Friday, October 31, 2025

भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य म्हं 'दर्शनशास्त्र' की कहाणी


इस दुनिया म्हं पहला 'दर्शनशास्त्र' भारत नैं दिया था।जै किसै कै कोये शक संदेह हो तै ऋग्वेद का नासदीय सूक्त और  पुरुष सूक्त पढकै देख ल्यो।ज्यब या सृष्टि पैदा हुई, परमात्मा हैं हर तरहां का ज्ञान चार वेदां म्हं छंद रश्मियां के रूप म्हं दे दिया था।ब्यना ज्ञान के सृष्टि पैदा करण का कोये मतलब कोन्यां होत्ता।बस,इस्सै नैं ध्यान म्हं रखकै परमात्मा नैं सब तरहां का ज्ञान माणस सृष्टि बणाण के बख्त दे दिया था।वेद आज के कोन्यां।आज तैं एक अरब छाणवैं करोड़ आठ लाख तरेपन हजार एक सौ पच्चीस साल पहल्यां वेद दिये गये थे।सोच्चण,समझण अर किस्सै निर्णय पै पहोंचण खात्यर दर्शनशास्त्र का ज्ञान सबतैं जरूरी सै। परमपिता नैं जो वेद दिये थे,वै सबतैं पहल्यां चार ऋषि अग्नि, वायु,आदित्य अर अंगिका नैं साक्षात् करकै कट्ठे करकै एक जगहां पै बांधण का काम करया था।वै चारुं ऋषि दुनिया के सबतै पहले दार्शनिक थे।उन ऋषियां नैं अर उनके पाच्छै आज ताईं ब्रह्मा आदि हजारां ऋषियां नैं वेदां का प्रचार -प्रसार करकै सारी सृष्टि म्हं ज्ञान देवण का काम करया सै। तर्क करण, विचार करण, प्रमाण गैल्यां बात कहण, प्रश्न ठावण, बुद्धि तैं सोचकै निर्णय लेवण, समस्या की तह म्हं जाकै कारण नै टोहवण की परंपरा सारी दुनिया म्हं भारत के ऋषियां नैं फैलाई सै।आज अंग्रेजी शिक्षा कै प्रभाव म्हं कोये कुछ बी कहता रहवै,पर साच्ची बात याहे सै जो मनैं ऊप्पर बताई सै।
युनानी,रोमन,मिश्री,अरबी,चीनी, जापानी,अफ्रीकन जिसे सारे दर्शनां के मां,बाब्बू अर गुरु सब कुछ भारतीय दर्शनशास्त्र सै। युनानी थैलीज तैं लेकै सोफिस्ट,सुकरात, प्लेटो,अरस्तू ताईं, युनानी विचारकां के नक्शे-कदम पै चाल्लण आले अरबी विचारक, इस्लामी विचारक, यहुदी विचारक, ईरानी विचारक, ईसाई विचारक अंसेलम, बुद्धिवादी और अनुभववादी विचारक, युरोपीयन विचारक,अमेरिकी विचारक, आलोचनात्मक विचारक, अस्तित्ववादी विचारक, नारीवादी विचारक, समकालीन उच्छृंखल विचारक आदि सारे के सारे भारतीय दर्शनशास्त्र के ऋणी सैं। भारतीय दर्शनशास्त्र की किस्सै एक बात नैं पकडकै हनुमान की पूंछ की तरियां बढाकै दुनिया कै आग्गै धर देसैं।धन, दौलत अर प्रचार का जुगाड इन धोरै सैए। इसके हांगे तैं ये कुछ बी मनमाना करते आरे सैं अर इब बी करण लागरे सैं। 
 आज तैं 5000-6000 साल पहल्यां सृष्टि के मूल म्हं काम करण आले वेद सिद्धांत बतावण खात्यर छह दर्शनां का निर्माण करया गया था। मीमांसा दर्शनशास्त्र जैमिनी नैं,वैशेषिक दर्शनशास्त्र कणाद नैं, न्याय दर्शनशास्त्र गौतम नैं, सांख्य दर्शनशास्त्र कपिल नैं,योग दर्शनशास्त्र पतंजलि नैं अर वेदांत दर्शनशास्त्र बादरायण व्यास नैं ल्यक्खे थे।ये छहों दर्शनशास्त्र सूत्ररुप म्हं सैं।पाच्छै इनपै हजारां की संख्या म्हं भाष्य,टीका, व्याख्या आदि करे गये। भारतीय दर्शनशास्त्र के ये सारे ग्रंथ दुनिया के दर्शनशास्त्र के प्रेरणास्रोत रहे सैं।बस जरूरत सै इननैं पड्ढण,ल्यक्खण अर हर रोज के चालचलण म्हं उतारण की।ऊप्पर जिन छह दर्शनां का ज्यक्रा करया गया सै,उनम्हं कर्म कारण, उपादान कारण,प्रमाण कारण, सृष्टि बणावण की विधि अर प्रकृति पुरुष विवेक, योग-साधना कारण अर मूलनिमित्त कारण का भेद खोल्या गया सै। दुनिया के सारे दर्शनशास्त्र पाछले हजारां सालां तैं योए काम करण लागरे सैं।
अब्राहमिक संस्कृति क्योंके एकतरफा भोगवादी भौतिकवादी सै, इसलिये इसके दर्शनशास्त्र नैं फिलासफी कहवैं सैं।इस म्हं कोरे विचारां की कबड्डी घणी हो सै अर जीवन म्हं उतारकै उसै अनुसार जीवन जीण की कोये बी जरूरत ना समझी जाती।इसनैं इस्सै खात्यर भौतिकवादी फिलासफी बी कहवैं सैं।इननैं बाहरी संसार की सुख सुविधा तैं वास्ता खणा हो सै अर चेतना आदि लेणा देणा बहोत कम हो सै।अपणे स्वार्थ नैं पूरा करण खात्यर ये लोग किस्सै गैल्यां कुछ बी धोखाधड़ी अर विश्वासघात कर सकैं सैं।इस्सै उपयोगितावादी अर धोखाधड़ी की फिलासफी तैं प्रभावित होकै यवनां,अंग्रेजां,पुर्तगालियां,डच्चां,
डैनिसां,मंगोलां,मुगलां,अरबियां नैं दूसरे देशां म्हं जाकै खूब हमले करकै उन पै कब्जा करकै तानाशाही तैं हजारां सालां तै राज करया सै। दुनिया के इतिहास नैं पढकै कोये बी इस सच्चाई नैं जाण सकै सै। भारतीय दर्शनशास्त्र नैं कदे बी इसी घटिया, मारकाट मचाववण की, नरसंहार करण की ,बहन बेटियां की इज्जत आबरो नैं लूट्टण की,पूजा स्थलां नैं बर्बाद करण की अर ज्ञान के केंद्रा नैं जलावण की सीख कोन्यां दी सै। भारतीय दर्शनशास्त्र अर युनानी फिलासफी का यो भेद बहोत बड्डा सै।यो आज बी चालरया सै।
सही बात तैं या सै अक भारतीय दर्शनशास्त्र सदा तैं जीवण दर्शनशास्त्र रहया सै अर युनानी फिलासफी सदा तैं कोरे विचारां की कबड्डी रही सै। भारत म्हं दर्शनशास्त्र की जितणी बी शाखा प्रशाखा सैं,सारियां के मान्नण आले अनुयायियां की करोडां म्हं संख्या रही सै। युनानी अर युनानी फिलासफी तैं जन्मी पाश्चात्य फिलासफी म्हं या बात देक्खण नैं कोन्यां म्यलती। इस्सै खात्यर हजारां लाक्खां साल पुराणा भारतीय दर्शनशास्त्र आज बी दुनिया का सबतैं बढ़िया, सृजनात्मक, रचनात्मक,कृण्वंतो विश्वमार्यम् ,वसुधैव कुटुंबकम् नैं मान्नण जाणन आला दर्शनशास्त्र सै। दुनिया म्हं शांति,सद्भाव,भाईचारे, समन्वय,प्रेम, करुणा नैं फलावण खात्यर केवलमात्र भारतीय दर्शनशास्त्र तैं आशा बचरी सै।यो काम जितणे तकाजे तैं होज्या उतणाए बढ़िया सै।
युनानी,मिश्री, रोमन,अरबी,चीनी फिलासफी का प्रेरणास्रोत तै भारतीय दर्शनशास्त्र रहा ए सै, इसके साथ म्हं खुद भारत म्हं बी भारतीय दर्शनशास्त्र तैं प्रेरणा लेकै घणेए दर्शनशास्त्र पैदा होये। उनम्हं बृहस्पति,चार्वाक,मक्खली गौशाला,संजय वेलट्टिपुत्त,प्रकुध कात्यायन,निर्ग्रंथ नाथपुत्त,सिद्धार्थ बुद्ध,गौतम बुद्ध,तंत्र की विभिन्न शाखाएं,भागवत्,त्रैतवाद,द्वैतवाद, अद्वैतवाद,विशिष्टाद्वैतवाद,
शुद्धाद्वैतवाद,द्वैताद्वैतवाद,
शब्दाद्वैतवाद,शक्त्याद्वैतवाद,अचि़त्यभेदाभेदवाद आदि दर्शनशास्त्र दुनिया म्हं प्रसिद्ध सैं। वर्तमान काल म्हं बी भारतीय दर्शनशास्त्र म्हं महर्षि दयानंद , विवेकानंद,अरविन्द,रमण महर्षि, रविन्द्र नाथ , गांधी, जिद्दू कृष्णमूर्ति, ओशो रजनीश,श्रीराम शर्मा आचार्य, राजीव भाई दीक्षित,आचार्य बैद्यनाथ शास्त्री, राधाकृष्णन, कृष्णचंद्र भट्टाचार्य ,सावरकर, अंबेडकर,आचार्य अग्निव्रत आदि सैकड़ों विचारकां अर दार्शनिकां नैं महत्वपूर्ण योगदान दिया सै।
 पहल्यां के समय पै सरकारी व्यवस्था धर्म, संस्कृति,योग, अध्यात्म, दर्शनशास्त्र,नैतिकता, तर्कशास्त्र,आयुर्वेद नैं घणाए महत्व दिया करती।पर इस समय भारत म्हं इनकी हालत बहोत खराब होरी सै।
महाभारत तैं पहल्यां के दार्शनिकां नैन जै छोड बी द्यां तै अर पाछले पांच छह हजार साल की बात करां तै भारतभूमि नैं हजारां प्रामाणिक दार्शनिक दिये सैं।उन म्हं जैमिनी, कणाद,गौतम,कपिल पतंजलि ,बादरायण व्यास, महर्षि वेदव्यास, गौड़पाद, गोविंदपाद,कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गौड़पादाचार्य, शंकराचार्य, प्रभाकर,नागार्जुन,धर्मकीर्ति, अश्वघोष,चंद्र कीर्ति,असंग,वसुबंधु, शान्तरक्षित, आर्यदेव, दिग्नाग,कुंदकुंदाचार्य, उमास्वाति, अकलंक,सिद्धसेन दिवाकर, हरिभद्र ,ईश्वर कृष्ण, विज्ञानभिक्षु, वाचस्पति मिश्र, वात्स्यायन,उद्योतकर,उदयन, जयंत भट्ट,गंगेश उपाध्याय,श्रीधर,,श्री हर्ष,प्रकाशानंद, रामानुजाचार्य,वेंकटनाथ, माध्वाचार्य, जयतीर्थ,व्यास देव, निंबार्क आचार्य, वल्लभाचार्य, वसुगुप्त, अभिनव गुप्त, भास्कराचार्य जिसे हजारां दार्शनिक होये सैं।इननैं संसार अर संसार तैं पार के विषयां पै उट्ठण आली सारी समस्यां पै गंभीरता तैं मात्थापच्ची करकै नये नये विचार ,सिद्धांत अर निष्कर्ष दुनिया के आग्गै रक्खे सैं।
भारतीय दर्शनशास्त्र म्हं एक दौर वो बी आया ज्यब चार्वाक अर तंत्र की आड़ लेकै घणेए इसे दर्शनशास्त्री पैदा होगे,जिननैं सनातन धर्म,संस्कृति अर दर्शनशास्त्र पै ए हमले शुरू कर दिये थे।इन सबनैं शास्त्रार्थ म्हं पराजित करकै दोबारा तैं सनातन धर्म,संस्कृति अर दर्शनशास्त्र नैं स्थापित करण का काम कुमारिल, मंडन मिश्र अर शंकराचार्य नै करया था।
भारतीय दर्शनशास्त्र दुनिया का एकमात्र इसा दर्शनशास्त्र सै,जिसम्हं वैचारिक आजादी मौजूद सै। बाकी के किसै बी दर्शनशास्त्र म्हं थोड़ी बहोत आजादी तै म्यलज्यागी,पर भारतीय दर्शनशास्त्र जितणी आजादी कितै बी कोन्यां म्यलती। युनानी फिलासफी म्हं बी आजादी कोन्यां दिखती।जै उडै वैचारिक आजादी होती तै सुकरात जहर देकै ना मारा जाता। भारत म्हं तै वैचारिक आजादी इतणी सै अक परमात्मा नैं नकारण आले बृहस्पति को गुरुआं का गुरु अर महर्षि कहया गया सै।खुद शंकराचार्य नैं साठ से अधिक संप्रदायां गैल्यां शास्त्रार्थ करया था। सिद्धार्थ बुद्ध के समय पै बी सैकडां मत अर संप्रदाय मौजूद थे।इस तरहां का यो विचारां,मतां अर संप्रदायां की स्थापना करकै फलण फूलण की आजादी भारत में पहल्यां बी थी,आज भी सै अर आग्गे बी रहण की आशा सै।पर वैचारिक आजादी का ज्यब ज्यब भारत की एकता अर अखंडता खात्यर दुरुपयोग होया तै उननैं उस समय के दार्शनिकां अर शासकां नैं दंड भी दिया था। अब्राहमिक मजहबां म्हं या आजादी आज बी कोन्यां म्यलरी सै।इस वैचारिक आजादी नैं कायम राखण खात्यर अधिकार अर कर्त्तव्यां म्हं संतुलन बहोत जरुरी सै।
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आचार्य शीलक राम 
दर्शनशास्त्र- विभाग 
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय 
कुरुक्षेत्र -136119
मोबाइल -9813013065

Tuesday, October 21, 2025

दिवाली के शुभ अवसर पर तृतीय दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन (Third race competition organized on the auspicious occasion of Diwali)

 

धर्म, दर्शन, साहित्य, राष्ट्रवाद, हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार को समर्पित, शोध के क्षेत्र में कार्य करने वाली तथा आचार्य शीलक राम जी द्वारा संचालित आचार्य अकादमी चुलियाणा (पंजी.) द्वारा होली के शुभ अवसर पर तृतीय दौड़ प्रतियोगिता का सफल आयोजन रवि भारद्वाज द्वारा संचालित मास्टर धर्मपाल क्रिकेट अकादमी दिमाना में किया गया। इस प्रतियोगिता में चुलियाणा व दिमाना  के गावों के 150 से ज्यादा लडके व लडकियों ने पांच अलग-अलग आयु वर्ग में भाग लिया। सभी प्रतिभागियों को आचार्य अकादमी की तरफ से रिफरैसमेंट व सभी विजेताओं को स्मृति चिन्ह तथा नकद ईनाम राशि भी प्रदान की गई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ देवेंद्र हुड्डा जी पूर्व प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय सांपला रहे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में आचार्य शीलक राम व आचार्य आकादमी चुलियाणा द्वारा इस प्रकार के आयोजन करना बहुत ही गर्व की बात है। आज जबकि नवयुवक नशे जैसी बुराईयों की ओर जा रहे हैं तो उनका मुकाबला करने के लिए इस प्रकार के आयोजन होते रहने चाहिए। प्रोफेसर रोशन लाल रोहिल्ला ने अपने संबोधन में कहा कि आचार्य शीलक राम व आचार्य अकादमी चुलियाणा द्वारा यह एक बहुत ही अच्छी पहल है तथा आगे भी इस प्रकार के सफल आयोजन करने के लिए बधाई दी। प्रोफेसर पवन कुमार व सुश्री श्रुति डबास ने भी सभी प्रतिभागियों को आशीर्वाद दिया। डॉ. सुरेश जांगडा ने बताया कि आचार्य अकादमी द्वारा यह तृतीय दौड़ प्रतियोगिता है तथा भविष्य में भी प्रतिवर्ष होली व दिवाली के अवसर पर इस प्रकार की खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता रहेगा। इसके अलावा आचार्य अकादमी चुलियाणा कई बार क्रिकेट प्रतियोगिता का भी सफल आयोजन करवा चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि उपरोक्त प्रतियोगिता बिल्कुल निशूल्क करवाई गई है तथा आचार्य अकादमी चुलियाणा अपने चौदह साल के दौरान दो हजार से ज्यादा देश विदेश के कवियों, लेखकों, साहित्याकारों को सम्मानित भी कर चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि आचार्य अकादमी हर साल श्रीमती हेमलता हिन्दी साहित्य (गद्य, पद्यादि) पुरस्कार, राजीव भाई दीक्षित भारतीय इतिहास, आयुर्वेद, स्वदेशी व राष्ट्रभक्ति पुरस्कार, स्वामी दयानन्द सरस्वती दर्शनशास्त्र पुरस्कार, स्वदेशी, राष्ट्रवाद, सनातन वैदिक धर्म व संस्कृति पुरस्कार, चौधरी छोटूराम किसान, मजदूरी और शिक्षा पुरस्कार व बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर समानता व समता पुरस्कार हर साल प्रदान करती है। आचार्य अकादमी लगातार ग्यारह शोध अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं  का प्रकाशन भी कर रही है। जिनमे प्रमाण अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका  (आईएसएसएन : 2249-2976), चिन्तन अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका (आईएसएसएन :2229-7227), हिन्दू अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका (आईएसएसएन:2348-0114), आर्य अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका (आईएसएसएन: 2348876X) व द्रष्टा अंतरराष्ट्रीय मुल्यांकित त्रैमासिक शोध पत्रिका (आईएसएसएन: 2277-2480) प्रमुख है।