्ध अतीत होने के बावजूद भी उसे दयनीय, हीन, निम्न, अवैज्ञानिक एवं कूड़ा-कर्कट सिद्ध किया जा रहा है । हमारे भारत में शिक्षित व्यक्ति वह कार्य कर रहे हैं जिससे हरेक कदम पर राष्ट्र का अपमान होता हो । अमेरिका व आस्टेªलिया में बाहर से गए ईसाई हमलावरों ने वहां-वहां कब्जा कर लिया तथा वहां के मूल निवासियों की सभ्यता, संस्कृति, जीवनमूल्यों व अस्तित्व को समाप्त कर डाला । इसके बावजूद भी वे इन नरसंहारों के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं बोलते हैं तथा मनमाने ढंग से झूठ बोलकर अपने इतिहास को प्रस्तुत करते हैं । इंग्लैण्ड, फ्रांस, पुर्तगाल आदि देशों ने एशिया व अफ्रीका महाद्वीपों में अपने उपनिवेश स्थापित करके करोड़ों निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया तथा वहां की अमूल्य सम्पदा को लूट-लूटकर अपने-अपने देशों को समृद्ध बनाया। इस घोर कुकर्म के सम्बन्ध में भी ये देश अपने अतीत की निन्दा न करके उसे सही व नैतिक ठहराते है। अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, पुर्तगाल आदि देशों द्वारा किए गए कुकर्मों का सर्वाधिक खामियाजा भारत को भुगतना पड़ा है । इन देशों के कुकर्मों के सम्बन्ध में हमारे शिक्षित भाई कुछ नहीं कहते है । पिछलग्गूपन की इनकी मानसिकता इन पर इतनी हावी है कि ये इससे प्रभावित होकर पश्चिम के सारे कूड़े कचरे को वैज्ञानिक व स्वर्णिम मानते हैं तथा भारत के वैज्ञानिक, स्वर्णिम एवं हितकारी को मूढ़तापूर्ण मानते हैं । एक तरह से भारत में तो शिक्षित होने का अर्थ ही नहीं है कि अपने समृद्ध अतीत की नकारकर उसकी निन्दा करो या उसकी खिल्ली उड़ाओ । आजादी के बाद हमारे ये पढ़े-लिखे लोग यही सब कर रहे हैं । अभी-अभी हमारे मानवीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी अमेरिका की यात्रा पर गए तो वहां पर उन्होंने भारत के अतीत की व्याख्या सपेरों से करने की बात कही। इसी का अनूकरण करके तथा अपनी मानसिकता के अनुकूल उन्होंने भारत के मंगल ग्रह अभियान का मजाक उड़ाया । प्रधानमंत्री जी को यह सोचकर ब्यान देना चाहिए या कि सपेरों का देश ‘विश्वगुरु’ कैसे हो सकता है? राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की विचारधारा के नीेचे पला-बढ़ा व्यक्ति ऐसी भाषा का प्रयोग करे ही क्योंकि जिससे भारत के अतीत को धूमिल किया जाता है ।
सारी दुनिया में आज जो भी भवन निर्माण विद्या का प्रचार-प्रसार हुआ है तथा इसके अनुसार जो भी प्राचीन भवन मौजूद हैं वे सारे के सारे हिन्दुओं द्वारा निर्मित है । आज भी अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, एशिया आदि महाद्वीपों में पुराने किसी भी प्रकार के भवन मौजुद हैं वे सभी के सभी हिन्दुओं द्वारा निर्मित है । किसी समय वहां पर आर्य हिन्दू ही निवास करते थे । इन सभी महाद्वीपों में स्थित किले, भवन, आवास, मीनारें, मन्दिर, मस्जिद, चर्च आदि सभी के सभी पूर्व में आर्य हिन्दुओं द्वारा निर्मित भवन ही हैं । बाद में इन भवनों को यहुदी, ईसाई व इस्लामी रूप दे दिया गया । आज भी इन भवनों की ऊपरी परतों को उखाड़कर देखा जाए तो आर्य हिन्दू का अंश छिपा हुआ मिला जाएगा । मक्का-मदीना वे वेटिकल शहरी पूरी तरह से आर्य हिन्दू है । अमेरिका, आस्टेªलिया, अफ्रीका तथा एशिया की भूमि पर जगह-जगह शिव, दुर्गा, कृष्ण आदि की मूत्र्तियां मिली हैं । ये मूत्र्तियां पांच हजार वर्ष से लेकर 10-12 हजार तक पुरानी है । अमेरिका में जब ईसाई पहली बार गए तो वहां, के मूल निवासी जिन्हें पश्चिमी विचारकों ने ‘रैड इंडियंस’ कहा है वे मूलतः भारत से गए हुए आर्य हिन्दू ही थे । ईसाईयों ने उम रैड इंडियंस यानि आर्य हिन्दुओं की निर्ममता से हत्याएं करवाई तथा बचे-खुचों को जंगलों में प्रवास करने को विवश कर दिया । बताते हैं कि हिटलर जो अपने आपको आर्य मानता या उसने कई करोड़ यहुदियों को इसीलिए मौत के घाट उतार डाला था क्योंकि उन यहुदियों ने ही अमेरिका में बसे रैड इंडियंस रूपी आर्यों का नरसंहार किया था जिनकी संख्या कई करोड़ थी । उसी का बदला लिया था हिटलर ने । हिटलर को तानाशाह, सनकी, पागल व ऐसा-वैसा घोषित करना ईसई व यहुदी विचारकों की मनमानी व भेदभावपूर्ण कपोल कल्पनाएं हैं । इन विचारकों ने एक तरफा विवरण दिया है, पूर्ण नहीं । इन विचारकों ने हिटलर का इतिहास तो दे दिया । लेकिन अमेरिकी मूल निवासियों व आस्टेªलियाई मूल निवासियों के हुए नरसंहारों का विवरण कतई नहीं दिया है । करोड़ों की संख्या में इन मूल निवासियों के नरसंहारों व उनकी संपत्ति की बेरहम लूटों के विवरणों को पूरी तरह से छिपा दिया है यहुदी, ईसाई व इस्लामी इतिहासकारों ने । संसार का सही इतिहास हिन्दुओं का इतिहास है लेकिन इसी को इन पूर्वाग्रही विचारकों व इतिहासकारों ने या तो कहा ही नहीं है या फिर उसे विकृत ढंग से कहा है ।
हमारे यहां के लेखक व विचारक गाय की महिमा को पाखंड कहकर उसकी खिल्ली उड़ाते हैं लेकिन पश्चिम के देशों में गौमूत्र के पेटेंट करवाए जा रहे हैं - उसकी औषधीय महत्ता को ध्यान में रखते हुए । भोपाल गैस त्रासदी के कतई मध्य में जहां अनेक लोक गैस के दुष्प्रभाव से मौत के मुंह में चले गए थे वहीं पर एक परिवार यज्ञ करते हुए गैस के प्रभाव से अछूता रहा । उसे कोई भी नुकसान नहीं हुआ । गाय के गोबर से लिपेट पुते घर में रेडियो विकरिण का भी प्रभाव बहुत कम होता है । ऐसे हजारों तथ्य है। जिनकी अनदेशी पाश्चात्य के साथ-साथ भारतीय लेखक व विचारक कर रहे हैं । जागो आर्य हिन्दुओं जागो ।
"आचार्य शीलक राम"
वैदिक योगशाला
कुरुक्षेत्र
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