Tuesday, November 8, 2016

सनातन भारतीय योग विद्या



राष्ट्रवाद, स्वदेशी एवं मातृभूमि से जुड़ाव के प्रसंग में पांच पहलू अति-महत्त्वपूर्ण होते हैं ये पांच पहलू हैं भाषा, भूषा, भैषज्य, भोजन एवं भजन इनके बिना राष्ट्रभाषा, स्वदेशी, मातृभूमि से प्रेम एवं अपनी संस्कृति के अनुकूल जीना आदि की बातें कतई बेमानी एवं दोगलापन है हम इन्हें अपने जीवन में अपनी संस्कृति भूमि के अनुकूल स्थान दें तथा विदेशी प्रतिकूल की भौंड़ी नकल करके अपने आपको मूढ़ सिद्ध करते रहें, तो यह हमारा आचरण किसी भी तरह से सभ्य नहीं कहा जाऐगा लेकिन विडम्बना है कि इस असभ्याचरण यानि कि विदेशी की भौंड़ी एवं अन्धी नकल करके हम अपनी जड़ों से दूर हो रहे हैं और इसका दुष्परिणाम भारतीय सनातन जीवन मूल्यों के ह्रास के रूप में हम भारत में चहुंदिशि देख सकते हैं अपनी निज भूमि से जिनकी जड़ें उखड़ गई हैं वे व्यक्ति, समाज, समूह या राष्ट्र कभी भी विकास के सही रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकते विदेशों की अपेक्षा यह समस्या हमारे भारत में अधिक विकराल रूप धारण किए हुए है वैसे तो भारतीयों को अपनी जड़ों से उखाड़ने, अपनी सभ्यता संस्कृति से दूर करने या अपने जीवनमूल्यों का अपमान करके जीवनयापन करने का षड्यन्त्र भारत पर विदेशियों के आक्रमणों से ही शुरू हो गया था लेकिन इसकी एक सुचारू शुरूआत इस्लामी बादशाहों ने की, जिसके अन्तर्गत उन्होंने हमारे प्राचीन स्मारकों को तोड़कर या उनमें आंशिक परिवर्तन करके उन्हें इस्लामिक रूप देकर शुरू कर दिया विज्ञान, मनोविज्ञान इतिहास का सहारा लेकिन इस षड्यन्त्र की सबसे विध्वंसकारी शुरूआत लाॅर्ड मैकाले उनके साथियों ने की इन्होंने सैकड़ों विभिन्न विषय के विशेषज्ञों को विश्व की देवभाषा संस्कृत सीखकर भारत की शिक्षा, समाज व्यवस्था, इसके धर्मग्रन्थ, इसके प्राचीन स्मारक, इसकी चिकित्सा, इसके सनातन प्रतीक, इसके भोजन, इसकी वेशभूषा, इसके आचरण, इसके नैतिक मूल्य, इसके चरित्र, इसके विज्ञान, इसके धर्म, इसके दर्शनशास्त्र आदि सबकी उल्टी-पूल्टी, पूर्वाग्रहग्रस्त, मूढ़तापूर्ण, भेदभावपूर्ण एवं विकृत व्याख्या करके भारतीयों को स्वयं की नजरों में नीचे गिरा दिया। उन सैकड़ों मानवता विरोधी षड्यन्त्री विचारकों ने चारों तरफ से भारत पर प्रहार शुरू कर दिए उनका धन, सम्पत्ति, सुविधाओं, स्थान एवं कानून से भरपूर साथ दिया। उस समय की गौरी सरकार तथा ईसाईयत ने यह सब कुकृत्य जीसस क्राईस्ट के प्रेम, सेवा करुणा के उपदेशों को कूड़े के ढेर पर फेंककर हुआ पर्वत के उपदेश पड़े रह गए तथा कुचक्र रचे जाते रहे उस समय की अंग्रेजी सरकार द्वारा इसके बाद 1947 ई॰ में भारत आशिंक रूप से आजाद हुआ तथा सत्ता आई उन हाथों में, जिन हाथों को प्रशिक्षित किया था भ्रष्ट एवं पूर्वाग्रहग्रस्त अंग्रेजी सरकार ने कांग्रेस ने भी लाॅर्ड मैकाले की कुनीतियों का अनुकरण किया तथा इन्हें भरपूर साथ मिला साम्यवादियों का इन सबकी कुचेष्टाओं, सामन्तवादी सोच, स्वदेशी गलत-विदेशी सही की मूढ़ता, स्वदेशी राष्ट्रवाद की उपेक्षा तथा अपनी जड़ों का अपमान करने की कु-प्रवति का दुष्परिणाम आज हमारे सामने है हम लगभग अपनी जड़ों से कटकर जड़विहिन बन चुके हैं हमारी अपनी जड़े हमारे पास हैं नहीं तथा विदेशी भूमि पर हम अपने आपको स्थापित नहीं कर पा रहे हैं इसी से हमारी भाषा, भूषा, हमारा भोजन, भैषज्य हमारा भजन-सबके सब विदेशी होकर रह गए है हमारी दूषित शिक्षा, हमारी भ्रष्ट राजनीति, हमारे निठल्ले सुविधायोगी मठाधीश, हमारा प्रिन्ट इलैक्ट्रोनिक मीडिया तथा मोबाईल हमारे विनाश में सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं सकारात्मक की जगह सर्वत्र नकारात्मक बातें ही मिल रही हैं सृजन की जगह सर्वत्र विध्वंश के अवसरों को महत्त्व दिया जा रहा है योग की जगह सर्वत्र भोग को दिखाया जा रहा है स्वास्थ्य को छोड़कर केवल निरोगता की बातें हो रही हैं आन्तरिक शान्ति को छोड़कर सर्वत्र बाहरी कसरतों नटबाजी को महत्त्वपूर्ण बताया जा रहा है
वैसे ऊपर से हमें लग रहा है कि स्वामी रामदेव श्री मोदी जी तो ठीक ही कर रहे है। इन्होंने तो भारत की सनातन योग विद्या को समस्त धरा पर फैला दिया है आगामी इक्कीस जून कोअन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की सहमति यू॰ एन॰ ओ॰ तक से मिल चुकी है विश्व के 177 देश जिनमें 46 देश मुस्लिम हैं - सारे के सारे इस दिन योगाभ्यास करेंगे भारतीय अधिसंख्य मुसलमान भाई इसका विरोध कर रहे हैं, यह एक अलग एवं दिलचस्प बात है भारतीय हमारे ये भाई तो इस भारत धरती, इसके सनातन आर्य हिन्दू धर्म इसके कर्मकाण्ड एवं इसके प्रतीकों का सदैव से विरोध करते आए ही हैं यह कोई नई घटना नहीं है हमारे ये भाई अपनी संकीर्ण साम्प्रदायिक एवं अवैज्ञानिक सोच हेतु शुरू से ही प्रसिद्ध जो रहे हैं बड़ा हास्यास्पद है क्योंकि जो अपने आपको कट्टर मुसलमान मानते हैं। वे अरब देशों के मुसलमान योगाभ्यास करते भी आए हैं तथा अब भी करेंगे लेकिन जो जबरदस्ती या प्रलोभन देकर हिन्दू से मुसलमान बने हैं - वे इस योगाभ्यास का यह कहकर विरोध कर रहे हैं कि यह इस्लाम विरोधी है
बहुत शुभ है कि योग को वैश्विक मान्यता फिर से मिल रही है पहले भी समस्त धरा के लोग योग करते थे लेकिन महाभारत युद्ध से आई विकृतियों तथा उसके बाद में भारत पर हुए विदेशी हमलों की वजह से भारत की यह विद्या कई क्षेत्रों से अपना प्रभाव खोने लगी थी। यहुदी, पारसी, ईसाई मुसलमानों ने अपने-अपने सम्प्रदाय खड़े कर लिए तथा अपने मूल आर्य वैदिक हिन्दू धर्म के किसी एक पहलू या किसी एक सीख को अपनाकर इन्होंने अपने मूल का ही विरोध करना शुरू कर दिया फिर यह विद्या-फिर यह अभ्युदय निःश्रेयश से सम्पन्न विद्या भारत तक ही सिमट गई आज एक बार फिर से इसका पुनरुद्धार हो रहा है लेकिन दुःख पीड़ा से कहना पड़ रहा है कि स्वामी रामदेव तथा माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी इस सनातन भारतीय योग विद्या को एक तो मुसलमानों ईसाईयों का तुष्टीकरण करने हेतु इस विद्या के दुरुपयोग का काम कर रहे है। ये इनके नेता तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन भी यह घोषित कर रहे हैं कि योग विद्या का किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है जबकि योग विद्या की खोज इस पर कार्य वेदों से लेकर आज समकालीन युग में स्वामी दयानन्द, ओशो रजनीश, जिद्दू कृष्णमूर्ति तथा श्री राम शर्मा आचार्यों ने किया है। इसके बाद भी इस तरह की घोषणाएं क्यों? इस सम्बन्ध में झूठ को क्यों प्रचारित किया जा रहा है? प्रारम्भ में ही योग विद्या के प्रारम्भिक चरणों यम नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं 21 जून को मनाए जाने वालेअन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर योग के प्रत्याहार, धारणा, ध्यान समाधि नामक अंगों को बिल्कुल विस्मृत कर दिया गया है।
दूसरा, योग के एक-दो अंगों को लेकर केवल इन्हीं को सम्पूर्ण योग कहकर प्रचारित करके इस योग विद्या से होने वाले बाहरी भीतरी लाभों से मानवता को वंचित क्यों किया जा रहा है? इसके साथ-साथ इस विद्या को बदनाम करके भारतीय सनातन आर्य वैदिक हिन्दू संस्कृति को विकृत व्याख्या भी की जा रही है योग को कलियुग के शुरू में व्यवस्थित रूप देकर 195 सूत्रों में निबद्ध करकेयोगसूत्र जैसे ग्रन्थ को देने वाले महर्षि पतंजलि की अष्टांगयोग परम्परा को इस में कतई भूला दिया गया है जो कुछ भी आजकल हो रहा है या आगामी इक्कीस जून को होगा, वह मात्र आसनयोग प्राणायामयोग है, योग नहीं इस सनातन योग विद्या, जिसके बारे में उपनिषद्आत्मा वारे द्रष्टव्यः यातस्मिन्द्दष्टे परावरे कहते हैं, जिसके बारे में महर्षि पतंजलियोगश्चित्तवृत्तिनिरोधः कहते हैं, गीताअध्यात्म ज्ञान नित्यत्वं तत्त्व ज्ञानार्थदर्शनम् कहती है तथा ओशो रजनीश एवं जिद्दू कृष्णमूर्ति जिसको बाहरी भीतरी शुद्धि करते हुए होश जागरण की क्रियारहित क्रिया कहते हैं - उसी सनातन भारतीय योग विद्या को मात्र देह के रोगों को दूर करने का साधन कहकर पूरी दुनिया में प्रचारित किया जा रहा है मात्र कुछ आसनाभ्यास, कुछ प्राणायाम अभ्यास, कुछ मालिश, कुछ बाहरी कसरतों, व्यायामों तथा उछल-कूद को योग कहा जा रहा है एक तरह से योग के सम्बन्ध में यह प्रचार मैकालेवादियों की तरह का स्वामी रामदेव श्री मोदी जी का प्रचार है भारतीय आर्य वैदिक सनातन हिन्दू संस्कृति का उन्होंने भी गलत, भ्रमित पूर्वाग्रहपूर्ण प्रचार किया था तथा आज यही सब योग विद्या को लेकर हो रहा है ध्यान रहे अर्धज्ञान अज्ञान से भी अधिक खतरनाक होता है।
&आचार्य शीलक राम
दर्शन विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र
(हरियाणा)