सत्यनिष्ठा,कर्त्तव्यपरायणता, विश्वसनीयता आदि नैतिक जीवन मूल्यों के साथ साथ अपनी संतान को इतनी तिकड़मबाजी, चापलूसी और झूठ बोलना अवश्य सिखला देना कि वो भ्रष्टाचार,कपट,छल और रिश्वतखोरी के परिवेश में सफलता की सीढ़ियां चढ सकें। जिनके हाथों में सिस्टम की बागडोर है,सच जानिये कि वो सभी के सभी परले दर्जे के भ्रष्टाचारी, झूठे, कपटी, चापलूस और गिरगिटिया चरित्र के स्वामी हैं। ऐसे दुषित सिस्टम और गले सड़े परिवेश में नैतिक जीवन-मूल्यों को पूछने वाला कोई भी नहीं है। जिनके हाथों में सिस्टम है वो सभी अपनी संतानों को बढ़िया शिक्षा के लिये विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिये भेज देते हैं और बाकी बचे भारतीयों को नैतिकता, राष्ट्रवाद, राष्ट्रप्रेम और स्वदेशी पर चलकर तथा भारत के ही सडे गले विश्वविद्यालयों में शिक्षा लेने को विवश करते हैं।कुछ धूर्तों ने कपटाचरण करके आरक्षण के द्वारा अपने निशुल्क भोजन, पानी, औषधि और शिक्षा की व्यवस्था कर ली है तो नेता,धर्मगुरु, प्रशासनिक अधिकारी और अमीर घरानों के हाथों में राजसत्ता, धर्मसत्ता और धनसत्ता की बागडोर है। इन्होंने अपने जीवन में हर प्रकार की खुशहाली की भरपूर व्यवस्था कर ली है। बाकी बचे हुये भारतीयों के पल्ले में गरीबी,कुशिक्षा, बदहाली,शोषण, प्रताड़ना , ज़ुल्म के सिवाय कुछ नहीं है।अब भी संभल जाओ। यहां पर तो राष्ट्रवाद के सपने दिखलाने वाले नेता ही सबसे बडे देशविरोधी हैं। स्वदेशी के नारे लगाने वाले नेता और धर्मगुरु विदेशी सामान का उपभोग करके अय्याशी कर रहे हैं। धर्म और नैतिकता की दुहाई देने वाले धर्मगुरु,संत,संन्यासी,स्वामी और गुरु लोग सबसे बड़े अधार्मिक और अनैतिक हैं।सच तो यह है कि हमारे भारत के अधिकांश नेता, धर्मगुरु, योगाचार्य,संत, स्वामी, संन्यासी,सद्गुरु और सुधारक आदि सबसे अधिक भ्रष्ट,कामुक, झूठे, कपटी,छली, धूर्त, विदेशी सामान के उपभोक्ता और अनैतिक हैं।
विश्वविद्यालयीन अध्ययन अध्यापन के दौरान पिछले डेढ दशक के दौरान हमने भी बेतहाशा ज़ुल्म, प्रताड़ना, अपमान, भेदभाव, जातिवाद और आर्थिक अभाव को झेला है। लेकिन हमने तो आत्महत्या नहीं की।हम तो डटे भी रहे हैं तथा जीवित भी रहे हैं।एक आईपीएस अधिकारी,उसकी आईएएस पत्नी, विदेश में बच्चे भी पढ़ रहे हैं,महंगे मकानों में रह रहे हैं तथा सरकार में पहुंच भी बहुत अधिक है - फिर भी प्रैसर को नहीं झेल पाये। काहे के आईपीएस और आईएएस अधिकारी हैं? इनकी यही ट्रैनिंग होती है कि प्रैसर आये तो आत्महत्या कर लेना? यहां विश्वविद्यालय में देखो - पीएचडी किये हुये हैं,कयी कयी विषयों में स्नातकोत्तर हैं। सैकड़ों रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुके हैं, पचासों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं,साथ में आयु और अनुभव के साथ एक चौथाई तनख्वाह भी नहीं मिल रही तथा सेवानिवृत्त होने पर भिखारी हो जाना पड़ेगा।इतने प्रैसर, अपमान, प्रताड़ना, भेदभाव और जातिवाद के बावजूद अपने शैक्षणिक कर्तव्य का नियमित निर्वहन कर रहे हैं।हम तो जीवित हैं,हम तो नहीं मरे, हमने तो आत्महत्या नहीं की।
सरकार और सिस्टम द्वारा प्रचारित कर्त्तव्यपरायणता और सत्यनिष्ठा का हमारे लिये कोई पारिश्रमिक नहीं है।इस तरह की बातें सिर्फ कागजों तक सीमित हैं।जिसको भी मौका मिलता है,वह सारी मर्यादाओं को ताक पर रखकर जमकर धन दौलत को एकत्र कर रहा है।इसीलिये तो मैं बार बार कह रहा हूं कि थोडा बहुत आचार्य कौटिल्य को भी पढ लिया करो। अपनी संतान को आचार्य कौटिल्य से अवश्य अवगत करवाना तथा उनसे कहना कि भ्रष्ट राजनीतिक सिस्टम में कर्त्तव्यपरायणता, सत्यनिष्ठा, स्पष्टता, मेहनत और उचित पारिश्रमिक के लिये कोई स्थान नहीं है।आप,आपकी संतान और आपके निकट संबंधी तक भूखों मर जायेंगे। कोई भी पूछनेवाला नहीं होगा।यह दुनिया ऐसी ही है। यहां सभी उगते सूरज को सलाम करते हैं। मुसीबत पड़ने पर सबसे पहले वहीं मित्र साथ छोड़कर भागेंगे जिन्होंने हर हाल में साथ निभाने की कसमें खाईं थीं। यदि सिस्टम ठीक है तो आप भी ठीक रहना लेकिन यदि सिस्टम भ्रष्ट है तो फिर सिस्टम के साथ ही चलना बेहतर है।
यदि देह में कोई कमी आ जाये तो शुद्धि आदि करके उसको निरोग करना होता है,उस देह से अलग होकर उसको गालियां देना कोई समाधान नहीं है। और फिर यह ध्यान रहे कि महावीर, बौद्ध, चार्वाक आदि सभी सनातनी ही थे, उन्होंने किसी मजहब की स्थापना नहीं की थी। उनके देहावसान के पश्चात् यह दुकानदारी शुरू हुई थी।कुछ लोग अलग अलग नामों से यह दुकानदारी आज भी कर रहे हैं।एक ही पहलू से मत सोचो अपितु अन्य पहलुओं से भी सोचने का प्रयास करो। बाकी कुछ लोगों को गाली गलौज करने, कमियां निकालने और अपमान करने का संवैधानिक अधिकार मिला हुआ है।इस भेदभाव पर उनकी जबान पर ताले लग जाते हैं।आज जो लोग जातिवाद, सांप्रदायिकता, ऊंच-नीच और छुआछूत के नारे लगा रहे हैं,वो ही सबसे बडे जातिवादी, सांप्रदायिक, भेदभाव को प्रश्रय देने वाले और छुआछूत को बढ़ावा देने वाले हैं।
कम या अधिक संख्या में स्वार्थी, निठल्ले और धूर्त लोग सदैव रहे हैं।आज भी हैं और आगे भी रहेंगे।एक बहुत बड़ा सवाल यह भी है कि जिनका अतीत में शोषण हुआ था,वो शोषण के विरोध में खड़े क्यों नहीं हुये? क्या इतने कमजोर थे कि आवाज भी न उठा पाये? ज्ञात इतिहास में विरोध का कोई उदाहरण उपलब्ध नहीं है। कहीं यह तो नहीं है कि कुछ लोगों को मुफ्त का खाने, पीने,रहने आदि की पहले से ही लत पडी हुई है। अपनी इस लत को स्वीकार न करके औरों पर दोषारोपण करके खुद को बचाकर निकल जाने का जुगाड करने के नये नये तरीके तलाश किये जा रहे हैं!
आज राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, हरियाणा के मुख्यमंत्री आदि सभी दबे कुचले वर्ग हैं लेकिन फिर भी गाली गलौज किया जा रहा है।अरे भाई और क्या चाहिए?अब तो शासन प्रशासन सब तुम्हारा है।अब भी भेदभाव, ऊंच-नीच और प्रताड़ना क्यों हैं?कभी अपने वर्ग के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के विरोध में धरना प्रदर्शन करो कि हमारे ऊपर अत्याचार क्यों हो रहे हैं? लेकिन नहीं करेंगे और अब भी गालियां देंगे ब्राह्मण, बनिया,जाट, राजपूत आदि को।
कमी कहीं और नहीं अपितु कमी खुद में है।वह तो स्वीकार हो नहीं रहा,बस दोषारोपण शुरू। और इसके लिये वर्ग विशेष को संवैधानिक अधिकार मिले हुये हैं।जो सनातन से बाहर गये थे, क्या उनमें कमी नहीं थी?उनको दूध के धूले क्यों मान रहे हो?सारे प्रश्न सनातनियों से ही क्यों?जो स्वार्थ में भागकर गये थे, उनसे भी तो पूछो।
कमियां निकालकर गालियां देने का धंधा बन गया है।हर व्यवस्था में समय के साथ विकृतियां आना स्वाभाविक है लेकिन उनके सुधार और परिष्कार की जिम्मेदारी न उठाकर पूरी व्यवस्था को ही गालियां देना या गलत कहना ठीक नहीं है।और नयी व्यवस्थाएं जो बनी हैं, क्या उनमें कमियां नहीं हैं? फिर उनको भी छोड दो।
दलितों और पिछड़ों के साथ अन्याय की बातों को बढ़ा चढ़ाकर बताने के प्रयास अंग्रेजी काल की शुरुआत में हुये थे।दलित ही दलितों के विरोधी अधिक है।इस समय देख लो- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश दलित और पिछड़े वर्गों से हैं,इस समय पर दलित और पिछड़ों पर ज़ुल्म होने का कारण क्या दलित और पिछड़ों द्वारा शासित व्यवस्था नहीं है?लेकिन अब भी गालियां मनुस्मृति और ब्राह्मणों को दी जा रही हैं।मैं खुद पिछडे वर्ग से हूं। मुझे मेरे पिछड़े वर्ग वालों ने सदैव दबाकर रखने की कोशिश की है लेकिन मेरे ब्राह्मण,जाट आदि भाईयों ने मेरी सदैव मदद की है।हरियाणा में दलितों में भी दलित जातियों के दो दलित वर्ग बना दिए हैं। इसका विरोध सवर्ण नहीं अपितु खुद दलित ही कर रहे हैं तथा अपने ही अति दलित भाइयों को अधिकार नहीं देना चाहते।
जब खुद में कमी होती है तो दूसरे उसका फायदा उठाते हैं। दलितों में अपने खुद में भी कमियां रही हैं जिससे उन पर अत्याचार हुये तथा अब भी हो रहे हैं।पिछले 2500 वर्षों के कालखंड में अनेक दलित वर्ग के राजाओं ने राज किया है। दलित राजाओं के शासन में यदि दलितों पर अत्याचार होते रहे थे तो इसके लिए दलित ही जिम्मेदार अधिक हैं,सर्वण इतने जिम्मेदार नहीं थे। पिछले वर्षों के दौरान तथाकथित दलित वर्ग के लोग आये दिन सनातनी देवी देवताओं, मूल्यों, ग्रंथों, महापुरुषों को गालियां देकर अपमानित करते रहते हैं लेकिन इसके जुर्म के फलस्वरूप किसी पर भी प्राथमिकी दर्ज नहीं होती है। यदि कोई सवर्ण जातियों से संबंधित व्यक्ति दलितों के महापुरुषों, ग्रंथों या उनकी मान्यताओं पर जायज टिप्पणी भी कर देता है तो उस पर तुरंत एससी एसटी एक्ट के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज हो जाती है।यह भेदभाव क्या है? क्या समानता को मानने वाला संविधान इसकी इजाजत देता है? राजनीतिक दलों के नेता और दलित वर्गों के नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिये भारत को जातीय संघर्ष की तरफ धकेल रहे हैं।यह किसी भी तरह से राष्ट्रहित में नहीं है। इससे न तो दलितों का हित हो रहा है तथा न ही सवर्ण कहे जाने वालों का।इस भेदभाव, ज़ुल्म और नये प्रकार के जातिवाद पर रोक कौन लगायेगा? मुद्दा तो अधिकांश में भ्रष्टाचार, बलात्कार, स्वार्थ और कुछ अन्य ही होता है लेकिन उसे तुरंत जातीय रुप देकर जनमानस को एक दूसरे के विरोध में खड़ा करके सामाजिक ढांचे को कमजोर किया जा रहा है। अंग्रेजों द्वारा प्रदत्त जातीय महामारी को आजादी के पश्चात् किसी भी राजनीतिक दल से समाप्त करने का प्रयास नहीं किया है। इस मामले जितनी दोषी भाजपा है उतनी ही दोषी कांग्रेस भी है। अपने राजनीतिक फायदे के लिये जहां भाजपा मनु और मनुस्मृति की आड़ लेकर सनातन धर्म और संस्कृति को कमजोर कर रही है वहीं पर कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी मनु, मनुस्मृति और मनुवाद की आड़ लेकर सनातन धर्म और संस्कृति को गालियां दे रहे हैं। बाकी दल और नेता तो अपने फायदे के लिये पलटी मारकर कभी कांग्रेस में और कभी भाजपा के पाले में जाकर बैठ जाते हैं।इस राष्ट्रविरोधी घटिया खेल में ये और इनके साथी अमीर घराने तथा धर्माचार्य और सुधारक तो भरपूर अय्याशी कर रहे हैं लेकिन भारत, भारतीय और भारतीयता कमजोर होते जा रहे हैं।
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र- विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119
