इस दुनिया म्हं पहला 'दर्शनशास्त्र' भारत नैं दिया था।जै किसै कै कोये शक संदेह हो तै ऋग्वेद का नासदीय सूक्त और पुरुष सूक्त पढकै देख ल्यो।ज्यब या सृष्टि पैदा हुई, परमात्मा हैं हर तरहां का ज्ञान चार वेदां म्हं छंद रश्मियां के रूप म्हं दे दिया था।ब्यना ज्ञान के सृष्टि पैदा करण का कोये मतलब कोन्यां होत्ता।बस,इस्सै नैं ध्यान म्हं रखकै परमात्मा नैं सब तरहां का ज्ञान माणस सृष्टि बणाण के बख्त दे दिया था।वेद आज के कोन्यां।आज तैं एक अरब छाणवैं करोड़ आठ लाख तरेपन हजार एक सौ पच्चीस साल पहल्यां वेद दिये गये थे।सोच्चण,समझण अर किस्सै निर्णय पै पहोंचण खात्यर दर्शनशास्त्र का ज्ञान सबतैं जरूरी सै। परमपिता नैं जो वेद दिये थे,वै सबतैं पहल्यां चार ऋषि अग्नि, वायु,आदित्य अर अंगिका नैं साक्षात् करकै कट्ठे करकै एक जगहां पै बांधण का काम करया था।वै चारुं ऋषि दुनिया के सबतै पहले दार्शनिक थे।उन ऋषियां नैं अर उनके पाच्छै आज ताईं ब्रह्मा आदि हजारां ऋषियां नैं वेदां का प्रचार -प्रसार करकै सारी सृष्टि म्हं ज्ञान देवण का काम करया सै। तर्क करण, विचार करण, प्रमाण गैल्यां बात कहण, प्रश्न ठावण, बुद्धि तैं सोचकै निर्णय लेवण, समस्या की तह म्हं जाकै कारण नै टोहवण की परंपरा सारी दुनिया म्हं भारत के ऋषियां नैं फैलाई सै।आज अंग्रेजी शिक्षा कै प्रभाव म्हं कोये कुछ बी कहता रहवै,पर साच्ची बात याहे सै जो मनैं ऊप्पर बताई सै।
युनानी,रोमन,मिश्री,अरबी,चीनी, जापानी,अफ्रीकन जिसे सारे दर्शनां के मां,बाब्बू अर गुरु सब कुछ भारतीय दर्शनशास्त्र सै। युनानी थैलीज तैं लेकै सोफिस्ट,सुकरात, प्लेटो,अरस्तू ताईं, युनानी विचारकां के नक्शे-कदम पै चाल्लण आले अरबी विचारक, इस्लामी विचारक, यहुदी विचारक, ईरानी विचारक, ईसाई विचारक अंसेलम, बुद्धिवादी और अनुभववादी विचारक, युरोपीयन विचारक,अमेरिकी विचारक, आलोचनात्मक विचारक, अस्तित्ववादी विचारक, नारीवादी विचारक, समकालीन उच्छृंखल विचारक आदि सारे के सारे भारतीय दर्शनशास्त्र के ऋणी सैं। भारतीय दर्शनशास्त्र की किस्सै एक बात नैं पकडकै हनुमान की पूंछ की तरियां बढाकै दुनिया कै आग्गै धर देसैं।धन, दौलत अर प्रचार का जुगाड इन धोरै सैए। इसके हांगे तैं ये कुछ बी मनमाना करते आरे सैं अर इब बी करण लागरे सैं।
आज तैं 5000-6000 साल पहल्यां सृष्टि के मूल म्हं काम करण आले वेद सिद्धांत बतावण खात्यर छह दर्शनां का निर्माण करया गया था। मीमांसा दर्शनशास्त्र जैमिनी नैं,वैशेषिक दर्शनशास्त्र कणाद नैं, न्याय दर्शनशास्त्र गौतम नैं, सांख्य दर्शनशास्त्र कपिल नैं,योग दर्शनशास्त्र पतंजलि नैं अर वेदांत दर्शनशास्त्र बादरायण व्यास नैं ल्यक्खे थे।ये छहों दर्शनशास्त्र सूत्ररुप म्हं सैं।पाच्छै इनपै हजारां की संख्या म्हं भाष्य,टीका, व्याख्या आदि करे गये। भारतीय दर्शनशास्त्र के ये सारे ग्रंथ दुनिया के दर्शनशास्त्र के प्रेरणास्रोत रहे सैं।बस जरूरत सै इननैं पड्ढण,ल्यक्खण अर हर रोज के चालचलण म्हं उतारण की।ऊप्पर जिन छह दर्शनां का ज्यक्रा करया गया सै,उनम्हं कर्म कारण, उपादान कारण,प्रमाण कारण, सृष्टि बणावण की विधि अर प्रकृति पुरुष विवेक, योग-साधना कारण अर मूलनिमित्त कारण का भेद खोल्या गया सै। दुनिया के सारे दर्शनशास्त्र पाछले हजारां सालां तैं योए काम करण लागरे सैं।
अब्राहमिक संस्कृति क्योंके एकतरफा भोगवादी भौतिकवादी सै, इसलिये इसके दर्शनशास्त्र नैं फिलासफी कहवैं सैं।इस म्हं कोरे विचारां की कबड्डी घणी हो सै अर जीवन म्हं उतारकै उसै अनुसार जीवन जीण की कोये बी जरूरत ना समझी जाती।इसनैं इस्सै खात्यर भौतिकवादी फिलासफी बी कहवैं सैं।इननैं बाहरी संसार की सुख सुविधा तैं वास्ता खणा हो सै अर चेतना आदि लेणा देणा बहोत कम हो सै।अपणे स्वार्थ नैं पूरा करण खात्यर ये लोग किस्सै गैल्यां कुछ बी धोखाधड़ी अर विश्वासघात कर सकैं सैं।इस्सै उपयोगितावादी अर धोखाधड़ी की फिलासफी तैं प्रभावित होकै यवनां,अंग्रेजां,पुर्तगालियां,डच्चां,
डैनिसां,मंगोलां,मुगलां,अरबियां नैं दूसरे देशां म्हं जाकै खूब हमले करकै उन पै कब्जा करकै तानाशाही तैं हजारां सालां तै राज करया सै। दुनिया के इतिहास नैं पढकै कोये बी इस सच्चाई नैं जाण सकै सै। भारतीय दर्शनशास्त्र नैं कदे बी इसी घटिया, मारकाट मचाववण की, नरसंहार करण की ,बहन बेटियां की इज्जत आबरो नैं लूट्टण की,पूजा स्थलां नैं बर्बाद करण की अर ज्ञान के केंद्रा नैं जलावण की सीख कोन्यां दी सै। भारतीय दर्शनशास्त्र अर युनानी फिलासफी का यो भेद बहोत बड्डा सै।यो आज बी चालरया सै।
सही बात तैं या सै अक भारतीय दर्शनशास्त्र सदा तैं जीवण दर्शनशास्त्र रहया सै अर युनानी फिलासफी सदा तैं कोरे विचारां की कबड्डी रही सै। भारत म्हं दर्शनशास्त्र की जितणी बी शाखा प्रशाखा सैं,सारियां के मान्नण आले अनुयायियां की करोडां म्हं संख्या रही सै। युनानी अर युनानी फिलासफी तैं जन्मी पाश्चात्य फिलासफी म्हं या बात देक्खण नैं कोन्यां म्यलती। इस्सै खात्यर हजारां लाक्खां साल पुराणा भारतीय दर्शनशास्त्र आज बी दुनिया का सबतैं बढ़िया, सृजनात्मक, रचनात्मक,कृण्वंतो विश्वमार्यम् ,वसुधैव कुटुंबकम् नैं मान्नण जाणन आला दर्शनशास्त्र सै। दुनिया म्हं शांति,सद्भाव,भाईचारे, समन्वय,प्रेम, करुणा नैं फलावण खात्यर केवलमात्र भारतीय दर्शनशास्त्र तैं आशा बचरी सै।यो काम जितणे तकाजे तैं होज्या उतणाए बढ़िया सै।
युनानी,मिश्री, रोमन,अरबी,चीनी फिलासफी का प्रेरणास्रोत तै भारतीय दर्शनशास्त्र रहा ए सै, इसके साथ म्हं खुद भारत म्हं बी भारतीय दर्शनशास्त्र तैं प्रेरणा लेकै घणेए दर्शनशास्त्र पैदा होये। उनम्हं बृहस्पति,चार्वाक,मक्खली गौशाला,संजय वेलट्टिपुत्त,प्रकुध कात्यायन,निर्ग्रंथ नाथपुत्त,सिद्धार्थ बुद्ध,गौतम बुद्ध,तंत्र की विभिन्न शाखाएं,भागवत्,त्रैतवाद,द्वैतवाद, अद्वैतवाद,विशिष्टाद्वैतवाद,
शुद्धाद्वैतवाद,द्वैताद्वैतवाद,
शब्दाद्वैतवाद,शक्त्याद्वैतवाद,अचि़त्यभेदाभेदवाद आदि दर्शनशास्त्र दुनिया म्हं प्रसिद्ध सैं। वर्तमान काल म्हं बी भारतीय दर्शनशास्त्र म्हं महर्षि दयानंद , विवेकानंद,अरविन्द,रमण महर्षि, रविन्द्र नाथ , गांधी, जिद्दू कृष्णमूर्ति, ओशो रजनीश,श्रीराम शर्मा आचार्य, राजीव भाई दीक्षित,आचार्य बैद्यनाथ शास्त्री, राधाकृष्णन, कृष्णचंद्र भट्टाचार्य ,सावरकर, अंबेडकर,आचार्य अग्निव्रत आदि सैकड़ों विचारकां अर दार्शनिकां नैं महत्वपूर्ण योगदान दिया सै।
पहल्यां के समय पै सरकारी व्यवस्था धर्म, संस्कृति,योग, अध्यात्म, दर्शनशास्त्र,नैतिकता, तर्कशास्त्र,आयुर्वेद नैं घणाए महत्व दिया करती।पर इस समय भारत म्हं इनकी हालत बहोत खराब होरी सै।
महाभारत तैं पहल्यां के दार्शनिकां नैन जै छोड बी द्यां तै अर पाछले पांच छह हजार साल की बात करां तै भारतभूमि नैं हजारां प्रामाणिक दार्शनिक दिये सैं।उन म्हं जैमिनी, कणाद,गौतम,कपिल पतंजलि ,बादरायण व्यास, महर्षि वेदव्यास, गौड़पाद, गोविंदपाद,कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गौड़पादाचार्य, शंकराचार्य, प्रभाकर,नागार्जुन,धर्मकीर्ति, अश्वघोष,चंद्र कीर्ति,असंग,वसुबंधु, शान्तरक्षित, आर्यदेव, दिग्नाग,कुंदकुंदाचार्य, उमास्वाति, अकलंक,सिद्धसेन दिवाकर, हरिभद्र ,ईश्वर कृष्ण, विज्ञानभिक्षु, वाचस्पति मिश्र, वात्स्यायन,उद्योतकर,उदयन, जयंत भट्ट,गंगेश उपाध्याय,श्रीधर,,श्री हर्ष,प्रकाशानंद, रामानुजाचार्य,वेंकटनाथ, माध्वाचार्य, जयतीर्थ,व्यास देव, निंबार्क आचार्य, वल्लभाचार्य, वसुगुप्त, अभिनव गुप्त, भास्कराचार्य जिसे हजारां दार्शनिक होये सैं।इननैं संसार अर संसार तैं पार के विषयां पै उट्ठण आली सारी समस्यां पै गंभीरता तैं मात्थापच्ची करकै नये नये विचार ,सिद्धांत अर निष्कर्ष दुनिया के आग्गै रक्खे सैं।
भारतीय दर्शनशास्त्र म्हं एक दौर वो बी आया ज्यब चार्वाक अर तंत्र की आड़ लेकै घणेए इसे दर्शनशास्त्री पैदा होगे,जिननैं सनातन धर्म,संस्कृति अर दर्शनशास्त्र पै ए हमले शुरू कर दिये थे।इन सबनैं शास्त्रार्थ म्हं पराजित करकै दोबारा तैं सनातन धर्म,संस्कृति अर दर्शनशास्त्र नैं स्थापित करण का काम कुमारिल, मंडन मिश्र अर शंकराचार्य नै करया था।
भारतीय दर्शनशास्त्र दुनिया का एकमात्र इसा दर्शनशास्त्र सै,जिसम्हं वैचारिक आजादी मौजूद सै। बाकी के किसै बी दर्शनशास्त्र म्हं थोड़ी बहोत आजादी तै म्यलज्यागी,पर भारतीय दर्शनशास्त्र जितणी आजादी कितै बी कोन्यां म्यलती। युनानी फिलासफी म्हं बी आजादी कोन्यां दिखती।जै उडै वैचारिक आजादी होती तै सुकरात जहर देकै ना मारा जाता। भारत म्हं तै वैचारिक आजादी इतणी सै अक परमात्मा नैं नकारण आले बृहस्पति को गुरुआं का गुरु अर महर्षि कहया गया सै।खुद शंकराचार्य नैं साठ से अधिक संप्रदायां गैल्यां शास्त्रार्थ करया था। सिद्धार्थ बुद्ध के समय पै बी सैकडां मत अर संप्रदाय मौजूद थे।इस तरहां का यो विचारां,मतां अर संप्रदायां की स्थापना करकै फलण फूलण की आजादी भारत में पहल्यां बी थी,आज भी सै अर आग्गे बी रहण की आशा सै।पर वैचारिक आजादी का ज्यब ज्यब भारत की एकता अर अखंडता खात्यर दुरुपयोग होया तै उननैं उस समय के दार्शनिकां अर शासकां नैं दंड भी दिया था। अब्राहमिक मजहबां म्हं या आजादी आज बी कोन्यां म्यलरी सै।इस वैचारिक आजादी नैं कायम राखण खात्यर अधिकार अर कर्त्तव्यां म्हं संतुलन बहोत जरुरी सै।
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र- विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119
मोबाइल -9813013065
Acharya Shilak Ram The Writer
"क्रांतिकारी विचारक, लेखक, कवि, आलोचक, संपादक" हरियाणा की प्रसिद्ध दार्शनिक, साहित्यिक, धार्मिक, राष्ट्रवादी, हिन्दी के प्रचार-प्रसार को समर्पित संस्था आचार्य अकादमी चुलियाणा, रोहतक (हरियाणा) का संचालन तथा साथ-साथ कई शोध पत्रिकाओं का प्रकाशन। मेरी अब तक धर्म, दर्शन, सनातन संस्कृति पर पचास से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। आचार्य शीलक राम पता: आचार्य अकादमी चुलियाणा, रोहतक हरियाणा वैदिक योगशाला कुरुक्षेत्र, हरियाणा ईमेल : shilakram9@gmail.com
Friday, October 31, 2025
भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य म्हं 'दर्शनशास्त्र' की कहाणी
Tuesday, October 21, 2025
दिवाली के शुभ अवसर पर तृतीय दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन (Third race competition organized on the auspicious occasion of Diwali)
धर्म, दर्शन, साहित्य, राष्ट्रवाद, हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार को समर्पित, शोध के क्षेत्र में कार्य करने वाली तथा आचार्य शीलक राम जी द्वारा संचालित आचार्य अकादमी चुलियाणा (पंजी.) द्वारा होली के शुभ अवसर पर तृतीय दौड़ प्रतियोगिता का सफल आयोजन रवि भारद्वाज द्वारा संचालित मास्टर धर्मपाल क्रिकेट अकादमी दिमाना में किया गया। इस प्रतियोगिता में चुलियाणा व दिमाना के गावों के 150 से ज्यादा लडके व लडकियों ने पांच अलग-अलग आयु वर्ग में भाग लिया। सभी प्रतिभागियों को आचार्य अकादमी की तरफ से रिफरैसमेंट व सभी विजेताओं को स्मृति चिन्ह तथा नकद ईनाम राशि भी प्रदान की गई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ देवेंद्र हुड्डा जी पूर्व प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय सांपला रहे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में आचार्य शीलक राम व आचार्य आकादमी चुलियाणा द्वारा इस प्रकार के आयोजन करना बहुत ही गर्व की बात है। आज जबकि नवयुवक नशे जैसी बुराईयों की ओर जा रहे हैं तो उनका मुकाबला करने के लिए इस प्रकार के आयोजन होते रहने चाहिए। प्रोफेसर रोशन लाल रोहिल्ला ने अपने संबोधन में कहा कि आचार्य शीलक राम व आचार्य अकादमी चुलियाणा द्वारा यह एक बहुत ही अच्छी पहल है तथा आगे भी इस प्रकार के सफल आयोजन करने के लिए बधाई दी। प्रोफेसर पवन कुमार व सुश्री श्रुति डबास ने भी सभी प्रतिभागियों को आशीर्वाद दिया। डॉ. सुरेश जांगडा ने बताया कि आचार्य अकादमी द्वारा यह तृतीय दौड़ प्रतियोगिता है तथा भविष्य में भी प्रतिवर्ष होली व दिवाली के अवसर पर इस प्रकार की खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता रहेगा। इसके अलावा आचार्य अकादमी चुलियाणा कई बार क्रिकेट प्रतियोगिता का भी सफल आयोजन करवा चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि उपरोक्त प्रतियोगिता बिल्कुल निशूल्क करवाई गई है तथा आचार्य अकादमी चुलियाणा अपने चौदह साल के दौरान दो हजार से ज्यादा देश विदेश के कवियों, लेखकों, साहित्याकारों को सम्मानित भी कर चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि आचार्य अकादमी हर साल श्रीमती हेमलता हिन्दी साहित्य (गद्य, पद्यादि) पुरस्कार, राजीव भाई दीक्षित भारतीय इतिहास, आयुर्वेद, स्वदेशी व राष्ट्रभक्ति पुरस्कार, स्वामी दयानन्द सरस्वती दर्शनशास्त्र पुरस्कार, स्वदेशी, राष्ट्रवाद, सनातन वैदिक धर्म व संस्कृति पुरस्कार, चौधरी छोटूराम किसान, मजदूरी और शिक्षा पुरस्कार व बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर समानता व समता पुरस्कार हर साल प्रदान करती है। आचार्य अकादमी लगातार ग्यारह शोध अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं का प्रकाशन भी कर रही है। जिनमे प्रमाण अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका (आईएसएसएन : 2249-2976), चिन्तन अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका (आईएसएसएन :2229-7227), हिन्दू अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका (आईएसएसएन:2348-0114), आर्य अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका (आईएसएसएन: 2348–876X) व द्रष्टा अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका (आईएसएसएन: 2277-2480) प्रमुख है।
Thursday, September 4, 2025
वैज्ञानिक के साथ धार्मिक और नैतिक होना भी आवश्यक है (Apart from being scientific, it is also necessary to be religious and moral.)
इस सच्चाई पर ध्यान दिया जाना आवश्यक हो गया है कि जीवन और जगत् में हरेक समस्या, परिस्थिति और विषय को विज्ञान की कसौटी पर ही क्यों कसा जाये?यह दृष्टिकोण ही स्वयं में अवैज्ञानिक है। सर्वप्रथम विज्ञान को ही क्यों न विज्ञान की कसौटी पर कसा जाये? विज्ञान, विज्ञान में शोध, विज्ञान में प्रयुक्त शोध विधियों,विज्ञान में प्रयोग, विज्ञान की प्रयोगशालाओं,प्रयोग के उपरांत प्राप्त निष्कर्षों,इन निष्कर्षों से विभिन्न प्रकार की तकनीक निर्माण, इन तकनीक के सहारे जमीन से खनिजों की खुदाई, वृहद स्तर पर उपभोक्ता सामान का निर्माण, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, खेती-बाड़ी में प्रयोग खतरनाक दवाईयों का निर्माण, चिकित्सा के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों का औषधीय बाजार, बड़े बड़े बांधों का निर्माण, विध्वंशक हथियारों का निर्माण, परिवहन के साधनों की व्यवस्था, धरती के पर्यावरण को नष्ट करने वाले वातानुकूलित यंत्रों का निर्माण, आलीशान कंक्रीट के भवनों का निर्माण आदि आदि सभी कुछ हमें विज्ञान ने ही तो प्रदान किया है। पिछले 300 वर्षों के दौरान विज्ञान की चमत्कारी खोजों का इस धरती को कितना फायदा और कितना नुक़सान हुआ है - इस पर वैज्ञानिक ढंग से सोचने की कभी कोशिशें हुई हैं? क्या तीन सदियों के दौरान हुये विज्ञान के बल पर विकास को विज्ञान की कसौटी पर कसने के कोई प्रयास हुये हैं? नहीं,नहीं और नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। वैज्ञानिक, खोजी,दार्शनिक, विचारक, तार्किक,शिक्षक, नेता, धर्मगुरु आदि सभी इस पर चुप्पी साधे बैठे रहते हैं। इनकी चुप्पी को कभी किसी ने विज्ञान की कसौटी पर कसकर देखा है? विज्ञान की आड़ लेकर पिछली तीन सदियों से संसार का सबसे अधिक शोषण किया जा रहा है। यदि कोई इस पर कुछ विरोध करे तो उसे अवैज्ञानिक, परंपरावादी, पिछड़ा,रुढ़िवादी और गंवार कहकर चुप करवाने की कोशिशें की जाती हैं। दिक्कत यह है कि पूरा सिस्टम भी इन तथाकथित वैज्ञानिक सोच के लोगों के साथ खड़ा मिलता है।इनके लिये न तो मानवीय मूल्यों की कीमत है,न पाशविक जगत् के प्राणियों के प्रति कोई हमदर्दी है,न पेड़ -पौधों -जंगलों- जल -वायु आदि को शुद्ध रखने की जिम्मेदारी का कर्तव्य है।हर तरफ से यह धरती विज्ञान के दुरुपयोग के सहारे विनाश, विध्वंस, युद्धों से ग्रस्त है।
सिस्टम से हार -थककर कोई समझदार व्यक्ति दो दिशाओं में अपने जीवन को ढालता है।एक नास्तिकता की तरफ तथा दूसरा आस्तिकता की तरफ। जनसाधारण को सिस्टम से कोई अधिक दिक्कत न पहले रही है तथा न अब कोई दिक्कत है। जनसाधारण को किसी भी दिशा में मोड़कर उसका शोषण किया जा सकता है।उसे नास्तिक भी बनाया जा सकता है तथा आस्तिक भी बनाया जा सकता है। जनसाधारण को आस्तिक या नास्तिक होने में कोई रुचि नहीं होती है।उसको तो कुछ शोषक नास्तिक या आस्तिक विचारकों द्वारा अपनी धार्मिक सत्ता स्थापित करने का साधन मात्र बनाया जाता है। हजारों वर्षों से ऐसा होता आ रहा है। जनसाधारण केवल पेट में जीता है,सिर में जीने की उसे फुर्सत ही नहीं है।भ्रष्ट और शोषक सिस्टम में पिसते पिसते वह नमक तेल आटा कपड़े का जुगाड करते करते अपने कंधों और घुटनों को तुड़वा बैठता है।बस ऐसे ही एड़ियों को घिसते घिसते तथा तथाकथित नास्तिक या आस्तिक किसी शोषक धर्मगुरु या नेता या सुधारक की गुलामी करते करते वह इस संसार से चला जाता है। पीछे छोड़ जाता है वही पुराना शोषण, गुलामी, दासता, गरीबी और बदहाली।इस जनसाधारण वर्ग से कभी कोई कबीर या रविदास या नानक आस्तिक होकर आत्मसाक्षात्कार कर लेता है तो तो तुरंत नकली आस्तिकों के झुंड उनके चारों तरफ दीवार बनकर खड़े हो जाते हैं तथा उनके नाम पर भी मजहब बनाकर फिर से जनसाधारण का शोषण शुरू कर दिया जाता है। जहां तक कमाकर खाने और जीवन की अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने की बात है,न तो आस्तिकों के तथाकथित महापुरुष लोग स्वयं की मेहनत का खाते पीते हैं तथा न ही नास्तिकों के। दोनों ही जमकर जनसाधारण का शोषण करते हैं। युनानी विचारक प्लेटो ने तो घोषणा ही कर रखी थी कि दुनिया पर शासन करने का अधिकार सिर्फ धनी मानी,अमीर ,फिलासफर लोगों को है। जनसाधारण सिर्फ शासित हो सकता है,शासक नहीं। पहले मनमाने और मनघड़ंत नियमों, कानूनों का संविधान बना दो और फिर इन्हीं को आधार बनाकर जनसाधारण पर दमनपूर्वक शासन करो! और आश्चर्यजनक तो यह है कि इसी लोकतंत्र और जनतंत्र कहकर सबसे विकसित और मानवीय राजनीतिक व्यवस्था प्रचारित किया जाता रहा है।जिसकी लाठी उसी की भैंस।
जो काम सौंदर्य के आकर्षण के बल पर शीघ्रता से किये और करवाये जा सकते हैं,वो कठोर मेहनत और प्रतिभा के बल पर नहीं करवाये जा सकते। संसार में जो सफलता सुंदरता,नयन -नक्श, आकर्षक अदाओं, मनमोहक वाक् शैली और कामुक चाल-ढाल के माध्यम से दिनों में मिल सकती है वो सफलता हाड़तोड़ मेहनत, योग्यता और प्रतिभा के माध्यम से आजीवन भी उपलब्ध होना असम्भव है।इस संसार को बना ही कुछ ऐसा दिया गया है कि यहां पर शबाब, शराब और कबाब के जरिये किसी बड़े पद पर बैठे हुये व्यक्ति से या नेता से या धर्मगुरु से या अमीर व्यक्ति से कुछ भी करवाया जा सकता है। उसकी हिम्मत नहीं कि वह मना कर दे। सफलता के इस रहस्य को जानते सभी हैं लेकिन सार्वजनिक रूप से कहने की हिम्मत किसी की भी नहीं है। कहने वाले को या किसी नकली मुकदमे में फंसा दिया जायेगा या हत्या करवा दी जायेगी। प्रचार कुछ और हकीकत कुछ अन्य ही।माल कुछ दिखाते हैं और सप्लाई कुछ अन्य ही करते हैं। कामुकता हरेक व्यक्ति ही नहीं अपितु हरेक प्राणी की कमजोरी है।बस मनुष्य सदैव कामुक रहता है जबकि अन्य प्राणी संतानोत्पत्ति के लिये ही कामुक होते हैं। जनसाधारण क्या और विशिष्ट क्या - सभी के लिये कामुकता और सौंदर्य विशेष महत्व रखते आये हैं।बस,पशु और पक्षी अपनी कामुकता, अपने सौंदर्य और अपनी मनमोहक अदाओं का अधिक दुरुपयोग नहीं कर पाते हैं जबकि मनुष्य प्राणी ने तो इस क्षेत्र में सारे रिकॉर्ड तोड़ रखे हैं।इस क्षेत्र में मादा मनुष्य बहुत आगे है।हर कोई तो ऐसा नहीं करता है लेकिन अधिकांश के संबंध में यह सच है। भौतिक विज्ञान ने चाहे कितनी भी तरक्की कर ली हो लेकिन बड़े बड़े वैज्ञानिक, विज्ञान के शिक्षक, विज्ञान के शोधार्थी आदि भी कामुकता,सौंदर्य और काम बाणों से नहीं बच पाते हैं।उनकी सारी प्रतिभा, उनके विचार,चिंतन,तर्क,अनुसंधान आदि धरे के धरे रह जाते हैं। दुनिया का इतिहास उठाकर पढ़कर देख लो, बड़े -बड़े धुरंधर वैज्ञानिक, दार्शनिक,विचारक, नेता,राजा,सम्राट,किंग,प्रशासक आदि ने सौंदर्य और कामुकता के सामने सहज ही समर्पण कर दिया था।आज भी ऐसा ही हो रहा है।हरेक देश में बड़े- बड़े नेताओं, मंत्रियों, राजदूतों,उद्योगपतियों, शिक्षकों, धर्माचार्यों, अधिकारियों,न्यायविदों, अपराधियों के पास अपनी वैवाहिक जिन्दगी के अतिरिक्त अवैध नारी मित्र या पुरुष मित्र मिलते हैं।जो अमीर और बड़े लोग हैं, उनका दुराचरण भी सदाचरण की श्रेणी में गिना जाता है। लेकिन जनसाधारण किसी की तरफ कामुक नज़रों से देख भर ले तो पता नहीं कितने एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज हो जायेंगे। यही आधुनिक विकास की परिभाषा और शैली है। भारतीय नेताओं और नीति निर्माताओं ने तो अपनी सुविधा और उच्छृंखल भोग -विलास के लिये 'लिव इन रिलेशनशिप' जैसे कानून बना रखे हैं। क्या गजब के राष्ट्रवादी और धर्मप्रेमी प्रकृति के सांस्कृतिक लोग हैं।
संसार में ऐसा कौनसा दर्शनशास्त्र, ऐसी कौनसी फिलासफी,ऐसी कौनसी विचारधारा, ऐसा कौनसा सिद्धांत, ऐसा कौनसा संप्रदाय, ऐसा कौनसा मजहब, ऐसा कौनसा महापुरुष हैं जिसकी आड़ लेकर इन्हीं के अनुयायियों ने उपरोक्त को जनमानस की लूट और अपने स्वयं को मालामाल करने के लिये दुरुपयोग नहीं किया गया हो। किसी का कम तो किसी का अधिक सभी का दुरुपयोग हुआ है। दुरुपयोग करने वाले कोई अन्य ग्रहों से आये व्यक्ति नहीं अपितु इनके स्वयं के नजदीकी भक्त लोग ही रहे हैं।हर सही को ग़लत,हर नैतिक को अनैतिक तथा हर मानवीय को अमानवीय बना देने का हूनर अनुयायियों, भक्तों और नकल करने वालों में मौजूद होता है।इसका पता अनुयायियों के आराध्य महापुरुषों को होता भी है। लेकिन कुछ तो इसलिये चुप रह जाते हैं कि उनकी सोच ही लूटेरी,शोषक और भेदभाव की होती है और कुछ इसलिये चुप रह जाते हैं कि क्योंकि उनको मालूम होता है कि अनुयायी, भक्त, नकलची लोग ऐसे ही होते हैं। उपरोक्त दोनों हालात में जनमानस ठगा जाता है। उपरोक्त दोनों से उत्पन्न ऊहापोह के कारण सत्य के खोजियों को ही दिक्कत होती है। सत्य के खोजियों के लिये कंकड़-पत्थर से हीरे निकालने के समान मेहनत करनी पड़ती है।
भारत में पिछले 100-150 वर्षों के दौरान पैदा हुये धार्मिक,आध्यात्मिक, सुधारात्मक संगठनों ने राष्ट्रवासियों के चरित्र-निर्माण,सेवा, साधना आदि की अपेक्षा स्वयं की प्रसिद्धि,अनुयायियों की भीड़ बढ़ाने,भव्य आश्रम निर्माण करने, राजनीति में दखलंदाजी तथा स्वयं के लिये भोग विलास की सुविधाएं एकत्रित करने पर अधिक ध्यान दिया है। आर्यसमाज ने भारत को सर्वाधिक राष्ट्रभक्त और विचारक प्रदान किये हैं। लेकिन अपने शुरुआती वर्षों में पंडित गुरुदत्त,स्वामी श्रद्धानंद,लाजपत राय, जगदेव सिद्धांती,पंडित भगवद्दत्त, आर्यमुनि,आचार्य उदयवीर, युधिष्ठिर मीमांसक,रामचंद्र देहलवी, स्वामी स्वतंत्रानंद,स्वामी ओमानंद आदि सैकड़ों महापुरुषों को उत्पन्न करने के पश्चात् जैसे सनातन धर्म,दर्शनशास्त्र, वैदिक जीवन -मूल्यों और संस्कृति के अध्ययन,अध्यापन,शोध,लेखन, शास्त्रार्थ,त्याग, सेवा, तपस्या, गुरुकुल शिक्षा से जैसे किनारा ही कर लिया है। आजकल के अधिकांश धर्माचार्यों, शंकराचार्यों,महामंडलेश्वरों, संतों, साधुओं ,स्वामियों, संन्यासियों, योगियों, कथाकारों और सुधारकों ने नेताओं,प्रैस और उद्योगपतियों से सांठगांठ करके अपने साम्राज्य खड़े करने शुरू कर रखे हैं।
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र-विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र- 136119
मोरल,फिलासफिकल और साइकोलॉजिकल काउंसलिंग : सत्य,तथ्य या भ्रम? (Moral, philosophical and psychological counselling: Truth, fact or myth?)
कोई व्यक्ति धूर्त होकर अपने आपको सज्जन दिखलाने का ढोंग कब तक करने में सफल हो सकता है? कोई व्यक्ति परले दर्जे का अय्याश और ढोंगी होते हुये भी अपने आपको कब तक संयमी दिखलाने में सफल हो सकता है? एक व्यक्ति झूठा, धोखेबाज और स्वार्थी होकर भी अपने आपको कब तक सत्यवादी, निष्कपट और निस्वार्थी दिखलाने में सफल हो सकता है? ध्यान रहे कि हमारे तथाकथित उच्च -शिक्षित और उच्च -कोटि के महापुरुष कहलवाने वाले सुधारक, नेता, धर्माचार्य, पूंजीपति, कथाकार, प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी, स्वामी, संन्यासी, फकीर,फादर, मौलवी,योगाचार्य, सद्गुरु आदि इस कला में पारंगत होते हैं। छोटे स्तर के महापुरुषों का भांडाफोड जल्दी हो जाता है लेकिन बड़े स्तर के महापुरुषों का भांडाफोड आजीवन नहीं होता है।हां, कोई आशाराम या गुरमीत राम या रामपाल आदि का जल्दी भांडाफोड हो जाता है और वो जेल पहुंच जाते हैं। लेकिन वो फिर भी मूढों और बेवकूफों के आदरणीय भगवान् बने रहते हैं। जनसाधारण की तो बात ही क्या करें,वह सुबह कुछ है, दोपहर को कुछ और है तथा शाम को कुछ अन्य ही हो जाता है।वह अपने कपट,छल, ईर्ष्या,द्वेष, कामुकता, धूर्तता को अधिक समय तक छिपाने में सफल नहीं हो पता। इसीलिये जन-सामान्य की नजरों में वह महान या बड़ा नही है। अपने नित्यप्रति के आचरण के इस दोगलेपन की चिकित्सा या काउंसलिंग किसी भी काउंसलर या काउंसलिंग के पास उपलब्ध है?साईकोलाजिकल या फिलासाफिकल काउंसलिंग के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व में मौजूद नैतिक या वैचारिक या भावनात्मक या मानसिक या सैद्धांतिक अस्थिरता, द्वंद्व,असामान्यता आदि को ठीक करने पर व्याख्यान,लैक्चर, गोष्ठियां आदि तो खूब होते हैं लेकिन परिणाम बिल्कुल शून्य है। जनसाधारण हो या विशिष्ट हो, नेता हो या उच्च -अधिकारी हो, प्रोफेसर हो या मनोचिकित्सक हो, कथाकार हो या योगाचार्य हो, काउंसलर हो या चिकित्सक हो- सभी के सभी पहले की अपेक्षा और भी अधिक धूर्त, ईर्ष्यालु,कामुक, स्वार्थी, झूठे, लालची ,हताश, अकेले और आचरण के दोगलेपन से ग्रस्त होते जा रहे हैं। किसी असामान्य व्यक्ति की साईकोलाजिकल या फिलासफिकल काउंसलिंग करने की चिकनी चुपड़ी- बातें सुनने में बड़ी मजेदार लगती हैं लेकिन जब परिणाम दिखलाने की बात आती है तो स्वयं काउंसलर भी लड़ाई -झगडे पर उतर आते हैं।उस समय तो लगता है कि जनसाधारण की अपेक्षा इन तथाकथित काउंसलिंग करने वाले काउंसलर को ही काउंसलिंग की सर्वाधिक आवश्यकता है, यदि कोई काउंसलिंग हो सकती हो तो! आप काउंसलिंग से संबंधित किसी भी व्याख्यान, लैक्चर,गोष्ठी, सैमिनार में जाईये, आपको वही रटी रटाई तथा घिसी पिटी सुकरात,देकार्त,फ्रायड,एडलर,जुंग, मैचिन, रोजर्स,पार्संस, मैस्लो की उबाऊ बातें सुनने को मिलेंगी। हां, अपने आपको कुछ अलग दिखलाने के लिये भारत में आजकल कुछ काउंसलर ने अष्टांगयोग, विपश्यना, प्राणापान,प्रेक्षा ,साक्षी और कृष्णमूर्ति के अवलोकन को भी अपने काउंसलिंग से संबंधित व्याख्यानों, आलेखों और पुस्तकों में सम्मिलित कर दिया है। लेकिन ऐसे काउंसलर के चरित्र और आचरण में सनातन भारतीय योगविद्या, योगाभ्यास और अध्यात्म का अ ,आ, इ ,ई भी अभ्यास और अनुशासन में नहीं है।बस ,अपने अपने व्याख्यानों, लैक्चर और पुस्तकों को आकर्षक बनाने के लिये ये ऐसा कर रहे हैं। प्रायोगिक सृजनात्मक परिणाम की जहां तक बात है,न तो पश्चिम में तथा न ही भारत में किसी काउंसलर ने आज तक कुछ भी करके दिखलाया है। सभी के सभी काउंसलर बस विचारों, सिद्धांतों और विधियों की जुगाली करते जा रहे हैं। द्वितीय महायुद्ध से लेकर अब इजरायल-अरब युद्ध,रुस- युक्रेन युद्ध,भारत- पाकिस्तान युद्ध सहित अन्य किसी भी क्षेत्र में व्याप्त नैतिक, वैचारिक, भावनात्मक, दार्शनिक, चारित्रिक, सैद्धांतिक आदि मुद्दों की विषमता पर कुछ भी सृजनात्मक और रचनात्मक करके दिखलाया हो तो बतलाओ।बस, सभी के सभी टाईमपास कर रहे हैं या काउंसलिंग की आड़ में दुकानदारी कर रहे हैं या प्रसिद्ध होने की सनक का शिकार हैं।
पश्चिम वाले तो अपनी उपयोगितावादी फिलासफी को जैसे तैसे बचा लेंगे लेकिन आप लोग अपने दर्शनशास्त्र को कैसे बचाओगे? इस फिलासफिकल काउंसलिंग के माध्यम से आपने तो दर्शनशास्त्र विषय को ही समाप्त करने का जुगाड कर लिया है। भारत में पहले ही दर्शनशास्त्र-विभाग बंद हो रहे हैं।क्योंकि हमारे दर्शनशास्त्रियों, नेताओं, नीति-निर्माताओं की मूर्ख सोच के कारण विद्यार्थियों की इस विषय में कोई रुचि नहीं रह गई है। इनकी बेवकूफी और उपेक्षा के कारण यह विषय न तो रोजगार दे पा रहा है,न चरित्र दे पा रहा है,न नैतिक मूल्य दे पा रहा है,न तर्क दे पा रहा है तथा न ही प्रामाणिक विचारक दे पा रहा है। होना तो यह चाहिये था कि आप भारतीय बच्चों को भारतीय दर्शनशास्त्र के अंतर्गत न्यायशास्त्र,ज्ञानशास्त्र,तर्कशास्त्र,नीतिशास्त्र, योगशास्त्र आदि विषयों का अध्ययन,अध्यापन और शोध आदि करने करवाने पर जोर देते। लेकिन आपने ऐसा नहीं करके दर्शनशास्त्र विषय की बजाय स्वयं के प्रसिद्ध हो जाने पर अधिक जोर -आजमाइश की है।पश्चिम वाले तो अपनी फिलासफी के अनुसार उपयोगितावादी, स्वार्थी, उन्मुक्त भोगी और यूज एंड थ्रो के अनुसार जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन भारतीय न तो पाश्चात्य हो पा रहे हैं तथा न ही भारतीय हो पा रहे हैं। अपने दर्शनशास्त्र की उपेक्षा और पाश्चात्य की अंधी नकल ने भारतीयों को कहीं का भी नहीं छोड़ा है। इनकी हालत न यहां के रहे, न वहां के रहे वाली हो चुकी है।
यह भी बड़ा दिलचस्प है कि तांत्रिक टोने- टोटके और झाड़-फूंक से नित्यप्रति के जीवन की समस्याओं के समाधान की बात जितनी लोकप्रिय भारत में है ,उतना ही लोकप्रिय युरोप और अमरीका आदि में भी है।बस, फर्क यह है कि भारत के संबंध में मीडिया द्वारा दुष्प्रचार अधिक कर दिया जाता है जबकि युरोप और अमरीका के संबंध में इसे छिपा लिया जाता है।जिसकी लाठी,उसी भैंस वाली कहावत यहां भी लागू हो रही है। पश्चिम और भारत में आबादी के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व वो लोग करते हैं जो कभी न कभी अपने जीवन की शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, वैचारिक आदि समस्याओं के समाधान के लिये तांत्रिकों और ज्योतिषियों के पास अवश्य गये होंगे तथा अब भी जाते हैं। समस्याग्रस्त या असामान्य व्यक्ति का लिये तांत्रिकों और ज्योतिषियों के पास जाकर अपनी समस्याओं का समाधान करवाना क्या सही है या गलत - इस संबंध में भी अंधेरगर्दी मिलती है। यदि बहुत से व्यक्तियों को अपनी समस्याओं का समाधान इन बाबाओं, तांत्रिकों और ज्योतिषियों के पास मिल जाता है तो इन्हें काउंसलर कहा जायेगा या नहीं कहा जायेगा - इस संबंध में साईकोलाजिकल और फिलासफिकल काउंसलर का नकारात्मक दृष्टिकोण उनके खुद को बिमार होने की ओर संकेत करता है।यह नहीं होना चाहिये।
एक व्यक्ति का होना बहुत से सिस्टम और तंत्रों का सम्मिलित रुप से मौजूद होना है।एक व्यक्ति में अनेक सिस्टम या तंत्र काम कर रहे हैं,इन सबके सम्मिलित ढांचे को व्यक्ति कहते हैं। यदि व्यक्ति के आत्मिक स्वरूप को कुछ समय के लिये छोड़ भी दिया जाये तो एक व्यक्ति में लसिका तंत्र,हड्डी तंत्र,धातु तंत्र,नलिकाविहीन ग्रंथि तंत्र,पाचन तंत्र, मूत्र विसर्जन तंत्र, श्वास तंत्र,चक्र तंत्र,त्रिदोष तंत्र, त्रिगुण तंत्र,पंचकोश तंत्र,सप्त शरीर तंत्र आदि होते हैं। कोई व्यक्ति जब असामान्य या असहज होता है तो उसे कौनसी काउंसलिंग देना चाहिये ताकि वह व्यावहारिक, तार्किक, मानसिक, वैचारिक रुप से ठीक हो जाये? कोई व्यक्ति जब असहज या असामान्य होता है तो उस व्यक्ति के कौनसे हिस्से में विकार आता है कि काउंसलिंग द्वारा जिसके ठीक किये जाने से वह व्यक्ति ठीक हो जायेगा? सामाजिक परिवेश, व्यक्तिगत परिवेश,उस व्यक्ति का स्थूल शरीर, प्राण शरीर,मनस शरीर आदि में से किसकी चिकित्सा या काउंसलिंग द्वारा वह व्यक्ति ठीक हो सकेगा - इसका निर्धारण कैसे होगा? एक व्यक्ति के कौनसे सिस्टम या तंत्र की चिकित्सा या काउंसलिंग करने से वह व्यक्ति खुद ठीक ठीक महसूस करेगा - काउंसलिंग इस संबंध में हवा में लाठियां चलाते हुये नजर आते हैं। पाश्चात्य और उसकी नकल करके बनाई गई भारतीय काउंसलिंग में हरेक काउंसलर मोरल या साइकोलॉजिकल या फिलासफिकल काउंसलिंग पर टिककर नहीं रहता है।एक प्रकार की काउंसलिंग को शुरू करके वह अन्य प्रकार की काउंसलिंग को भी जबरदस्ती करके प्रवेश करवाकर एक बेमेल ऐसा दलिया तैयार कर देता है जो न तो कोई पोषण देता है,न खाने में स्वादिष्ट है तथा न ही अधिक दिन तक टिक सकता है।मोरल वाले मोरल तक, साइकोलॉजिकल वाले साइकोलॉजिकल तक तथा फिलासफिकल वाले फिलासफिकल काउंसलिंग तक सीमित क्यों नहीं रहते हैं?ये अपनी सीमाओं का उल्लंघन क्यों करते हैं?इनका इस प्रकार का व्यवहार क्या इन्हें स्वयं ही बिमार, असामान्य और असहज नहीं बतलाता है? और यदि एक दूसरे में घालमेल किये बगैर काम नहीं चल रहा है तो इन कयी प्रकार की काउंसलिंग को मिलकर एक ही कर दो।अलग अलग दुकान खोलना क्यों आवश्यक है? इनके इस सनकी व्यवहार से लग रहा है कि काउंसलिंग के नाम पर जो कुछ चल रहा है,उसमें किसी व्यक्ति की काउंसलिंग कम और अपनी प्रसिद्धि, अहंकार की तुष्टि और दुकानदारी अधिक है।कोरे शाब्दिक प्रवचन, संवाद, डायलाग,उपदेश, शिक्षाएं, सत्संग, गोष्ठियां, सैमिनार किसी किसी व्यक्ति को कहां तक और कितनी गहराई तक प्रभावित कर पाते हैं - इस संबंध में अधिकांश परिणाम और निष्कर्ष नकारात्मक ही हैं। पाश्चात्य मनोविज्ञान भी अपनी 100-150 वर्षों की यात्रा में आत्मा और चेतना के अध्ययन से होते हुये आज व्यवहारिक मनोविज्ञान पर आ चुके हैं। और ये यहां पर भी टिक पायेंगे, इसका कोई भरोसा नहीं है। यदि हम आत्मा, चेतना आदि को नहीं देख सकते तो व्यवहार भी कहां दिखाई पड़ता है? सिर्फ व्यवहार के प्रभाव ही हमें दिखाई पडते हैं।तो समस्या वहीं की वहीं हैं। आखिर किसी व्यक्ति को हम वह कैसे बना सकते हैं, जिसके बनने की संभावनाएं और योग्यताएं उसके चित्त में मौजूद करोड़ों करोड़ों संस्कारों के समूह में मौजूद ही नहीं हैं। उदाहरणार्थ सुकरात ने हैमलेट विष को पीकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी। जिद्दू कृष्णमूर्ति के सिर में आजीवन भयंकर पीड़ा होती रही थी।यह सब क्या है?एक बात और है - सुकरात को सुकरात बनने में और जिद्दू कृष्णमूर्ति को जिद्दू कृष्णमूर्ति बनने में उनके गुरुओं की दशकों की मेहनत का परिणाम था।आज हम उपरोक्त महापुरुषों की विधियों के सहयोग से बिना किसी साधना, तपस्या, संयम, अनुशासन, योगाभ्यास के कैसे किसी व्यक्ति की काउंसलिंग करके उसे नैतिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक रूप से सहज, संतुष्ट, संतुलित और तृप्त बना सकते हैं?
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119
दुष्यन्त कुमार व्यास, रतलाम को मिला प्रथम स्थान
*दुष्यन्त कुमार व्यास, रतलाम को मिला प्रथम स्थान*
हरियाणा की प्रसिद्ध दार्शनिक, साहित्यिक, धार्मिक, राष्ट्रवाद, हिन्दी के प्रचार-प्रसार को समर्पित तथा लेखक, कवि, आलोचक तथा 50 से ज्यादा क्रांतिकारी पुस्तकों के लेखक आचार्य शीलक राम द्वारा संचालित व चिन्तन अन्तर्राष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक रिसर्च जर्नल्स (आईएसएसएन : 2229-7227) प्रमाण अन्तर्राष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक रिसर्च जर्नल्स (आईएसएसएन : 2249-2976), हिन्दू अन्तर्राष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक रिसर्च जर्नल्स (आईएसएसएन : 2348-0114), आर्य अन्तर्राष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक रिसर्च जर्नल्स (आईएसएसएन : 2348 – 876X) व द्रष्टा अन्तर्राष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक रिसर्च जर्नल्स (आईएसएसएन : 2277-2480) प्रकाशित करने वाली संस्था आचार्य अकादमी चुलियाणा, रोहतक (हरियाणा) द्वारा आयोजित 48वीं राष्ट्रीय कविता प्रतियोगिता प्रदत विषय *रक्षाबंधन (श्रावणी पर्व)* के परिणामों की घोषणा कर दी गई है। विजेताओं के नाम निम्न प्रकार से हैं-
पहला स्थान* - दुष्यन्त कुमार व्यास, रतलाम
दूसरा स्थान* - डॉ. फूल कुमार राठी रोहतक, हरियाणा
तीसरा स्थान* - डॉ ओमप्रकाश द्विवेदी ओम, पडरौना कुशीनगर
चौथा स्थान* - डॉ. अम्बे कुमारी, गया, बिहार
पाचवां स्थान* - बी के शर्मा, इन्दौर, मध्य प्रदेश
छठा स्थान* - डॉ. भेरूसिंह चौहान "तरंग", झाबुआ, मध्य प्रदेश
सातवां स्थान* - अनिल ओझा, इंदौर
आठवां स्थान* - राम कुमार प्रजापति, अलवर, राजस्थान
नौवां स्थान* - गौतम इलाहाबादी, रेवाड़ी, हरियाणा
दसवां स्थान* - बलबीर सिंह ढाका रोहतक, हरियाणा
इसके अलावा प्रतियोगिता के विशिष्ट पुरस्कृत कवि निम्न प्रकार से हैं-
⦁ सुमन लता "सुमन", फतेहाबाद, हरियाणा
⦁ नरेन्द्र कुमार वैष्णव "सक्ती", छत्तीसगढ़
⦁ डॉ अनुपम भारद्वाज मिश्रा
सभी विजेताओं को आचार्य अकादमी चुलियाणा, रोहतक के अध्यक्ष *आचार्य शीलक राम* व पूरी टीम की ओर से बहुत-बहुत बधाई।
Monday, May 26, 2025
Friday, April 11, 2025
सैलीब्रिटीज का अंधानुकरण सनातनधर्मियों के लिये खतरे की घंटी (Blind imitation of celebrities is a warning bell for Sanatan Dharmis)
सनातनियों का सैलीब्रिटी के पीछे भागकर उनका अंधानुकरण करना एक पागलपन का रुप ले चुका है। जिसको देखो वही अहंकारी गुरुओं, वाचाल कथाकारों, चमत्कारी बाबाओं, गृहस्थबिगाड़ू नामदानियों, अधकचरे योगियों, हू- हा तांत्रिकों, चिकित्सा विज्ञान को धता बताने वाले झाडफूंकियों, मायिक पर्चानिकालुओं,लाईलाज बिमारियों को ठीक करने वाले इलू गिलुओं, गंदगी का पर्याय फकीरों और ईमानधारी बेईमानों के पीछे पागल होकर दौड़ रहा है। अपने सारे विवेक और तर्कशक्ति को बिना सोच -विचार किये किसी ऐरे- गेरे सैलीब्रिटी के चरणों में रखकर उनकी गुलामी करना पतन और विनाश की पराकाष्ठा है।
सनातनी वास्तव में ऐसा क्यों कर रहे हैं?यह जानना भी दिलचस्प है।आप सोच रहे होंगे कि इसका कारण सनातनियों का धार्मिक प्रवृत्ति का होना है। नहीं, ऐसा नहीं है। सनातनी यदि अपने सनातन धर्म को अपने आचरण में उतारने की हिम्मत करता तो वह ऐसा कभी नहीं करता। किन्हीं सैलीब्रिटी का अंधानुकरण करने वाला व्यक्ति सनातनी नहीं कहा जा सकता। सनातनी जिसके पास अपनी धार्मिक जिज्ञासा को शांत करने या योग साधना का अभ्यास करने जायेगा ,इन कार्यों को वह सोच विचारकर ही करेगा। तर्क के तराजू पर तोलकर ही वह ऐसा करेगा। लेकिन ऐसा कहीं कुछ देखने में नहीं आ रहा है। अधिकांश सनातनी अंधों की भीड़ द्वारा की जाने वाली जय जयकार को सुनकर, टीवी चैनल पर मौजूदगी को देखकर, धुआंधार प्रचार को देखकर,भव्य आश्रमों और गाड़ियों को देखकर, नेताओं की हाजिरी देखकर और पूंजीपतियों की जी हुजूरी देखकर यह अंदाजा लगाता है कि फलां फलां प्रसिद्ध व्यक्ति हमारा गुरु बनने योग्य है। आजकल का सनातनी अपने गुरु में अध्यात्म, योग- साधना, शास्त्रीय ज्ञान, चरित्र बल, वीतरागता,त्याग, तपस्या आदि को न देखकर सिर्फ बाहरी प्रसिद्धि और हंसो हल्ले को देखता है।
सनातनी भाई अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिये सोर्ट कट चाहते हैं। दुनिया भर के कुकर्म करो और किसी गुरु की शरण में जाकर कोई पाप माफी की टैक्नीक पा लो। कुछ चढ़ावा आदि चढावो और पापमुक्ति हो गई। इन सार्ट कट की तकनीक देने वाले बाबाओं, तांत्रिकों, संतों, कथाकारों और महामंडलेश्वरों की वजह से पापों से मुक्ति पाना इतना आसान हो गया है कि जनसाधारण भारतीय पाप करने से तनिक भी नहीं डरता है।इन पाखंडियों ने सभी का डर निकाल दिया है। कोई यज्ञ हवन करवाओ, किसी धाम की सात मंगलवार परिक्रमा करो,चढावा चढाओ,भंडारा करो, कोई तांत्रिक क्रिया करो, किसी तीर्थ स्थल पर स्नान करो और सारे घृणित से घृणित पाप छू मंतर।गजब टैक्नीक है पाप माफी की।अन्य मजहबों में इसी तरह की टैक्नीक हैं लेकिन भारतीयों में आजकल पाप करके पाप माफी का धंधा जोरों पर है। अभी एक हिंदू से मतांतरित किसी बाजिंदर नाम के ईसाई पादरी को बलात्कार के अपराध में उम्रकैद की सजा हुई है। सत्ताधारी दल के अनेक बलात्कार में लिप्त बाजिंदर ऊपर तक पहुंच के कारण खुले घूम रहे हैं। बलात्कारियों के जेल से छूटते ही बलिदानियों की तरह उनका स्वागत सत्ताधारी दल के लोगों द्वारा किया जाना पागलपन की पराकाष्ठा है। सनातन धर्म का चोला ओढ़ हुये सत्ताधारी दल द्वारा लिव इन रिलेशनशिप आदि अमानवीय कुकर्मों को कानूनी वैधता दिलवाना इनके आसुरी अब्राहमिक चरित्र को उजागर करता है।
सनातनी धर्माचार्य अपने अनुयायियों को यह क्यों नहीं समझाते किये हुये कर्म का फल अवश्यंभावी है।इसकी कोई माफी नहीं होती है। इसलिये सर्वप्रथम अपने नित्यप्रति के आचरण, चाल-चलन, चरित्र आदि में सुधार करो। मोटे चढावे तथा चेलों की संख्या बढ़ाने के नशे में अपराधियों, बलात्कारियों, डकैतों, भ्रष्टाचारियों, चोरों आदि सभी के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिये जा रहे हैं। यदि वास्तव में इनमें संतत्व होता तो ऐसे धूर्त और पापी लोगों को धक्के मारकर अपने आश्रमों से भगा दिया जाता। लेकिन इन धर्माचार्यों द्वारा तो ऐसे पापियों को पहली पंक्ति में सम्मान के साथ बिठाया जाता है तथा फूलमालाओं से जोरदार स्वागत किया जाता है। वैसे तो ये तथाकथित धर्माचार्य जनसाधारण को माया मोह से दूर रहने के उपदेश देते हैं लेकिन स्वयं धन दौलत और माया मोह को पाने के लोभ-लालच में भ्रष्टाचारियों, पापियों, डकैतों, अपराधियों और बलात्कारियों को पाप माफी का आशीर्वाद देते हैं। और फिर यही धर्माचार्य कहते हैं कि सनातन धर्म और संस्कृति मुसलमानों या ईसाईयों के कारण खतरे में है। वास्तव में सनातन धर्म और संस्कृति के लिये सबसे बड़ा खतरा ये धर्माचार्य स्वयं ही हैं।अपनी गलतियों, पापों, अपराधों और कुकर्मों को छिपाने के लिये ये क्या क्या नहीं करते हैं?
पूजा-स्थलों में जाना अतीत में किये गये पापों की माफी के लिये होता है या फिर वर्तमान में अनैतिक कर्म नहीं करने का संकल्प लेने के लिये होता है या परमात्मा ने आज तक जो भी दिया है, उसके लिये धन्यवाद ज्ञापित करने के लिये होता है? सनातनियों ने अपनी सनातनी मर्यादा को भूलाकर अतीत में किये पाप कर्मों की माफी मांगने या फिर भविष्य में सफलता प्रदान करने के लिये पूजा-स्थलों पर जाना शुरू किया हुआ है। परमात्मा को भी प्रलोभन देते हैं कि यदि मेरी इच्छा पूर्ण हुई तो आपको ये चढ़ाया चढ़ा दूंगा/दूंगी। परमात्मा तुम्हारे चढावे का भूखा बैठा या तुम्हारी भक्ति का भूखा है या फिर वह तुमसे कुछ अन्य ही चाहता है? अपने अंधे अनुयायियों की वासना, कामना और प्रलोभन का फायदा उठाने के लिये बाबा, धर्माचार्य, सद्गुरु, साईं, कथाकार, तांत्रिक, ज्योतिषी, पर्चा निकालने वाले, मौलवी, फकीर, पादरी खूब नौटंकी खेलते हैं। खुद बिमार होने पर हस्पताल में चिकित्सा करवाते हैं लेकिन भक्तों के कैंसर, टीबी, अस्थमा,शूगर, गठिया,कोरोना तक की घातक बिमारियों को गदा , चालीसा,मोरपंख , ताबीज ,चद्दर , यंत्र,मंत्र, तंत्र,शक्तिपात, भभूत चटाकर, चिमटा मारकर,मुंह में थूककर ,गोद में बिठाकर, आलिंगन में लेकर आदि के चमत्कार से तुरंत ठीक कर देते हैं।जो जितना बड़ा पाखंडी और झूठा होता है उसके पास उतनी ही अधिक भीड़ होती है। किसी ने प्रश्न उठाया तो धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती हैं।बस, चुपचाप इस मूढ़ता को देखते रहो। ज़बान हिलाना भी मना है।
सनातन धर्म और संस्कृति के इन तथाकथित ठेकेदारों ने मज़ाक का विषय बनाकर रख छोड़ा है। इन्होंने कर्म और कर्मफल व्यवस्था को बिल्कुल तहश नहश कर दिया है। परमात्मा और मनुष्य के बीच में अनगिनत मध्यस्थ और दलाल पैदा हो गये हैं। भक्तों को जो कुछ भी कामना पूरी करवानी है या फिर पाप माफी करवानी है तो आप सीधे परमात्मा से नहीं मिल सकते हैं। सब्जी मंडी और अनाजमंडी की तरह से मध्यस्थ और दलालों का आपको सहारा लेना ही पडेगा।
सनातन धर्म और संस्कृति में पुरुषार्थ का सर्वाधिक महत्त्व है। हमारे तथाकथित राजनीतिक बाबाओं ने पुरुषार्थ को उपेक्षित करके सनातन धर्म को एक कट्टर मजहब या संप्रदाय या कल्ट में परिवर्तित कर दिया है।आप सीधे परमात्मा से नहीं मिल सकते हैं। आपको परमात्मा की अनुभूति के लिये दलालों का या अवतारों का या पैगंबरों का या मसीहाओं या तारणहारों की शरण में जाना ही होगा। वेदों, उपनिषदों, दर्शनशास्त्रों, स्मृतियों आदि ग्रंथों को परे फेंककर बाबाओं ने सनातन धर्म को एक दुकानदारी बना दिया है।इन बाबाओं से आप मनचाही कामनाओं को पूरा कर सकते हैं।ये बाबा लोग सनातन धर्म और संस्कृति पर कुंडली मारकर बैठ गये हैं। सनातन धर्माचार्यों की जगह पर राजनीतिक बाबा लोगों को स्थापित करके पुरातन परंपरा को नष्ट किया जा है। अभी संघ के सर्वेसर्वा मोहन भागवत का बयान आया है कि सनातन शास्त्रों को दोबारा से लिखा जाना चाहिये। यानी ये अपनी सुविधानुसार और राजनीतिक लाभ अनुसार सनातन धर्म और संस्कृति को नष्ट करने पर आमादा हैं। सनातन शास्त्रों को बदलने का इनको किसने दिया है? वक्फ बोर्ड को कानूनी रूप देकर इन्होंने सनातनियों की बहुत सी जमीन जायदाद पर मुसलमानों का एकाधिकार स्वीकार कर लिया है।इनके शासन के दौरान वक्फ बोर्ड की जायदाद दोगुना हो चुकी है। भारत के बहुसंख्यक सनातनियों को कमजोर करने पर वामपंथी, दक्षिणपंथी आदि सभी पूरी ताकत से लगे हुये हैं। लगता है कि सनातन विरोधी पाप कर्मों लिव-इन रिलेशनशिप, समलैंगिकता, गौहत्या, गौमांस भक्षण, शास्त्रों में फेरबदल, गुरु परंपरा की समाप्ति, पूजा-स्थलों के विध्वंस, वैदिक आचार विचार को उपयोगितावादी बनाने को जायज और संवैधानिक बनाकर वेदों -उपनिषदों- दर्शनशास्त्रों -स्मृतियों- महाकाव्यों-चिकित्सा ग्रंथों आदि को म्लेच्छ रुप देना इनकी मानसिकता प्रकट हो रही है। पता नहीं ये किन गुप्त भारत -भारतीय -भारतीयता विरोधी शक्तियों के दबाव में काम कर रहे हैं? अधिकांश पौराणिक संगठन, आश्रम,मठ, कथावाचक, सुधारक, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, आचार्य , योगाचार्य आदि तो चुप हैं ही,सबसे अधिक आश्चर्यजनक आर्यसमाज संगठन की चुप्पी है। लगता है कि अधिकांश सनातनी कहलवाने वाले बाबा लोग सरकारी बाबा बनकर काम कर रहे हैं।इनको सनातन धर्म और संस्कृति की कोई चिंता नहीं है।
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र 136119


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