प्रेम करने में भी इस जग सुनो
लगता है आरक्षण हो गया है!
जिसकी हमें चाहत थी यहां
पता नहीं वह कहां खो गया है!!
रुपये पैसे का सब खेल बावले
जिसके पास वह करे अय्यासी!
मेदांता, एसकोर्ट सपने ही सपने
फूटा कौडी नहीं यहां खुर्रा खांसी!!
राष्ट्रवाद कोई सैक्युलर नाम पर
भारत लूट के सुनो तरीके हैं सारे!
दुनिया के पास खर्चने को जगह नहीं
यहां रुपये मिलते नहीं मांगे से उधारे!!
निठल्ले जहां पर हों आदरणीय
जात न पूछे कोई प्रतिभावान की!
भूख, भय, गरीबी वहां निश्चित हों
इज्जत हो जहां मूढ, नादान की!!
केवल उपदेश नहीं किसी काम के
वायदे, आयोजन, घोषणाएं धोखा!
पेट भरना सुनो यहां हर रोज दिवाली
नहीं गिनती यहां कमती या चोखा!!
प्यार, प्रेम सुनो अमीरों के चोंचले
जीने का भी यहां जुगाड है मुश्किल!
कैसा, किसका, कब, कहां होता है
पैर, घुटने, पेट, सिर कहां पर है दिल!!
गुलाम, गुलाम, गुलाम हैं यहां पर
गुलामी ही लगता भाग्य हमारे!
अपने पास अपना कुछ न कहने को
हम फकीर बाकी अमीर यहां सारे!!
आचार्य
शीलक राम
वैदिक
योगशाला
nice
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